बंधन मुक्त विवाह : डॉ. मधुसूदन

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डॉ. मधुसूदन उवाच

Wedlock Unlocked

An Inside Look at an Open Marriage

By Redsy for YourTango49

पर आंशिक रूपसे आधारित

काल के गर्भसे ,एक नया आविष्कार जन्म ले चुका है। सारे बन्धनों को तोडने वाले प्रगतिवादियों के लिए शुभ समाचार।

॥ विवाह को बंध मुक्त कर दो॥

An Inside Look at an Open Marriage

अंदर से अवलोकन

June 28, 2011By Redsy for YourTango49

Tango द. अमरिका का एक डान्स है, जिसमें एक दूसरे के निकट जाकर अंग-स्पर्श किया जाता है।

(१)

विवाह तो करो, पर फिर भी मुक्त रहो। जिस किसी से शरीर-स्पर्श -सम्बंध चाहते हो, यदि वह व्यक्ति तैय्यार है, तो आप के पति को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ( यह मुक्त विवाह के Contract द्वारा सम्भव हो पाएगा)। और दूसरों को इसमें टाँग अडाने की भी कोई आवश्यकता नहीं।

(२)

क्यों कि आपने ”मुक्त विवाह” (Open Marriage) नामक विवाह किया हुआ है। जिस से आप के टॅक्स में भी बचत होगी। और जिस किसी के साथ, आप सोना चाहते (चाहती) हैं, सो सकते (सकती) हैं, वह व्यक्ति और आप तैय्यार होने चाहिए।

बाकी समाज की ऐसी तैसी।

(३)

मैं ने कुछ अमरिकन सहपाठियों के मुंह से (जब मैं, पढ रहा था) ऐसा कुतर्क सुना था, कि जैसे एक पुस्तक जित ने अधिक लोग पढेंगे, उतनी पुस्तक की उपयोगिता बढ जाती है। उनका अर्थ था, कि जितनी अलग अलग लडकियों से आप डेटींग करेंगे, उतना विविधता का आनंद आप ले पाएंगे। इसमें दूसरों को आपत्ति क्यों हो?

ईश कृपा से ही, मैं सुरक्षित रहा; मोह नहीं हुआ ऐसा नहीं कह सकता।

(४)

अब, एक अत्याधुनिक प्रथा के बारे में गत जून-जुलाई २०११ में पढा, और भारत के चिन्तकों के विचार कुछ अन्य लेख और लेखों पर टिप्पणियां भी पढ रहा हूं, तो लगा कि भारत के लोगों को भी इस नए चलन के विषय में जानकारी दूं।

आग लगने के पहले भारत चेते। आज तक तो भारत बच पाया है। पर अब प्रगतिवादी भी चेत के रहें।

”If recent studies are any indication, most people who pledge monogamy aren’t actually faithful anyway, so you could say people in open marriages are simply being more honest about their desires to mess around than the average American.”

–Redsy for YourTango49

 

मेरा अनुवाद:

यदि अभी अभी हुए अध्ययन कुछ निर्देशित करते हैं, तो कहा जा सकता है, कि बहुत सारे लोग जो एकपत्नीत्व (एकपतित्व) की सौगंध लेते हैं, वास्तवमें अपने भागीदार के प्रति निष्ठावान होते नहीं है, तब आप यह अवश्य कह सकते हैं, कि मुक्त विवाह करने वाले, अपनी मुक्त-भोगी इच्छाओं के बारे में सामान्य अमरिकन से कई अधिक प्रामाणिक (ईमानदार) होते हैं।

वाह ! वाह ! क्या तर्क है, यदि मैं कह दूं कि मैं झूठ बोलता हूं; तो मैं सच सच बता रहा हूं; इसलिए सत्यवादी हो गया। वाह! क्या ईमानदारी की व्याख्या की है? इसे कहते हैं कुतर्क।

(५)

उपरि निर्देशित लेख जिसका परिच्छेद उद्धरित किया है, कुछ ६ मास पहले आया था। एक सबेरे मैं ने, आंतर-जालीय-पटपर (Internet पर) ” Open Marriage” (मुक्त विवाह) नामक उक्त लेख देखा था। मेरे किसी मित्र ने भेजा था। साधारणतः, मैं ऐसे किसी समाचार में रूचि रखता नहीं हूं। वैसे भी, मेरे भी अनुमान से यह एक नई-प्रथा ही, चल निकली है, और अभी अभी, प्रारंभिक अवस्था में ही प्रतीत होती है। पर आज का बीज रूपी विचार कल बडा व�¥ �क्ष-रूप धारण कर सकता है।

