गुलामी का कलंकित रूपः हम क्या करें ?

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

तमिलनाडु राज्य के किशनगिरी से करीब 15 किलोमीटर दूर इत्तीग्राम में एक हरिजन बस्ती है। इस बस्ती में रहने वाले दलितों को मुख्यमार्ग से काटकर कांटे के तारों से इलाके को हिन्दुओं ने घेर दिया है। यह माना जा रहा है इस कांटे की बाढ़ को गांव प्रधान के इशारों पर कुछ स्थानीय दलित विरोधी लोगों ने लगाया है। यह खबर दैनिक अखबार ‘हिन्दू’ (15 अक्टूबर 2010) में छपी है। यह दलितों के स्वाभिमान, स्वतंत्रता और अस्मिता पर सीधा हमला है। इस घटना की सूचना मिलते ही भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के विधायक एस.के.महेन्द्नन ने मौके पर जाकर का मुआयना किया और स्थानीय प्रशासन से कहा है कि एक सप्ताह के अंदर दलित बस्ती के चारों ओर लगाई गई कांटों की बाढ़ को यदि नहीं हटाया गया तो माकपा के कैडर सीधे कार्रवाई करने के लिए बाध्य होंगे।

हम इस इलाके के दलितों से यही कहना चाहते हैं कि वे स्वयं प्रतिवाद करें,बाहर आएं और कांटेदार बाढ़ को उखाड़ फेकें। यह कांटे की बाढ़ नहीं है बल्कि दलित गुलामी के अवशेष का प्रतीक है। हमें यदि सुंदर और आधुनिक भारत बनाना है तो हमें सभी किस्म के सांस्कृतिक गुलामी के रूपों को नष्ट करना होगा। आधुनिक भारत के निर्माण में जाति गुलामी आज भी सबसे बड़ी बाधा है। जाति गुलामी के कारण हम किसी किस्म की आजादी, आधुनिकता और नागरिक स्वतंत्रताओं का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। जाति गुलामी भारत का सबसे बड़ा कलंक है। इससे भारत को जितनी जल्दी मुक्ति मिले उतना ही जल्दी भारत का उपकार होगा।

इस प्रसंग में यह सवाल उठता है कि आखिरकार आजादी के 60 साल बाद भी हमारे देश में शूद्रों के साथ दुर्व्यवहार क्यों किया जाता है? क्या वजह है कि कहीं पर भी हरिजनों को जाति उत्पीड़न का सबसे ज्यादा सामना करना पड़ता है ? कहने के लिए कांग्रेस यह दावा करती है कि वह दलितों की चैम्पियन है,मायावती भी चैम्पियन हैं और भी दल चैम्पियन होने का दावा करते हैं, इसके बावजूद हरिजनों की उपेक्षा का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।

इस प्रसंग में मैं आम्बेडकर के एक सुझाव को संशोधन के साथ पेश करना चाहता हूँ। प्रत्येक राजनीतिक दल अपने सदस्य को एक दलित बच्चे को पढ़ाने का दायित्व सौंपे। कम से कम सप्ताह में एकबार वह अपने यहां एक दलित को चाय-पानी पर बुलाए,दलित के बच्चे को विद्यार्थी की तरह पढ़ाए। किसी अस्पृश्य को अपने यहां काम पर रख लें और उससे मानवीय व्यवहार करें। जो व्यक्ति ऐसा करे उसे ही कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिस्ट पार्टी, डीएमके, अन्नाडीएमके, टीएमसी, जदयू आदि दलों की सदस्यता दी जाएगी। राजनीतिक दल की सदस्यता को अछूतोद्धार के साथ जोड़ने से सामाजिक असंतुलन दूर करने में मदद मिलेगी।

27 COMMENTS

  1. Er. Diwas Dinesh Goud जी। विशेषतः आपकी आखरी टिप्पणी पढकर मैं यह लिखने के लिए उद्युक्त हुआ। आपकी टिप्पणी बहुत प्रमाण में प्रेमादरयुक्त, संतुलित, और तर्क सम्मत प्रतीत होती है। वाद या विवाद, नहीं पर संवाद प्रस्थापित करने के लिए प्रेरक प्रतीत होती है। साधुवाद।वाद या विवाद हार जीत के लिए माना जाता है। संवाद सकारात्मक सुलझाव ढूंढने के लिए होता है। हम संवाद करें। वाद विवाद नहीं।बिनती: आप समयानुकूलता से लिखते रहें। आदरणीय, डॉ. कपूर जी ने आपके लिए कहे हुए शब्दोंसे भी मैं सहमत हूं। शत्रुता ना जगाते हुए ही संवाद, संवादिता (समन्वय) और सुलझाव, लाता है। कडवाहट जगाने से दुश्मनी बढती है; समस्या और विकट हो जाती है। लाने तो निकले हैं (समाज) में एकता, और आपस में शत्रुता बना बैठते हैं। (है ना विडंबना?)।एकता आते, आते आएगी, आपस की कटुता से बन पाए तब तक बचा जा सकता है।
    और आदरणीय गहलोतजी—धन्यवाद,
    विशेष (गहलोत जी) ने उनकी अंतिम टिप्पणी के अंत में जैसे विराम देने की और आपसे मिलने की बात कही है; वह भी भा गयी। कुछ नाम ले सकता हूं, पर संघ ही जब जात पांतमें मानता नहीं है, तो मोह को संयत करता हूं।पर (गहलोत जी से) एक ही प्रार्थना कर सकता हूं; कि, आप रमेश पतंगे जी की “मैं मनु और संघ” पढें।और निम्न साईटें देख ले। आप कुछ संस्थाओं को भेंट भी कर सकते हैं।(1) http://www.ekalvidya.org
    ***एकल विद्यालय, जो संघप्रेरित संस्था ३४४३३ एकल शालाएं, जिसमें प्रति शाला ३० के लगभग वनवासी बालक, बालिकाएं पढते हैं।
    आप ही देख ले।***
    (2) https://en.wikipedia.org/wiki/Vanavasi_Kalyan_Ashram
    यह वनवासी कल्याण आश्रम का कुछ परिचय आपको इस वेब साईटसे प्राप्त होगा।
    (3) https://www.sevabharathi.org/
    यह सेवा भारती की साइट हैं।
    समस्याएं कागज़ पर नहीं, समाज में है।आम खाने की ज़रूरत है, आम पर लेख लिखने की नहीं। लेखसे अवगत हुआ जा सकता है।–आग लगने पर आप क्या कौन उस आगके लिए जिम्मेदार है? यह वाद करते रहेंगे, या पानीसे आग बुझाने के लिए दौडेंगे। संघ आग बुझानेका काम कर रहा है।
    सारा समाज मेरा है, यही मैंने संघसे सीखा है। हम मिलकर ही इसकी समस्याएं सुलझा सकते हैं। हम सारे इसके लिए न्य़ूनाधिक मात्रा में उत्तरदायी हैं।संघ भी उत्क्रांतिशील, गतिमान (डायनॅमिक) संस्था है। इसी आधार पर उसका उत्कर्ष हुआ है। आगे भी होगा।
    लेखसे भी अधिक मसाला और मौलिक योगदान, इस विषयकी टिप्पणीयों में है।अनुकूलता मिलने पर ठीक पढूंगा।सारे टिप्पणीकारों को धन्यवाद।

  2. दिनश गौड़ जी आप में देशभक्ती की भावना, प्रतिभा और विश्लेषण की क्षमता है, निरंतरता बनाए रखें.
    – स्मरणीय है कि गीदारों की भीड़ होती है, शेर विरले ही होते हैं. काम वासना के दास करोड़ों हैं, वासना को जीत कर महान बनने वाले विरले होते हैं. कुछ ख़ास बनने के लिए ख़ास प्रयास करने पड़ते हैं. भारत महान वासना की नाली के कीटों के कारण नहीं, संयम, साधना करने वालों के कारण बना और आज भी ऐसे लोगों के कारण ही महान बनेगा. ये तो अपनी-अपनी पसंद है कि गीदड़ किसे और शेर किसे बनना है. मेरी शुभकामनाएं!

  3. aadarniiy gahlot ji maine aapke usi सवाल का जवाब दिया है, किन्तु जब तक mujhe aisi koi ghatna aap nahi bataaenge, mujhe pata nahi chalega| mai maanta hoon ki kuchh log jaati gat roop se chhuachhoot ko saamne ला रहे हैं, इनको यह कार्य nindaniiy है| किन्तु jis prakaar likhak ne is sabke लिये हिन्दू धर्म को दोषी ठहरा दिया, hinndu dharmgranthon का apmaan kiya, kya यह uchit है? kya हिन्दू धर्म hee iska mool kaaran है? kya angrejon ne hame baantne ke लिये is ghinone krit का sahaara nahi liya tha? mai bas aapko itna kahna chaahta hoon ki kyon baar baar swarn, dalit , हिन्दू, muslim jaise shabdon का prayog kisi को bhadkaane ke लिये kiya jaa raha है?

    आपने अपने जीवन के बारे में बताया ki kis prakaar aapka जीवन bhinn bhinn dharmo aur jaatiyon के saath गुज़रा, मुझे तो ख़ुशी है कि किस prakaar in vibhinn prakrity के logon ne aapkii sahaayata kii, fir bhi aapko inse shikaayat kyon है? आपने apni सरकारी नौकरी में इस पीड़ा को भोग होगा किन्तु आज के samay में kya aap jaante हैं कि hum jaison के लिये सरकारी नौकरी paana ही एक ख्वाब जैसा हो गया है| auron के vishay में kuchh nahi bolunga किन्तु आज तक kabhi kisi dalit को iske लिये दोषी nahi thahraaya| kisi bhi dalit se kitna bhii aage hone के baawazuud kayi baar मुझे inke dwaara peechhe dakhel दिया गया, किन्तु kabhi inse nafrat nahi kii, ya swayam को inke dwaara shoshit nahi samjha| gahlot ji यह एक chaal है hame baantne kii| यह samay inki chaalon में fansne का nahi inki chaalon को nakaamyaab karne kaa है|

    aasha है कि aap samajh sake honge|

    Mo- 09829798033…

  4. आदरणीय कपूर साहब, उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद| मुझे ख़ुशी है कि आपने मुझे इस योग्य समझा| कपूर साहब मेरी तो मन से इच्छा है कि मै अपने साथ कार्यरत सभी साथियों को अपनी बात समझा पाटा, किन्तु बहुत दिनों से देख रहा हूँ कि सबसे ज्यादा गलती देश के युवाओं की ही है| अगर वह भली प्रकार से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता तो यह हालत न होती| मेरे कुछ मित्र ऐसे भी हैं कि जब मै उनके साथ राष्ट्र हित में चर्चा करना चाहता हूँ तो कई यह बोल पड़ते हैं कि “तू क्या कर लेगा अकेला? तुझे क्या पड़ी है? जैसा चल रहा है चलने दे न, तू क्यों टेंशन ले रहा है? हमारे पास और भी बहुत से काम हैं करने को, इन फ़ालतू बातों में पड़े रहे तो बर्बाद हो जाएंगे|” इनके पास के बहुत से कामों में सबसे महत्वपूर्ण काम है अपने ऑफिस की सबसे सुन्दर लड़की को पटाना और उसे डेट पर ले जाना, उसे महंगे महंगे उपहार देना, और जब भी मौका मिले उसके साथ मूंह काला कर लेना, अपने मित्रों के साथ शनिवार की रात दारू पार्टी करना| कुछ तो ऐसे भी हैं कि कश्मीर समस्या पर जिनका कहना है कि यथास्थिति बना दी जानी चाहिए, अकेले कश्मीर के पीछे पूरे देश को पागल होने जरूरत नहीं है| किन्तु फिर भी गिने चुने ही सही कुछ लग ऐसे भी मिले कि जिन्हें मेरी बातों में वजन दिखा और वे किसी भी राष्ट्र हित के कार्यों में आगे रहने को तत्पर रहते हैं| ऐसे व्यक्तियों ने ही हौंसला दे रखा है| बाकी आप जैसे अग्रजों की कृपा से बहुत कुछ करने की इच्छा रखते हैं हम| आपने आज मेरी लेखन क्षमता की सराहना की है तो गर्व से सीना चौड़ा हो गया, क्यों कि २ महीले पहले तक मै स्वयं को एक बुरा लेखक ही समझता रहा| अभी कुछ ही दें हुए हैं जो मैंने लिखना शुरू किया है|
    मुझे विश्वास है कि आप हम sab milkar bhaarat को एक behtar bhawishy दे sakenge|
    बहुत बहुत dhanyawaad|

  5. सभ्यता व ज्ञान के आगार मित्र डा. चतुर्वेदी जी तथा डा. मीना जी से कहना है की सच का सामना होने पर तिलमिलाने और असभ्य भाषा के प्रयोग के स्थान पर वे तर्कपूर्ण उत्तर दें तो इस पत्रिका व उनके अपने सम्मान को आघात नहीं लगेगा. आप लोग जितनी निर्ममता व असभ्यता से हिन्दू समाज, संस्कृति व धर्म ग्रंथों का अपमान करते हैं वह आपके पूर्वाग्रहों व हिन्दू समाज के प्रती आप लोगों की घृणा को प्रदर्शित करता है.
    – ऐसे में आप जो दावे हिन्दू समाज के किसी वंचित वर्ग के कल्याण के करते हैं , उनपर संदेह होना स्वाभाविक है. जब आपके मन में हम लोगों के प्रती इतनी घृणा है तो आपके हर प्रयास के पीछे अरूर कोई राज़ होगा, हमारी बर्बादी की कोई योजना होगी ? हमसे नफ़रत करने वालों पर हम कैसे और क्यों विश्वास करें ?

