विकास की राजनीति को तरसता यूपी

इक़बाल हिंदुस्तानी

कांग्रेस के युवराज माने जाने वाले राहुल गांधी को यूपी की दयनीय हालत देखकर गुस्सा आता है तो प्रदेश की सीएम बहनजी को युवराज पर इस बात को लेकर गुस्सा आ रहा है कि उनको कांग्रेस शासित राज्यों और केन्द्र का भ्रष्टाचार , जंगलराज और महंगार्इ नहीं दिख रही। उधर सपा का जातिवादी और भाजपा का साम्प्रदायिक राज देख चुका यहां का मतदाता इन सब दलों की राजनीतिक पैंतरेबाजी देखकर गुस्सा हो रहा है। कभी केंद्र की राजनीति को निर्णायक रूप से तय करने वाला देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश आज धर्म और जाति की राजनीति की अंधी सुरंग में फंसकर रह गया है। हालांकि उत्तराखंड बनने के बावजूद लोकसभा की 80 और विधानसभा की 403 सीटों के एतबार से देखा जाये तो इसके प्रभाव और महत्व में कुछ ख़ास अंतर नहीं आना चाहिये था, लेकिन 1989 के बाद से बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि विवाद से राज्य की राजनीति ने जो करवट ली वह आज तक पटरी पर वापस लौटने को तैयार नहीं लगती। 2007 के चुनाव में जब लंबे समय के बाद बसपा की बहनजी के नेतृत्व में 206 विधायकों की स्पस्ट बहुमत की सरकार बनी तो लोगों का विश्वास था कि शायद अब रोज़ रोज़ गठबंधन तोड़ने की छोटे राजनीतिक दलों और निर्दलीय विधायकों की ब्लैकमेलिंग पर रोक लगेगी और मायावती न केवल दलितों बलिक पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीब उच्च जातियों के भी हितों का पूरा ख़याल रखते हुए तेजी से विकास कार्यों का बढ़ावा देंगी। इससे पहले लोगों को सपा के राज के अंतिम दिनों में निठारी का वह वीभत्स कांड भी याद था जिस पर बड़े आराम से सपा के वरिष्ठ नेता और मुलायम सिंह के भार्इ शिवपाल यादव ने यह कहकर लोगों के जख्मों पर नमक छिड़का था कि इतने बड़े प्रदेश में ऐसे छोटे मोटे मामले तो होते ही रहते हैं। जो बसपा पहले दलित वोट बैंक को पक्का करने के लिये बिना किसी संकोच के ‘ तिलक तराज़ू और तलवार, इनको मारो….. का नारा खुलेआम देती थी अब वही ब्रहमा विष्णु महेश है, हाथी नहीं गणेश है का नारा घड़ चुकी थी। मुसलमानों ने सपा और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर भाजपा का ख़तरा कम होता देख बसपा को एक मौका यह अपील स्वीकार करते हुए भी देने का मन बनाना शुरू किया था कि अगर बसपा इतनी सीटें जीत ले कि उसको भाजपा के समर्थन की आवश्यकता ही न रह जाये तो वह मुसलमानों का सपा से अधिक भला कर सकती है।

