क्या यह हिंसा ही अल्लाह की खिदमत है!

उत्तर प्रदेश में घट रही घटनाएं साधारण नहीं हैं। यूपी के मायाराज और दिल्ली के सोनियाराज में सेकुलर राजनीति के दुष्परिणाम हिंदू अपनी बहन-बेटियों की अस्मत और अपने तीर्थ-त्योहारों की कीमत देकर चुका रहे हैं। विगत दिनों जो कुछ बरेली में हुआ और जो अब रायबरेली में हो रहा है, उससे तो यही सबक मिलता है।

उत्तर प्रदेश में जारी हिंसा का ताण्डव सभ्य समाज को बहुत कुछ समझने और समझाने के लिए पर्याप्त है। जिहादी कठमुल्ला समाज अपनी ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाते हुए सामाजिक सौहार्द्र और सहिष्णुता की परंपरा को बार-बार ललकार रहा है। कहने के लिए तो अल्पसंख्यक किंतु बात-बात पर बांहे और लुंगी-पजामे चढ़ाए हिंसा पर उतारू इन कथित ‘अल्पसंख्यकों’ का यह खूंखार वहशियाना व्यवहार! इस पर क्या टिप्पणी की जा सकती है। ऐसे में प्रतिहिंसा भड़क जाए तो कौन जिम्मेदार होगा। याद रखिए कि गोधरा ने गुजरात को महीनों जलने के लिए मजबूर कर दिया था।

होली, विजया दशमी और दिवाली हिंदुओं के पवित्र त्योहार हैं। नवरात्रों का पर्व समस्त भारतीयता को आनन्द और उत्सव के भक्ति रस में उत्तर से लेकर दक्षिण तक सराबोर कर देता है। इन त्योहारों पर वर्ग विशेष द्वारा बार-बार तनाव पैदा करना, छोटी-छोटी बातों को मजहब विरोधी बताकर उसे तूल देना कहीं से भी सहिष्णु और समझदार मानसिकता का परिचय नहीं है।

हजारों लोग रंग खेल रहे हों और उसमें से उड़ता हुआ अबीर-गुलाल, रंग यदि कहीं किसी के ऊपर थोड़ा सा पड़ जाए, किसी मस्जिद की दीवार रंग की कुछ बूंदों से रंगीन हो उठे, दीपक की रौशनी में कहीं किसी घर-आंगन में पटाखों की आवाज चेहरे पर मुस्कान बिखेरे और दूर अंधेरे आकाश में आतिशबाजी के प्रकाश में जब लोग जिंदगी की खुशी के कुछ पलों का आनन्द ले रहे हों तब किसी समूह विशेष के पेट में इन उत्सवों और आनन्द-परंपरा को लेकर मरोड़ उठने लगे, कुछ लोग इसे बंद कराने के लिए व्याकुल हो उठें तो इसे पागलपन और उन्माद के सिवाय क्या कहेंगे।

यह उन्माद आखिर क्यों छंटने और खत्म होने का नाम नहीं लेता। क्यों यह बड़वानल की भांति दिन-दूना, रात चौगुना बढ़ता जा रहा है। कभी मऊ में तो कभी पड़रौना-कुशीनगर में, कभी आजमगढ़, अलीगढ़ में तो कभी गोरखपुर में और अब बरेली-रायबरेली में…।

कारण कुछ भी हों लेकिन इतना तो सत्य है कि बीते पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश में जहां भी दंगे भड़के वहां हिंदू किसी भी कारण से क्यों ना हो, उस समय निशाने पर लिए गया जबकि संपूर्ण समाज किसी ना किसी उत्सव और भक्ति-भावना के आवेग में उल्लसित, आनन्द से ओत-प्रोत था।

पड़रौना-कुशीनगर में करीब पांच वर्ष पूर्व जन्माष्टमी के उत्सव के पूर्व एक कस्बे में जिहादी मुसलमानों ने इस बात पर आपत्ति कर दी कि हिंदुओं के भगवान कृष्ण का डोला उनकी बस्ती से नहीं गुजरेगा। इस घटना के कुछ महीने बाद गोरखपुर में एक बारात में नाचते-गाते, आतिशबाजी करते हुए जाते लोगों पर केवल इस बात के लिए हमला बोल दिया गया कि उन्होंने मना करने के बावजूद आतिशबाजी क्यों जारी रखी। और तो और बारात में से जबरन खींचकर एक हिंदू युवक को तलवार घोंपकर दिन-दहाड़े मार डाला गया।