    @@ मैंने अपने ओर से किसी को देशद्रोही नहीं कहा है. जवाहर लाल नेहरु द्वारा बिठाए ‘नियोगी कमीशन’ के अनुसार ईसाई आसानी से सी.आई.ए. के एजेंट बन जाते हैं, देशद्रोही गतिविधियों में भाग लेते है. एक हज़ार पृष्ठों की रपट है. आज भी हम देख ही रहे हैं की अनेक हत्याकांडों, देश विरोधी हिंसक आन्दोलनों के पीछे संघ नहीं चर्च का हाथ है. उत्तर-पूर्व के रास्त्र विरोधी हिंसक आन्दोलन इसके प्रमाण हैं.
    – ये भी सच है कि सभी ईसाई देश विरोधी नहीं हैं. पूअर क्रिश्चन मूवमेंट जैसे देशभक्त ईसाई संगठन भी भारत में चल रहे हैं. पर धोखे से धर्मांतरण करने वाले, हिंसक गतिविधियों में भाग लेने वाले, हिन्दू धर्म के विरुद्ध प्रचार करने वाले तो इस देश व समाज के मित्र नहीं, शत्रु ही हैं न ?
    @@ इसी प्रकार इसी पत्रिका में अनेकों लेख छपे हैं कि कम्युनिस्टों ने अनेकों बार देशद्रोह के काम किये हैं जैसे कि १९६२ में आक्रमणकारी चीन का साथ देना.
    – संघ को अमेरिका का एजेंट होने की गाली देनेवाले चतुर्वेदी जी मेरा पाठकों से निवेदन है कि वे स्वयं देख लें कि अमेरिका के एजेंटों और कमुनिस्तों का स्पष्ट गठजोड़ इस पृष्ठ पर देखा जा सकता है.
    – अब पाठक स्वयं फैसला करें कि देश द्रोही ताकतें कौन हैं और अमेरिका, चीन के एजेंट कौन हैं. सवयम देखें कि मैंने किसे और क्यों देशद्रोही कहा.
    ### भारत के दुर्बल समाज के कल्याण के नाम पर हमारे समाज को टुकड़ों में बाटने और देश तोड़ने व हमारे बंधुओं को देशद्रोही बनाने का खतरनाक काम ये ताकतें कर रही हैं या नहीं ? ###
    – जो इसमें भागीदार बनें उन्हें देशद्रोही कहना गलत कैसे हुआ और वह भी तब जब कि ये मैं अपने ओर से नहीं, जांच आयोग व विद्वानों के अनेक लेखों के आधार पर कह रहा हूँ ?
    * मित्रो मैं किसी को भी अपमानित या पीड़ा पहुंचाने का लेशमात्र भी प्रयास नहीं कर रहा हूँ. सच्चे ह्रदय से मैं सबके कल्याण व देश हित की भावना से लिख रहा हूँ. जो सही है और जो गलत है, जो कल्याणकारी है और जो विनाशकारी है केवल उसे उजागर करने का मेरा विनम्र प्रयास है.

  6. दिनेश गौड़ जी आपके जवाब पढ़ कर साफ़ लगता है कि हमारी अगली पीढी समाज और देश की दुश्मन ताकतों को साफ़-साफ़ पहचानने लगी है और उन्हें बड़ी अच्छी तरह जवाब देने में सक्षम है. आपके भावनाशील व तर्कसंगत जवाब पढ़ कर उत्साह बढ़ता है और संतोष मिलता है.
    – आप देख ही रहे हैं कि तमीज की बात करने वाले सबसे अधिक बतमीज़ी कर रहे हैं, असभ्य भाषा का प्रयोग कर रहे हैं. फिरभी अपने विद्वान होने का दम भरते हैं और दूसरों को सभ्यता का उपदेश देने लगते हैं. आपने बड़ी सयमित भाषा का प्रयोग करते हुए अछे जवाब दिए हैं, पर लगता नहीं कि इनपर कोई असर होगा.
    – आपने सही कहा है कि ये लोग करोड़ों हिन्दुओं को अपमानित करते हैं, असभ्यातापूर्ण भाषा का प्रयोग करते हैं, हमारे धर्मग्रंथों का अपमान करना अपना परम कर्तव्य और अधिकार समझते हैं. जब आप सरीखा कोई इन्हें करारा जवाब देता है तो चिल्लाने लगते हैं कि इनका अपमान होगया, कट्टरपंथी, बुर्जुआ सर उठा रहे हैं.
    – अनेक दशकों से इनकी यही धक्केशाही, धांधली चल रही है. अपने जीवन में पहली बार देख रहा हूँ कि इन्हें करारे जवाब मिल रहे हैं और इन लोगों को दबाव में आना पद रहा हैं ये आने वाले भविष्य के अछे लक्षण हैं.
    – आपके पास विश्लेष्णात्मक दृष्टी और समझ है, लेखन की क्षमता है. राष्ट्र व समाज सेवा के इस कार्य को यूँही सदा करते रहें , हार्दिक शुभकामनाएं!

  7. इंजिनियर दिनेश गौर साहिब, आपने जवाब दिया – धन्यवाद. और, आपने इस जवाब में अपने जिस महानतम जीवन- दर्शन का परिचय दिया है उसके लिए – विशेष धन्यवाद. खेर, विचार अपने-अपने और सोच अपनी-अपनी. हमने तो आपसे यह उम्मीद की थी कि आप हमारे उक्त वर्णित दिनांक १८/१०/२०१० को २-५५ पी.ऍम. पर व्यक्त विचार पर जवाब देंगे. दिनेश जी, उक्त सम्बंधित लेख पर चल रही इस वैचारिक बहस रूपी चर्चा से यह एक बात तो साफ हो चुकी है – कि कहने को तो हम सभी खुले और प्रगतिशील (प्रोग्रेस्सिव) विचारों के होने का दंभ (भरम) पाले हुए हैं, जबकि यह सच नहीं है. सच यह है कि हम सभी अपनी-अपनी वैचारिक सीमा-रेखा (लछमन रेखा) से बंधे हुए है.

    वेसे भी, आज के समय में ‘सच’ कहना, ‘सच’ सुनना और ‘सच’ का साथ देना सबसे बड़ा अपराध बना हुआ है. यों, हम सभी सच के ही पैरोकार होने का दावा करते रहते हैं. इसलिए बेहतर यही है कि हम एक-दुसरे को कोसने की बजाय अपनी-अपनी कार्य-शेली का आत्मलोकन करते रहे, आत्मा की आवाज को सुनते रहे और उस आवाज के अनुसार अपने कार्य व् सोच को परिवर्तित करते रहे तो ही जीवन सफल है. वर्ना तो यही अकारण का वाद-विवाद इंसान को हिंसक ही बना रहा है और जीवन को बोझ.

    अब जहाँ तक मेरा ‘संघ’ में जाने और उसे समझने का सवाल है, तो हमने अपने बचपन में कुछ समय तक ‘संघ’ में जाकर देखा भी है तथा ‘संघ’ को समर्पित बने हुए कई सदस्यों से हमारी निजता व् निकटता आज भी बनी हुई है जिनसे ‘संघ’ की कार्यशेली को लेकर ‘बहसबाजी’ भी होती रहती है. इनमें कई दलित सदस्य भी है जो अपने परिवार सहित ‘संघ’ को समर्पित बने हुए है और जो हमारी निज चर्चा में इस बात को स्वीकार भी करते है कि- ‘संघ’ में जातीय आधारित ऊँच-नीच का भेदभाव कायम है, फिर भी वे इस भेदभाव को स्वीकार किये हुए है और ‘संघ’ के समर्पित बने हुए है – तो, इनसे बेहतर वफादार ‘दलित हिन्दू’ आखिर ‘संघ’ को कहाँ मिलेंगे ! वेसे भी हर राजनितिक पार्टी और हिन्दुत्ववादी संगठन का ‘रिमोट कन्ट्रोल’ सवर्ण कहे जाने वाले सदस्य के पास ही बना हुआ है. भाजपा ने जिस तरह से दलित नेता बंगारू लक्ष्मण को अपमानित किया हुआ है, वह सबको पता है – लेकिन फिर भी वह भाजपा से ही चिपके रहकर अपनी ‘वफ़ादारी’ का सबूत दिए हुए है, यह कम बात नहीं है. ऐसे ‘वफादारों’ की संख्या में कोई कमी नहीं है, जो ‘अपमानित’ होकर भी ‘गुलामियत’ में जी रहे हैं और दंभ भर रहे हैं कि- हम बा-इज्जत हैं और आज़ाद हैं – धन्य है ऐसे आज़ाद इंसानों को और हम इनको भी ‘नमन’ ही करते हैं.

    इंजिनियर दिनेश गौर साहिब, चलते-चलते हमारे बारे में भी कुछ खास आपको यह भी बतला दें कि – हमारा जन्म एक ‘दलित’ परिवार में हुआ है, लेकिन हमने जन्म समय पर पहला दूध एक ‘मुस्लिम महिला’ छोटी बाई का पिया फिर उस समय मोजूद अन्य जाति-समाज की महिलाओं का दूध पिया, इसके बाद ही अपनी जन्म माँ का दूध पिया. छठी कक्षा से एक सनाढ्य ब्राह्मन परिवार ने मात्र शिक्षा कराने के लिए गोद लिया और उस परिवार ने अपनी इस जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से पूरा किया तथा आज भी मेरा उस परिवार से पारिवारिक सम्बन्ध बना हुआ है. मुझको लिखना भी सवर्ण कहे जाने वाले विदजनों से ही सिखने को मिला. इस तरह से मेरा ‘जीवन-सफ़र’ हर जाती-धर्म से होकर गुजर रहा है और सभी जाती-धर्मों के प्रति मेरे मन में सम्मान-भाव भी है. मेरे गुरु भी एक मुस्लिम संत है.

    लेकिन, जब मै अपने आस-पास रहने वालों में मेरे अपने व् अपने परिवार के प्रति जातीय आधारित नफरत भाव को देखता और भोगता हूँ, तो पीड़ा होती है और तब मै यह सोचने को विवश हो जाता हूँ कि – क्या मैं ‘हिन्दू’ नहीं हूँ और हूँ भी तो कोन-सा हिन्दू हूँ – दलित या सवर्ण ? माननीय इंजिनियर साहिब, क्या आप मेरे इस सवाल का जवाब देंगे ? इंजिनियर साहिब, मेने इस पीड़ा को अपनी सरकारी नोकरी मै भी भुगता है. फिर, यह पीड़ा सिर्फ मेरी या मेरे परिवार की ही नहीं है बल्कि इस आज़ाद कहे जाने वाले भारत देश के करोडो दलित परिवारों की है, जिससे आपके ‘संघ’ के प्रमुखजन और सभी हिन्दुत्ववादी संगठनों के प्रमुखजन भी पूरी तरह से परिचित है, शायद आप भी परिचित हों – लेकिन सब ‘चुप’ है. आखिर आप कोन से ८० करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं की बातें करते हो ?

    इंजिनियर साहिब, हमने इसी सच को उजागर करने के लिए ‘पाक्षिक समाचार सफ़र’ का वर्ष २००४ में ५ अप्रैल से लगातार प्रकाशन आरम्भ किया हुआ है. यदि आपको समय मिले और आप उचित समझे तो हमारी वेब-साईट ‘डब्लू डब्लू डब्लू डोट समाचार सफ़र डोट कॉम’ और ब्लॉग ‘डब्लू डब्लू डब्लू डोट समाचार सफ़र डोट ब्लागस्पाट डोट कॉम’ पर लिंक किये हुए अंकों को देखे व् पढ़े. इनमे हमारे ‘सम्पादकीय’ को जरुर पढ़े. फिर आप एक इन्सान के नजरिये से अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ.

    आखिर में, मेरा यही कहना है कि – हमको सिर्फ जातीय और धर्म आधारित कट्टरवादिता से नफरत है, फिर वह चाहे किसी भी जाति और धर्म से सम्बंधित हो. इसीलिए, हम अपने सोच-विचार में ‘संघ’ व् ‘सिम्मी’ तथा ‘तोगड़िया’ व् ‘लादेन’ में कोई अंतर नहीं मानते, ये और इनके जेसी सोच-विचार वाले सब एक-समान ही है. अब हमारे यह विचार आपको अच्छे लगे या बुरे – सोच अपनी अपनी है.

    अंत में, इस चर्चा को फिलहाल विराम देते हुए, फिर से आपको ‘नमन’. यदि आपका संपर्क मो. नंबर और आपका जयपुर का पता मिला तो जयपुर आने पर आपसे मिलने का प्रयास करूंगा. धन्यवाद.

    – जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत, कोटा-३२४००६ (राज.) ; मो. ९८८७२-३२७८६

  8. आदरणीय सम्पादक जी,
    नमस्कार।

    आप सभी विचारों को प्रमुखता से प्रकाशित कर रहे हैं, बेशक मुझ सहित अन्य पाठकों की ओर से उनपर आपत्तियाँ की जा रही हो। इस साहसिक पहल के लिये आपका आभार।

    आदरणीय सम्पादक जी, इस आलेख पर तमीज, बदतमीज जैसे शब्दों तक बात आ गयी है। अत: मैंने तय किया है कि यह टिप्पणी आपको सम्बोधित करके प्रस्तुत करूँ, यह जानते हुए कि आप संघ पृष्ठभूमि के ऊर्जावान युवा हैं और आपसे इस देश को बहुत सारी उम्मीद हैं।

    आदरणीय सम्पादक जी, हमारे अनेक वेब के साथी पाठकों का कहना है कि ब्राह्मणवाद के नेतृत्व में संचालित संघ का हिन्दूत्व भारत के 80 करोड हिन्दुओं का भला कर रहा है। जिसके चलते सभी संघी मानने लगे हैं या उनको इस बात का भ्रम है कि वे 80 करोड हिन्दुओं का नेतृत्व करते हैं। दूसरों के विचारों को 80 करोड हिन्दुओं का विरोध करार देते हैं, जबकि सच्चाई क्या है, यह मैंने अनेक स्थानों पर सन्दर्भ की मांग के अनुसार पेश की है, लेकिन एक भी संघी या हिन्दुत्व का संरक्षक इनका जवाब नहीं देना चाहता। यही नहीं हिन्दुत्व को मजबूत करने के लिये कुछ विनम्र सुझावों के साथ मैंने एक आलेख लिखकर प्रवक्ता पर प्रस्तुत भी किया (हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दुवादी सरकार), लेकिन श्री डॉ. राजेश कपूर जी जैसे संघ एवं हिन्दुत्व के जानकार एवं संरक्षक उस आलेख पर नजर ही नहीं आये। मुझे श्री कपूर साहब से आज भी उस आलेख पर अपने श्रेृष्ठ एवं मार्गदर्शक विचारों का इन्तजार है।

    आदरणीय सम्पादक जी, यहाँ पर जिन बन्धुओं ने 80 करोड हिन्दुओं के रक्षक और हिन्दुत्व तथा संघ के रक्षक ब्राह्मणों या ब्राह्मणवाद की नीयत की पवित्रता की बात की है, उनके लिये एवं उनके विचारों के अन्धभक्त समर्थकों की जानकारी के लिये मुझे इस आलेख पर फिर से कुछ सुधार एवं सम्पादन के साथ निम्न तथ्यों को प्रस्तुत करना जरूरी प्रतीत हो रहा है। जिससे स्वत: ही प्रमाणित हो जायेगा कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था के संचालक एवं संघ के संरक्षक इस देश के 80 करोड हिन्दुओं के कैसे संरक्षक हैं? किस प्रकार से दूसरों का गला काटकर स्वयं को विद्वान घोषित करके स्वयं आगे बढ रहे हैं? जरा विचार करके देखें :-

    1. पिछले वर्ष एक कॉलेज के बच्चों ने हमारे संगठन-“भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)”-को लिखित में शिकायत की, कि उनके कॉलेज का प्रशासन बनिया-ब्राह्मणों द्वारा अपने शिकंजे में लिया हुआ है, जिसके चलते गैर-बनिया-ब्राह्मणों के बच्चों के अंक कम दिये जा रहे हैं। जिसके चलते वे मैरिट में पिछड रहे हैं।

    2. हमने शिकायत की सच्चाई जानने के लिये सूचना अधिकार के तहत अपने तरीके से आँकडे जुटाये और एक कक्षा के टॉप 25 छात्रों द्वारा प्राप्त आँकडों के अनुसार बनायी गयी मैरिट यहाँ प्रस्तुत है। जानने का प्रयास करें कि कौन पढने में कितना माहिर है?

    छात्र की जाति, आन्ततिक अंक, प्रायोगिक अंक, लिखित परिक्षा के अंक, कुल अंक
    ========================================
    ०१. ब्राह्मण २०/२० २०/२० ५२/६० ९२/१००
    ०२. बनिया २०/२० १९/२० ५२/६० ९१/१००
    ०३. बनिया २०/२० २०/२० ५१/६० ९१/१००
    ०४. ब्राह्मण २०/२० २०/२० ५०/६० ९०/१००
    ०५. ब्राह्मण २०/२० २०/२० ४८/६० ८८/१००
    ०६. ब्राह्मण २०/२० १९/२० ४७/६० ८६/१००
    ०७. बनिया १९/२० २०/२० ४७/६० ८६/१००
    ०८. ओबीसी १५/२० १४/२० ५७/६० ८६/१००
    ०९. एससी १४/२० १४/२० ५८/६० ८६/१००
    १०. एसटी १३/२० १४/२० ५९/६० ८६/१००
    ११. एससी १४/२० १३/२० ५८/६० ८५/१००
    १२. बनिया १९/२० १९/२० ४६/६० ८४/१००
    १३. ओबीसी १३/२० १३/२० ५७/६० ८३/१००
    १४. ब्राह्मण २०/२० १९/२० ४४/६० ८३/१००
    १५. बनिया १९/२० १९/२० ४५/६० ८३/१००
    १६. बनिया २०/२० १९/२० ४४/६० ८५/१००
    १७. ओबीसी १३/२० १३/२० ५७/६० ८३/१००
    १८. एसटी १५/२० १५/२० ५२/६० ८२/१००
    १९. एससी १५/२० १५/२० ५२/६० ८२/१००
    २०. ओबीसी १५/२० १५/२० ५१/६० ८१/१००
    २१. एसटी १२/२० १०/२० ५८/६० ८०/१००
    २२. एससी १०/२० ०९/२० ५८/६० ७७/१००
    २३. एससी ०९/२० ०९/२० ५७/६० ७५/१००
    २४. एसटी १०/२० ०८/२० ५७/६० ७५/१००
    २५. एससी १०/२० ०९/२० ५५/६० ७४/१००
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    नोट : हमने जो सूचना प्राप्त की है, उसमें छात्रों के सरनेम के अनुसार यह भी ज्ञात हुआ है कि ब्राह्मण एवं बनिया के अलावा सवर्ण राजपूतों, कायस्थों, मुसलमानों, आदि के अंक बहुत ही कम दिये गये हैं।

    3. हमारे संस्थान ने उक्त जानकारी से सम्बद्ध विश्विविद्यालय एवं कॉलेज संचालक को अवगत करवाया, जिस पर तत्काल कार्यवाही की गयी और अब उस कॉलेज में एक भी ब्राह्मण या बनिया लेक्चरर नहीं है। जिसका परिणाम ये है कि इस वर्ष के परीक्षा परिणाम में कक्षा के प्रथम 15 छात्रों में एक भी ब्राहण-बनिया छात्र नहीं है।

    4. यही बात आजादी के बाद से लगातार देश की प्रशासनिक सेवाओं के साक्षात्कार में भी दौहराई जाती रही है। यदि भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और राज्य प्रशासनिक सेवाओं के साक्षात्कार एवं लिखित परीक्षा के अंकों का विवरण प्राप्त करके उनका तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया जाये तो इस देश के सामाजिक सौहार्द में आग लग सकती है। लेकिन अब अधिक समय तक यह सब चलने वाला नहीं है। सच्चाई को सामने लाने के लिये अनेक प्रबुद्धजन सेवारत हैं और ब्राह्मणवाद का असली चेहरा सामने आने से बच नहीं सकता।

    5. अब जरा इस बात को भी जान लें कि इस देश की आजादी के बाद से इसके प्रशासन पर कौन लोग शासन कर रहे हैं? और उनका न्याय एवं समानता का नारा कितना पुख्ता है? संघ ने उनमें किस प्रकार के संस्कार डाले हैं? इस बात को जानने के लिये संघ लोक सेवा आयोग की निष्पक्षता को समझना जरूरी है।

    6. 1947 तक भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के 80 प्रतिशत से अधिक पदों पर मुसलमान, कायस्थ और राजपूत कौमों के लोग पदस्थ थे। जिनमें क्रमश : करीब :-

    (1) 35 प्रतिशत पदों पर मुसलमान।
    (2) 30 प्रतिशत पदों पर कायस्थ। और
    (3) 15 प्रतिशत पदों पर राजपूत पदस्थ हुआ करते थे।

    7. आज उक्त तीनों कौमों के कुल मिलाकर 05 प्रतिशत लोग भी भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में नहीं हैं। आखिर क्यों? क्या भारत को आजादी मिलने के बाद इन तीनों कौमों की माताओं ने मूर्ख बच्चे पैदा करना शुरू कर दिये हैं?

    8. मेरे पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार 2004-2005 तक भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल 3600 पद थे। जिनमें से-

    (1) 22.50 प्रतिशत (810) पद अजा एवं अजजा के लिये आरक्षित होते हुए भी और लिखित परीक्षा में योग्यता अर्जित कर लेने के उपरान्त भी साक्षात्कार में अनुत्तीर्ण करके अजा एवं अजजा के मात्र 213 (5.91 प्रतिशत) लोग ही चयनित किये गये थे।

    (2) अजा एवं अजजा दोनों वर्गों की आबादी, देश की कुल आबादी का 25 प्रतिशत मानी जाती है। जिसके मुताबिक इनकी भागदीदारी बनती है : 900 पदों पर।

    (3) 27 प्रतिशत (972) पद अन्य पिछडा वर्ग के लिये आरक्षित होते हुए भी, अन्य पिछडा वर्ग के मात्र 186 (5.17 प्रतिशत) लोग ही चयनित किये गये थे।

    (4) पिछडा वर्ग की आबादी, देश की कुल आबादी का 45 प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनकी भागीदारी बनती है : 1620 पदों पर।

    (5) बिना किसी आरक्षण के भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल 3600 पदों में से 2400 पदों पर केवल ब्राह्मण जाति के लोग चयनित किये गये थे। जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का 3.50 प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनका अधिकार केवल 126 पदों पर बनता है। जिसमें से भी हिन्दूवादी ब्राहमण अपनी स्त्रियों को भी पुरुष के समान नहीं मानते और न हीं उन्हें नौकरी करने की स्वीकृति देना चाहते, क्योंकि वे (संघ की विचारधारानुसार) स्त्रियों को बच्चे पैदा करने की मशीन से अधिक कुछ नहीं मानते। इस प्रकार ब्राह्मणों की पुरुष आबादी देश की कुल आबादी का मात्र 1.75 प्रतिशत ही रह जाती है, जो 2400 पदों पर काबिज है, जबकि इनके हिस्से में केवल 63 पद आते हैं।

    (6) बिना किसी आरक्षण के भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल 3600 पदों में से 700 पदों पर केवल वैश्य जाति के लोग चयनित किये गये थे। जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का 7 प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनका अधिकार केवल 252 पदों पर ही बनता है।

    9. प्रस्तुत आँकडों से कोई साधारण पढा-लिखा व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता है कि आजादी के बाद पहली बार प्रस्ताविक जाति के आधार पर देश के लोगों की गणना नहीं करवाने के पीछे कौन लोग हैं और उनके इरादे क्या हैं? इससे साफ तौर पर पता चलता है कि यदि जाति के अनुसार जनगणना होती है तो उपरोक्त सभी जातियों की वर्तमान अधिकृत जनसंख्या के आँकडे सामने आ जायेंगे। जिन्हें उनके हकों से वंचित नहीं किया जा सकता!

    10. गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया में गुजरात के हुए या कराये गये कत्लेआम (जिन्हें जानबूझकर दंगे कहा जाता है) में मरने वाले हिन्दुओ में 99 प्रतिशत से अधिक गैर-ब्राह्मण और गैर-वैश्य थे। जिन हिन्दुओं पर मुकदमें चल रहे हैं या चल चुके हैं, उनमें भी अधिकतर गैर-ब्राह्मण और गैर-वैश्य ही थे।

    11. उपरोक्त तथ्यों को सामने लाने से हिन्दुत्व कमजोर होने की बात करने वालों के असली चेहरे सामने आने चाहिये। दूसरों के संवैधानिक हकों को छीनने वालों एवं योग्य छात्रों का भविष्य षडयन्त्रपूर्वक बर्बाद करके स्वयं को सर्वाधिक विद्वान घोषित करने वालों का यह दुष्कृत्य, हत्या, बलात्कार, लूट, डकैती, मिलावट जैसे अनन्य घृणित अपराधों से भी कई गुना घृणिततम अपराध है। जिसके लिये ऐसे लोगों को फांसी की सजा भी कम है, जबकि ये लोग स्वंय को हिन्दुत्व का रक्षक एवं संरक्षक कह कर इन शब्दों का भी महत्व समाप्त कर रहे हैं!

    12. आज यदि देश में भ्रष्टाचार, अत्याचार, मिलावट, हत्या, बलात्कार, लूट, डकैती आदि जो अपराध नजर आ रहे हैं, ये सब इन्हीं विद्वान प्रशासनिक अफसरों के रहते पनपे हैं। जिसके लिये सीधे तौर पर ब्राह्मण-बनिया गठजोड जिम्मेदार है।

    13. हमने कुछ आँकडे जुटायें हैं, जिनके अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि गैर-ब्राह्मण-बनिया प्रशासनिक अफसरों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट मे नकारात्मक टिप्पणी लिखकर न मात्र दलित, आदिवासी, पिछडों को ही पदोन्नति पाने से रोका जा रहा है, बल्कि राजपूत, कायस्थ, मसुलमान, ईसाई आदि जाति/वर्ग के चयनित अफसरों का भविष्य जानबूझकर बर्बाद किया जा रहा है। समय आने पर इनके आँकडे भी पेश किये जायेंगे।

    14. दलित-आदिवासी, पिछडों, स्त्रियों और गैर-ब्राह्मण-बनिया वर्ग/जाति के लोगों के साथ जानबूझकर षडयन्त्र रचकर किये जा रहे भेदभाव को उजागर करना यदि देश के विरुद्ध दुश्मनी है तो फिर हम अवश्य ही देश के दुश्मन हैं! दलित-आदिवासी, पिछडों, स्त्रियों और गैर-ब्राह्मण-बनिया वर्ग/जाति के लोगों के साथ जानबूझकर षडयन्त्र रचकर किये जा रहे भेदभाव को उजागर करना यदि हिन्दुत्व को क्षति पहुँचाना है तो फिर हम अवश्य ही हिन्दुत्व के दुश्मन हैं!