वही हुआ जिसका डर था कि जिस तरह भाजपा ने मंदिर के नाम पर भावनायें भड़काकर 1991 में चुनाव तो जीत लिया लेकिन उसके पास भय, भूख और भ्रष्टाचार मिटाने का कोर्इ सुनियोजित कार्यक्रम नहीं था जिससे भय और भूख तो प्रदेश में बढ़ती गयी लेकिन भ्रष्टाचार को बढ़ाने का ठेका स्वंय भाजपा की सरकार भी नहीं छोड़ पायी। सपा के राज में भी यादव और पिछड़ी जातियों के साथ मुसलमानों ने जिस उम्मीद से मुलायम को सत्ता सौंपी थी वह कभी परवान चढ़ती नज़र नहीं आर्इ अलबत्ता उर्दू अनुवादकों और शिक्षकों के नाम पर कुछ भर्तियां करने के साथ मुलायम ने अपनी जाति और अपने क्षेत्र सैफर्इ को विश्व स्तर की सुविधायें देने में कोर्इ कोर कसर नहीं छोड़ी। सपा को लगता था कि मुसलमान तो केवल भाजपा की सरकार बनने से रोकने और भावनात्मक बयानों से ही संतुष्ट हो जाता है तो फिर उसके लिये कुछ अधिक करने की क्या ज़रूरत है। इस दौरान सपा ने एक बार चौ0 अजित सिंह के रालोद की सपोर्ट से सरकार बनार्इ तो कुछ जि़ले उनको अपने तरीके से चलाने को छोड़ दिये जिससे वह भी संतुष्ट रहे।

अगर धर्म और जाति के आंकड़ों के हिसाब से गुणा भाग की जाये तो प्रदेश में सबसे अधिक संख्या 28 प्रतिशत पिछड़ी जाति, उसके बाद 22 प्रतिशत दलित, 16 प्रतिशत मुसलमान, 11 प्रतिशत ब्रहम्ण, 9 प्रतिशत ठाकुर, 4 प्रतिशत वैश्य, 4 प्रतिशत जाट और 5 प्रतिशत अन्य जातियों के वोट माने जाते हैं। पिछड़ों में यादवों की तादाद सबसे अधिक बतार्इ जाती है। यह विडंबना ही है कि देश की स्वतंत्रता के बाद से यूपी में 1989 तक अधिकांश समय कांग्रेस का ही राज रहा। उसके वोट बैंक में मुख्य रूप से ब्रहम्ण+दलित+मुसलमान हुआ करते थे। बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने के बाद से मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा कांग्रेस से ऐसा ख़फा हुआ कि आज तक उसने कांग्रेस को माफ करने का पूरी तरह मन नहीं बनाया। आखि़र वह उस कांग्रेस को माफ कर भी कैसे सकता है जिस पर उसने बाबरी मस्जिद बचाने का भरोसा किया था। मुसलमान धार्मिक रूप से बेहद संवेदनशील होता है। इस बात को कांग्रेस शायद भूल गयी कि मुसलमानों ने 1400 साल बीतने के बाद भी आज तक कर्बला के यज़ीद को माफ नहीं किया तो वह बाबरी मस्जिद की दो दशक पुरानी शहादत के लिये कांग्रेस को कैसे माफ कर सकता है। यही वजह है कि आज 22 साल बाद भी मुसलमान पूरी तरह कांग्रेस की तरफ लौटने को तैयार नहीं है।

उधर मंदिर मस्जिद विवाद की शतरंज तो बिछार्इ थी कांग्रेस ने लेकिन मौका भांपकर उसपर वोट बैंक की चालें चलनी शुरू कर दी भाजपा ने। उसने न केवल कांग्रेस का सबसे मज़बूत वोट बैंक ब्रहम्ण तोड़ा बलिक कुछ पिछड़ी जातियों को भी अपने साथ लामबंद करके प्रदेश की राजनीति को मंडल बनाम मंदिर की राजनीति में रंग दिया। हालांकि 1989 के बाद बनी जनता दल की सरकार को भाजपा ने मौके की नज़ाकत देखते हुए बाहर से समर्थन दिया था लेकिन उसकी नज़र राममंदिर के रथ पर चढ़कर खुद सत्ता की सवारी करने की थी। धीरे धीरे वह अपने मकसद में कामयाब होती गयी और 1991 में उसने अपने बल पर सत्ता हासिल भी कर ली।