आजमगढ़ में एक विद्यार्थी को दिनदहाड़े एक अल्पसंख्यक महाविद्यालय में तीन वर्ष पूर्व केवल इसलिए छुरा घोंपकर मार डाला गया क्योंकि वह कथित तौर पर एक हिंदू संगठन के लिए काम करता था। इसके बाद विरोध प्रदर्शन करने के लिए आजमगढ़ पहुंचे भाजपा सांसद एवं गोरक्षपीठ के युवा उत्तराधिकारी योगी आदित्य नाथ के वाहनों के काफिले पर केवल इसलिए भीषण हमला बोल दिया गया कि उन्होंने मुस्लिम मोहल्ले से जाने की हिमाकत क्यों की।

और इसी प्रकार की रक्तरंजित होली कुछ वर्ष पूर्व विजयादशमी के समय मऊ में खेली गई। मऊ के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में सैंकड़ों वर्षों के इतिहास में पहली बार सन्नाटा छा गया, रामलीला हिंसा के कारण रूक गई या कहिए रूकवा दी गई। भरत मिलाप के समय मैदान के समीप स्थित मदरसे से कुछ टोपीधारी युवक निकलते हैं और यह कहते हुए ध्वनिवर्धक यंत्र के तार तोड़कर फेंक देते हैं कि आवाज अनावश्यक है, बिना ‘लाउड स्पीकर’ के तुम लोग राम की भक्ति करो। इस पर जब लोग आपत्ति करते हैं तो एक माफिया-सरगना विधायक के इशारे पर सारे शहर को रौंदकर रख दिया जाता है। हिंदू हिंदुस्थान में ही डर-भय के साथ जीने के लिए किस कदर अभिशप्त हो गया है, इसका रोंगटे खड़ेकर देने वाला उदाहरण उत्तर प्रदेश की जनता ने मऊ में अभी कुछ ही वर्ष पूर्व देखा था।

अलीगढ़ में तो तीन वर्ष पूर्व आततायियों ने स्थानीय भाजपा विधायक के सरल-सीधे पुत्र को ही हिंसा का शिकार बनाया। वहां भी झगड़ा एक मंदिर में हिंदुओं के पूजा-अर्चना को लेकर शुरू हुआ था। विधायक पुत्र को जान से मारने के बाद उसका खतनाकर उसके शव को दफनाने और फिर उसके नकली मां-बाप बनकर सरकारी सहायता पाने की हद तक नृशंसतापूर्ण व्यवहार दंगाई जिहादी समाज ने अलीगढ़ में प्रदर्शित किया था। किसी लाश के साथ किया गया यह कितना नीच-निकृष्ट कर्म था, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। सैंकड़ो लोग मारे गए कथित मुसलमान को मिट्टी देने उसके ज़नाजे तक में शामिल हुए। यह तो भला हो एक सूत्र का जिसने दफनाए गए विधायक पुत्र के बारे में सच्चाई से उसके पिता को अवगत कराया। और निश्चित रूप से यदि मारे गए हिंदू युवक का पिता विधायक ना होता तो फिर किसकी जुर्रत थी जो जमीन में मुस्लिम रीति से दफना दिए गए शव को फिर से निकलवाकर उसका हिंदू रीति से अंत्य संस्कार कर पाता।

इस बार की होली पर बरेली में षड़यंत्रपूर्वक हिंसा का नग्न तांडव खेला गया। योजनापूर्वक हिंदू घरों, दुकानों को आग के हवालेकर हिंदू मां-बेटियों की अस्मत के साथ सिरफिरे जिहादियों ने खिलवाड़ की कोशिश की। हिंसा और दंगे के सरगना मौलाना तौकीर रज़ा के विरूद्ध जब प्रशासन ने नकेल कसी तो मौलाना के समर्थन में हजारों लोगों ने उपद्रव को इतना उग्र रूप दे दिया कि सरकार झुकने को मजबूर हो गई। परिणामतः जिन्हें जेल की सीखचों के भीतर होना चाहिए था, उन्हें पुलिस प्रशासन ने लखनऊ में बैठे कथित आकाओं के इशारे पर खुला घूमने की आजादी दे दी।

