· डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र
22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसारन घाटी में पाँच सशस्त्र उग्रवादियों द्वारा किए गए हमले के बाद से ही भारत-पाक के संबंध ऐतिहासिक रूप से सबसे नाजुक मोड़ पर पहुँच गए। भारत द्वारा अपनी वायुसेना के माध्यम से 6-7 मई 2025 की रात को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 9 आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की गई। इसमें प्रतिबंधित आतंकी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन के मुख्यालयों को निशाना बनाकर विशेष कार्रवाई की गई। इसमें मरकज़ सुब्हान अल्लाह, बहावलपुर –जैश-ए-मोहम्मद का ठिकाना, मरकज़ तैयबा, मुरिदके – लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय, सरजल, टेहड़ा कलां – जैश-ए-मोहम्मद का अड्डा, महमूना जोया, सियालकोट – हिज्बुल मुजाहिदीन का ठिकाना, मरकज़ अहले हदीस, बरनाला – लश्कर-ए-तैयबा का अड्डा, मरकज़ अब्बास, कोटली – जैश-ए-मोहम्मद का केंद्र, मस्कर रहील शहीद, कोटली – हिज्बुल मुजाहिदीन का प्रशिक्षण शिविर शवाई नाला कैंप, मुजफ्फराबाद – लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी शिविर और सैयदना बिलाल कैंप, मुजफ्फराबाद – जैश-ए-मोहम्मद का संचालन केंद्र सम्मिलित था।
इसके बाद पाकिस्तान की तरफ से भारत के ख़िलाफ़ ऑपरेशन ‘बुनयान अल मरसूस‘ शुरू किया गया। दोनों ने ही एक-दूसरे के ड्रोन और मिसाइल मार गिराने का दावा किया। नियंत्रण रेखा पर भी भारत और पाकिस्तान के बीच भारी गोलाबारी हुई। जब यह संघर्ष युद्ध की तरफ बढ़त दिख रहा था तभी 10 मई की शाम 5 बजे दोनों देशों ने सभी तरह की सैन्य कार्रवाई रोकने की घोषणा कर दी। इस सीजफायर को लेकर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के गलियारों में एक बहस छिड़ी की आखिर सीजफायर हुआ कैसे? डोनाल्ड ट्रम्प के द्वारा एक के बाद एक दावे किए गए कि इसमें अमेरिका की बड़ी भूमिका है। पाकिस्तान की तरफ से भी इसका समर्थन किया गया, हालांकि भारत सरकार ने इसका खंडन किया। बहरहाल सीजफायर किन परिस्थियों में हुआ, यह एक गूढ प्रश्न तो है ही, साथ ही एक विशेष प्रश्न यह भी है कि लगभग तीन दिन तक चले इस संघर्ष के दौरान अमेरिका का रूख पाकिस्तान परस्त क्यों था? दूसरे शब्दों में सब कुछ जानते बूझते अमेरिका का रुझान पाकिस्तान की ओर क्यों है?
यह प्रश्न बड़ा ही संजीदा है और इसका जवाब तारीख(इतिहास) में देखने को मिलेगा। पाकिस्तान जब एक अलग मुल्क बना, तभी उसने भारत के विपरीत अमेरिकी ब्लाक से अपने सम्बन्ध स्थापित करने शुरू कर दिए और वह सीटो का सदस्य बन गया। इसका उसे फायदा भी मिला. चूंकि अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप बढा तो उसे काउंटर करने के मद्देनजर पाकिस्तान को अमेरिका ने हथियार और पैसा देना आरम्भ किया। यहीं से मुजाहिदीन और बाद में तालिबान का जन्म हुआ। अमेरिका के रहमो करम पर इस संगठन ने अफगानिस्तान को सोवियत रूस से मुक्त कराया और खुद सोवियत रूस का विघटन हो गया। अमेरिका ने इसके बाद पाकिस्तान की फंडिंग बंद कर दी। इसके पीछे दो कारण थे 1. अमेरिका का राष्ट्रीय हित और 2. पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम। हालांकि 9/11 के बाद परिस्थितियाँ फिर बदलीं और अमेरिका ने अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया और फिर पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के निमित्त फंड देना शुरू कर दिया।
2018 में ट्रम्प प्रशासन ने सैन्य सहायता देना बन्द कर दी। 2019 के बाद फिर स्थितियाँ सुधरीं और फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा वार्ता में पाकिस्तान ने बिचौलिया की भूमिका निभाई और वह एक बार फिर से अमेरिका के करीब आ गया। अफगानिस्तान के पतन के बाद अमेरिका अगस्त 2021 में अफगानिस्तान से हट गया परन्तु अभी भी अमेरिका ने कई तरीके से फंडिंग जारी रखी। इस दौर में पाकिस्तान को चीन से भी मदद मिलती रही। चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर तक एक गलियारा बना दिया हालांकि अभी तक अरबों डॉलर का निवेश करने के बावजूद चीन को इस गलियारे से कुछ विशेष हासिल नही हुआ है। प्रथम द्रष्टया अमेरिका का पाकिस्तान के तरफ झुकाव का कारण उनका ऐतिहासिक रिश्ता है. बावजूद इसके कुछ और भी महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जिसके कारण पहलगाव हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका की पाकिस्तान परस्ती जारी है।
