क्या वाकई बदल रहे हैं राजनितिक परिपेक्ष्य ???

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बदलाव आयेगा !!! ये शब्द हर जगह सुनने को मिल रहे हैं लेकिन ये बदलाव कंहा से और कैसे आयेगा अभी तक स्थिति साफ नहीं हैं I हम भी इसी बदलाव की राह देख रहे हैं ..ये बदलाव ही था की पूरा देश एक इंसान के पीछे यूँ ही चल पडा हैं जो हैं जानता वो भी जो नहीं जानता वो भी लेकिन भारतीय राजनीती के धुरंधर इस बदलाव को भांप ही न पाए और मात खा बैठे यदि उन्होंने इस नब्ज को पकड लिया होता तो शायद वर्तमान की स्थिति कुछ और हो सकती थी i लेकिन अब तो सब कुछ हो चुका और हम सब ने देख भी लिया.. बदलाव सुनने में जितना हल्का सा प्रतीत होता वास्तव में इसे यथार्थ रूप देना उतना ही मुश्किल होता हैं I

 

आज भारतीय राजनीती किस मुकाम पर खड़ी हैं मैं ये ही देखने की कोशिश कर रही हूँ I अन्ना के अनशन के बाद से बदलाव के इस रुख को और हवा मिल गई हैं . हमारी देश की राजनीती सदियों से जातीगत भेदभाव, भुखमरी, बेरोजगारी आदि के मुद्दों पर अब तक अपनी रोटियाँ आराम से सेंकती आ रही थी लेकिन अब शायद वो सब न हो सकेगा जिस के सहारे आज तक ये राजनितिक पार्टिया अपने उल्लू सीधा करती रही .. देश की राजनीती की सबसे बड़ी त्रासदी उसके पास विकल्प का न होना हैं आज यदि कोई तीसरी पार्टी होती तो यक़ीनन उसके सर ताज अपने आप ही फिसल का चला जाता जैसे मुदे चले गए हैं …

 

बदलाव की राजनीती आज चरम सीमा पर भारत में अपने पाव पसार चुकी हैं लेकिन इस बदलाव की दिशा कंहा हैं और किस की और हैं ये मुद्दा अभी तलक विषयगत हैं

सालो से धर्म के नाम पर अपने अस्तित्व को जीवित रखने की कोशिश करने वाली बी. जे.पी को आखिरकार एक मजबूत आधार मिल ही गया लेकिन देखने वाली बात ये हैं की इस नए मुद्दे को ये सियासी लोग किस तरह से इस्तेमाल करते हैं. जी हाँ ,मैंने कहा इस्तेमाल करते हैं ही लिखा हैं . क्योकि ये उनकी खुद की सोच या चिंता तो हैं नहीं, आज आडवानी जी अपनी रथ यात्रा में जिस मुद्दे पर हुंकार भरते नजर आये बड़े ही दुःख की बात हैं की देश की इतने बड़े नेता को एक मुद्दे भी खुद का नहीं रख सके उन्हें मंच की शोभा बड़ाने के लिए अब उन्हें विषय भी चुराने पड रहे हैं… देश के एक महान नेता जो की प्रधान मंत्री के प्रमुख दावेदार माने जाते हैं वो देश के नब्ज समझने में इतने देर कर गए की एक ज्वलंत मुद्दा अब उनके लिए उधार की सोगात ही बन कर रह गया..या सच कहो तो वो भी इस मुद्दे से कतराने वालो की फेहरिस्त में शामिल थे लेकिन बदले हालातो का जायजा लेकर रोटियां सेकने वाले छुट-पुटिये नेताओ जैसी हरकत कंहा तक जन समूह को सम्भाल पायेगी ये देखने वाली बात हैं.

खैर आज भारत में विकल्प की एक कमी साफ नजर आ रही हैं.. कांग्रेस बटती नजर आती हैं..बी.जे. पी अपने धूमिल अस्तिव्त्तव को पड़ी धुल हटाने की पुरजोर कोशिश में लगी हैं, हो सकता हैं की वो सफल भी हो जाए

अन्ना के अनशन से देश को हुए फायदे नजर आये या न आये लेकिन बे.जे.पी. को बेठे बिठाये मुद्दा मिल गया ये सच हैं..

खैर बात अब भी वो ही हैं जिसका जवाब किसी के पास नहीं हैं मौजूदा सरकार भ्रष्ट हैं तो फिर उसका विकल्प क्या होगा ? आने वाले चुनावों के किसका पलड़ा भरी रहेगा..किस पार्टी को ये जनता इस देश की बागडोर सौपेगी ..वक्त के साथ साथ राजनितिक दल भी पूरी तरह से साजिशो में लिप्त नजर आ रहे हैं….

देश की इसी कमजोर स्थिति का कांग्रेस भरपूर फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं आज उसे न जनता की राय से सरोकार नजर आता हैं और न ही कोई डर..जबकि चुनाव उनके सर पर ही हैं…

एसा लगता हैं कि अगला चुनाव किसी एक दल को नहीं व्यक्ति विशेष के लिए होगा लोग पार्टी से ऊपर उठाकर व्यक्तियों के लिए वोट करेंगे लेकिन संशा तो उसमे में भी उनका इस तरह से आने वाले परिणाम भी तो भयंकर ही होंगे ..झारखण्ड के निर्दालिये नेताओ के साथ किस तरह कि सियासत देश के सामने परोसी गई थी ..

देश में अन्ना के आन्दोलन से जो लहर आयी हैं उसने सबके मन में तरंगे तो उत्पन कर दी लेकिन ये हलचल बदलाव लाने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं ये कुछ तय नहीं हो पा रहा हैं…मुंबई में मिले रिस्पोंस एवं अन्ना की टीम पर लगते आरोपों से जिज्ञासु लोगो के दिलों में और कौतुहल पैदा कर दिया हैं..सभी बुद्धिजीवी आज कोई भी भविष्यवाणी करने से कतराते नजर आते हैं सबकी निगाहें आने वाले विधान सभा के चुनावो पर हैं वो ही तय करेगा की बदलाव आ रहा हैं या देश हर बार की तरह अडिगता से राजनितिक परम्पराओं में जकड़ा रहेगा …

2 COMMENTS

  1. खुसबू जी आपकी कल्पनाये सच हो पर मुझे नहीं लगता की बदलाव आनेवाला है .
    बदलाव के मूलभूत संसाधनों पर अतिभ्रस्त सत्तालोलुप लोगो का एकछत्र राज्य है जिसे वे कदापि होने नहीं देंगे .

  2. हाँ बदलाव ज़रूर आयेगा यकीन रखिये भले ही उसकी स्पीड कम हो.

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