उसके बाद जिसका डर था वही बात हुई कि प्रदेश की राजनीति धर्म से धीरे धीरे जाति की तरफ बढ़ चली और समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साझा गठबंधन ने भाजपा के हिंदुत्व को धता बताते हुए पिछड़ी और दलित जाति के गठबंधन को मुस्लिम मतों के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर लीं। यहां मुस्लिम मतदाताओं का एक सूत्रिय कार्यक्रम भाजपा हराओ अभियान था। पहले मुलायम सिंह ने इस गठबंधन की आड़ में अपने सजातीय यादव बंधुओं को सत्ता की मलार्इ चटाने का काम किया तो मौका देख एक दूर की कौड़ी लाते हुए भाजपा ने बसपा की सरकार पहली बार अपनी सपोर्ट से बनवाकर पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों का यह अनोखा समीकरण तोड़ दिया। मायावती ने प्रदेश की पहली दलित मुख्यमंत्री बनकर भविष्य की दलित राजनीति की नींव मज़बूत करने की ठानी। इसके बाद सरकार गिरी और फिर से वही समीकरण चुनाव बाद उभरकर सामने आये जिसमें सपा बसपा के बीच दरार पैदा होने के कारण भाजपा और बसपा ने बारी बारी से चलने वाली छह छह माह की सरकार बनाने का नया प्रयोग किया लेकिन अपनी बारी पूरी होते ही बसपा वादे से मुकर गयी और जब भाजपा अपनी सरकार अपने बल पर विधायकों को तोड़कर बनाने में कामयाब हो गयी तो बसपा हाथ मसलकर रह गयी लेकिन उसने देखो और इंतज़ार करो की नीति अपनाते हुए हथियार नहीं डाले। इस दौरान मुलायम सिंह ने केंद्र में राजग की अटल सरकार अल्पमत में आने के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में बनने जा रही सोनिया गांधी की सरकार विदेशी मूल के बहाने से रोककर यूपी में तीसरी बार भाजपा के समर्थन से बनी बसपा की सरकार तनाव बढ़ने के साथ गिरने पर अपनी अल्पमत सरकार बनने का रास्ता तलाश कर लिया। हालांकि उनके सामने समस्या भाजपा से समर्थन न लेने और बसपा के विधायकों को तोड़कर दलबदल कानून से उनको बचाने की बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद थी लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी से पर्दे के पीछे अच्छे सम्बंधों का लाभ सपा को भाजपा के तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी के सौजन्य से मिला जिन्होंने मुलायम की सरकार का कार्यकाल पूरा होने तक यह फैसला दबाये रखा कि बसपा के विधायक टूट के समय एक तिहायी थे या नहीं जब तक मामला अदालत में तय हुआ तब तक मुलायम सिंह अपना कार्यकाल पूरा कर चुके थे । इस एहसान का बदला मुलायम सिंह ने लखनउ में अटल के सामने सपा का उम्मीदवार न उतारकर चुकाया। बसपा ने हालांकि तीन तीन बार भाजपा से मिलकर सरकार बनाकर मुसलमानों को खुद से दूर कर लिया लेकिन इसके बाद दलितों के अंदर मायावती