    15. महामानव डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ऐसे ही अत्याचारों के कारण कहा था कि “मैंने हिन्दू धर्म में जन्म अवश्य लिया है, लेकिन मैं मरूंगा हिन्दुत्व को त्यागर” और मरने से पहले उन्होंने हिन्दुत्व को त्याग दिया। आज यदि दलित-आदिवासी हिन्दुत्व को त्याग रहे हैं और बौद्ध या ईसाई या मुसलमान बन रहे हैं तो इसके लिये उपरोक्त अत्याचार एवं भेदभाव जिम्मेदार हैं।

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक)। फोन ०१४१-२२२२२२५ (सायं ७ से ८ बजे)

  9. श्री जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत जी आपकी इच्छानुसार मै आपके प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्रस्तुत हूँ|
    आशा है आप मेरे उत्तर से संतुष्ट हों और न भी हों तो मित्र आपको फिर से प्रश्न करने का अधिकार है मै उत्तर दूंगा|
    सबसे पहले तो मै आपको यही कहना चाहूँगा कि आप पीड़ित दलित इसलिए नहीं है क्यों कि आपके माता पिता पीड़ित दलित हैं, आप पीड़ित दलित इसलिए हैं क्यों कि आप स्वयं को हमेशा से ही पीड़ित ही देखना चाहते हैं|
    सवर्णों द्वारा दलितों पर अत्याचार का जो जिक्र आपने किया है वह वास्तव में मूल सत्य नहीं है| भारत भूमि पर ऐसा कोई क़ानून किसी भारतीय राजा ने नहीं बनाया था जिसमे दलितों को उपेक्षा का शिकार होना पड़े, यह तो कुछ विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारी राष्ट्रीय एकता को नष्ट करने के लिए एक षड्यंत्र रचा था| और आज यही षड्यंत्र कांग्रेस और वामपंथ हमारे साथ कर रहे हैं| हिन्दू मुस्लिम को तो पहले ही लडवा चुके इन ढोंगियों को जब लगा कि अब भी शक्तिशाली हिन्दू कहीं एक न हो जाएँ और हमें चुनौती न दे पड़ें अत: उनको भी आपस में बांटने का काम इन्होने भली भाँती किया और वे सफल भी हुए| क्यों कि आप जैसे कुछ भोले भाले जीव इनके षड्यंत्र का शिकार हो गए|
    सबसे पहले मै संघ के मुद्दे पर आता हूँ… मेरे भाई आप शायद संघ को भली प्रकार से जानते नहीं हैं| संघ का कोई धर्म नहीं है, कोई जाती नहीं है| संघ तो राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर काम कर रहा है अत: उसके लिए सबसे बड़ा धर्म राष्ट्र धर्म ही है| मै आप पर किसी प्रकार का आक्षेप नहीं लगा रहा, हो सकता है आपके कुछ कटु अनुभव रहे हों क्यों कि अपवाद कहाँ नहीं होते| किन्तु मेरी आपसे केवल एक गुजारिश है कि एक बार संघ को जानने का प्रयास निष्पक्ष रूप से करें आपकी भ्रांतियां दूर हो जाएंगी| आपको वहां पता भी नहीं चलेगा कि आपकी जाति क्या है, आपका धर्म क्या है, यहाँ तक कि आपके साथ कार्य करने वाले आपके साथी का भी जात धर्म आपको पता नहीं होगा| जब इतना स्वतंत्र वातावरण कि जाति धर्म का कोई प्रश्न ही नहीं कि तो संघ दलित विरोधी कैसे? आप हमें इतना कठोर कैसे समझ सकते हैं?
    इसके बाद मै आपके दूसरे बिंदु पर आता हूँ जब आपने मुझे दलित विरोधी कुविचारों वाला
    कहा तो मेरे भाई आपको बताना चाहूँगा कि मै अपने ऊपर लगे इस आरोप को कदापि स्वीकार नहीं करूंगा| मै आपको बताना चाहता हूँ कि मेरी मित्र मंडली में मेरे कूछ मित्रों की जाती का भी मुझे पता नहीं है, न मैंने कभी उनसे पूछा| दूसरी बात मेरी मित्र मंडली में मेरे बहुत से मित्र अनुसूचित जाती व जन जाती के हैं और उनसे मेरे सम्बन्ध वैसे ही हैं जैसे किसी ब्राह्मण से, किसी राजपूत से, किसी बनिए से, किसी जाट से या कोई भी वर्ग से हैं| मेरे किसी भी मित्र को मुझ से आज तक ऐसी कोई शिकायत नहीं रही जिसमे कि मेरी किसी बात के द्वारा उनको जाति सम्बंधित किसी प्रकार का अपमान सहना पड़ा हो| आपके नाम के आगे उपनाम गहलोत लगा हुआ है तो आपको बता दूं कि यदि आप जाति को इतना ही महत्त्व देते हैं तो मै आपको बता दूं कि एक गहलोत लड़की को मैंने अपनी मूंह बोली बहन बना रखा है जिसके साथ मेरे सम्बन्ध बिल्कुल ऐसे ही हैं जैसे किसी सग्गे भाई बहन के होते हैं| मुझे आज तक उसकी जाति से तथा उसे मेरी जाति से कभी कोई समस्या ही नहीं हुई| हम पढ़े लिखे युवा इंजीनीयर हैं, विज्ञान व तकनीकी विषय में कार्य करते हैं, यदि इन ढकोसलों में पड़ेंगे तो हमारी शिक्षा का महत्त्व ही क्या है? मेरे भाई आपको एक बात और बताना चाहता हूँ जिससे आप ये अनुमान न लगा लेना कि मै अपनी महानता का कोई बखान कर रहा हूँ| मै केवल अपने ऊपर आपके द्वारा लगाए गए आरोप को गलत सिद्ध कर रहा हूँ| मै जाति का ब्राह्मण हूँ और मै एक बार रेल से सफ़र कर रहा था और अपने स्थान पर बैठा खाना खा रहा था कि एक बच्चा मुझसे भीख मांगने आया| अमूमन ऐसा माना जाता है कि भीख मांगने वालों में अधिकतर अजा या अजजा से होते हैं, खैर मुझे उसकी जाति में कोई रूचि नहीं थी, किन्तु मैंने उसे पैसे देने से मन कर दिया क्यों कि मै इन्हें भीख नहीं देता| इसका अर्थ यह नहीं है कि मै उनसे नफरत करता हूँ अपितु मै उन्हें निकम्मा नहीं बनाना चाहता| मै नहीं चाहता कि मै किसी भिखारी को उसके भूखे होने पर पैसे दूं और वह जाकर उन पैसों की बीडी पीये या गुटखा तम्बाकू खाए, क्यों कि मै बहुत बार ऐसा देख चूका हूँ | किन्तु जब उस बालक ने भूख की शिकायत की तो मुझे मेरे आराध्य देव भगवान् साईं की वाणी का स्मरण हुआ कि यदि आप सक्षम हैं और आपके पास सुविधा है, आपके घर में भोजन पका है तो द्वार से किसी को भूखा नहीं जाने देना चाहिए| मैंने उस बालक को अपने साथ बैठकर भोजन करने को कहा, किन्तु इस पर उस बालक ने आपत्ति की कि मै आपके साथ भोजन कैसे कर सकता हूँ? मेरे बार बार आग्रह करने पर भी जब वह नहीं माना तो मैंने उसे कूछ खाना अखबार पर रख कर दे दिया, जिसे पाकर वह प्रसन्न था| इसी प्रकार मेरे किसी भी परिचित की जात से मुझे कोई लेना देना नहीं है क्यों कि संघ ने मुझे नफरत नहीं प्रेम ही सिखाया है| आपको विश्वास न हो तो आप कोटा के निवासी हैं और मै जयपुर का, कोई विशेष अंतर नहीं है| आप कभी भी मुझसे व मेरे मित्रों से मिल सकते हैं जो कि भिन्न भिन्न जातियों के है किन्तु हमने आज तक किसी से उसकी जाति आधारित कोई बात ही नहीं की| आपके कोटा शहर में भी एक बार मै किसी सामाजिक कार्य वश ही आया था और अपने एक परिचित के साथ गाँव गाँव घूम कर हमारे देश के भूखे किसानों व मजदूरों से मिलने गया ताकि किसी प्रकार से उनकी समस्या का समाधान हो सके, क्यों कि हमारे संघ ने हमें मानव प्रेम सिखाया है|

    अब आता हूँ आपकी अगली बात पर जब आपने कहा कि हमें आप ८० करोड़ हिन्दुओं में शामिल मत कीजिए तो मेरे भाई आप हम से इतनी घृणा क्यों करते है कि हम से अलग होना चाहते हैं जबकि हम आपसे असीम प्रेम करते हैं| हमने तो आपको अलग नहीं किया क्यों कि हम बांटने में विश्वास नहीं रखते हम तो मिलकर प्रेम से रहना जानते हैं, अगर आपको हम से कोई शिकायत है तो आप सीधे वार्ता कर सकते हैं किन्तु इस प्रकार का आक्षेप कैसे लगा सकते हैं कि हम आपके विरोधी हैं| आप और मै कोई अलग थोड़े ही हैं जो मै आपको अपने में शामिल करूँ|

    अब बारी आपकी पिछली टिप्पणी के प्रश्न की| आपको मै यही कहना चाहूँगा कि आप पहले कोई शिकायत बताएं कि ऐसा क्या है जो आप स्वयं को नीचा और अन्य को ऊपर समझ रहे हैं| आप स्वयं को दलित और हमें सवर्ण क्यों कहते हैं? क्यों आप हमें वर्गीकृत करना चाह रहे हैं? यदि आपका कोई ऐसा अनुभव है कि जिसमे आपके हिसाब से सवर्ण द्वारा आपके हिसाब से किसी दलित पर कोई अत्याचार देखा हो या स्वयं उसे भोग हो तो मै आपको यही कहूँगा कि अपवाद कहाँ नहीं होते किन्तु हिन्दू धर्म का मूल यह नहीं है कि वह अपने ही भाई से नफरत करे| हिन्दू धर्म में चाहे कोई भी जाति हो वह केवल प्रेम करना ही जानते हैं और न केवल हिन्दू अपितु अन्य कोई भी धर्म सम्प्रदाय हो हम उससे नफरत कर ही नहीं सकते क्यों कि हमारे पुरखों ने हमें मानव या किसी भी जीव के जीवन से प्रेम करना ही सिखाया है| हम जीवन से प्रेम करते है उसका सम्मान करते हैं और उसे नष्ट करने का हम स्वयं को अधिकार भी नहीं देते क्यों कि जो जीवन देने की हमारी क्षमता नहीं है उसे नष्ट करने का अधिकार भी हमें नहीं है| विश्वास रखें संघ में हमें कभी किसी से नफरत करना नहीं सिखाया गया| फिर भी आप के कूछ कटु अनुभव हों तो कृपया खुल कर बताने का कृपा करें|

    मेरी पिछली टिप्पणी में आपने जो क्रोध और बदतमीजी देखी वह आपके लिये नहीं अपितु उन राष्ट्र विरोधी ताकतों के लिये थी अंग्रेजों के फूट डालो राज करो वाले सिद्धांत से प्रेरित हैं| आपने डॉ राजेश कपूर साहब पर जो दलित विरोधी का आरोप लगाया आपसे कहना चाहूँगा कि उनके द्वारा लिखित लेखों को एक बार ध्यान से पढ़ें आपको वहां एक positive energy ही मिलेगी| उनके किसी भी लेख में किसी जाति धर्म सम्प्रदाय के लिये किसी प्रकार का कोई जहर नहीं दिखेगा जैसा कि इन महान जगदीश्वर चतुर्वेदी जी के सभी लेखों में मिलता है| इनके एक एक लेख ज़हरीली negative energy से सराबोर ही मिलेंगे| मै ऐसा मानता हूँ कि जिस तरह हम भारतीयों को विदेशी आक्रान्ताओं ने आपस में लड़ाया था, हममे फूट डाली थी वही काम आज कूछ राष्ट्र विरोधी ताकतें कर रही हैं| मै नहीं चाहता कि जिस तरह हम एकता के अभाव में उस समय विदेशी आक्रान्ताओं के समक्ष पराजित हुए थे, ठीक उसी प्रकार इन राष्ट्र विरोधी ताकतों के आगे भी हों| जरूरत प्रेम से रहने की है न कि इनकी बातों में आकर आपस में लड़ने की| हमें मिलकर और डटकर इनका सामना काना होगा| हम वही गलती दुबारा न करें जो हमारे पुरखों ने इतिहास में की थी| अन्यथा अब यदि इन राष्ट्र विरोधी ताकतों के गुलाम हुए तो आज़ादी संभव न होगी| अत: आपसे अनुरोध है कि पूर्वाग्रहों से बाहर आयें व इन राष्ट्र विरोधियों के षड्यंत्रों को नाकाम करें|

    अब ज़रा मै अपनी तरफ से कूछ बताना चाहूँगा| समाज में वह व्यक्ति हमेशा पिछड़ा ही रहेगा जो पिछड़ा रहना ही जानता है, जो आगे आने का प्रयास ही न करे| आपने तो दलित पीड़ा का दुःख प्रकट कर दिया किन्तु अब कूछ यहाँ भी देखें| मेरे जीवन में ऐसा बहुत बार हुआ है जब आरक्षण के कारण किसी भी अजा व अजजा से कहीं आगे होने के बाद भी उन्हें मुझसे ज्यादा प्राथमिकता दी गयी| IIT (INDIAN INSTITUTE OF TECHNOLOGY), AIEEE (ALL INDIA ENGINEERING ENTRANCE EXAM) व कई अन्य परीक्षाओं में किसी भी अजा व अजजा से कहीं अधिक आगे होने के बाद भी उन्हें प्राथमिकता मिली| किन्तु एक बार भी उफ़ तक नहीं की| आज जहाँ तक भी पहुंचा अपने दम पर पहुंचा, किसी आरक्षण का कोई लाभ मुझे तो मिलने से रहा फिर भी किसी दलित से कोई शिकायत तक नहीं की क्यों कि मै जानता हूँ हमारे कथित महान नेताओं की आरक्षण की यह चाल दलितों को ऊपर उठाने की नहीं अपितु देशवासियों में आपस में ही फूट डालने की चाल है| और मै एक भारतीय होने के नाते इन्हें इनकी इस चाल में सफल नहीं होने दूंगा, फिर आप क्यों इन्हें सफल होने दे रहे हैं?

