विविधा

क्या ये आंतकवादियों के पक्षधर है?

वीरेन्द्र सिंह परिहार

अभी हाल में 13 जुलाई को मुम्बई फिर आंतकवादियों के बम धमाकों से सिहर उठी। आंतकवादियों द्वारा किए गए उपरोक्त बम विस्फोटो से 21 लोगों के मारे जाने और 131 लोगों के घायल होने की खबरे है। आश्चर्यजनक तथ्य यह कि मुम्बई में 26/8 की इतनी बड़ी आंतकी वारदात के बाद की स्थिति में कोई सुधार नही हुआ। तब देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि आंतकवाद से लड़नें के लिए 100 दिनों में कार्ययोजना तैयार की जाएगी, पर स्थिति यह है कि अभी तक उपरोक्त कार्ययोजना की फाइल प्रधानमंत्री कार्यालय में ही पड़ी है। प्रधान कमेटी की रिपोर्ट के उनसार मुम्बई पुलिस को बुलेट-प्रूफ जैकेट और आधुनिकतम हथियार दिए जाने चाहिए, जो नही दिए गए। बिडम्बना यह कि झावेरी बाजार में जो सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाए गए थे, उनमे से चार ही चालू हालत में थे। अहम सवाल यह कि इस सबके लिए जिम्मेदार कौन?

सोचने का विषय यह है कि अमेरिका में वर्ष 2002 में 9/11 की घटना के बाद कोई भी आंतकी वारदात नही हुई, क्योकि उसने आंतकवादियों की मांद तक में घुसकर उनका पीछा किया, और देश में आंतकवाद के विरूध्द सख्त कानून बनाए। लेकिन हमारे देश में आंतकवाद जैसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया बतौर सामने आ रहा है। अब जब भारत का सर्वोच्च न्यायालय काले धन के संबंध में प्रस्तुत याचिका पर विचार करते हुए कहता है कि हम एक कमजोर या नरम देश है, तभी तो इस देश का इतना ज्यादा काला धन विदेशी बैंकों में है। ठीक यही बात आंतकवाद के संदर्भो में भी कहीं जा सकती है। चूंकि हम एक कमजोर या नरम देश है, इसलिए इस देश में आंतकवादी घटनाएं घटित होती ही रहती है। (माओवादी आंतकवाद तो अपनी जगह पर है-ही)

अब जब कमजोर या नरम से तात्पर्य यह है कि इस देश की सरकार कमजोर या नरम हैं उसके पास कोई इच्छा शक्ति नही है। जब आंतकवाद से लड़नें के लिए टाडा एवं पोटा जैसे सख्त कानून बनाए जाते है तो उन्हे यह कांग्रेस सरकार या कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार यह कहकर रद्द कर देती है, कि ये कानून मुस्लिम-विरोधी हैं। पर यह सरकार यह जरूर नही बताती कि यह कानून किस तरह से मुस्लिम विरोधी है? यदि टाडा और पोटा के तहत मुस्लिम ज्यादा पकड़ें जाते है, क्योकि आंतकवादी घटनाओं में मुख्यत: उन्ही की सलिप्ता पायी जाती है, तो यह मुस्लिम विरोधी कैसे हो गए? अब हमारी सरकार कहती है, आंतकवाद से लड़नें के लिए सामान्य कानून काफी है। यदि ऐसा है तो फिर ये आंतकवादी वारदाते लगातार क्यो हो रही हेै? गृहमंत्री चिदम्बरम् कहते है कि हमारी खुफियां एजेन्सियों को इस संबंध में कोई सूचना नही थी, फिर भी उनकी कोई गलती नही है। सवाल यह कि फिर इन खुफियां-एजेन्सियों का औचित्य क्या है?महाराष्ट्र में गठित आंतकवादी निरोधक दस्ते (ए.टी.एस.) का क्या औचित्य है? क्या वह मात्र हिन्दू आंतकवाद या भगवा आंतकवाद जिसे दिग्विजय सिंह जैसे दरबारी लोग प्रचारित करते है, मात्र उसके लिए है।

अब आंतकवाद के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा पाए अफजल को फांसी पर न चढ़ाने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया की दुहाई दी जाती है। जबकि यही सरकार दया-याचिका के बहाने उसकी फंासी को रोके हुए है सिर्फ रोके नही है, असलियत यह है कि उसे फांसी पर इसी बहाने से चढ़ाना नही चाहती। आंतकवादी अब्दुल नासिर मदनी जो 1998 में कोयटूम्बर में श्री आडवाणी की सभा में बम धमाकों का आरोपी है, उसे यह सरकार सरकारी खर्चे पर मंहगी मालिश करवाती है, और उसे मेहमान की तरह रखती है। आखिर में यह सब आंतकवाद के प्रति कमजोरी या नरमी के उदाहरण नही? हद तो यह है कि दिग्विजय सिंह और मुलायम सिंह जैसे लोग आंतकवाद की नर्सरी कहे जाने वाली जगह सन्जरपुर (उत्तर प्रदेश) में जाकर आंतकवादियों के साथ गलबहियां डालते है। उल्टे दिग्विजय सिंह जैसे लोगों की दृष्टि में जो कि खानदान के प्रवक्ता है, उन्हे जेहादी आंतकवाद कहीं दिखायी ही नही पड़ता। उनके अनुसार तो देश में यदि कोई समस्या है, तो वह हिन्दू आंतकवाद बनाम भगवा आंतकवाद है। प्रकारान्तर से वह तो 26/8 को भी हिन्दू आंतकवाद ही बताना चाहते है।

अपनी कमजोरी, तुष्टिकरण या मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के चलते ये तथाकथित, धर्मनिरपेक्ष, एन.डी.ए. शासन के एकाध उदाहरण देते है-जैसे कि कंधार विमान अपहरण काण्ड, जिसमें मौलान मसूद अजहर जैसे कुख्यात आंतकवाद की रिहाई हुई थी। अब इन्हे यह कौन बताए कि उस वक्त उक्त अपहृत विमान में जिसमें सैकड़ों भारतीय थे, यहीं तत्व उनके परिजनों को इस तरह से उकसा रहे थे, जैसे भारत सरकार उनकी रिहाई के लिए कुछ नही कर रही है। यहां तक कि सरकार से कह रहे थे कि इनकी रिहाई किसी कीमत पर भी होनी चाहिए। पर अब इस तरह का कुतर्क कर रहे है। आखिर में उस समय यदि एक कुख्यात आंतकवादी को छोड़ा गया था, तो वह सैकडो भारतीयों की जान बचाने के लिए था। पर सवाल यह कि तुम आंतकवादियों के साथ क्यो? यही न तांकि इस देश का मुसलमान हमारा वोट बैंक बना रहे।

अब दिग्विजय सिंह कहते है कि आंतकवाद के मुद्दे पर हम पाकिस्तान से बेहतर है। अब दिग्विजय सिंह जैसे लोगों को तुलना में पाकिस्तान ही दिखता है। युवराज राहुल गॉधी कहते है कि हर आंतकवादी हमले को रोकना संभव नही है। सच्चाई यह है कि इन तत्वों को आम आदमी की जान से कोई लेना-देना नही। इन्हे तो सर्वत्र वोट और सत्ता ही दिखाई पड़ती है। सच्चाई यह है कि राष्ट्रबोध से रहित यह तत्व अपने निहित स्वार्थो के चलते प्रकारान्तर से आंतकवादियों के पक्षधर है, तभी तो आंतकवाद के नासूर से देश ग्रस्त है।

(लेखक प्रसिद्ध स्तंभकार है)