को अपने बलबूते पर प्रदेश की सीएम बनाने की जो इच्छा पैदा हुई इसी का नतीजा है कि दलित एक ऐसा सालिड वोट बैंक बन गया जिसको बसपा जहां चाहे वहां स्थांनांतरित कर सकती है। बसपा की यही सोशल इंजीनियरिंग उसको अपने बल पर स्पष्ट बहुमत की सरकार बनवाने में कामयाब रही लेकिन यहां एक बात बसपा भूल रही है कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ा करती। जो गैर दलित वोट उसको मिला था वह सपा के जंगल राज से तंग आकर ऐंटी इन्कम्बैंसी फैक्टर के कारण भी मिला था। यह इधर उधर होने वाला वोट किसी एक पार्टी या नेता के साथ चिपका नहीं रहता बलिक हवा का रूख़ देखकर चुनाव के ऐन टाइम पर ही फैसला करता है। प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर जंगलराज सपा के अंतिम दौर से भी अधिक कायम हो जाने, नरेगा और केंद्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं मं बेहद भ्रष्टाचार बढ़ने, थाने नीलाम होने, खुद बसपा मंत्रियों और विधायकों के गंभीर आरोपों में फंसने, जनता की गाढ़ी कमार्इ का अरबों रूपया पार्कों और स्मारकों में लगने, किसानों की खेती की ज़मीन औने पौने दामों में जबरन अधिग्रहित करने, अधिकारियों की नियुकित और तबादलों में मोटी कमार्इ करने, पुलिस द्वारा फर्जी़ एनकाउंटरों में यूपी के सबसे अधिक बेकसूरों के मारे जाने के मानव अधिकार आयोग के गंभीर आंकड़ों आदि से बसपा को सत्ता में एक बार फिर लौटने की गलतफहमी नहीं पालनी चाहिये वहीं बसपा से नाराज़ मतदाता विकल्प के तौर मुख्य विरोधी दल सपा को चुनाव जिताने जा रहा है यह खुशफहमी मुलायम सिंह को नहीं होती तो वह कांग्रेस से गठबंधन टूटने का लोकसभा चुनाव का भूलसुधार करने में देर नहीं करते। खुद कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी चाहे जितनी मेहनत यूपी के मिशन 2012 को सामने रखकर कर रहे हों लेकिन उनकी पार्टी के नेतृत्व में चल रही सेंटर की सरकार के भ्रष्टाचार और महंगार्इ से उनको लोकसभा जैसा सपोर्ट भी मिलने के दूर दूर तक आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है वह आज भी दिन में सपने देख रही है जबकि उसके हिंदुत्व को खुद हिंदू जनता ही कभी का ठुकरा चुकी है। उसके पास न कोर्इ चुनावी रण्नीति है और न ही विकास का नया माडल । वह तो अब पूरी तरह कांग्रेस की बी टीम बन चुकी है जिससे वह और दलों के लिये पहले ही अछूत बनी हुई है। अगर सपा, कांग्रेस और लोकदल का किसी ठोस साझा न्यूनतम विकास कार्यक्रम के आधार पर गठबंधन होता है तो बसपा को कड़ी टक्कर दी जा सकती है, अन्यथा विकल्प न मौजूद होने से इस समय तो बसपा थोड़ी सी सीटें खो कर भी सबसे बड़ी पार्टी बनने से रूकती नज़र नहीं आ रही है।