    आशा है आप मेरे उत्तर से संतुष्ट होंगे, फिर भी कोई पीड़ा है तो मै प्रस्तुत हूँ|

  10. जगदीश्वर जी के इस लेख पर आ रहे विचार काफी मजेदार होते जा रहे हैं. इनमें सबसे मजेदार विचार इंजिनियर दिवस दिनेश गौर के आज रात्रि को ही आये हैं. इन्होने जिस साहसिक बदतमीजी के साथ अपने विचार व्यक्त किये हैं, उसके लिए हम इनको नमन ही करते हैं. जो डॉ. राजेश कपूर के विचारों का समर्थन करते हुए अपनी बात को ८० करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं के साथ जोड़ने का दम भर रहे हैं.

    तो, मेरा इन माननीय इंजिनियर गौर साहिब से यही अनुरोध है कि – यदि उनके विचार के साथ ८० करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं को वे जुड़ा हुआ मानते हैं तो वे उक्त वर्णित दिनांक १८/१०/२०१० को लिखे मेरे विचार पर अपना जवाब देने की मेहरबानी जरुर करे. जगदीश्वर जी और डॉ. मीना जी पर गुस्सा करने से सवर्णों की ओर से आज भी हो रहे ‘दलित उत्पीडन’ की सच्चाई नहीं छिप सकती. आप ही क्या, समूचा ‘संघ’ भी यदि इस सच्चाई को दबाने के लिए अपनी पूरी ताकत भी लगा दे तो भी यह ‘सच’ नहीं दब सकेगा. बल्कि, अब ‘संघ’ का ‘दर्द’ यह होता जा रहा है कि – ‘दलित’ क्यों जाग रहे हैं ?’

    इसी सन्दर्भ में आपसे यह भी अनुरोध है कि आप अपने दलित विरोधी कु-विचारों को ८० करोड़ हिन्दुओं के बहाने हम दलितों पर जबरन थोपने का प्रयास न करें. क्योंकि देश का दलित ना तो कभी ‘संघ’ के साथ था और ना ही आज ‘संघ’ के ही साथ हैं तथा जो दलित ‘संघ’ के साथ जुड़कर अपने आप में ‘गर्व’ महसूस करते नजर आते हैं, तो वे मूलतः दलित नहीं हैं बल्कि ‘गुलाम मानसिकता’ वाले ‘सवर्ण दलित’ है जो सिर्फ अपने निज स्वार्थ तक ही सिमटे हुए हैं. मेरे यह विचार कडवे जरुर महसूस हो रहे होंगें, लेकिन ‘सच’ भी तो यही है. इसलिए कोशिश यही की जानी चाहिए कि अकारण ही दूसरों को कोसने से पहले अपने गरेबां में भी देख लेना चाहिए. सच तो यह भी है कि अब तो सभी राजनीतिक दल ही दलितों का उत्पीडन करने में लगे हुए हैं, वह चाहे कांग्रेस हो या भाजपा हो, या फिर सपा और बसपा हो या वामपंथी हो – इन सबकी दलितों के प्रति सोच ‘एकसमान’ सी ही हैं. यानि, चोर-चोर मोसेरे भाई. तो इंजिनियर साहिब, आपको पुनह ‘नमन’ के साथ, अब हमें आपसे हमारे उक्त सवाल के जवाब का इंतजार है. धन्यवाद.

    – आज़ाद भारत देश का एक दलित, दमित व् शोषित नागरिक – जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत, मकबरा बाज़ार, कोटा – ३२४ ००६ (राज.) ; मो. ९८८७२-३२७८६

  11. आप भी कपूर साहब. क्या खूब कहा है आपने की अंग्रेजों के आने से पहले जाति, छुआ छूत आदि थी ही नहीं. मनु स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारत, वेद (ऋग्वेद पुरुष सूक्त) सभी समाज के चतुर्वर्गीय विभाजन का प्रमाण देते हैं. भक्ति आन्दोलन का सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि ही यही थी की इसने जाति व्यवस्था में आयी कमियों को दूर करने का प्रयास किया और रैदास, चैतन्य, कबीर, दादू जैसे संत हुए. यदि व्यापक प्रमाण चाहिए तो कृपया पांडुरंग वामन काणे का धर्म शास्त्र का इतिहास पढने का कष्ट करें. रही बात अंग्रेजों के ज़माने की तो कप्पोर साहब यहाँ में आपसे सहमत. १९०९ के मिन्टो मौर्ले एक्ट के द्वारा अंग्रेजों ने एक तीर से कई शिकार किये. सुधर का चारा फ़ेंक कर उनहोंने कांग्रेस के उदार वादियों को तिलक के गरम पंथियों से लडवा दिया जिसका अंत सूरत अधिवेशन में १९०७ में लात जूते में हुआ और तिलक महाशय को जेल हो गयी. कांग्रेस निष्प्रभावी हो गयी. दूसरी ओर मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था कर के हिन्दू मुस्लिम खाई को चौड़ा किया गया ओर अंततः १९१९ के मौन्तेगु चेम्सफोर्ड एक्ट तथा रेम्ज़े मेकडोनाल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय से अंग्रेजों ने हिन्दू समाज में व्याप्त सभी दरारों को खोज कर सभी के लिए अलग निर्वाचक मंडल बनाने का प्रयास किया जो गाँधी के चलते सफल नहीं हो सका.

  12. आदरणीय डॉ. कपूर साहब आप भी किन्हें समझाने बैठ गए, वैसे जवाब आपने करारे दिए हैं| चतुर्वेदी जी की तो बात ही छोडिये उन्हें तो इस प्रकार लिखने की बिमारी है, और रही बात डॉ मीणा जी की तो ये तो ब्राह्मण को बदबूदार और सडांध भरा कह रहे हैं| इन्हें शायद मालुम भी नहीं कि ब्राह्मण को हिन्दू समाज का धर्म गुरु कहा गया है, अब यदि वह बदबूदार और सडांध भरा है तभी इनकी नज़र में हिन्दू धर्म भी बदबूदार और सडांध भरा है|

    मीणा जी आप की लम्बी लम्बी टिप्पणियों को यदि ऊपर से देखा जाए तो यही प्रतीत होता है कि आप कितने महान विद्वान् होंगे किन्तु मीणा जी मै आपको आज कड़े शब्दों में एक बात कहना चाहता हूँ क्योंकि प्रवक्ता.कॉम पर आप ही सबसे ज्यादा तमीज से टिप्पणी करने की बात कहते हैं और उसके बाद भी सबसे ज्यादा बेशर्मी से घटिया टिप्पणी भी आप ही करते हैं| आपको बता दूं कि आपकी टिप्पणियाँ पढ़ कर सत्य पता चलता है कि आपका ज्ञान शायद बहुत कम है| मैकॉले की शिल्षा पद्धति का असर यदि हम जैसे युवाओं पर हुआ होता तो शायद लोग यह समझते कि आज कि आधुनिक पीढ़ी है इसे समझ कहाँ, किन्तु आप और चतुर्वेदी जी जैसे उम्रदराज़ और अनुभवशाली व्यक्ति जब मैकॉले की इस नीति के शिकार होते हैं तो बात समझ में नहीं आती|

    आप हम से तमीज की अपेक्षा रखते हैं किन्तु खुदकी बेशर्मी को नज़र अंदाज़ क्यों कर देते हैं? कपूर साहब ने तो ऐसा कूछ भी नहीं कहा था कि किसी की भावनाएं आहत हों| चतुर्वेदी जी और आपने तो हिन्दू समाज को गरिया कर अस्सी करोड़ हिन्दुओं की भावना को बड़ी ही बेशर्मी से आहत किया है| तमीज की बात आप तो कतई न करें, आपने लिखा कि “इसी प्रकार के घटिया लोगों से दलित-आदिवासियों को निजात एवं कानूनी संरक्षण दिलाने के लिये तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार ने अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, १९८९ बनाया था।” मीणा जी आप चाहे तो किसी को भी घटिया लोगों कि श्रेणी में डाल दें किन्तु यदि कोई आप पर ऊँगली उठाये तो आपको तमीज की नानी याद आती है| मै आज आपको पूरी बदतमीजी के साथ यह कहना चाहता हूँ कि आप जैसे लोगों ने ही पहले मुसलमान को हिन्दू से तोडा फिर दलितों की बात करके हिन्दुओं को ही आपस में तोड़ने का घटिया काम आप जैसे लोग ही कर रहे हैं|

    चतुर्वेदी जी रही बात आपकी, आप चाहते हैं कि कपूर साहब आपसे तमीज से बात करें, किन्तु बताना चाहूँगा कि कपूर साहब ने तो कोई बदतमीजी की नहीं किन्तु मै पूरी बदतमीजी से आपको कहना चाहूँगा कि जिस प्रकार आप हम अस्सी करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं को अपने ऊट पटांग लेखों द्वारा आहत कर रहे हैं, जिस प्रकार आप हम अस्सी करोड़ हिन्दुओं से बदतमीजी कर रहे हैं, आप हमसे तमीज की उम्मीद न ही रखे तो उचित होगा| जिस प्रकार का ज़हर आप हमारे लिये उगल रहे हैं किसी अन्य सम्प्रदाय के लिये उगल कर देखिये पता चल जाएगा| हिन्दू कभी भी मुस्लिम विरोधी नहीं रहा और न रहेगा किन्तु जो देश द्रोही है चाहे वह किसी भी जाती या सम्प्रदाय का हो उसे हिन्दू इस देश में स्वीकार नहीं करेगा| जिस प्रकार से आप और आपके परम मित्र मीणा जी छोटी छोटी बातों पर हमें गरियाते फिरते हैं कि ये संघी कट्टरवादी हैं तो बताना चाहूँगा कि हां हम संघी हैं और हम राष्ट्र हित में कट्टर हैं| संघ एक राष्ट्रवादी संगठन है और अपने राष्ट्र के हित के लिये वह किसी के मान अपमान कि परवाह नहीं करेगा| संघ को गाली देने वालों आपको शायद मालुम न होगा कि संघ जिस प्रकार मुस्लिम हितों में कार्य करता है उसका एक प्रतिशत भी आपका वामपंथ और कांग्रेस अपने पूरे जीवन काल में भी नहीं कर सकेंगे| विश्वास न हो तो गुजरात जा कर देख लो, कितना खुशहाल है मुस्लिम वहां| चतुर्वेदी जी आपसे कहना चाहूँगा कि आप हम से तमीज से पेश आयें नहीं तो हमारी बदतमीज़ टिप्पणियों को उसी प्रकार नज़र अंदाज़ कर दें या न पढ़ें जिस प्रकार आप यह अपेक्षा रखते है कि हम आपके बदतमीज़ लेखों को न पढ़ें|

    आदरणीय कपूर साहब आपने करार जवाब दिया है इन्हें| आप जैसे राष्ट्र वादियों के कारण ही यह देश बचा है वरना बदतमीज़ वामपंथियों और कांग्रसियों ने तो कब का इसे चीन और पाकिस्तान के समक्ष बलि चढ़ा दिया होता| आप जैसे राष्ट्रवादियों को ह्रदय से धन्यवाद|

  13. htmपहले हम इस खबर पर चर्चा करते है ये खबर द हिन्दु मे छपी थी १५ अक्टुम्बर को जिसका लिन्क हैhttps://www.hindu.com/2010/10/15/stories/2010101561830100.,अब इस खबर को पढ कर कोयी ये सोचे कि ये जातीय झगडा है तो उसे क्या कहा जायेग ये वो खुद तय करें लिकिन इस पुरी खबर मे कही भी उन लोगो से नही पुछा गया जिन्होने तारबंदी की है ना प्रभावित लोगो से कुछ पुछा गया,ना पटवारी से,ना कलेक्टर से ,ना वहा के अन्य स्थानोय राजनेताओ से,ना कोयी ओर ज्यादा जानकारी दि गयी,फ़िर भी चलो मान लेते है कोयी तार बन्दी की गयी होगी,पर अब ये तो अदालत बतायेगी की किसी की जमीन है तारबन्दी करने का अधिकार है या नही,इत्यादी बाते अदालत मे तय हो ही जायेगी,कोयी अत्याचार हुवा होगा तो सजा भी मिलेगी,लेकिन इस बात को संघ से जोडने का कोयी तुक मुझे समझ नही आता.ये लेख लिख कर कम्युनिस्ट सोचते है कि उनको “दलितों” मे आसानी से पेठ मिल जायेगी तो शायद उन्होने बाबा सहाब को कभी पढा नही है,एक सरल से भुमी विवाद को जातिय सोच दे कर यहा के चिंतन क्या साबित करना चाहते है??
    ओर मीना जी की तो क्या कहे,ये महान विध्वान हमेशा बिच मे संघ को ले लाते है बिना जाने की संघ क्या सोचता है एसी घटनाओ के बारे मे.
    एक पुर्णत: राजनितिक लेख को हिन्दु समाज को गालिया बकने मे प्रयोग लेना क्या कहला सकता है.
    सामाजिक समरसता को लेकर संघ कटिबध्द है और उसे किसी “द हिन्दु” अखबार की जरुरत नही पडती,ना किसी तथाकथित बुधिजिवि के प्रलाप की जिसकी निष्टा संधिग्द्ध है,जमीन के स्थानिय झगडे को जातीय झगडॆ मे तबदिल करने वालो की मानसिकता तो जाहिर ही है,ये उन्की छटपटाहत है जो किसी भी तरह भारतिय परिवेश मे अपनी बौधिक स्विकॄती चाहती है……………..