(६)

वैसे, यह कोई समग्र समाज का दृश्य नहीं है। पर बिलकुल अपवादात्मक भी नहीं है। और नयी रूढियां ऐसे ही चल पडती है। पर जब, इस विषय पर लेख, संचार माध्यम में खुली तरह प्रकाशित हो रहा है; तो उसकी जानकारी, प्रबुद्ध जनों के विचारार्थ, और समाज हितैषि चिन्तकों को , जो निरपेक्ष-तटस्थ बुद्धि से चिन्तन कर सकते हैं, उनके लिए, एक विशेष चेतावनी की तरह रख रहा हूं।

(७)

विवाह का कारण ही यहां, सर्व सामान्य रूपसे, केवल वासना पूर्ति ही माना जाता है;और विवाह की ओर एक संविदा (contract) की भाँति देखा जाता है।

हमारा आदर्श, विवाह को एक संस्कार की भांति देखता है। गुजरात में मैं जानता हूँ, और पढा हुआ भी है, कि विवाह के संस्कार से परिणित युगुल प्रभुता में पदार्पण करता है। विवाह शारीरिक स्तर पर भले प्रारंभ हो, यह उसका एक लक्ष्य अवश्य है, पर अन्तिम गन्तव्य नहीं है।

शारीरिक प्रेम प्रारंभ की सीढी है, आगे प्रेम शारीरिक से मानसिक स्तर पर फिर बौद्धिक स्तर पर

और अन्तमें आत्मिक स्तर पर क्रमशः संक्रान्त होते जाना चाहिए। यह है भारतीय विवाह संस्कार की संकल्पना।

(८)

मानता हूं कि हर युगुल इस भांति सीढियां चढता नहीं है। पर यह आदर्श हमारे पूरखों ने प्रस्थापित किया है, इसे नकारा नहीं जा सकता। आज हज़ारों वर्षों के आक्रमण और दीर्घ परतन्त्रता के कारण और पश्चिम की भयंकर आंधी के परिणाम स्वरूप यह आदर्श भी डगमगा गया है।

(९)

मेरे प्रगतिवादी मित्र भी उतावले हो रहे होंगे, कहेंगे कि ऐसा क्यों होता नहीं है?

उत्तर स्पष्ट है, कि कारण है, प्रगतिवादी विचारधाराओं ने भौतिक झुंनझुंना हाथ में पकडाया है, और छद्म सेक्युलर विचारधारा ने उसे प्रोत्साहित किया है, भ्रष्टाचारी नितियों ने निकट के लाभ के लिए अपनाया है। और भी इसके अनेक कारण होंगे। जीवनावश्यक वस्तुओं को नकारा भी, नहीं जा सकता।

मैं कहूंगा, कि, आप भी तो देश रक्षक ही हैं। जितनी जिम्मेदारी हमारी है, उतनी आपकी भी है। समस्याएं यदि आपकी-हमारी-अपनी है; तो आप भी कंधे से, कंधा लगाइए। समस्याएं सुलझाने में हाथ बटाइए। तो हमें कोई आपत्ति नहीं।

 

(१०)

पर अब भी यह आदर्श जिन कुटुम्बों में टिका हुआ है, वहां सुख शान्ति का वास्तव्य देखता हूं। आध्यात्मिक अधिष्ठान (आधार-भित्ती) या बुनियाद के बिना कुटुम्बों में सुख-शांति टिकती नहीं है। जब कुटुम्ब सुदृढ और स्वस्थ होंगे, तो समाज स्वस्थ हुए बिना नहीं रहेगा।

प्रगतिवादी (अधोगतिवादी) कहेंगे कि ऐसा हर कुटुम्ब में होता नहीं है। हां, यह उस पश्चिम की भोगवादी विचारधारा के अंधानुकरण का परिणाम है। हज़ारों वर्षों की दासता का भी परिणाम है।

(११)

मुझे लगता है प्रमुख रूपसे, पश्चिम में केवल वासना की पूर्ति का समाधान ही, विवाह में ढूंढा जाता है। अन्य बाते गौण भी कदाचित ही होती है। यही कारण है, कि यहां विवाह संस्था टूट रही है। और, यही कारण है, कि ऐसा ”मुक्त विवाह” भी, यहां चल निकला है। प्रवक्ता के पाठकों को ऐसे विचार से अवगत करा कर एक चेतावनी देना चाहता हूं।

(१२)

वैसे, विश्वमें कोई भी प्रणाली सभी दृष्टियों से परिपूर्ण नहीं। हर प्रणाली के जैसे कुछ गुण होते हैं, वैसे दोष भी होते हैं। सामान्य मानव का स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है, कि उसे, उसके पास जो हैं, उसकी त्रुटियां दिखाई देती है; पर लाभ के प्रति दुर्लक्ष्य होता है। अन्यों के लाभ दिखाई देते हैं, त्रुटियां दुर्लक्षित होती हैं।

पर, कोई भी प्रणाली हरेक दृष्टिसे समाधान कारक और परिपूर्ण नहीं होती।

(१३)

ऐसा, मैं मेरी दीर्घ विचार, चिन्तन, अध्ययन, और अनुभव, जो मुझे अमरिका की युनिवर्सीटी में अमरिकन छात्रों का परामर्शक रहने के बाद प्राप्त हुआ है, उसके आधारपर निरपेक्षता से कह सकता हूं; कि भारतीय संस्कृति में विवाह संस्कार का गठन बहुत ही गहन और दीर्घ दृष्टि से किया गया है। इसके अनेक पहलुओं को तो मैं ने इस संक्षिप्त लेख में छुआ तक नहीं।

 

त्रुटियां किस प्रथा में नहीं, पर हमारी त्रुटियां अन्यों की अपेक्षा कम ही है।

 

निम्न प्रवक्ता की कडी भी देख लें।

”हमारी कुटुम्ब संस्था एक अचरज।”

हमारी कुटुम्ब-संस्था : एक अचरज

 

आंशिक संदर्भ :

Wedlock Unlocked ॥ बंधन मुक्त विवाह ॥

An Inside Look at an Open Marriage

June 28, 2011By Redsy for YourTango49

14 COMMENTS

  1. आ. मधुसूदन जी,

    स्त्री शक्ति के संरक्षण, पोषण व जन्म लेती नइ पीढ़ी की साझी जीम्मेदारी निभाने के लीए विवाह संस्कार का आविष्कार कीया गया … जो चलता ही रहेगा
    तथा ये , व्यक्ति व समाज को जोड़ने वाली मज़बूत कड़ी साबित हुइ है , ये सबसे बड़ी/अच्छी बात है..
    विवाह से होने वाले संतती को परिवार का नाम/ पहचान मीलता/ती है ये उचीत बात है..
    परिवारके नाम का वाहक पहेला बेटा तथा उनकी उपज रक्षित शील के गर्भ से हो ये बात का महत्व सभी स्तरों पे स्वीकार्य / must है..
    एक-पत्नीत्व का आदर्श रामायण काल से सु-प्रचलित है..
    किंतु कीसीके प्रति जातीय आकर्षण होना ये प्राक्रुतिक गुण है.. उसे अवरोधिना केवल मानवीय चेष्टा है.. तथा ये खींचाव नर-नारी दोनों तरफ़ होनेकी संभावना बराबर हेा सकती है.. इसके परिणाम रूप अनुलोम/प्रतिलोम के अंतर्गत १०८ वर्ण अस्तित्व मे आती है..
    विवाह बाहर के ये परिणामों को विवाह-संस्था ” फलाणे के बाग का फल” करके एक “नाम” देती है.. तथा उनका इस समाजमें पोषण भी होता है..
    आज के समय मे जब पैसा जीवन से अधीक महत्व का हो गया है .. जातीय संबंधों के नाम अनेक अकुदरति विकृतियाँ पनप रही है…तथा क़ायदे से उससे निपटने की चेष्टा होती है, जीससे अौर विकृतियाँ बढ़ाने मे मदद होती है..
    किंतु भारतीय संस्कृति की देन ” विवाह संस्था ” के आधार ने विकृतियों को जीवन से बाहर रखा व उन्नत जीवन प्रदान कीया है.
    ये ही है “विवाह मुक्त जीवन”.. जिसमें प्रथम बीज-वाहक संतति के पश्चात जीवन में अवकाश भी प्रदान होता है..
    गुजराती में एक कहावत है.. ” मन जाणे ते पाप अने मां जाणे ते बाप”