और अब ताजा उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और अब संप्रग सुप्रीमो सोनिया गांधी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली में दिख रहा है जहां कि 21 मार्च, रविवार को शिव भक्तों के जुलूस पर हमला बोला गया। इस घटना के कारण जब तनाव चरम पर था तभी नवरात्रों के उत्सव के बीच एक देवी मंदिर के दर्शन के लिए गए श्रद्धालुओं पर हमलाकर कुछ ऐसा प्रदर्शन किया गया कि उनके इस कार्य से खुदा की शान में इजाफा होता है। मानो इन हमलावरों से बड़ा इस्लाम का खिदमतगार कोई दूसरा नहीं है।

इन घटनाओं का सबक समझने में हिंदुओं को देर नहीं लगनी चाहिए। प्रतिक्रिया देना भारत की सहिष्णु जीवन परंपरा के विपरीत है लेकिन यदि जान पर ही बन आए तो जीवन की बाजी लगाकर भी प्राण रक्षा के उपाय करने ही पड़ते हैं। घटनाओं का संकेत साफ है। निकट भविष्य में किसी गंभीर संकट से हिंदू समाज का सामना होने वाला है। जो हो रहा है वह आसन्न संकट की पूर्व चेतावनी है।

इस हिंसा के बीज वस्तुतः उस मानसिकता से जुड़ते हैं जिसने हिंदुस्थान का विभाजन कराया। इस हिंसा के कारण ‘लड़कर लिया है पाकिस्तान, हंसकर लेंगे हिंदुस्तान’ जैसी जिन्नावादी तकरीरें रह-रहकर हमारे जेहन को फिर से कुछ सोचने और झकझोरने पर मजबूर कर रही हैं। ‘डायरेक्शन एक्शन डे’ के दिन कोलकाता और देश के अन्य स्थानों पर योजनापूर्वक किए गया रक्तपात और उसके कारण संपूर्ण देश में पसरे मातमी सन्नाटे रह-रहकर हमारे ह्दय को वेधते हैं।

सन् 1947 में मातृभूमि का विभाजन हुआ, हिंदुओं को जान-माल का नुकसान सहना पड़ा, देश का एक विशाल भूभाग भी हाथ से निकल गया। इस सौदे को अंतरराष्ट्रीय राजनय का कौन सा विश्लेषक ईमानदार सौदा कहेगा। जान भी गंवाई और मातृभूमि का विभाजन भी स्वीकार किया? क्यों हुआ था वह विभाजन? आज वह यक्ष प्रश्न फिर से हमारे सामने खड़ा हो गया है। हिंदू समाज को इसका उत्तर तो खोजना ही होगा। कहीं हम अभागे हिंदू कहीं फिर से उन्हीं दिनों की ओर तो लौट नहीं रहे! उत्तर प्रदेश में घट रही घटनाएं साधारण नहीं हैं।

इन घटनाओं के सबक केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं है। इसमें सबक सेकुलर राजनीति के झण्डाबरदारों और मुस्लिम रहनुमाओं के लिए भी है। सेकुलर राजनीति के लिए सबक यह है कि उन्हें भलीभांति समझ लेना चाहिए कि भारत में सेकुलरवाद और उनकी सेकुलर राजनीति तभी तक अकड़ के साथ जिंदा है जब तक कि देश में हिंदू बहुमत में हैं, सहिष्णु-शांत-खामोश है। बहुमतशाली हिंदू जिस दिन परिस्थिति की गंभीरता को समझकर एकजुट हुआ उस दिन सेकुलरवादी राजनीति की सारी किल्लियां और गिल्लियां एक एककर बिखर जाएंगी, फिर तो खुला खेल मुरादाबादी होगा। आजमगढ के संजरपुर जाकर बेगुनाहों के कातिलों को जो निर्दोष होने का प्रमाणपत्र बांटते घूम रहे हैं, उन्हें तो साफ समझना चाहिए कि उनके आचरण को हिंदू बहुत धैर्य के साथ देख-परख रहा है, शीघ्र वह निर्णय का एलान भी करेगा।

अंतिम बात मुसलमान रहनुमाओं से कि बीती चौदह सदियों में अल्लाह की रहमत से जन्नतें इस धरती पर किसी मुस्लिम देश को मुकम्मल क्या आधी-अधूरी भी नसीब ना हुई, उल्टे इस्लाम के अलंबरदारों में परस्पर आस्था और विश्वास को लेकर खूं-खराबा इतना बढ़ गया कि बगदाद क्या पूरा का पूरा ईराक ही इस्लाम के अपनों के बीच कर्बला का मैदान बन गया है। औसतन प्रत्येक सप्ताह सैकड़ों मुसलमान मुसलमानों के आत्मघाती हमलों में ही मारे जा रहे हैं।

आखिर इस्लाम का यह कौन सा चरित्र है कि ना तो वह गैर इस्लामियों को चैन की सांस लेने दे रहा है और ना ही संवैधानिक रूप से घोषित दारुल-इस्लामी देशों में शांति और चैन के साथ गुजर-बसर कर पा रहा है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, फलस्तीन, ईरान तक में जो हाय-तौबा मची हुई है, उससे साफ है कि इस्लाम के बंदों को उस गंभीर मानसिक और आध्यात्मिक शांति की सख्त जरूरत है जिसे अपने बंदों को दे पाने में एक धर्म या मजहब के रूप में अब तक इस्लाम खुद ही असफल साबित हुआ है।

संभव है कि भविष्य में इस्लाम के भीतर कोई ऐसा चमत्कार घटित हो कि यह मजहब शांति और सौहार्द्र के मजहब के रूप में दुनियाभर में ख्याति अर्जित करे, लेकिन हाल-फिलहाल भारत सहित शेष विश्व में इस्लाम के कारिंदे इस्लाम के नाम पर जो कर रहे हैं, उसमें से तो यह आशा कर पाना व्यर्थ ही है।

15 COMMENTS

  1. Shafiqur Rahman khan yusufzai जी। आपके उल्लेखित, निम्न दो बिंदूओंसे मैं शत प्रतिशत सहमत हूं, और आनंदित हूं।–>
    “(१) हिन्दुस्तान का बहुसंख्यक मुसलमान इसी मिटटी की उपज है बाहरी नहीं उसके पूर्वजों की देह इसी मिटटी का अंश है आप उन्हें अलग कैसे कर सकते हैं?
    (२) भारतीय जन मानस को जागने की ज़रूरत है।”
    भारतके सारे प्रजाजन भी चाहे वे किसीभी उपासना पद्धतिको मानते हो, इसी आधारपर एक होकर, डटके खडे हो सकते हैं।मोहन भागवतजीने भी इसी आधारपर सभीको संघमे सम्मिलित होनेका आवाहन किया था।
    किंतु; हम और आप यह माने भी, तो कोई अंतर आनेवाला नहीं, जब तक बहुसंख्य जनता, इसे मानते हुए, अपने कर्तव्योंके प्रति सजग नहीं होती।मैं, मानता हूं, कि, यही काम संघ कर रहा है। यह पर्याप्त प्रमाणमें यदि हो जाता है, तो बाकी सारी समस्याएं आपहि आप सुलझ जाएगी।
    जनमानस कर्तव्य लक्षी होना चाहिए, अधिकार लक्षी नहीं।क्यों कि, अधिकारोंकी पूर्ति करनेवालाभी तो चाहिए। वह कौन करेगा? उनकी पूर्तिके लिए किसी को तो “कर्तव्य निर्वाह” करना पडेगा। जो इन कर्तव्योंको निर्वाह करने आगे आएगा, वही भारत पुत्र हैं।हम सब इसी काममे जुट जाए, तो सारी समस्याएं सुलझ सकती है।
    ॥जय भारत॥