 

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

3 COMMENTS

  1. माननीय इक़बाल हिन्दुस्तानीजी
    अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए आपने जो कष्ट किया उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ .अपने लेख में बाबरी मस्जिद विवाद के सम्बन्ध में अपने जो मुसलमानों की धर्म सम्बन्धी मान्यताओं के विषय में लिखा उस से मुझे ऐसा भ्रम हुआ की उसी धर्म के अनुयायी होते हुए आप भी वही मान्यताएं रखते होंगे. यह जान कर हर्ष हुआ की आप की सोच राष्ट्रीय सद्भाव स्थापित करने में केन्द्रित है. अपनी टिप्पणी में मैंने बाबरी मस्जिद , भारत में मुसलमानों द्वारा हिन्दू मंदिरों का विध्वंस और उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण,विजेता मुसलमानों द्वारा विजित हिन्दुओं पर घोर अत्याचार, तथा इस्लाम धर्म की मूल पुस्तक में इस्लाम को न मानने वालों के प्रति निर्देशों के बारे में लिखा था. कृपया यह बताने का कष्ट करें की मेरे द्वारा लिखी गयी कौन कौन सी बात आप के विचार से असत्य है . आशा है आप मुझे भी अपना पक्ष आपके सामने रखने का अवसर देंगे. निर्णय तो आपका अधिकार है ही