  14. ## हिन्दू समाज को गरियाने वालों को में बतला देना चाहता हूँ कि अंग्रजों के आने से पहले तक भारत में कहीं भी कोई अस्पृश्यता, छुआ-छूत नाम मात्र को भी नहीं थी. इसके प्रमाण देखने हों तो गांधीवादी विचारक श्री धरम पाल जी द्वारा लिखित ” दी ब्यूटीफुल ट्री ” नामक पुस्तक पढ़ कर देख लें. अंग्रेजों द्वारा किये सर्वेक्षणों में बतलाया गया है कि तब द्विज और क्षुद्र तक किसी भेदभाव के बिना एक साथ एक ही विद्यालय में पढ़ते थे. इनमें मुस्लिम छात्र भी सम्मिलित थे. शिक्षक भी ब्राहमणों के इलावा डोम, नाई निम्न जातियों के थे . स्पष्ट है कि जातियां तो थीं पर उनमें विद्वेष , घृणा या छुआ-छूत जैसी भावना या परम्परा तब तक नहीं थी.
    – महत्व की बात है की उस व्यवस्था को नष्ट किसने किया. इतिहास के तथ्यों से स्पष्ट पता चलता है की यूरोपीय आतातईयों के ईसाईकरण में सबसे बड़ी बाधा हिन्दू समाज का संचान, निर्देशन करने वाला ब्राहमण समाज था जिसने हज़ारों साल में इस संस्कृति को पाला- पोसा. अतः उसे बदनाम, समाप्त करना उनका प्रमुख षड्यंत्र बन गया.इन षडयंत्रों के अनेकों लिखित प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं. यह आज चल रहा ब्राहमण विरोध उसी का विकसित रूप है.
    – विदेशी ताकतों के इशारे पर हमारे हिन्दू समाज को छिन्न-भिन्न करने याने हिन्दू समाज को छिन्न-भिन्न करने के षड्यंत्रों के अंतर्गत आज भी ब्रामण समाज को गरियाया जाता है. और आज का ब्राह्मण समाज योजना बद्ध ढंग से पतित बना दिया गया है. जो बचे हैं उन्हें पतित बना रहे हैं जिससे अधूरी रही ईसाईकरण की यूरोपीय मुहीम पूरी हो.
    – यदि जातीवाद और छुआ-छुट के कलंक को सचमुच समाप्त करना है तो अंग्रेजों से पहले की हिन्दू समाज व्यवस्था को फिर से स्थापित करना उचित पग नहीं है क्या ?
    दलित हित के नाम पर ठीक वही शैली और भाषा का प्रयोग जो विदेशी ईसाईयों ने भारत को कमज़ोर करने व हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए प्रयोग किये, क्या अर्थ है इनका? डा. मीना जी के देश व समाज लो तोड़ने के ठीक वैसे नज़र आने वाले प्रयास तो देश और समाज को समाप्त कर देंगे. विद्वान होते हुए डा. मीना जे इन तथ्यों से अवगत न हों, यह तो नहीं हो सकता. वे चाहें तो धर्मपाल जी की पुस्तक पढ़ कर देखलें. फिर भी यदि मीना जी अपने पूर्वाग्रह न छोड़ें तो उनकी नीयत पर संदेह करना कैसे गलत है ?

    $ प्रिय बंधू डा.जगदीश्वर चतुर्वेदी जी आप द्वारा सभ्य भाषा के प्रयोग के उपदेश का में स्वागत करता हूँ, धन्यवाद !
    * आप द्वारा मेरे प्रती जिन सभ्य शब्दों का प्रयोग किया गया है, ज़रा उन पर नज़र डाल लें—
    -गन्दगी के कीड़े, लिखना-पढ़ना नही जानते, निर्लाज्जता के साथ गन्दगी बिखेरने वाले, लम्पट भाषा, गंदे दलित विरोधी विचार.
    * इसी प्रकार जिस सभ्य भाषा का प्रयोग आपके समर्थक मित्र डा. पुरुषोत्तम मीना जी ने किया है, उनकी बानगी भी देख लें—
    – हिन्दू कट्टर पंथी, मानसिक उपचार की ज़रूरत है. घटिया विचार.
    क्या इस प्रकार की भाषा सभ्यता की सीमा में आती है ? फिर तो मुझे सचमुच ट्यूशन की ज़रूरत है कि मैं भी ऐसी शालीन, संस्कारित भाषा सीख लूँ.
    ** आदरणीय चतुर्वेदी जी मैं आप सहित सभी के ध्यान में लाना चाहता हूँ कि ———–
    – हिन्दू समाज में दलितों पर होनेवाले किसी भी अत्याचार से मैं भी पीड़ित और व्यथित होता हूँ. पर मैं इसकी जड़ को काटना चाहता हूँ जब कि डा. मीना जी के प्रयासों से घृणा, विद्वेष, टूटन को बढ़ावा मिल रहा है.
    – ये वे प्रयास हैं जो हमारे समाज को तोड़ने के लिए ईसाई कट्टरपंथियों ने अंग्रेज़ी शासन काल में विकसित किये थे. डा मीना जी भी बड़ी कुशलता और चालाकी से वही सब कर रहे हैं. आप कम्युनिस्ट विचार के पूर्वाग्रहों के कारण इन प्रयासों में उनके इन देश तोड़क प्रयासों में सहायक हो रहे हैं.
    – हिन्दू धर्मग्रंथों को ” ज़हर में लिपटा ” बतलाना किसी कट्टर पंथी विदेशी ईसाई एजेंट का ही काम हो सकता है. करोड़ों के श्रधा-पात्र ग्रंथों के प्रति इतने कलुषता पूरण कथन कोई भला व्यक्ती कह, लिख सकता है क्या ? डा. चतुर्वेदी जी के अनुसार मैंने तो भले लोगों की सांगत की नहीं, मीना जी ने तो आप सरीखे सभ्यों की सगत की होगी ? तभी करोड़ों हिन्दुओं के प्रती इतनी घृणा के शिकार हैं क्या ? और आप भी तो .
    – किसी एक व्यक्ती के प्रती कटु उक्ती के लियी हम जैसों को बाध्य करने वाले मित्रो ज़रा बतलाईये की आप एक का व्यक्तीगत सम्मान बड़ा है या हम करोड़ों हिन्दुओं के श्रधा ग्रंथों का और हम करोड़ों होंदुओं का ? आप सब हिन्दू विरोध से अन्धाये हुए हैं अतः आपको सच नज़र ही नहीं आता या फिर सच को जानना ही नहीं चाहते . तभी तो लगता अहि की कोई गुप्त अगेंदा अहि जिसकी पूर्ती के लिए डा. मीना जी जैसे जिद से लगे हुए है और आप सरीखे सज्जन उसमें सहयोगी बन बैठे हैं.
    – हिन्दू समाज के प्रति इतनी घृणा और कड़वाहट कि उसके पक्ष में साफ़ कह दिया कि ” हिंदुत्व की अछाईयाँ पूछना ब्राह्मण वाद की अछाईयाँ जैसा है ” यानी जिसप्रकार ब्राहमणवाद में कोई प्रशंसा की बात नहीं वैसे ही हिदुत्व में कोई अच्छाई हो ही नहीं सकती.
    ## हिन्दू धर्मग्रंथों व हिन्दू समाज के प्रती ऐसी नफ़रत फैलाने वाले इन जैसों की लेखनी को मीडिया में स्थान मिलना चाहिए क्या ? इन जैसों के ये प्रयास क्या समाज व राष्ट्र विरोधी नहीं हैं ? ऐसे समाज विरोधी तत्वों की असलियत उजागर करने को असभ्यता नहीं, समाज और राष्ट्र सेवा नहीं मानना चाहिए ?
    # न चाहते हुए भी कुछ कटु शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है जिसमें मुझे प्रसन्नता नहीं कष्ट मिलता है.
    मेरे आदरणीय मित्र क्या ही अछा हो की हम सब सत्य को जानने, समझने के लिए खुले मन और विचारों के साथ संवाद करते रहें ?
    – आप की सज्जनता में अभीतक मुझे संदेह नहीं पर आपके पूर्वाग्रह संवाद में बाधक बन जाते हैं. काश आप कम्युनिस्ट विचारों के कुँए से बाहर निकल कर दुनिया को देख पाते और स्वस्थ संवाद कर पाते !
    * आदर और शुभकामनाओं सहित आपका शुभाकांक्षी,
    – डा. राजेश कपूर.

  15. लेखक अगर यह कहना चाहते हैं की केवल मार्क्सिस्ट ही इस तरह की घटनाओं का विरोध करते हैं तो मैं इससे सहमत नहीं हूँ.पर लेखक ने जिस समाचार का उल्लेख यहाँ किया है वह वाकई शर्मनाक है.यहाँ मैं अपना एक अनुभव बताता हूँ यह सन १९५६ की बात है पर मेरे जेहन में aaj भी उसी तरह बसा हुआ है और मरण परयान्त मैं इसे bhool भी न पाउँगा.तब मैं कक्षा दस का छात्र था और स्कूल के होस्टल में रहता था.गाँव के स्कूल का छोटा हॉस्टल था जिसमे आठ कमरे थे. हर कमरे में चार चार छात्र रहते थे.स्कूल प्राइवेट था और गाँव के जमींदार के अनुग्रह का फल था.स्कूल में ज्यादातर सवर्ण छात्र थे,उसमे भी राजपूतों की संख्या सर्वाधिक थी. हॉस्टल में भी कुछ वैसा ही माहौल था.मेरे कमरे में हम तीन राजपूत लडके थे और चौथा सीट खाली था.हमलोगों का एक साथी था,जो जाती का धोबी था ,पर मेरा और मेरे एक अन्य रूम मेट का अच्छा दोस्त था.उसने ऐसे ही एक दिन कहा की मैं भी हॉस्टल में आना चाहता हूँ.हमलोगों को क्या एतराज हो सकता था.? हमलोगों ने pradhyaanadhyaapak से भी सिफ़ारिस कर उसको अपने कमरे में रख लिया.हमारे हॉस्टल की बनावट कुछ ऐसी थी की चार चार कमरे एक दूसरे के पीछे थे हमलोगों का कमरा स्कूल भवन के सामने था और चार अन्य कमरे स्कूल भवन के पीछे हो जाते थे.उस दोस्त का नाम मैं सुविधा के लिए मुंशी राम रख लेता हूँ मुंशी अप्रैल महीने के किसी सप्ताह के बुध या गुरूवार को हॉस्टल में आया था.दो तीन दिनों के बाद रविवार आया.शनिवार तक तो कोई घटना नहीं घटी और हमलोगों को तो किसी घटना की संभावना भी नहीं थी.एक बात मैं बता दूं .स्कूल में ज्यादातर गाँधी से प्रभावित लोग थे,परछात्रों का एक ग्रुप ऐसा भी था,जो गांधी और नेहरू को ढोंगी मानता था और मार्क्स और लेनिन का पुजारी था.उसमे से कुछ छात्र हॉस्टल में भी रहते थे..ऐसे वे सब भी जाती में राजपूत ही थे. हॉस्टल के मेस का रसोइया ब्राहमण था और प्लेट साफ़ करने वाला कहार.होटल के वार्डन थे श्री सिंह जो मेरे vichaar से एक aadarsh shikshak के murtimaan roop थे..रविवार के dopahar को हम लोग अपने कमरे में lete थे.मेरे teeno साथी तो nindra magna थे पर मैं jag rahaa था.ekayak bajrangbali का naaraa हॉस्टल के दूसरे taraf से aataa हुआ sunaai padaa,jakar dekha तो मेरे कमरे के छात्रों के alaavaa सब छात्र wahaan एक peda के neeche ikatthe थे,jisame हमारे maarxvaadi छात्र भी थे. mujh edekhate ही वे सब mujhase ulajhane को taiyaar हो gaye.तब mujhe pataa chalaa की यह सब मेरे साथी के virudh horahaatha और uskaa netritva हमारे cook mahaaraaj कर rahe theaur plate dhone waale Narayaanji भी उसमे shaamil थे.aine jab poochha की वे लोग कर ही kyaasakate theto unhone apni sankhayaabal पर ghoshnaa कर daali की वे waarden से milenge और मुंशी को हॉस्टल से nikalwaa denge. maine poochha की अगर वार्डन न maane तो क्या hogaa.un logon को apnee sankhyaabal पर vishwaas thaaur unhone khaa की वे सब हॉस्टल chhod denge और cook और naraayan ने कहा की वे naukari chhod denge.Main अपने वार्डन को un logon से jyaadaa jaanataa था.Maine seedhi seedhe कहा की तब aap सब यहाँ से jaane को taiyaar हो jaaiye.Phir भी वे लोग नहीं maane और wardan से miloane gaye.मैं भी chhip कर unke पीछे gayaa.हुआ wahi जो maine kahaatha.श्री सिंह ने seedhe seedhe kah diya की cookaur naaraayan को तो मैं tuant naukari से nikaalataa हूँ और जो छात्र मुंशी के saath hiostel में नहीं rahanaa चाहते हैं वे abhi turant हॉस्टल chhod den.Main हॉस्टल में taalaa lagaane के लिए taiyaar हूँ.chhtra अपना sa munh lekar laut aaye और phir वे सब मेरे paas aaye ki ab kya kiyaa jaye?kyonki isaki unlogon ने kalpanaa bghi नहीं की थी.mujhe तो kroddh bahut aayayah soch कर की अगर aaj Munshi हॉस्टल से nikal jaataa तो ye लोग kitnaa khush hote.पर vaisaa हुआ नहीं.maine unlogon को jaakar maafi maangne के लिए कहा,पर वे kaun munh lekar jaate.ant में mujhe भी unlogon के saath jaanaa padaa.श्री सिंह pahale तो sunane के लिए taiyar नहीं huye,पर बाद में वे एक ही shart पर अपना aardar vaapas lene के लिए taiyar huye की अगर pooraa grop मुंशी से maafi maange war vah in logon के saath aakar inko phir से हॉस्टल में rakhane को kahe यह tabhi sambhav है.aakh8ir vaisaa ही हुआ.वे सब मुंशी से maafi maang कर uko lekar wardan के pas gaye,तब इस घटना kaa anta हुआ.Jab १९५६ में dehaat के एक स्कूल मैं ऐसा हो sakataa thaa तो aaj 54 varsha के vaad भी ऐसी ghatnaayen kyon ghat rahi हैं?kaaran केवल एक ही है की m7unshi तो aaj भी prataadit हो rahaa है पर श्री सिंह jaise logon की kami हो gayee.

