अशोक सिंहल होने के मायने

ashoksinghal– डॉ मयंक चतुर्वेदी
श्री राम तुम हमारे आराध्य हो, तुम ही जीवन का सार हो, इस विचार और सोच के लिए जिस व्यक्ति ने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया, ऐसे श्रद्धेय अशोक सिंहल जी के हमेशा के लिए हम सभी के बीच से अपने आराध्य श्रीराम के पास चले जाने के बाद यह बात संपूर्ण हिन्दू समाज के ध्यान में आ रही है कि उन्होंने अपने बीच से किसे अलविदा कह दिया है। नब्बे के दशक में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन अपने यौवन पर था, उन दिनों को यदि आज भी याद किया जाए तो देह में उमंग और उत्साह का संचार होने लगता है। वास्तव में यह उमंग एवं उत्साह अशोकजी जैसे श्रीराम भक्त एवं मां भारती की सेवा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने के कारण उत्पन्न हुए तप की देन मानी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

माननीय अशोक जी की सिंह जैसी गर्जना से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे। हिन्दूजन उनके एक आह्वान पर अपनी मातृभूमि भारत और अपने आराध्य श्रीराम के लिए तन समर्पित, धन समर्पित और यह जीवन समर्पित के भाव से उत्प्रेरित हो चल पड़ते थे। ऐसे अशोकजी का हमारे बीच से जाना वैसा ही है जैसे भगवान ने अचानक से हिन्दू समाज के ऊपर से वट वृक्ष की छाया हटा ली हो।

अशोक जी का हिन्दू समाज के लिए सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित प्रचारक होने के नाते और स्व प्रेरणा से इस संगठन के दूसरे संघ चालक गुरुजी की भावना को जीवनभर आत्मसात कर कार्य किया, जिसमें उनकी इच्छा मानकर हिन्दू समाज के संत, सेवक और अन्य लोगों का परस्पर संगठन, विविध सेवा माध्यमों से किया। उनका जीवनभर एक ही मंत्र रहा, हिन्दव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू: पतितो भवेत्। मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र: समानता।। अर्थात् सब हिन्दू भाई हैं, कोई भी हिन्दू पतित नहीं । हिंदुओं की रक्षा मेरी दीक्षा है, समानता यही मेरा मंत्र है। श्री अशोक सिंहल जी को हम संन्यासी भी कह सकते हैं और योद्धा भी। क्योंकि उनकी जीवनचर्या एक सन्यासी जैसी थी और कर्म एक निरंतर संघर्षरत् एक योद्धा के समान।

1980 के दशक में रामजन्म भूमि आंदोलन के समय देशभर में घूमकर जो हिन्दू समाज का संगठन और उसका प्राकट्य श्रद्धेय अशोक जी ने किया, वस्तुत: उसके लिए हिन्दू समाज सदैव उनका ऋणी रहेगा। अशोकजी की खास बात यही थी कि वे निर्भीकतापूर्वक बिना संकोच के हिन्दू समाज के हित की बात करते थे । श्रद्धेय अशोक जी के समय-समय पर कई ऐसे बयानों ने पूरे देश और दुनिया में हलचल मचाई जो भारतीयता और हिन्दू समाज के पक्षधर रहे थे।

उनके प्रारंभि‍क जीवन पर गौर करें तो ध्यान में आता है कि 1948 में ज‍ब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा, तो अशोक जी सत्याग्रह कर जेल गये। वहाँ से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और संघ प्रचारक बन गये। अशोक जी की रास्वसंघ संघचालक श्री गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही। प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे। यहाँ उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। अशोक जी के जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता था और जिसे वे स्वयं भी स्वीकार करते थे। जब 1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा। उस समय भी अशोकजी इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध देशभर में संघर्ष की प्रेरणा देते हुए भारतीय जन को जाग्रत करते रहे। 1981 में डा. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ था, उसके पीछे शक्ति अशोकजी की ही मानी गई। यह सम्मलेन संपूर्ण हिन्दू समाज की एकता के लिए किए जा रहे प्रयासों के परिणामों की दृष्टि से आगे मींल का पत्थर साबित हुआ। इस सम्मेलन की सफलता के बाद से अशोक जी पूरी तरह विश्व हिन्दू परिषद् के काम में लग गए।

वस्तुत: उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद में अनेक ऐसे आयम जोड़े जो आज हिन्दुओं को न केवल जाग्रत कर रखते हैं, बल्कि उनके जीविकोपार्जन तथा शि‍क्षा की सुनिश्चितता भी देते हैं। आपने परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, एकल विद्यालय, हिन्दू महिला जागरण, गोरक्षा.. आदि अनेक नये आयाम जोड़े। इनमें से ही एक है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिसके कारण परिषद का काम गाँव-गाँव तक पहुँच गया और इस संगठन की अपनी एक वैश्विक पहचान बनी। इस आंदोलन ने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है। वहीं उनके द्वारा आरंभ किए गए अन्य सामाजिक कार्य सदैव उनके देह रूप में हमारे बीच नहीं होने के बाद भी सदैव प्रेरणा देते रहेंगे और हिन्दू समाज के साथ मानवता का कल्याण करने की प्रक्रिया को सतत बनाए रखेंगे। श्रद्धेय अशोक सिंहल जी को शत-शत नमन् ।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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  1. ये मेरा परम सौभाग्य रहा कि मुझे मा. अशोक सिंघल जी का सानिध्य एवं मार्गदर्शन मिला. मैं दिल्ली में संघ का कार्य करता था. ये 1979 के आस-पास की बात है. दिल्ली के प्रान्त प्रचारक अशोक जी थे. प्रेम जी गोयल दिल्ली संभाग और इन्द्रेश जी दिल्ली के सायं प्रचारक थे. उस समय मुझे अशोक जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ. अनेक बैठकों में अशोक जी की प्रतिभा, सादगी, प्रखरता और दृढ़ता का परिचय हुआ. बहुत कम लोग ये जानते हैं कि अशोक जी को विश्व हिन्दू परिषद् में भेजने की योजना कैसे बनी. वह बात फिर कभी. लेकिन अशोक जी का असाधारण व्यक्तित्व सहज ही आकर्षित करता था. संघ शिक्षा वर्गों में अशोक जी कभी-कभी गीत-कक्षा लेते थे. कुरुक्षेत्र और अंबाला के वर्गों में अनेक गीत उनसे सीखे. मैं बौद्धिक विभाग में होता था. एक बार भोजन पर अशोक जी हमारे घर पधारे. गीत-संगीत का दौर चला. उनके जीवन का एक अद्भुद पहलु सामने आया. शास्त्रीय संगीत का उन्हें अच्छा ज्ञान था. संघ कार्यकर्ता बनाने की फैक्ट्री है. उसी फैक्ट्री में से अनेक कार्यकर्ताओं का निर्माण हुआ. अशोक जी भी तपस्या की इसी भट्टी में से तपकर निर्मित हुए थे. दुबई में कल उनके लिए श्रद्धांजली सभा का आयोजन किया गया है. प्रभु उनको अपने श्री चरणों में स्थान देंगे, हिन्दू धर्म, संस्कृति और सभ्यता के इतिहास में उनका नाम श्रद्धा के साथ लिया जाएगा.

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