  2. @डॉ. प्रो. मधुसूदन उवाच क्षमा के साथ आपसे प्रार्थना करूँगा की आप मेरे कमेन्ट को पढ़ें फिर आप अपने और देखें की सकुचित विचार से उठने की आवश्यकता सही मायने में है! दूसरी बात ABCD वाले उदाहरण का भी जवाब वही हैं! और सनातन विचार ने समाज को क्या दिया है एक समाजशात्र का छात्र हूँ खुली आँखों से समझता हूँ मुझे विश्वाश है की दुसरे धर्मों के योगदान को आप भी जानते हैं समझते हैं! वर्त्तमान में अध्यात्म के दिग्गजों को देखिये बिना मुस्लिम संत के नाम के अपना प्रवचन पूरा नहीं करते मध्यकालीन इतिहास का भक्ति आन्दोलन याद करने की ज़रूरत है ! आप धर्म की बात कर रहे हैं मगर मै समाज की बात कर रहा था! नफरत की आग जितना फैलेगी नुक्सान सबका होगा! कुछ अच्छी बातें भी होनी चाहिए, धर्म और संस्कृति दो अलग चीजें हैं, हिन्दुस्तान का बहुसंख्यक मुसलमान इसी मिटटी की उपज है बाहरी नहीं उसके पूर्वजों की देह इसी मिटटी का अंश है आप उन्हें अलग कैसे कर सकते हैं! मेरे कमेन्ट पर साथियों ने अपना जवाब लिखा है उसे देख कर आपको नहीं लगता की ऐसा ही आरोप मराठी आन्दोलन बनाम उत्तर भारतियों लगता है! मानवीय स्वाभाव है वो लड़ता है मगर उसका दायरा तो होना ही चाहिए! मै अगर संकीर्ण होता तो ऐसे वाक्यों का प्रयोग नहीं करता जो पिछले कमेन्ट में मैंने किया है! सच मानिए मै आपके बच्चे की तरह हूँ भाई की तरह हूँ और आप मेरे लिए आदरणीय हैं अगर आपको अपना नहीं समझता तो इतनी बातें क्यों करता मुसलमान हिन्दू सिख या इसाई होने से मानवीय स्वाभाव नहीं बदल जाता! गलत बातों का विरोध होना चाहिए मगर उसके लिए धर्म या क्षेत्रवाद को हथियार बनाने के बजाये गलत लोगों की पहचान की जानी चाहिए! आप जैसे अग्रज हमारा नेतृत्त्व करें इन मुद्दों पर अब धर्मों से ऊपर उठकर…….और हाँ हिन्दू मुसलमान सिख इसाई किसी को जागने की ज़रूरत नहीं भारतीय जन मानस को जागने की ज़रूरत है (अगर ये वेब पेज राजनैतिक संगठन का है तो मेरी बातों को डिलीट कर दिया जाए)

  3. JITNA LOG DHARMIK HONGE UTANE HAM PICHHAD JAYENGE ! HAMRI DHARMIK PAKHANDTA KI VAJAHSE HAM BAHARI AANEWALE SHUK, SHON, MUGHAL, ANGREJ LOGONKE 2000 SALOTAK GULAM RAHE ! PUJA PATH-IBADAT SAB SIRF EK CHALAVA HAI ! AAJ KE JAMANE ME HAME IBADATSE FAYDA NAHI HO RAHA HAI TO MARNE KE BAAD TO KUCH HONEWALA NAHI ! BHAI LOGO MARANE KE BAD JAB HAMARA SHARIR NASHT HOTA HAI TO RUH-ATMA BINA DIMAG BINA ANKH KE KAISI RAHEGI ?? YE SABH DHARMKE PAKHAND HAI AUR HAM SIRF HAJARO SAL KE GRANTHO ME LIKHEPAR ANKH MUNDAKAR VISWAS KARATE RAHATE HAI ! EK DIN AYEGA AUR SCIENCE HAME ROUNDKAR AGE NIKAL JAYEGA ! AANEWALE SAMAYME INSANKI UMR BADHKAR 400-500 SAL HO JAYEGI AUR KUCH HI HAJAR SALME SCIENCE MAUTPAR VIJAY PA LEGA ! AUR INSAN MAREGAHI NAHI !! FIR KYA HOGA SWARG AUR NARAK KA ?????

  4. HAM AAJ BHI BE VAJAH DHARM KO MAHATV DE RAHE HAI ! DHARMKE NAMPAR ITNA KHUN BAHA HAI ! MAI TO KAHTA HU JABSE DHARMO KA JANM HUVA HAI TABSE INSAN -INSAN KA DUSHMAN HUVA HAI ! AGAR DUNIYAME DHARM NAHI HOTA TO KARODO MASUM LOGONKI JAN BACH SAKATI THI JO DHARMKE NAMPAR BALI CHAD GAYE HAI !
    DHARMKE THEKEDAR LONGONKO BHAGWAN-NARAK KA DAR DIKHAKAR DARA THE HAI AUR HAM DARTE HAI ! BHAI IS BHRAMAND KA NIRMAN SIRF KUDARTI SHAKTI SE HUVA HAI NA KOI BHAGWAN NA KOI ALLA ISKA NIRMATA HAI ! SOCHO AGAR BHAGWAN NE DUNIYA BANAYI HOTI TO DUNIYAME ITNA ATTYACHAR ITANE BURE KAM NAHI HOTE ! NA KOI SANKAT AATA NA BURAI KI JIT HOTI ! YAHAPAR BHRASTACHARI AARAMSE RAH RAHE HAI ! DUSARI BAAT SWARG -NARAK KA KOI ASTITV HAI NA KOI ABTAK SABIT KAR SAKA HAI TO HAM KYO VISWAS KARE ??????

  5. राकेश जी नमस्कार
    आपने जो ये लेख लिखा इसके लिया धन्यवाद!
    आपने जो कहा वे पूर्ण रूप से सही कहा है, परन्तु इसके मूल कारन हम लोग भी हैं, हम ऐसे इन सभी बातों में हो हल्ला करते हैं, परन्तु जब राजसत्ता के चुनाव आता है तो हम पीछे हो जाते हैं, हम अपने तुच्छ स्वार्थों को आगे कर अपनी अस्मिता के खिलवार करते हैं, इसी का नतीजा है की आज कुछ मुट्ठी भर लोग देश को गुलाम बनायें हुवे हैं, वस्तुत: हम हिन्दुओं की परम्परा रही है, वसुधैव कुटुम्बकम पर वर्त्तमान स्थिति को देखकर हम सभी को अपने धर्म, कर्म के प्रति जागरूक होना चाहिए, लेकिन हमारे जो सभ्य भाई-बहन हैं वे एक आम हिन्दू नागरिक को ऐसे देखते हैं जैसे वे किसी दूसरी दुनिया से आया प्राणी हो, हमे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए!

  6. Shafiqur Rahman khan yusufzai से एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।जब मुस्लिम बंधु किसीके साथ(Peaceful Coexistence से) शांतिमय सह अस्तित्व के साथ नहीं रह सकते, तो दोष किसका है? न अमरिकामें, न भारतमें, न इंग्लैंडमे…….. अरे पाकीस्तान से भी बंगला मुस्लिम बंधु अलग हो गए। तर्ककी भाषामें जब A किसीके साथभी भाइचारेसे रह नहीं सकता। न B के साथ, नC के साथ, नDके साथ, तो दोष क्या B, C, D सभीका है? इमानदारीसे उत्तर खोजिए।कैसे? तरिका:पहले, आंख मूंदकर धीरे धीरे भूल जाइए कि, आप किसी समूह विशेषके हैं। और जब आप, बहुत कोशीशके बाद भी, अपनी पहचान(इस्लामियत), अपना नाम भी, याद ना कर पाए, तो फिर, आप हि आप, सच्चा ज्ञान प्रकाशित हो जाएगा। इसे हमारे (आपके भी) पुरखोने योग “ध्यानयोग”में विकसितकिया था। सनातन सिद्धांत खोजे थे। आप भी ध्यान योगसे ऐसी (समय लगेगा) अवस्था तक जा सकते हैं, जो ज्ञान मजहबसे भी आपको परे ले जाएगा, औए सच्चा ज्ञान , मजहबसे भी उपरका ज्ञान, जो संप्रदाय/मजहबसे जुडा नही है, वह प्राप्त हो जाएगा।इसीको धर्म निरपेक्ष ज्ञान कहा जाता है। हां आप अपनी संकुचित मान्यताएं खो देंगे। डरिए नहीं, आप भी एक अलग और उंचे व्यक्तित्वको प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञानी हो सकते हैं। बिलकुल बदल जाओगे।
    राकेशजी को धन्यवाद।

  7. बंधू कोनसा धर्मस्थल खोया है | महमूद गजनवी ने क्या मंदिर बनवाये थे, पांचवी की इतिहास की किताब पढ़ी नहीं है क्या? हजारों मंदिर मुगलों ने तोड़े हैं. हिंसक प्रवत्ति जब से ही है. गीता मैं जो चीज़ है उसे समझने की लिए एक अच्छा इंसान होना जरूरी है, बुराई को मिटाने के लिए ये भी नहीं देखा जाता की कोन भाई है कोन गुरु है बुराई का अंत होना ही सबसे अहम् है न की बुराई का साथ देना जैसा की आजकल आतंकवादियों को समर्थन है. और जो भी युद्ध हुए हैं उनमे बुराई ही पराजित हुयी है बुरे लोग ही हारे हैं| अच्छाई को स्थापित किया गया है और बुराई को मिटाया गया है. रावण एक बुरा आदमी था कौरव भी बुराई के प्रतीक थे, इसीलिए मारे गए | हर चीज़ को देखने के लिए एक दृष्टिकोण की जरूरत है| अपनी गलतियां रावण को भी नहीं दिखती थी|

  8. इस शानदार लेख के लिए बधाई ! लुटेरे बनकर आये ये लोग इस देश के सेचुलार्पण की वजह से आज इतने चौड़े हो रहे हैं ( शफीक ने जो लिखा है उससे पता लगता है की एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी ) ! हिन्दू कायर है ये बात अब तक ठीक है लेकिन अब धीरे -२ बदलाव आ रहा है ! गुजरात में एक बार हिन्दुओं ने अंगड़ाई ली थी तो ये अभी तक चिल्ला रहे हैं ! ऐसे ही ६ दिसम्बर १९९२ को भी एक बार जगे थे जिसको लेकर अब तक हाय तौबा मची है ! उस दिन अधुरा काम ही हो पाया था की ढांचा ( कोई मस्जिद कहता है तो मस्जिद ही सही ) तो गिर गया लेकिन मंदिर नही बन पाया ! पर अबकी हिन्दू जब जागेगा तो फिर कुछ भी अधुरा नही छोड़ेगा ! और हा ये जो तथाकथित सेकुलर लोग हैं उन हालत में ये लोग भी राम राम चिल्लाते नजर आयेंगे !
    भारत शांतिप्रिय, धर्मप्रधान , पंथनिरपेक्ष देश रहा है लेकिन इन लोगो ने यहाँ आकर उत्पात मचा राखी है ! पर जल्द ही यहाँ पुनः शांति आएगी !

  9. कठमुल्ले सहनशीलता की परीक्षा ले रहे हैं, जिस दिन गुजरात की तरह यह टूट गई तो मुश्किल हो जायेगी, यह बात मुस्लिम समुदाय समझ नहीं रहा है… मुस्लिम समुदाय को अपने समूह में से कट्टर लोगों को अलग से चिन्हित करके उन्हें अलग-थलग करना चाहिये…। मोदी की लोकप्रियता इसलिये नहीं है कि वे गुजरात दंगों के “हिन्दू हीरो” हैं, बल्कि इसलिये है कि वह politically correct होने का कांग्रेसी ढोंग नहीं करते और विकास के मामले में गुजरात को उत्तरप्रदेश से कोसों आगे ले गये हैं…। हिन्दुओं ने अभी अपने “कट्टर नेताओं” को राजनैतिक ज़मीन देना शुरु नहीं किया है (बाल ठाकरे और मोदी अपवाद हैं), लेकिन बरेली, रायबरेली और मऊ जैसी घटनाएं लगातार घटती रहीं तो भाजपा भी दरकिनार कर दी जायेगी… और कैसा नेतृत्व उभरेगा कहना मुश्किल है…