  2. सत्यार्थी जी आमतौर पर मैं प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया नहीं लिखता लेकिन आपकी साम्प्रदायिक और संकीर्ण सोच ने मुझे आपके घटिया और फासिस्ट आरोपों का जवाब देने को मजबूर कर दिया है।
    सबसे पहले तो यह स्पश्ट करना चाहता हूं कि इस लेख में चुनाव को लेकर व्यक्त विचार मेरे निजी नहीं हैं बल्कि इसमें यूपी की राजनीति का विश्लेषण करने के कारण मैंने यह लिखा है कि बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि विवाद को लेकर मुसलमान कांग्रेस के बारे में क्या राय रखता है। जहां तक मेरी अपनी व्यक्तिगत सोच का सवाल है तो मैं व्यक्तिगत रूप से किसी भी धर्म या मज़हब और पंथ की ऐसी बात के पक्ष मंे नहीं हूं जिससे आपसी भाईचारे अमनचैन और एकता को नुकसान पहंुचता हो। इस की पुष्टि के लिये आप प्रवक्ता डॉटकाम पर ही मेरा लेख सुदर्शन सादिक की मुलाकात से क्यों डर रहे हैं वे…., पाकिस्तान पिद्दी न पिद्दी का शोरवा…. और क्या यही हकीकत है सच्चे मुसलमानों की….लेख पर प्रतिक्रिया पढ़िये तब मेरे बारे में कोई राय कायम करें।
    जहां तक मेरे नाम मंें हिंदुस्तानी लगाने पर आपको एतराज़ है तो यह सलाह मैंने आपसे ली नहीं है क्योंकि यह हर किसी का संवैधानिक अधिकार है। आपसे न तो मुझे कोई देशभक्ति का प्रमाणपत्र चाहिये और न ही मान्यता। खुद आप अपने नाम के विपरीत बात कर रहे हैं क्योंकि न तो आप सत्य बात लिख रहे हैं और न ही सत्य का सही अर्थ जानते हैं। आप तो साक्षात सत्य की अर्थी बन गये लगते हैं। आप मुझे राष्ट्रवादी मानसिकता की सलाह क्या देंगे आप तो खुद राष्ट्रविरोधी सोच से ग्रस्त हैं। जिसका नमूना आपके विचार हैं। रहा पाकिस्तान जाने का सवाल देश आपकी निजी जागीर नहीं है। यह देश हमारा भी है। जिन्होंने पाकिस्तान बनाया होगा वे वहां चले गये होंगे। हमारे पूर्वजों ने भारत में रहने का विकल्प चुना था सो हम यहीं रहेंगे चाहे इसकी कीमत कुछ भी चुकानी पड़े। आपके चाहने या कहने से और चीख़ने या चिल्लाने से क्या फायदा किसी देश से किसी समुदाय को बाहर नहीं निकाला जा सकता। वर्ना मैं भी आपसे यही कहता कि आप हमें पाकिस्तान या मुस्लिम मुल्कों में भेज रहो हो अगर हमारे साथ रहने में ज़्यादा ही कष्ट हो रहा हो तो आप भी श्रीलंका या नेपाल तो जा ही सकते हो लेकिन मैं आपकी गल्ती नहीं दोहराना चाहता क्योंकि मैं जानता हूं कि व्यावहारिक रूप से यह संभव भी नहीं है और ठीक भी नहीं है।
    रहा बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि विवाद का मामला आप भी संघ परिवार के उसी दुष्प्रचार का शिकार हैं जिसमें बिना किसी सबूत और गवाहांे के एकतरफा दावे किये जाते रहे हैं। मुसलमानों के भारत में केवल हमलावर बनकर आने के दावे भी इसी श्रृंखला की एक कड़ी है। सच्चाई क्या है आप प्रतीक्षा कीजिये सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। मुसलमान तो इस निर्णय को मानने की बात पहले ही कह चुका है। आप जैसे लोग ही आस्था का सवाल बताकर इसे मानने से एडवांस में मना करते हैं तो फिर उन चंद मुसलमानों की आस्था के नाम पर जेहादी सोच का विरोध करने का नैतिक अधिकार आपको कैसे मिल सकाता है? एक बात और आज अगर देश में भाजपा हिंदू राष्ट्र नहीं बना पा रही है तो इसके लिये मुसलमानों को नहीं उन हिंदुओं को श्रेय देना होगा जो संघ परिवार के साम्प्रदायिक और फासिस्ट एजंेडे से सहमत न होकर भ्रष्ट होने के बावजूद कांग्रेस को 2009 में एक बार फिर से सत्ता सौंप चुका है।
    अगर आप आंखों पर लगा साम्प्रदायिकता का चश्मा उतार देंगे तो आपको पता लगेगा कि देश का गद्दार कौन है? जो लोग कालाधन बनाकर विदेशों में छिपाये हैं? जो लोग दंगे करा कर इस देश में एकता, भाईचारा और अमनचैन नहीं रहने देना चाहते? जो गुजरात सरकार एक वर्ग विशेष का कत्लेआम कराती है? मालेगांव विस्फोट में असीमानंद ने जो कुछ स्वीकार किया है उसके बाद यह दावा नहीं किया जा सकता कि केवल मुसलमान ही आतंकवादी वारदातें करते हैं। बटला हाउस एनकाउंटर की जांच न कराने से यह पहले ही पता चल चुका है कि यह फर्जी ही था। गुजरात में सोहराबुद्दीन के बाद अब इशरत जहां मुठभेड़ फर्जी साबित होने से साबित हो चुका है कि भाजपा कितनी बेईमान झूठी और मुस्लिम विरोधी है। जो संघ परिवार सुप्रीम कोर्ट और सरकार को झूठा शपथपत्र देकर बाबरी मस्जिद का ध्वंस कर देता है जिससे न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में मुसलमानों के साथ ही हिंदुओं को भी नुकसान होता है। जिसकी वजह से आतंवाद बढ़ता है। जिसकी वजह से देश के दुश्मनों को पाकिस्तान और कश्मीर में मुस्लिम नौजवानों को गुमराह कर कट्टरपंथी बनाने को मौका मिलता है। अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने से समस्यायें हल नहीं हो जाती बल्कि जो आप दुसरों से चाहते हैं वो खुद बनकर आदर्श बनाना होता है। -इक़बाल हिंदुस्तानी पब्लिक आब्ज़र्वर

