कहां और कैसे मिले पौष्टिक आहार?

0
480

healthy-eatingनिर्मल रानी
देश के करोड़ों लोग जब देश में लंबे समय से बिक रही बहुचर्चित एवं लोकप्रिय खाद्य सामग्री मैगी खाने के आदी हो चुके थे उस समय पिछले दिनों इस समाचार ने देश में तहलका मचा दिया कि इसमें मिलाई जाने वाली लेड की अत्यधिक मात्रा उपभोक्ताओं के लिए कैंसर जैसे भयंकर रोग का कारण बन सकती है। इसी प्रकार कुछ दिनों पूर्व खबर आई कि ब्रेड जैसी दैनिक उपयोगी वस्तु जो लगभग पूरे देश में सामान्य रूप से खाई जाती है उसमें शामिल कुछ आपत्तिजनक रसायन ऐसे हैं जिनसे उपभोक्ता को कैंसर हो सकता है। देश के डॉक्टर्स तथा वैद्य-हकीम द्वारा आम लोगों को सलाह दी जाती है कि वे हरी सब्जियां, साग, फल आदि का सेवन करें तो शरीर हृष्ट-पुष्ट तथा रोग मुक्त रहता है। परंतु जब सब्जी उत्पादन तथा फलों के पकाने की प्रक्रिया पर नजर डालें तो हमें लगेगा कि शायद साग-सब्जी व फलों से जहरीली तो कोई वस्तु है ही नहीं। कभी-कभी देश के खोजी पत्रकारों द्वारा कुछ ऐसी रिपोर्टस प्रसारित की जाती हैं जिन्हें देखकर तो अपने-आप से यह सवाल करना पड़ता है कि आखिर खाएं तो खाएं क्या? और पौष्टिक आहार ढूंढने जाएं तो जाएं कहां।
यह बात तो इस समय लगभग सामान्य रूप से सभी को ज्ञात हो चुकी है कि खेतों में पैदा होने वाली सब्जियों की लता अथवा पौधे की जड़ों में एक ऐसे जहरीले एवं नुकसानदेह इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है जिससे वह सब्जी रातों-रात फूल कर तैयार हो जाती है। कहने वाले लोग तो यहां तक कहते हैं कि रात में खेतों में सब्जियां इतनी तेजी से बढ़ती हैं कि उनके बढने की प्रक्रिया के दौरान पत्तों की आवाज भी सुनाई देती है। इसी प्रकार अधिकांश फल ऐसे हैं जिन्हें समय पूर्व पेड़ों से तोड़ लिया जाता है और उन्हें कारबेट जैसे जहरीले रसायन की गर्मी से पकाया जाता है। यह बातें किसी भी सरकारी या गैर सरकारी लोगों से छुपी नहीं हैं। परंतु यह कितनी बड़ी सच्चाई का रूप धारण कर चुकी है कि मंत्री से लेकर संतरी तक तथा आला अधिकारी से लेकर मजदूर वर्ग तक सभी को बाजार में उपलब्ध इसी प्रकार की जहरीली चीजें खाने के लिए विवश होना पड़ता है। कम समय में अधिक उत्पादन तथा अधिक आय की चाहत ही इन हालात के पैदा होने का मुख्य कारण है। हालांकि राज्य सरकारों द्वारा खाद्य सामग्रियों में इस प्रकार के जहरीले केमिकल्स का इस्तेमाल किए जाने के विरुद्ध कानून भी बनाए गए हैं। कभी-कभी छापेमारी की खबरें भी सुनाई देती हैं। परंतु आखिरकार वही ढाक के तीन पात। दूध-घी, खोया व पनीर जैसी पौष्टिक समझी जाने वाली खाद्य सामग्रियों में किन-किन तरीकों से मिलावट की जाती है और किस प्रकार पानी में विभिन्न प्रकार के केमिकल, डिटर्जेंट पाऊडर आदि मिलाकर यह खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं इन सब पर आधारित रिपोर्टस भी समय-समय पर मीडिया लोगों को दिखाता रहता है। खासतौर पर त्यौहारों के समय में किस प्रकार इन्हीं नकली व जहरीली खाद्य सामग्री से तैयार की गई मिठाईयां बाजारों में बेची जाती हैं यह भी हम सब