  10. इरान पर अमेरिकी हमला हुआ और उसको युद्ध में झोंका गया अफगानिस्तान अमेरिकी कब्ज़े में रहा हमेशा (पहले रूस से लडाई के नाम पर अब आतंकवाद से) और विश्व परिदृश्य ऐसा इस लिए है क्योकि मुसलमान और इसाई परस्पर राजनैतिक विरोधी हैं जब तक सत्ता मुसलमानों के हाथ रही तब तक इसाई आतंकी माने गए अब मुसलमान! मलेशिया तुर्की जैसे और भी सैकड़ों देश हैं जहाँ मुसलामानों की बहुलता है और मुस्लिम राज है मगर आपको सिर्फ संकटग्रस्त इलाके ही दिखेंगे
    और किस लुंगी की बात कर रहे हैं आप ये वो कौम है जिसने आप पर बकौल आर एस एस हजारो साल राज किया है……कहाँ गए वो सत्ताधारी मुसलमान राजस्थान में हर गाँव में राजा माहाराजा नज़र आता है मगर मुसलमान बकौल मोदी पंचर लगते हुए……क्यों? ये allah के लिए नहीं adhikar के लिए है! आपके हाथ देश था कब ????????हिस्सा आपके हाथ से नहीं गया मुसलामानों के हाथ से पूरी राज्यसत्ता निकली है……..इतिहास देखिये १८५७ से पहले कोई आम दंगा नहीं हुआ वजह ????????????????(मै उनसब बातों को जोड़कर पेश कर रहा हूँ जो संघियों का प्रचार है ये मेरे विचार नहीं) गोधरा से डरा रहे हैं आप तो आप ही बता देन की देश की आज़ादी के बाद के तमाम दंगों में कितने गैर मुसलमान दंगायिओं को सजा मिली……..सवाल आपसे ये भी है की आपने कौन सा धर्म स्थल खो दिया हाँ हमने खोया है
    ठाकरेसाहिबान मोदी जी तोगड़िया जी यहाँ तक की योगी जी स्वय आप किस की सेवा कर रहे हैं…..राजनैतिक मुद्दों को राजनैतिक तरीके से देखिये……..हिंसक आपको बताने के प्रयाप्त कारण है आपका कोई एक धर्म गरंथ जो युद्ध आधारित ना हो बता सकते है तो बताएगा ज़रा……तो क्या श्रीकृष्ण ने गीता में जो भाई को मरो गुरु को मारो इसको मारो उसको मारो का पाठ दिया आप उसी को बढ़ा रहे हैं…………
    क्षमा कीजिये बंधू हम (मै शफीक ही समझा जाये हिंदी पट्टी वाले हम ही कहते हैं मैं नहीं ) आपकी भावना से खेलने का कोई इरादा नहीं मेरा और आपके दर्द से अच्छी तरह वाकिफ हैं हम! आप की रोज़मर्रा की परेशानियों के अलावा मुसलमान (आप तो आतंकी ही कहेंगे) होना भी इस देश में एक मुसीबत है और ये ahsaas आपके (hamare नहीं कहूँगा आप हमें कब इस देश का मानने लगे भला) देश का भला नहीं कर रहे…..पकड़ा गया चोर अगर हिन्दू है तो उसकी व्यक्तिक पहचान होती है की आमुक व्यक्ति चोर है मगर मुसलमान हुआ तो क्यों भाई खुदा के लिए चोरी कर रहा था क्या ?????? अपनी संकीर्णता से बाहर आये चीजों का बेहतर आकलन करें वरना क्योकि आप भी उसी थाली के हैं जिनके वो लुंगी वाले मुसलमान

  11. मेरी इस लेख के लेखक और प्रवक्ता.कॉम से विनती है की एक ऐसा चैनल चलाया जाए जो कम से कम ९५% सही समाचार दिखाए क्यूंकि आजकल दिखने वाले सभी न्यूज़ चैनल entertainment चैनल बने हुए हैं और लगभग सभी हिन्दू धर्म से सम्बंधित समाचारों को नमक मिर्च लगा कर प्रदर्शित करते हैं ये देख कर हैरानी होती है के इस लेख में बतायी गई घटनाओ में से केवल २-३ खबर ही कुछ समय के लिए दिखाई गई! परजानिया तो लोगों को फटाफट बना कर दिखा दी जाती है पर गोधरा पर कोई फिल्म नहीं बनती और न ही कश्मीर में मारे गए हजारों लोगों पर कोई फिल्म बनी जो ये साबित कर सके की हमारे न्यूज़ चैनल और प्रिंट मीडिया हिन्दुओ के लिए उदार रवैया अपनाए हुए हैं!
    पतरकारिता भी ब्लैकमेलिंग से धनोपार्जन का एक हथियार बना हुआ है और हिन्दू धर्म को कर्मकांड और जादू टोने से सम्बंधित चीज़ बना कर पेश किया जा रहा है जो की सरासर गलत है!
    मैं उम्मीद करता हूँ की प्रवक्ता.कॉम अवश्य ही इस बारे में कभी न कभी विचार करेगी और समाचारों के क्षेत्र में एक नया बदलाव लाने में सफल होगी ताकि डी टी एच प्रेमी जनता को एन डी टी वी, इंडिया टीवी, स्टार न्यूज़, आई बी एन ७ जैसे तीसरी श्रेणी के चैनल से मुक्ति मिल सके और लोगों, खासकर बच्चों को संस्कृति से जोड़कर रख सकें !

  12. कृपया इस लेख को प्रमुखता से प्रकाशित करें…
    विनाशाय च दुष्कृताम, उतिष्ठ जागृतः अब समय आ गया है…

  13. adarniy rakesh ji apne jo samasya batai h vahi hindu samaj ka durbhagya h.lekin yaad rakhiye hindu samaj jis din agnai le kar khada hoga us din sabko ram chandra ka vahi vakya yaad hoga ki nishicharheen karahu mahi–aapka dhirendra pratap singh

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