  3. इक़बाल हिन्दुस्तानीजी का यह लेख बेहद विचारणीय है उनपर कठमुल्ला पन का आक्षेप नहीं लगाया ज़ा सकता.इक़बाल साहेब केवल एक पढ़े लिखे मुसलमान ही नहीं वरिष्ठ पत्रकार तथा एक पत्र/पत्रिका के सम्पादक भी हैं उनका यह लेख भारतीय आधुनिक, प्रगतिशील मुसलमानों की मानसिकता को पूरी सच्चाई के साथ दर्शाता है.इक़बाल जी ने अपना तखल्लुस हिन्दुस्तानी जाने क्या सोच कर रखा है. कुछ दिन पहले मैं सुरेश चिपलूनकर जी के लेख पर इक़बाल जी की टिप्पणी पढ़ कर आश्चर्यचकित हो गया था इस लेख से स्पष्ट हो गया की ऐसी टिप्पणी उन्हों ने किस कारण से की .सब से पहले तो इक़बाल जी ने साफ साफ यह बताया की उपनाम भले ही हिन्दुस्तानी हो पर मानसिकता केवल कट्टर मुसलमानी ही है.और वे उसी दृष्टिकोण से प्रत्येक विषय का विश्लेषण करने पर विवश हैं. “मुसलमान धार्मिक रूप से बेहद संवेदनशील होता है. इस बात को कांग्रेस शायद भूल गई की मुसलमानों ने १४०० साल बीतने के बाद भी आज तक कर्बला के यजीद को माफ़ नहीं किया तो वह बाबरी मस्जिद की दो दशक पुरानी शहादत के लिए कांग्रेस को कैसे माफ़ कर सकता है”
    देश की जनसँख्या के एक बड़े वर्ग की यह ही मानसिकता देश की अखंडता तथा जनता में पारस्परिक सौहार्द के लिए गंभीर संकट को जन्म देने वाली है. बाबरी मस्जिद को ही लीजिये. एक मस्जिद जो एक आक्रान्ता द्वारा मंदिर तोड़ कर उसी स्थान पर बनाई गई उस के बारे में हिन्दुओं की भी कुछ भावनाएं हो सकती हैं यह इक़बाल जी को नहीं सूझता.माननीय इक्बाल जी, यदि कोई हिन्दू या इसाई विजेता आपके पवित्र काबे को ध्वंस कर के उस स्थान पर एक विशाल मंदिर या गिरजाघर का निर्माण करे तो आप को कैसा लगेगा. केवल अयोध्या ही नहीं हिन्दुओं के पवित्रतम तीर्थों मथुरा और काशी में इसी प्रकार की मस्जिदें अभीतक विद्यमान हैं और हिन्दुओं को मुसलमान शासकों के जघन्य अत्याचारों का प्रतिक्षण ज्वलंत दिग्दर्शन कराती रहती हैं.भारत का इतिहास मुसलामानों द्वारा हिन्दुओं पर किये गए अत्याचारों की लोमहर्षक गाथाओं से भरा पड़ा है पर शायद आप के विचार से मुसलमान विजेताओं ने कुछ भी गलत नहीं किया और हिन्दुओं को इन बातों पर क्रोधित होने का कोई अधिकार नहीं है .कुरान शरीफ जिसे आप ईश्वर वाक्य समझते हैं हिन्दू,सिख ,जैन,बौद्धों आदि को जीने का अधिकारी ही नहीं समझता. ईसाई और यहूदी भी केवल द्वितीय श्रेणी के हीन धिम्मी नागरिक बनकर तथा स्वेच्छा पूर्वक जजिया दे कर ही रहने दिए ज़ा सकते हैं भारत दारुल हर्ब है जिसे दारुल इस्लाम बनाना आप का कर्त्तव्य है. यहाँ का कानून शरियत सम्मत होना चाहिए जिहाद आपका फ़र्ज़ है. आदि आदि.
    भाई इक़बाल जी दुनिया में अनेक मुसलमान देश हैं जहाँ आप आराम से रह सकते हैं. वैसे भी भारत के मुसल्मानोने अपना हिस्सा लेकर पाकिस्तान बनवा लिया आप फिर भी पाकिस्तान नहीं गए . नाम भी हिन्दुस्तानी रख लिया अब कृपया सोच भी हिन्दुस्तानी बना डालिए और हर समस्या पर एक सामान्य भारतीय की तरह सोचिए .एक संकीर्ण मुसलमान की तरह नहीं जो केवल मुसलमानों के सांप्रदायिक दृष्टिकोण से बाहर जाकर देखने सोचने में असमर्थ हो और जो इस्लाम को ही परम सत्य मान कर केवल मुसलमानों के हित की चिंता में ग्रस्त रहे. यदि भारतीय मुसलमानों की सोच यही रही तो सौहार्द कैसे संभव होगा? अनेक प्रश्न आपके सामने आयेगे जहाँ आपको फैसला करना होगा की आप की निष्ठां देश के प्रति है या धर्म के प्रति .आपका इस्लामी धर्मानुराग देश हित के विरुध हो सकता है आप के पूर्वजों ने इस्लाम धर्मं किन परिस्थतियों में ग्रहण किया और उनके पूर्वजों की उपलब्धिओं पर क्या आप गर्व नहीं कर सकते ? अंध आस्था से ऊपर उठ कर अपनी बुद्धि तथा विवेक का उपयोग कीजिये

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