देखते व सुनते रहते हैं। परंतु चूंकि इस प्रकार के जानलेवा व्यवसाय में शामिल लोगों के विरुद्ध कभी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती और हमारे देश के लचीले कानूनों के अनुसार इन घिनौने कारनामों में संलिप्त अपराधी या तो कानून की गिरफ्त में नहीं आते या फिर गिरफ्तारी के बाद अदालत से इन्हें जल्द जमानत मिल जाती है लिहाजा उनके मन में किसी प्रकार का भय पैदा नहीं होता और वे पुन: दूसरों को धीमा जहर दिए जाने के अपने नापाक व्यवसाय में व्यस्त हो जाते हैं। गोया उन्हें पुलिस अथवा कानून के डंडे का कोई डर कतई नहीं रहता।
कुछ समय पूर्व मुंबई के निकट एक बाहरी इलाके की एक ऐसी खतरनाक रिपोर्ट एक टीवी चौनल ने प्रसारित की जिसे देखकर रूह कांप उठी। दिखाया गया था कि सब्जी उगाने वाले खेतों के बीच से औद्योगिक कचरा बहाने वाला एक नाला गुजर रहा है जिसमें सिवाए जहरीले बदबूदार द्रव्य के और कुछ नहीं है। इन खेतों के सब्जी उत्पादक इसी जहरीले नाले में मोटर पंप डालकर उसका जहरीला द्रव्य खींचकर अपने खेतों की सिंचाई कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त उन खेतों में पानी से सिंचाई करने का कोई दूसरा साधन नहीं है। अब जरा कल्पना कीजिए कि जिन सब्जियों की पौध की जड़ों में शुरु से ही जहरीले रसायन कचरे से सिंचाई की जा रही हो वह सब्जियां तैयार होने के पश्चात कितनी जहरीली होंगी इस बात की स्वतरू कल्पना की जा सकती है। और यह सब्जियां देश के सबसे प्रमुख महानगर मुंबई के ग्राहकों को बेची जाती हैं। इतना बड़ा प्रमुख समाचार टीवी पर प्रसारित होने के बावजूद सरकारों के कान खड़े नहीं होते। और यदि संबंधित विभाग ऐसे विषयों पर कोई संज्ञान लेता भी है तो वह भी भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाकर अपने कर्तव्यों को पूरा किया समझता है।
खेतों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली यूरिया एवं पेस्टीसाईज्ड आदि की वजह से बेशक हमारे देश में प्रति एकड़ की दर से फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी तो जरूर हुई है परंतु इनके दुष्प्रभाव के परिणामस्वरूप ही न केवल खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आई है बल्कि पक्षियों की अनेक प्रजातियां या तो विलुप्त हो गई हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसी प्रकार के जहरीले खाद्य पदार्थीे की देन है कि आज किशोरावस्था में ही बच्चों को कहीं कैंसर हो रहा है तो कहीं उनकी आंखें कमजोर हैं, कोई पीलिया का शिकार है तो कोई हृदय रोग से प्रभावित है। आज के बच्चों की शारीरिक दशा देखकर ही उनपर दया आती है। कोई बच्चा बाहरी प्रदूषित वस्तुएं खाकर जरूरत से ज्यादा मोटा हो जाता है या फिर उसका शरीर कंकाल सा प्रतीत होता है। इन सब बातों का मूल कारण केवल खान-पान ही है। और हालात इस हद तक बदतर हो चुके हैं कि लाख चाहने के बावजूद कोई भी व्यक्ति स्वयं को इन चीजों से सुरक्षित भी नहीं रख सकता।