मोटे तौर पर इसके पीछे कुछ कारक भी दिखलायी पड़ते हैं जैसे अफगानिस्तान की निगरानी, चीन का प्रतिकार और भारत को संतुलित करना। अमेरिका अफगानिस्तान से जाने के बाद भी यह नही चाहता है कि एक बार पुनः अफगानिस्तान अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की शरणस्थली बने। वस्तुतः अमेरिका पाकिस्तान का इस कारण समर्थन करता है ताकि वह अफगानिस्तान की निगरानी कर सके क्योंकि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई की गहरी पैठ तालिबानी नेटवर्क में रही है, अतः अमेरिकी एजेंसी इनका अनवरत लाभ लेने के लिए तत्पर रहती हैं। साथ ही ईरान और रूस के साथ उसके तनावपूर्ण रिश्ते हैं और इनकी निगरानी हवाई माध्यम से ही हो सकती है और इसके लिए पाकिस्तान सबसे अच्छी जगह है। जहाँ तक चीन का प्रश्न है तो अमेरिका यह नही चाहता कि चीन का पाकिस्तान में हस्तक्षेप बढ़े, क्योंकि वर्तमान सदी में चीन लगातार अमेरिका को चुनौती देते हुए अपनी प्रभुता को बढ़ाता जा रहा है। ग्वादर पोर्ट के जरिए चीन की पैठ हिंदमहासागर में बढ़ रही है, इसके लिए उसने काफी पैसा खर्च किया है।
एक और स्थिति जिसका फायदा मौकापरस्त चीन उठा सकता है, यदि पाकिस्तान बहुत अधिक कमजोर हो जाता है तो चीन उसकी संप्रभुता का फायदा उठा सकता है। निःसंदेह यह अमेरिकी हितों के विरुद्ध होगा। शायद यही कारण है कि अमेरिका पाकिस्तान की सेना के ज्यादे करीब है वनिस्पत सरकार के। भारत के साथ अमेरिका अपने संबंधों को संतुलित करने का प्रयास कर रहा है। विगत तीन वर्षों से रूस यूक्रेन युद्द के बीच अमेरिका के लगातार माना करने के बावजूद भारत ने रूस के साथ व्यापारिक रिश्ता कायम किया और युद्ध काल में रूसी तेल का आयातक भी बना। रूस के साथ भारत के सामरिक सम्बन्ध भी हैं यह बात अमेरिका बर्दास्त नही कर सकता। इसी कारण वह पाकिस्तान की तरफ झुका हुआ है।
27 अप्रैल 2025 को इस्लामाबाद में ट्रंप परिवार की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली क्रिप्टो करेंसी कंपनी वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल और पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल के बीच हुए समझौते को इसके पीछे तात्कालिक कारक माना जा सकता है। यह डील पाकिस्तान को क्रिप्टो हब बनाने के उद्देश्य से की गई। खास बात यह है कि पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल ने बिनांस के विवादास्पद संस्थापक चांगपेंग झाओ को अपना रणनीतिक सलाहकार नियुक्त किया है जिन पर अमेरिका में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लग चुके हैं। ऐसे में इस समझौते का इस्तेमाल टेरर फंडिंग और काले धन के लिए होगा। चूंकि इस डील में अमेरिकी राष्ट्रपति का परोक्ष रूप से जुड़ाव है अतः हो सकता है कि इसी वजह से भी अमेरिका पाकिस्तान का साथ दे रहा हो।
इस तरह पाकिस्तान की स्वतंत्रता के बाद अमेरिका ने अपने सैन्य और रणनीतिक हितों के लिए उसे भारी सैन्य सहायता दी जिसे पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ और आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने में इस्तेमाल किया। भारत ने लगातार इस सहायता की आलोचना की और अमेरिका के तर्कों को खारिज किया। ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने के बाद अमेरिका को पाकिस्तान की दोहरी नीति का एहसास तो हुआ परन्तु वह अनेक कारणों से पाकिस्तान को फंडिंग करता रहा। एक समय ऐसा भी आया जब अमेरिका पाकिस्तान की तुलना में भारत के बेहद करीब आ गया परन्तु अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के यथार्थवादी सिद्धांत को आधार बनाकर आज अमेरिका का झुकाव भारत की तुलना में पाकिस्तान की तरफ अधिक है। अंततः यह कहना सही होगा कि अमेरिका अपने हितों की पूर्ति के लिए पाकिस्तान से भौगोलिक,रणनीतिक एवं भू-सामरिक दृष्टि से जुड़ा है।
· डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र