    from SP’s smart fon..
    +1 312 608 9836

  2. आ. मधुसूदन जी,

    स्त्री शक्ति के संरक्षण, पोषण व जन्म लेती नइ पीढ़ी की साझी जीम्मेदारी निभाने के लीए विवाह संस्कार का आविष्कार कीया गया … जो चलता ही रहेगा
    तथा ये , व्यक्ति व समाज को जोड़ने वाली मज़बूत कड़ी साबित हुइ है , ये सबसे बड़ी/अच्छी बात है..
    विवाह से होने वाले संतती को परिवार का नाम/ पहचान मीलता/ती है ये उचीत बात है..
    परिवारके नाम का वाहक पहेला बेटा तथा उनकी उपज रक्षित शील के गर्भ से हो ये बात का महत्व सभी स्तरों पे स्वीकार्य / must है..
    एक-पत्नीत्व का आदर्श रामायण काल से सु-प्रचलित है..
    किंतु कीसीके प्रति जातीय आकर्षण होना ये प्राक्रुतिक गुण है.. उसे अवरोधिना केवल मानवीय चेष्टा है.. तथा ये खींचाव नर-नारी दोनों तरफ़ होनेकी संभावना बराबर हेा सकती है.. इसके परिणाम रूप अनुलोम/प्रतिलोम के अंतर्गत १०८ वर्ण अस्तित्व मे आती है..
    विवाह बाहर के ये परिणामों को विवाह-संस्था ” फलाणे के बाग का फल” करके एक “नाम” देती है.. तथा उनका इस समाजमें पोषण भी होता है..
    आज के समय मे जब पैसा जीवन से अधीक महत्व का हो गया है .. जातीय संबंधों के नाम अनेक अकुदरति विकृतियाँ पनप रही है…तथा क़ायदे से उससे निपटने की चेष्टा होती है, जीससे अौर विकृतियाँ बढ़ाने मे मदद होती है..
    किंतु भारतीय संस्कृति की देन ” विवाह संस्था ” के आधार ने विकृतियों को जीवन से बाहर रखा व उन्नत जीवन प्रदान कीया है.
    ये ही है “विवाह मुक्त जीवन”.. जिसमें प्रथम बीज-वाहक संतति के पश्चात जीवन में अवकाश भी प्रदान होता है..
    गुजराती में एक कहावत है.. ” मन जाणे ते पाप अने मां जाणे ते बाप”

  3. मुझे आपका यह लेखांश अत्यधिक अच्छा लगा |

  4. टूटते , बिखरते परिवारों के कारण यूरोपीय और अमेरिकी समाज बिखराव के खतरों को झेल रहा है. मानसिक रूप से विकलांग संताने निरंतर वहां बढ़ रही हैं. असुरक्षा के वातावरण में निरंतर मानसिक रोगों का शिकार बनता पश्चिमी जगत हमारे सामने है. प्रलोभन देकर परिवार संस्था को जीवित रखने के असफल प्रयास वे लोग कर रहे हैं जिस से वे एक समाज के रूप में जीवित रह सकें. असाध्य यौन रोग वहाँ निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं. नाबालिक बचियों के करोड़ों विक्षिप्त और अपराधी बच्चे बोझ बन रहे हैं. कोढ़ में खाज वाली ये एक और मुसीबत ने वहाँ जन्म ले लिया जिसके आयामों पर विद्वत्ता पूर्ण, सारगर्भित लेख प्रो. मधुसुदन जी ने लिखा है. आधुनिकता के नाम पर भारत भी इस विपत्ति का शिकार कुछ मात्रा में हो सकता है. अतः इस लेख के मर्म को समझना सबके लिए हितकर होगा.

  5. पहले जब इस लेख को देखा तो मुझे यही लगा कि यह तो पीछे मुड़ने जैसा है.इन विवाहों में मुझे कुछ नयापन नहीं दृष्टि गोचर हुआ.यह तो उस युग की ओर लौटने जैसा हुआ जब विवाह प्रथा थी ही नहीं.नर नारी दोनों स्वतंत्र थे और कोई किसी से सम्बन्ध बना सकता था. उन संबंधों में जो दोष था उसीको दूर करने के लिए विवाह संस्था का जन्म हुआ. अतः एक बात अवश्य खटकी कि जब हम इस विचार धारा से बहुत आगे आचुके हैं और सभी धर्मों ने नारी के साथ नर की भी सुचिता को सर्वोपरी माना है तो फिर पीछे लौटने की क्या आवश्यकता है?अगर कोई ऐसा करता है तो यही कहा जा सकता है कि मानव सभ्यता के विकास से उसने कोई शिक्षा नहीं ली और वह सभ्यता के पूर्ण इतिहास को भूल कर उसी आदिम युग में जीने जारहा है,जब इस प्रक्रिया में मानव और पशुओं में कोई अंतर नही था.ऐसे तो .पता यह भी चला है कि भ्रूण ह्त्या के चलते लडकियों की संख्या में कमी होने के कारण हरियाणा में भी बहु पति प्रथा आरम्भ हो गयी है.