सवाल यह है कि जिस भावी युवा पीढ़ी के हाथों हम देश के भविष्य की बागडोर सौंपने की तैयारी कर रहे हैं, हमारे देश की सरकारें जिनके भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए शिक्षा व स्वास्थय संबंधी तरह-तरह की योजनाएं बनाती रहती है, जिन बच्चों के अऋारह वर्ष की आयु पूरे होने का राजनैतिक पार्टियां सिर्फ इसलिए इंतजार करती हैं कि यह नए युवा मतदाता अगले चुनाव में उनकी ओर आकर्षित हों और उनके पक्ष में मतदान करें। क्या उन्हीं राजनैतिक दलों, राजनेताओं तथा सत्ताधीशों की यह जिम्मेदारी नहीं कि वे यह सुनिश्चित करें कि बाजार में ऐसी कोई भी वस्तु, कोई भी खाद्य सामग्री बिकने न पाए जिनके इस्तेमाल से किसी देशवासी के स्वास्थय को रत्ती भर भी नुकसान पहुंचता हो? यदि देशवासियों का तन-मन स्वस्थ नहीं होगा तो हम स्वस्थ समाज व स्वस्थ भारत की कल्पना ही कैसे कर सकते हैं? हमारे देश में इंतेहा तो यह है कि सड़ी-गली और जहरीली व रासायनिक विधियों द्वारा तैयार की गई वस्तुएं तो बिकती ही हैं इसके अतिरिक्त यही वस्तुएं मंहगे दामों पर भी बेची जाती हैं और मौका लगने पर दुकानदार इन्हें कम तौलने की कोशिश भी करता है। लगभग पूरे देश का उपभोक्ता इस समय सब्जी व फल उत्पादकों से लेकर दुकानदारों तक की इस घिनौनी साजिश का शिकार है परंतु चूंकि आम ग्राहक एक असंगठित समाज का सदस्य है इसलिए वह पैसे खर्च करने के बावजूद जहरीली खाद्य सामग्री खरीदने के लिए मजबूर है।
इन हालात में यह शासन-प्रशासन तथा सरकार का दायित्व है कि वह देश के लोगों को ऐसा जहरीला नेटवर्क चलाने वाले लोगों के चंगुल से बचाएं। साथ-साथ स्वयंसेवी संगठनों को भी इस विषय पर यथाशीघ्र सक्रिय होने की जरूरत है। जहां कहीं भी फलों व सब्जियों के उत्पादन में टॉक्सिन अथवा दूसरे जहरीले इंजेक्शन अथवा रसायन का प्रयोग किया जाता हो या जिन गोदामों में कारबेट अथवा इन जैसे दूसरे रसायनों के माध्यम से फलों को जल्द पकाने का काम किया जाता हो उन खेतों व गोदामों का पर्दाफाश किया जाना जनहित में जरूरी है। इसके अतिरिक्त देश के कानून में भी इस विषय पर और अधिक सख्ती लाए जाने की जरूरत है। क्योंकि इस प्रकार के अपराध कोई अनजाने में किए जाने वाले अपराध की श्रेणी में नहीं आते बल्कि ऐसे अपराध केवल समय पूर्व अधिक धन कमाए जाने की खातिर किए जाने वाले सुनियोजित अपराध हैं। और इन अपराधों के परिणामस्वरूप देश के आम नागरिक न केवल गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं बल्कि ऐसी ही संगीन बीमारियों के चलते लोगों को अपनी जानें भी गंवानी पड़ती हैं। लिहाजा जिस प्रकार कई देशों में ऐसा गुनाह करने वालों के विरुद्ध मृत्यु दंड तक का प्रावधान है उसी प्रकार भारत में भी कड़ी सजा तथा इसे गैर जमानती अपराध की श्रेणी में डाले जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि आम लोगों की जान से खेलने की इनकी आदतों पर लगाम लगाई जा सके। और जब तक ऐसा नहीं होता तब तक देश की जनता निश्चित रूप से यह सोचने को मजबूर है कि आखिर हमें कहां और कैसे मिलेगा पौष्टिक आहार?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,859 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress