राजनीति शख्सियत

”क्या खास है मोदी में ?

 विजन कुमार पाण्डेय

नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार चुनाव जीत गए हैं। उनके समर्थकों के हौसले बुलंद हैं। अहमदाबाद में बड़ी संख्या में ऐसे पोस्टर दिखार्इ पड़ रहे हैं जिसमें साफ-साफ लिखा है कि 2012 में मुख्यमंत्री, 2014 में प्रधानमंत्री। वैसे मोदी ने केंद्रीय राजनीति में सीधे तौर पर ऐसी कोर्इ दिलचस्पी नहीं दिखार्इ है। लेकिन उनकी दावेदारी का पोस्टर बिना उनके सहमति के लग ही नहीं सकते। वह भी गुजरात में। इसमें कोर्इ शक नहीं मोदी जी ने गुजरात के भीतर अपना हिंदुत्व का चेहरा बनाए रखा है लेकिन इसके बाहर उनकी कोशिश है कि लोग दंगे भूल जाएं और उन्हें विकास पुरूष की तरह देखें। पिछले कुछ समय से वे गुजरात दंगों वाली छवि से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते रहे हैं। वे दरअसल अपने को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर तैयार कर रहे हैं। उन्होंने अपनी इमेज की ब्रीडिंग इसी लिहाज से की है। यहां शायद मोदी जी भूल रहे हैं कि इंसान का अतीत कभी पीछा नहीं छोड़ता। गोधरा का दंगा उनका पीछा नहीं छोड़ेगा। गुजरात में भले ही वे जितनी भी सीटें जीत ले, कितने भी लोकप्रिय हो जाएं। लेकिन उन्हें दूसरे दल स्वीकार नहीं करेंगे। भारतीय राजनीति में यह दौर गठबंधन का चल रहा है। ऐसे में देश का प्रधानमंत्री वही बन सकता है जो सबको साथ में लेकर चले। ऐसी काबिलियत मोदी में नहीं है। क्योंकि वे सिर्फ गुजरात के हीरो हो सकते है। भारत के नहीं। उन्हीं का सहयोगी जनता दल-यूनाइटेड उनके विरोध में खड़ा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुले आम उनका विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ नवीन पटनायक भी मोदी के विरोधी ही हैं। एन चंद्रबाबू नायडू भी मोदी से दूरी बनाए रखेगें। वे अपना मुसिलम वोट बैंक नहीं खोना चाहेगें। अगर भारतीय जनता पार्टी अकेले दम पर 272 सीटें जीत लेती है तो उनकी प्रधानमंत्री बनने की दावेदारी मजबूत होगी। लेकिन अभी वह दिल्ली दूर है।

नरेंद्र मोदी जी अगर यह सोचते हों कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार कर चुकी है। तो यह उनकी गलतफहमी है। वे पूरी तरह अंदर से स्वीकार नहीं हैं। उन्हें तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी समर्थन नहीं मिलेगा। वे अपना सार्वजनिक जीवन आर एस एस के प्रचारक के तौर पर शुरू किया था। कुछ दिन पहले ऐसी खबर सुनने में आयी थी कि वे नागपुर गए थे। वहां उन्होंने आरएसएस के नेताओं से मांग की थी कि उन्हें अभी से भाजपा का प्रधानमंत्री घोषित किया जाए। लेकिन आरएसएस ने उनकी मांग मानने से इनकार कर दिया। यही कारण था कि वे नागपुर से निराश होकर लौटे थे। यह बात भी तो तय है कि बिना आरएसएस के समर्थन के वे भाजपा के उम्मीदवार नहीं बन सकते। अगर वे आरएसएस को किसी तरह मना भी लेते हैं तो भाजपा में घमासान छिड़ जाएगा। उनके प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में सुषमा स्वराज या अरूण जेटली रोड़े अटका सकते हैं। वैसे भी मादी जी अभी तक अखिल भारतीय नेता नहीं बन सके हैं।

केवल हिंदुत्व का नारा देकर वे प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। गुजरात के बाहर उनका शायद ही कहीं कोर्इ असर दिखता है। अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के सामने वे बौने दिखार्इ पड़ते हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेशों में चुनाव प्रचार के लिए कोर्इ खुशी से नहीं बुलाता। किसी राज्य का मुख्यमंत्री तीन-चार बार बन जाने से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वे देश के भावी प्रधानमंत्री हैं। हर इंसान में कुछ न कुछ खामियां होती हैं। खामियां लोगो को ज्यादा दिखार्इ देती है। मोदी जी में भी खामियां है जो लोगो स्पष्ट दिखार्इ दे रही हैं। उनका रवैया एक तानाशाह की तरह है। वे लोगों के सामने इस तरह पेश आते हैं जैसे वे जो कहेंगे वही होगा। आगे चलकर यह उनके लिए घातक शाबित होगा। यह बात सच है कि गुजरात में मुसलमानों का रवैया मोदी के खिलाफ बदल रहा है। लेकिन दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं है।

अभी मोदी जी को प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी से दूर रहना चाहिए। मान लीजिए देर सबेर वे देश के प्रधानमंत्री बन भी जाते हैं तो क्या वे अमेरिका की यात्रा कर पाएगें। अमेरिका उनको वीजा देगा? यह एक बहुत बड़ा प्रश्न सबके सामने खड़ा हो जाएगा। ऐसा नहीं लगता अमेरिका का रवैया उनके प्रति बदलेगा। हर कोर्इ राजनेता प्रधानमंत्री बनना चाहता है। मोदी की भी अंदर यही इच्छा है। लेकिन वे अभी खुलकर सामने नहीं आ रहे। यह बात तो तय है देर सबेर वे प्रधानमंत्री पद के मोह से खुद को दूर नहीं रख पाएंगे। वैसे भी वे अब तक की राजनीतिक लड़ार्इ अकेले लड़ते आए हैं। लेकिन यह लड़ार्इ अकेले की नहीं होगी। इसमें पूरा देश शामिल होगा। देश की जनता होगी। वैसे वे मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी के इकलौते ऐसे नेता हैं जो मतदाताओं में पार्टी के लिए जोश पैदा कर सकते हैं। लेकिन कोर्इ इतने भर से प्रधानमंत्री नहीं बन जाता। महगार्इ से त्रस्त जनता बात वाला नहीं काम वाला प्रधानमंत्री चाहती है।

यह बात तो सच है कि गुजरात में भाजपा नहीं मोदी चुनाव लड़े हैं। उनके नाम पर जनता ने वोट दिया है। वे केवल मोदी ही थे जो जनमत को इतना प्रभावित और ध्रुवीकृत किया है। अब आप मोदी को प्यार करें या नफरत लेकिन उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते। यह मोदी का करिश्मा ही था कि गुजरात चुनाव पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से कहीं ज्यादा मोदी का व्यकितत्व ही हावी रहा है। गुजरात भाजपा में अब कोर्इ ऐसा नेता नहीं दिखता जो उन्हें चुनौती देने के बारे में सोच भी सके। यहां तक कि भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी खुले आम मोदी की आलोचना का जोखिम नहीं उठाते हैं। मोदी ने शादी की या नहीं यह भी किसी को ठीक से पता नहीं है। यह भी छिपाया जा रहा है। बताया जाता है कि मोदी ने एक अध्यापिका से शादी भी की जो एक गरीब मुसिलम क्षेत्र में पढ़ाती थी। लेकिन वे इसका जिक्र नहीं करते। यह बात इसलिए छिपार्इ जा रही क्योंकि आरएसएस में आम तौर पर आजीवन अविवाहित रहने पर जोर दिया जाता है ताकि सदस्य पूरी तरह संगठन को समर्पित रह सके। जहां तक मोदी के भविष्य की बात है तो इसपर अनेक चर्चाएं चल ही रही हैं और 2014 तक चलेंगी। सबका यही मानना है कि मोदी को अपना तेवर और भाषा दोनों बदलनी पड़ेगी। फिर भी गारंटी नहीं कि राजग के सहयोगी दल मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मान लें। उससे पहले भाजपा के अंदर भी संघर्ष कम नहीं होगा। जो भी हो यह कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। उस तरह नहीं जिस तरह राजनीतिक विश्लेषक मीडिया पर बता रहे हैं जो कि यह मान बैठे हैं कि मोदी का विकास का नारा चल गया। वे इस हकीकत को नजरअंदाज कर रहे हैं कि 49 प्रतिशत मतदाता मोदी के दावे से सहमत नहीं हैं। कांग्रेस इस बात का पूरा फायदा नहीं उठा पार्इ। कांग्रेस की हार उसके कारनामों से हो रही। मोदी से नहीं।

जहां तक प्यार और सम्मान का प्रश्न है तो वह केवल दो प्रधानमंत्रियों को मिला। एक जवाहर लाल नेहरू और दूसरे अटल जी। अटल जी जीवन भर विपक्ष में रहे। केवल छ: वर्ष प्रधानमंत्री रहे। लेकिन जो सम्मान जनता ने उन्हें दिया वह पंडित जवाहर लाल से कम नहीं था। पूरा देश उन्हें आदर्श मानता था। जनता नारा लगाती थी ‘देश का नेता कैसा हो? अटल बिहारी जैसा हो, ‘सब पर भारी अटल बिहारी। क्या मोदी के लिए भी ऐसे नारे लगेगें ? क्या मोदी भी सब पर भारी पड़ेगें ? अटल-आडवानी हमेशा ही राजनीति में भारी पड़े हैं। अगर आज अटल जी स्वस्थ रहते तो मोदी उनके सामने कहीं खड़े नहीं होते। जो प्यार-सम्मान अटल जी को मिला, वह विरले राजनेताओं को मिलता है। भारत की जनता एक से एक देश को प्रधानमंत्री दिए हैं। लेकिन सफल प्रधानमंत्री सभी नहीं रहे। आज देश को ऐसे सफल प्रधानमंत्री की जरूरत है जो जनता के लिए हो सत्ता के लिए नहीं।