  16. मेरे ऊपर तो हिन्दू कट्टरपंथियों की कुछ विशेष ही मेहरबानी रहती है।

    दूसरों को विदेशी घोषित करने वाले पहले अपने बारे में तो पता कर लें। दूसरों को हिन्दुत्व के नाम पर गाली देने वालों को स्वयं यह ज्ञात करना चाहिये कि उनका रक्त कितना साफ है?

    श्री मधुसूदन जी एवं श्री रविन्द्रनाथ जी कहते हैं कि आरएसएस सांस्कृतिक संगठन है। जो संगठन अपने तथाकथित वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री राजेश कपूर को यह नहीं समझा सकता कि सार्वजनिक मीडिया मंचों पर किस प्रकार से संवाद किया जाता है, उस संगठन को सांस्कृतिक संगठन कहलाने का कोई हक नहीं रह जाता है या फिर ऐसे लोगों को अपने नाम के साथ संघ का नाम जो‹डने का हक नहीं रह जाता है।

    हिन्दुत्व की अच्छाई पूछने वाले असल में ब्राह्मणवाद की अच्छाई पूछना चाहते हैं, जिसमें बद्बू और संणाद के अलावा कुछ है ही नहीं!

    सिन्धु नदी पार करके बाहर से आये आर्यों ने अनार्यों को सिन्धू नदी के पास के निवासी होने के नाते हिन्दू (क्योंकि सिन्धू बोलना उनका आता नहीं था) कहा था। इस थ्योरी से तो साफ प्रमाणित होता है कि आर्य तो हिन्दू हैं ही नहीं। इस नीति के मुताबिक अनार्य ही असली हिन्दू हैं, जिनकी अच्छाई डॉ. राजेश कपूर को अच्छी नहीं लगती। स्वयं विदेशी हैं और दूसरों को विदेशी कहते हैं? स्वयं अहिन्दू हैं और हिन्दुत्व के ठेकेदार बनते हैं? ऐसे लोगों को बेहतर हो कि लेखन से दूर ही रहें और, या इन्हें अपना मानसिक उपचार करवाना चाहिये।

    वैसे इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करने वालों के विचार प्रदर्शित करने से पहले सम्पादक महोदय को भी देखना चाहिये कि इन विचारों के प्रकाशित होने से वेब मीडिया तथा प्रवक्ता की साख बढती या घटती है? यदि शाख बढती है तो बेहतर होगा! अन्यथा विचार करें।

    वैसे मुझे व्यक्तिगत रूप से इन लोगों के घटिया विचारों से कोई फर्क नहीं पडता।

    परन्तु चलते-चलते बता दूँ कि इसी प्रकार के घटिया लोगों से दलित-आदिवासियों को निजात एवं कानूनी संरक्षण दिलाने के लिये तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार ने अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, १९८९ बनाया था।
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक)। फोन ०१४१-२२२२२२५ (सायं ७ से ८ बजे)

  17. जगदीश्वर जी, आप द्वारा डॉ. राजेश कपूर को दिया गया जवाब सटीक और सही है. देखते हैं अब इन हिन्दू रूपधारी कट्टरपंथी हिंदुत्त्व्वादी ठेकेदारों की साम्प्रदायिकतावादी आतंकी सोच, कब तक मानवतावादी सोच में बदल पाती है या ऐसी ही बनी रहती है ?
    आप जैसे ‘दलित चिन्तक’ साहसी कलमकारों को हम दलितों की ओर से सादर नमन और साधुवाद आभार.
    – जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत, कोटा – ३२४००६ (राज.) ; मो. ०९८८७२-३२७८६
    ब्लॉग : डब्लूडब्लूडब्लू डोट समाचारसफ़र डोट ब्लागस्पाट डोट कॉम

  18. बंधुवर राजेश जी, एक लेखक के नाते सावधान कर रहा हूँ आपकी भाषा और विचारों का हिन्दू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है । आपको मेरे विचार अच्छे नहीं लगते आपको नहीं पढ़ने का हक है । असहमत होने का हक है ।लेकिन सभ्य भाषा में बोलने का हक नहीं है। आपको दलित उत्पीड़न की खबर पर लिखने मात्र से इतनी पीड़ा और घृणा हो रही है,यह मेरे लिए ही नहीं समूचे हिन्दूसमाज के लिए शर्म की चीज है।
    सच्चे हिन्दू कभी उत्पीड़न देखकर चुप नहीं रहते। यदि आपने थोड़ा समय निकालकर रामचरित मानस पढ़ लिया होता तो आप इस असभ्य भाषा में नहीं बोलते। मैं सोच सकता हूँ आप कितने असहिष्णु हैं और किस गंदगी की हद तक जा सकते हैं। मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि गंदगी की कीड़े गंदगी में आनंद मनाते हैं। धन्य हैं आप और आपकी गंदी समझ। कृपया लिखना-पढ़ना नहीं जानते हों तो किसी मास्टर को ट्यूशन पर रख लें। किसी अच्छे मनुष्य की संगति का लगता है कभी मौका ही नहीं मिला। आप जानते ही नहीं है कि वेब पर सारी दुनिया आपकी गंदगी देख रही है आप बड़ी ही निर्लज्जता के साथ अपनी गंदगी बिखेर रहे हैं। बंधुवर गंदगी समाज में मत बिखेरो । उसके लिए नाली-नाले-कूड़ाघर ही काफी है। हम यहां जो कुछ लिख रहे हैं एक हिन्दू और एक भारतीय के नाते लिख रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि आप वेब पर लिखने वालों के प्रति सम्मानजनक भाषा में लिखना सीखें,सभ्यभाषा नहीं जानते तो उपेक्षा करना सीखें। लंपटभाषा की जगह वेब नहीं है। आपके एक-एक शब्द से दलितविरोधी भावनाएं व्यक्त हो रही हैं। काश आपके इतने गंदे दलित विरोधी विचार नहीं होते। आपकी प्रतिक्रिया ने मेरा लेखन सार्थक कर दिया और यह भी बता दिया कि इन विषयों पर अभी और लिखने की जरूरत है।

  19. जगदीश्वर जी के इस लेख ‘गुलामी का कलंकित रूप …’ पर प्रकाशित हो रहे विचार [जिसमें हमारे भी विचार शामिल हैं] को पढकर अब साफ हो रहा है कि गुलामियत की कैद से अब ‘दलित चिंतन’ धीरे-धीरे मुक्त हो रहा है. डॉ. पुरुषोत्तम मीना ‘निरकुंश’ के उक्त वर्णित सबूत आधारित विचार हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को खुली चुनोती ही दे रहे है, जिन्होंने अपने स्वार्थ की खातिर ‘राम’ और ‘भगवा’ की मर्यादा तक को कलंकित किया हुआ है. जो नाम तो ‘राम’ का लेते है और काम ‘रावन’ का करते है.
    डॉ. राजेश कपूर ने अपने विचार में जो यह लिखा है – ‘पहचानो-पहचानो इन लोगों को और इनकी नियत को’, इनकी यह टिप्पणी सीधी-सीधी डॉ. मीना के व्यक्त विचार पर ही है लेकिन इनमें इतना साहस नहीं हुआ कि यह इस बात को स्वीकार कर लेते कि- उनके विचार डॉ. मीना के विचार के सन्दर्भ में है. खैर, कोई बात नहीं. लेकिन, हमारा डॉ. राजेश कपूर से सीधा-सीधा यह सवाल है कि – जब एक मुस्लिम और एक दलित हिन्दू में विवाद होता है तब ‘हिन्दू ठेकेदारों’ द्वारा उसे ‘हिन्दुत्व पर अत्याचार’ बताकर सांप्रदायिक उन्माद पैदा किये जाने की भरपूर कोशिश की जाती है, लेकिन जब एक सवर्ण कहे जाने वाले हिन्दू द्वारा एक दलित हिन्दू पर अत्याचार किया जाता है तब ये ‘हिन्दू ठेकेदार’ खामोश क्यों बने रहते हैं ? देश में आजादी से लेकर आज तक जितने भी आर्थिक भ्रस्ताचार हुए हैं, अस्पतालों में मरीजों के गलत ओपरेशन हुए हैं, पूल और सड़कें टूटी हैं, खाने की चीजों में मिलावटें हुई है, देश को बर्बाद करने के लिए चंद पैसों की खातिर विदेशियों से सोदेबाजी हुई है, काले धनपतियों को पकड़ा गया है – उनमें कितने प्रतिशत ‘दलित’ शामिल है ? कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दिनाकरण और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण का क्या कसूर है कि भाजपा और वामपंथ इन दोनों ही दलितों को देश का सबसे बड़ा अपराधी साबित करने में बने हुए हैं ? जबकि, इनसे भी भारी-भारी ‘गिद्ध’ देश को लुट रहे है, बर्बाद कर रहे है और ये तथाकथित देशभक्त खामोश रहकर इन ‘गिद्धों’ को इसलिए देख रहे हैं कि ये सब ‘सवर्ण’ कही जाने वाली जातियों से है. यदि यही ‘राष्ट्र-भक्ति’ कही जाती है तो हम ऐसे ‘राष्ट्र-भक्तों’ के मुंह पर थूकते है. इन ‘राष्ट्र-घातिओं’ से तो हम दलित ही अच्छे है, जो अपने देश के प्रति वफादार तो बने हुए हैं.
    – जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत, कोटा – ३२४००६ (राज.) ; मोबाइल : ०९८८७२-३२७८६

  20. – अत्याचारी हिन्दुओं का कालिख पुता चेहरा ? विद्वता के अवतार लेखक को हत्याकांड न करने वाले , फतवे जारी न करने वाले, इस देश और समाज के लिए सैकड़ों हज़ारों साल से जीवन बलिदान करने वाले अत्याचारी हिन्दू ही अपने निशाने पर नज़र आते हैं.
    – लाखों का रक्त बहाने वाले इस्लामी जिहादी और हज़ारों को गोअया के इन्क्विज़ेशन ( ईसाई यातना गृहों ) में तड़पा -तड़पा कर मारने वाले ईसाई कट्टरपंथी नज़र नहीं आते. तो समझ लो कि लेखक महोदय किस के एजेंट हैं. किन ताकतों के हित में, क्या कर रहे हैं.
    – अब ऐसों को भारत व हिन्दू समाज का गुप्त शत्रु न मानें तो क्या मानें ? अपनी करनियों से स्वयं कह रहे हैं कि ये क्या हैं. अंधे को भी इनकी नीयत नज़र आजायेगी.

  21. भारत – भारतीयता के शत्रुओं के आलेख व टिप्पणियों से भरा पृष्ठ है. अछा अवसर है की हिदू समाज अपने गुप्त शत्रुओं के एक समूह की पहचान कर ले ताकी उनके समाज व देश तोड़क प्रयासों का शिकार बनने से हम बचे रहें.
    – भारत के परम्परागत समाज व परम्पराओं को गरियाने में इन लोगों को बड़ी त्रिपती, सुख मिलता है. एक शब्द भी कभी इनके मुख या लेखनी से हिन्दू समाज की प्रशंसा में नहीं निकलता. तो समझ लें की ये लोग क्या हैं, किसके हित में, किसके लिए काम कर रहे हैं.
    – महात्मा गांधी जी ने जिन लोगों को ‘ गटर इंस्पेक्टर ऑफ़ इंडिया ‘ की उपाधी दी थी, वही लोग हैं ये. चीन, अमेरीका, पोप के एजेंट अनेक दशकों से यही तो कर रहे हैं कि हमको बुरी तरह हीनता की दलदल में डुबो कर समाप्त कर दें.
    – ऐसा नहीं तो इन लोगों से पूछ देखिये की भाई हिदू समाज की केवल कमियाँ ही कमियाँ गिनाते रहते हो, कोई विशेषताएं भी तो होंगी ; ज़रा वे भी तो बतलादो. एक सहनशीलता के इलावा और कुछ नहीं बतलायेंगे, क्योंकी ये चाहते हैं की आप लोग सब कुछ चुपचाप सहते रहो, कोई प्रतिकार या प्रतिक्रया न करो.
    – पहचानो-पहचानो इन लोगों को और इनकी नीयत को.

  22. प्रस्तुत लेख के लेखक को धन्यवाद और उनका आभार कि उन्होंने भारत के अत्याचारी हिन्दुत्व का कालिख पुता चेहरा सामने प्रकट किया।

    मैं बचपन से देखता आ रहा हूँ कि समाज जातियों में इस प्रकार से विभाजित है कि उसे पाटना लगभग असम्भव बना दिया गया है। बचपन में मुझे छुआछूत देखकर पीडा होती थी, शुरु-शुरु में विरोध करना असम्भव था, लेकिन जब विरोध किया तो परिजन सुनने के लिये तैयार नहीं थे।

    उम्र बढने के साथ-साथ धीरे-धीरे समझ का दायरा बढा तो ज्ञात हुआ कि इस छुआछूत के लिये हमारे कथित धार्मिक ग्रन्थ एवं उनके प्रवर्तक ही पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। धर्मग्रन्थों में ब्राह्मणों की सर्वोच्चता सिद्ध करने के लिये धर्मग्रन्थकारों ने समाज को छिन्न-भिन्न करके रख दिया। मेरी स्वयं की जाति मीणा जाति के लोग अनेक दलित जातियों को कमतर और अछूत मानते रहे हैं। स्वयं दलित जातियाँ भी आपस में एक दूसरे को कमतर या उच्चतर मानती रही हैं। अंग्रेजों ने बहुत बाद में फूट डालो और राज्य करो की नीति को भारत में लागू किया, लेकिन हिन्दू धर्मग्रन्थों के रचनाकारों तथा इनके मोहपास में फंसे लोगों ने तो भारत को हजारों साल पूर्व से ही इस प्रकार से विखण्डित किया हुआ है कि इस विखण्डन को रोकना असम्भव होता जा रहा है।

    प्रवक्ता डॉट कॉम पर इस हिन्दूवादी व्यवस्था को फिर से पुख्ता करने और देश में रामराज्य स्थापित करके मनुस्मृति लागू करने के लिये अनेक लोगों ने सुनियोजित अभियान चला रखा है। जिसके मुख्यकर्णधार और कथित विद्वान, ब्राह्मण विरोधी या दूषित हिन्दू संस्कृति के विरोधी आलेखों पर आक्रमण करने और विचार व्यक्त करने वालों को भारत का दुश्मन, हिन्दू धर्म एवं संस्कृति विरोधी, ईसाईयों का ऐजेण्ट आदि घोषित करने के लिये तत्पर रहते हैं, जबकि हिन्दू धर्म के साइड इफैक्ट या अत्याचार या शोषण या नाइंसाफी इनको तनिक भी नजर नहीं आते हैं। जिसका प्रमाण है, इस आलेख से उन सभी का गायब होना। हाँ अब इन टिप्पणियों के बाद प्रतिआक्रमण करने उपस्थित हो सकते हैं? वैसे इनमें से कुछ तो इतने चालाक हैं कि जहाँ पर प्रमाण पेश कर दिये जाते हैं, वहाँ से गायब हो जाते हैं।

    जहाँ तक मेरे राज्य राजस्थान का सवाल है। वर्तमान में रामचरितमानस और भागवत कथा वाचन की परम्परा जातिगत छुआछूत के लिये जिम्मेदार है। इसके अलावा मनुस्मृति तो सर्वकालित कोढ है ही। वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस कोढ की बीमारी को गाँवों में तेजी से फैला रहा है। बेशक संघ के डॉ. प्रो. मधुसूदन जी एवं श्री रविन्द्रनाथ जी जैसे प्रबुद्ध कार्यकर्ता कहते हैं, कि संघ में जातिवाद नहीं है। लेकिन लगता है कि इन सभी विद्वान मित्रों को अपने ही संघ परिवार की जमीनी हकीकत ज्ञात नहीं है। शाखाओं में क्या सिखाया जाता है या संघ में किस प्रकार का व्यवहार होता है, इसका तब तक कोई मायने नहीं है, जब तक कि वह व्यवहार आम लोगों के बीच परिलक्षित नहीं होता है। जनता के बीच काम करने वाले संघ के लोग कट्टर जातिवादी, छुआछूत को बढावा देने वाले और आरक्षण के विरुद्ध काम करने वाले हैं। संघ की इसी विचारधारा को विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, हिन्दू महा सभा आदि अनेकों संगठन आगे बढा रहे हैं, जबकि भाजपा राम राज्य के नाम पर सत्ता पर काबिज होकर भारत में फिर से मनुस्मृति को लागू करने का सपना देखती रहती है।

    सच तो यह है कि इस देश में ब्राह्मणवाद ने लोगों के दिमांग पर पूरी तरह से कब्जा कर रखा है और लोगों को दिमांगी तौर पर बीमार बनाये रखने के लिये उपरोक्त संगठनों की स्थापना की गयी है। जिन्हें संघ से जुडे अधिकारी एवं व्यवसायी अपनी काली कमाई में से हफ्ता देते रहते हैं, जिसे ये लोग धार्मिक दान कहकर महिमामंडित करते रहते हैं। एक जाति को दूसरी जाति से कमतर या उच्चतर घोषित करके ब्राह्मणवादी व्यवस्था में देश के समाजिक ढांचे में इतने छेद कर दिये हैं, कि इसमें समानता रूपी सामाजिक समरता के ठहर (टिक) पाने की सम्भावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती हैं।

    मैं इस बात को स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कर सकता है कि मैं जिस “मीणा” जाति से आता हूँ। उस मीणा जाति में आरएसएस ने एक राजनेता को आगे बढाकर मीणाओं को कुछ समय के लिये मुसलमानों का भी दुश्मन बना दिया था। जिसके चलते समाज का माहौल अत्यधिक खराब हो गया। भाजपा एवं हिन्दूवादी कट्टरपंथी संगठनों के तीन घोषित एवं एक अघोषित इरादे हैं-

    १-रामराज्य के लिये राम मन्दिर जिसमें बावरी मस्जिद विवाद शामिल होने से मुसलमानों का विरोध शामिल है।

    २-समान नागरिक संहिता जिसमें मुसलमानों की एक से अधिक शादियों पर रोक का इरादा शामिल है।

    ३-कश्मीर समस्या जिसमें पाकिस्तान एवं कश्मीरी मुसलमानों का विरोध शामिल है।

    इस प्रकार इनके सभी कार्य हिन्दू एवं मुसलमानों को आपस में ल‹डाने के लिये संचालित होते हैं। चौथा उद्देश्य छिपा हुआ है जो कभी-कभी खुलकर भी सामने आता रहता है।

    ४-दलित-आदिवासी, पिछडों एवं स्त्रियों को संविधान द्वारा प्रदत्त समान अधिकारों का विरोध, जिसके लिये ये आरक्षण का विरोध करते हैं।

    कुल मिलाकर देश के हिन्दुओं की ९८ प्रतिशत आबादी को मनुस्मृति के अनुसार गुलाम बनाकर रखना इनका इरादा है। जिसमें ये लोग सफल भी रहे हैं और आजादी के बाद से देश के सभी नीति-नियन्ता पदों तथा संस्थानों पर काबिज हो चुके हैं। जिसका प्रमाण मैं नीचे प्रस्तु कर रहा हूँ :-

    -१९४७ तक भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के ८० प्रतिशत से अधिक पदों पर मुसलमान, कायस्थ और राजपूत कौमों के लोग पदस्थ थे। जिनमें क्रमश : करीब ३५ प्रतिशत पदों पर मुसलमान, ३० प्रतिशत पदों पर कायस्थ और १५ प्रतिशत पदों पर राजपूत पदस्थ हुआ करते थे। आज इन तीनों कौमों के कुल मिलाकर ०५ प्रतिशत लोग भी भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में नहीं हैं। क्यों? क्या आजादी के बाद इन तीनों कौमों की माताओं ने मूर्ख बच्चे पैदा करना शुरू कर दिये हैं।

    -मेरे पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार २००४-०५ तक भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल ३६०० पद थे। जिनमें से-

    -२२.५ प्रतिशत (८१०) पद अजा एवं अजजा के लिये आरक्षित होते हुए भी, अजा एवं अजजा के मात्र २१३ (५.९१ प्रतिशत) लोग ही चयनित किये गये थे। इन दोनों वर्गों की आबादी, देश की कुल आबादी का २५ प्रतिशत मानी जाती है। जिसके मुताबिक इनकी भागदीदारी बनती है : ९०० पदों पर।

    -२७ प्रतिशत (९७२) पद अन्य पिछडा वर्ग के लिये आरक्षित होते हुए भी, अन्य पिछडा वर्ग के मात्र १८६ (५.१७ प्रतिशत) लोग ही चयनित किये गये थे। जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का ४५ प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनकी भागीदारी बनती है : १६२० पदों पर।

    -बिना किसी आरक्षण के भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल ३६०० पदों में से २४०० पदों पर केवल ब्राह्मण जाति के लोग चयनित किये गये थे। जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का ३.५ प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनका अधिकार केवल १२६ पदों पर बनता है। जिसमें से भी हिन्दूवादी अपनी स्त्रियों को भी समान नहीं मानते और उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन से अधिक नहीं मानते इस प्रकार ब्राह्मनों की पुरुष आबादी १.७५ प्रतिशत ही रह जाती है, जो २४०० पदों पर काबिज है, जबकि उन्हें केवल ६३ पदों पर होना चाहिये।

    -बिना किसी आरक्षण के भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल ३६०० पदों में से ७०० पदों पर केवल वैश्य जाति के लोग चयनित किये गये थे। जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का ७ प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनका अधिकार केवल २५२ पदों पर ही बनता है।

    नोट : आप सभी पाठक समझ गये होंगे कि जाति के आधार पर जनगणना नहीं करवाने के पीछे कौन लोग हैं और उनके इरादे क्या हैं? यदि जाति के अनुसार जनगणना होती है तो उपरोक्त सभी जातियों की वर्तमान अधिकृत जनसंख्या के आँकडे सामने आ जायेंगे।

    -गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया में गुजरात के हुए या कराये गये कत्लेआम (जिन्हें दंगे कहा जाता है) में मरने वाले हिन्दुओ में ९९ प्रतिशत से अधिक गैर-ब्राह्मण और गैर-वैश्य थे। जिन हिन्दुओं पर मुकदमें चल रहे हैं या चल चुके हैं, उनमें भी अधिकतर गैर-ब्राह्मण और गैर-वैश्य ही थे।

    जिन लोगों को भारत में समानता लागू करनी है, उन्हें सबसे पहले हिन्दूवादी ताकतों का विरोध करना होगा। अन्यथा इस देश में गुलामी, शोषण, भेदभाव और अत्याचारों से मुक्ति असम्भव है। इसके लिये कट्टरपंथी संघ, विहिप एवं अन्य हिन्दूवादी संगठनों तथा भाजपा से दलित-आदिवासी, पिछडों और सभी महलाओं को हमेशा सावधान रहना होगा और हिन्दू धर्म के कलेवर में लिपटे धर्मग्रन्थों के समाहित धीमे जहर को पीते रहने बचना होगा।

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक)। फोन ०१४१-२२२२२२५ (सायं ७ से ८ बजे)

  23. जगदीश्वर जी, आपने इस लेख में तमिलनाडु की जिस घटना का जिक्र किया है, इस तरह की विभिन्न घटनाओं से देश का हर राज्य भरा पड़ा है. दलित तब भी (आजादी से पहले) अछूत थे और अब भी (आजादी के बाद) अछूत ही है. चंद दलित परिवारों का विकास समूचे दलितों का विकास नहीं कहा जा सकता. फिर ये विकसित कहे जाने वाले परिवार भी ‘गुलामियत’ में ही जीवन जी रहे है. हम भी जनम से दलित है इसलिए दलित के दर्द और मर्म को समझे हुए है और ‘कलम’ के द्वारा ‘संघर्षरत’ बने हुए है. अब तो हमारा यह संघर्ष भी इन बदमाशों को चुभने लगा है, देखते है क्या होता है ? लेकिन अब यह सच है कि यदि यह ‘दलित-दमन’ नहीं रुका तो जल्दी ही आर-पार का ‘जातीय संघर्ष’ निश्चित है.
    – जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत, संपादक, पाक्षिक समाचार सफ़र, मकबरा बाज़ार, कोटा-३२४००६ (राज.) ; मोबाइल: ९८८७२-३२७८६

  24. आओ मिल कर जात पात को ख़तम करने क लेया rss k डॉ केशव je दुवारा जो नित परित्य दिन शाखा ke रचना ke उसमे जा कर सभी लोगो को एक सामान होने के लि ए अवसर पर्दान करे हम सब भारत माता k पुत्र है .

  25. भारत की हालत को देख कर यही लगता है
    “इतनी दीवारें उठीं इस घर के दरमियाँ, कि घर कहीं गुम हो गया दीवारो दर के दरम्यान.!

  26. यदि किसी को नष्ट करना है तो सबसे पहले उसका आत्मसम्मान नष्ट कर दीजिये वह खुद बी खुद नष्ट हो जायेगा. दलितों के साथ हिन्दू समाज में यही हुआ है. पहले सामजिक नियमों के आधार पर और अब दलित राजनीति के द्वारा. दलित प्रश्न और सरोकार इस तरह सामने रखे जाते हैं जैसे की वह कोई अलग वर्ग है. हमने दलितों के उत्थान के लिए प्रयास करते समय असल में उन्हें बाँट दिया है. अब दलित बस्तियां हैं, आंबेडकर ग्राम हैं, दलित अफसर और दलित नेता हैं, अप्रत्यक्ष दलित कैडर है उच्च नौकरियों में, अलग दलित साहित्य है. इस प्रकार कहाँ तो कोशिश यह होनी चाहिए थी की हिन्दू समाज के इस अंग को आज़ादी के बाद मुख्या धरा में शामिल करने का प्रयास किया जाता और कहाँ अब यह नौबत है की यह वर्ग अलगाव के रस्ते पर चल निकला है. यदि इस प्रवृत्ति को नहीं रोका गया तो भविष्य में हम दलितों का न कोई भला नहीं कर पाएंगे और वे भी मुस्लिमों की तरह पहचान का शिकार एक अल्पसंख्यक वर्ग की भांति वोट बैंक बन जायेंगे. निश्चित तौर पर घटना निंदनीय है. मेरा सुझाव है की यदि कोई दलित वर्ग का भला करना चाहता है तो उसे सर्वप्रथम दलितों के क्षेत्र में सफाई, स्वस्थ्य और शिक्षा के त्रिस्तरीय प्रयास करने चाहिए. राजनैतिक दल अपने agenda में इन तीन कार्यक्रमों को कोर विषयों में रखें और सर्कार की नीटियों को प्रभावित करने की पूरी कोशिश करें, भाजपा की यह दोहरी ज़िम्मेदारी है. मुख्या विपक्षी पार्टी होने के नाते और हिन्दू समाज की प्रतिनिधि होने के नाते.

  27. dalit vimarsh ke liye kai naam cheenh hastiyan hain …kintu daliton ke hiton ki raksha ke liye lagaataar sngharsh karne waale muththi bhar vaampanthi hain jo -apna utsarg kiye ja rahe hain .damit ,alpsankhyk,kamjor varg ke liye desh ke liye,dunia men aman shaanti ke liye saamywadi nirantar sangharsh kiye ja rahe hain …bharat men to sarvhara ke haraval daston ko kai morchon par ladna pad raha hai …unmen se ek yh maha vikat jaateey daman hai jo samaaj men kodh ahi …

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