  6. SHADAB ZAFAR”SHADAB”
    शादाब भाई यह लिखा तो अपने भाइयों को चेतावनी के उद्देश्य से।
    दूसरे लेखोंपर विपरित टिप्पणियां पढी़, तो मैं ने लेख की शुरुआत बदल दी। शीर्षक भी जो, कहना चाहता था, उसके विपरित रखा।
    हमें हमारी अच्छाइयां पता नहीं होती, क्यों कि बुराइयों का नुकसान झेला होता है।
    इस लिए समझने में भूल हुआ करती है।
    पहाडी भी दूरसे बडी सुहानी दिखती है। Grass is greener in the neighbor ‘s yard इस लिए शीर्षक विरोधाभासी है। यहां भी उपर उपर से देखने वाले बहुतेरे एन आर आय है।
    भौतिकता में हम पिछडे हो सकते हैं, संस्कृति में नहीं। इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं।
    आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

  7. हमारे देश के लिए यह कोइ नया विचार नहीं है | हमारे यहां पहले से ही गंदर्भ विवाह आदि प्रचलित है, जिस भारत के नाम पर हमारा देश जाना जाता है वह शकुन्तला और दुष्यंत की ऐसी ही संतान था , भारतीय समाज के सबसे बड़े प्रगतिशील चिन्तक जिनके दल के साथ गलबहियां करके भाजपा जैसे दल संख्यात्मक रूप से इतनी ऊंचाइयो^ तक पहुंचे है^ कहा करते थे की बलात्कार और बेबफाई को छोड़ कर औरत मर्द के सारे सम्बन्ध जायज है^ | वे खुद भी लिव इन रिलेशन जिये और उसे स्वीकार किया

    • वीरेन्द्र जी – टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

      (१)यह विचार नया है। आप फिर से पढें।
      (२) दूसरा, अपवादों से नियम ही सिद्ध होता है।
      (३) मैं किसी पक्ष की या व्यक्ति की वकालत नहीं करता; जो आप सोच रहे हैं।
      (४) उर्ध्व गामीनि संस्कृति उन्नति की ओर बढती है, इतिहास-पुराण से सीख ले कर; ऐसी मेरी मान्यता है। विशेषतः हिन्दू संस्कृति ऊर्ध्व गामी मानता हूं।
      अगले लेख की प्रतीक्षा करें।

  8. आदरणीय डा.साहब ‘बंधन मुक्त विवाह’ का षुभ समाचार आप के षब्दो में पढने का सौभग्य प्राप्त हुआ। समझ नही आया आप भारतीय युवको को समझा रहे थे, चेता रहे थे या फिर ललचा रहे थे। हम और हमारे देष में ये बहुत बडी बीमारी है कि हम लोग विदेषी रीति रिवाजो को बहुत तेजी के साथ अपनाते है। खुदा करे ये रोग हमारे देष के युवा और खास तौर से बूढो को न लगे। आप ने अपना फर्ज पूरी जिम्मेदारी से पूरा किया इस के लिये बधाई।

  9. विनायक जी।
    बात आपकी सही है।
    पर कट्टर वामवादी ( विरोधी) भी जब उनके अपने कुटुम्ब की बात आती है, तो यह तो नहीं चाहते कि उनकी पत्नी/पति कहीं और भटकती/ता फिरे।
    कुछ प्रगतिवादी भी अपने बालकों को विश्व हिन्दू परिषद के शिविरों में भेजते हैं।
    दत्तोपन्त ठेंगडी के साथ रशिया गए हुए एक बडे (नाम भूल रहा हूं) बंगला वामवादी नेता, उन्हों ने प्रातःसंध्या की या नहीं, इसकी पूछताछ बिना भूले पूछा करते थे।

  10. डा० मधुसूदन जी भारतीय विशेषकर हिन्दू कुटुम्भ संस्था की व्यवस्थाओं का कोई सानी नहीं. परन्तु समझने समझाने में बहुत ही कठिनाई है. समझाने के लिए तुलनात्मक अध्ययन करना पड़ता है . अन्य धर्मों में कुटुम्भ संस्थाएं शायद नहीं हैं तो फिर उनकी पारिवारिक व्यवस्थाओं और परम्पराओं से जब तुलना की जाती है तो कट्टरवादी , अंध-धर्मावलम्बी या भगवा वादी होने का आरोप जड़ दिया जाता है.
    समझ में नहीं आता की किस प्रकार अपनी आने वाली पीढ़ियों को समझाया जाये की भारतीय कुटुम्भ संस्था ही विश्व में सर्वश्रेठ है ?

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