पंडित सुरेश नीरव
हादसे हमारे देश की लाइफ लाइन हैं। हादसों के बिना मुर्दा है हमारा देश। हादसे नहीं होते तो ज़िंदगी नीरस हो जाती है। वो तो भला हो भगवान का कि जब-तब बाढ़ और अकाल लाकर थोड़ी चहल-पहल देश में ला देते हैं। वरना इन आतंकवादियों के भरोसे तो कुछ भी नहीं होने का। इससे तो हमारा पांच साल का वो प्रिंस ही अच्छा था जो बोर वैल में गिरकर ऊंघते हुए खबरिया चैनलों के कैमरों की आंखों में चमक ले आया था। लगता है कि आतंकवादी आतंकवाद का पार्ट टाइम जॉब करते हैं। होलटाइमर होते तो इतने –इतने दिन का गैप होने का सवाल ही नहीं उठता। आतंकी वारदात होती है तो देश में जोश का माहौल बनता है। जंग लगी सुरक्षा एजेंसियां जांच की सान पर धार रखने लगती हैं। नाना प्रकार की सुरक्षा एजेंसियां नाना प्रकार के कोण और दृष्टिकोण से जांच शुरू करती हैं। हादसा एक, सुरक्षा एजेंसियां अनेक। भिन्न-भिन्न विचार। भिन्न-भिन्न व्यवहार। कभी न बोलनेवाले प्रधान मंत्री भी नागरिकों की प्रशंसा में कसीदे काढ़ते हुए बोलने लगते हैं कि कितने बहादुर हैं हमारे हादसाग्रस्त देश के नागरिक। जो सड़कों पर निर्दोष लोगों के बहते हुए खून,बम धमाकों और चीखों-कराहों को भुलाकर सुबह फिर रोटी कमाने निकल पड़ते हैं। आतंकवाद के दंश को झेलने की नागरिक विवशता को सरकार और मीडिया बहादुरी बताने लगता है। कड़े शब्दों में आतंकवादी घटना की निंदा और जनता की प्रशंसा की पुरानी अभ्यासी है हमारी सरकार। सामान्य दिनों में हमारे आतंकी भाई हादसों के नए ठिकानें ढ़ूढते हैं और सरकार भविष्य की आतंकी घटना के निंदा वक्तव्य का मजमून बनाने में तत्परता से जुटी रहती है। इधर हुआ हादसा और उधर तड़ से हुई सरकारी निंदा। दोनों तरफ बराबर की तैयारी। और उधर सरकार के निकम्मेपन का प्रतिपक्ष द्वारा मर्सिया गायन। मिले सुर मेरा तुम्हारा। तभी विपक्ष के गुब्बारे की हवा निकालने को हमारे एक जेम्सबांड नेताजी का बयान कि इस आतंकी वारदात में यकीनन एक अतिवादी हिंदू संगठन का हाथ है विपक्ष के लिए आफत और पाकिस्तान के लिए राहत लेकर आता है। आखिर पड़ोसी देश से मधुर संबंध रखना ही तो हमारी विदेश नीति है। पड़ोसी लाख ओछी हरकतें कर के परेशान करे मगर हम उसे हादसे की क्रेडिट नहीं लेने देंगे। जब हादसों को संपन्न करने के लिए हमारे पास ऑलरेडी भगवा संगठन हैं तो फिर लश्कर और तालिबान-फालिबान से आउट सोर्सिंग भला हम क्यों कराने लगे। और इस टुच्ची सी बात के लिए खामखा पड़ोसी देश पर झूठे आरोप लगाकर संबधों को बिगाड़ने की क्या तुक है। ये कसाव-फसाव भी अपने को पाकिस्तानी नागरिक बताकर हमारी जांच एजेंसियों को कनफ्यूज करते हैं। ये सब हिंदू ही हैं। वो तो जांच एजेंसियों को चकमा देने के लिए मुसलमानी नाम रख लेते हैं ताकि संदेह की सुई निर्दोष पाकिस्तान की तरफ घूम जाए। जब पाकिस्तान साफ-साफ कह रहा है कि अमुक आतंकी हमारा नागरिक नहीं है तो हम कैसे इसमें पाकिस्तान को घसीट सकते हैं। अभी तो हम यही तय नही कर पाए हैं कि अफजल गुरू सचमुच में आतंकवादी है या बेचारे निर्दोष को पुलिस ने फर्जी फंसा दिया है। फर्जी एनकाउंटर तो हमारे यहां की पुलिस करती ही रहती है। लेकिन हम किसी निर्दोष को फांसी पर तो नहीं लटकने देंगे। हमें मालुम है कि इन हरकतों के पीछे किस संगठन का हाथ है। जांच एजेंसियों के काम में हम दखल नहीं देना चाहते। उनका काम जांच करना है। शान से करे। उन्हें भी काम करते हुए दिखना चाहिए। हमने इसी लिए जांच एजेंसियों पर कोई जांच कमेटी नहीं बिठाई कि जब हमें मालुम है कि असली आतंकी कौन है तो फिर ये जांच एजेंसियां किसकी जांच कर रही हैं और क्यों कर रही हैं। हादसे के बाद जांच-जांच खेलना तो हमारी प्रशासनिक क्रीड़ा है। असली मुलजिम की जानकारी तो हमारे नेताजी को वारदात से पहले ही हो जाती है। देशहित में वे उसका संकेत भी दे देते हैं। समझनेवाले समझ जाते हैं और जो ना समझें वो अनाड़ी हैं।
आदरणीय सुरेश जी, सादर प्रणाम ,…………करारा प्रहार,…….शानदार व्यंग्य पढ़ते -पढ़ते पीड़ा का अनुभव हुआ …………..हार्दिक आभार
बहुत सुन्दर , सटीक नजरिया , शब्दों का सही सामंजस , आनंद दायी लेख , के साथ भंडा-फोड़ करने वाले , पंडित सुरेश नीरव जी आप को बधाई / …. ” हादसे के बाद जांच-जांच खेलना तो हमारी प्रशासनिक क्रीड़ा है। असली मुलजिम की जानकारी तो हमारे नेताजी को वारदात से पहले ही हो जाती है। देशहित में वे उसका संकेत भी दे देते हैं। समझनेवाले समझ जाते हैं और जो ना समझें वो अनाड़ी हैं।…… ” वाह क्या बात है ?