आकाश कुमार
पाँच वर्ष पूर्व की बात है। सोलहवीं लोकसभा का आगाज हुआ ही था। सभी कद्दावर नेता अपने अपने क्षेत्र में जुगलबंदी करते हुए नजर आ रहे थे। कोई अपने अतीत के किस्सों का गुणगान कर रहा था। तो कोई दूरदर्शक बनकर आगामी दिनों में खोया हुआ था। कोई दिन रात घर से बाहर था। तो कोई घर से बाहर निकल नहीं पा रहा था। दस साल पूरे कर चुकी तत्कालीन सरकार एक बार फिर से गद्दी की दौड़ लगा रही थी। उनके अलावा सत्ता की गद्दी के दर्शन को बाकी लोग भी बेबाकी से उतारू थे। किसी ने युवावस्था में राजनीति हुंकार भरनी शुरू कर दी थी। तो कोई अपने अंतिम चरण में दौड़ रहा था। तभी अधरानी उम्र के एक व्यक्ति की आवाज सुनाई पडी। और वो आवाज थी। सबका साथ सबका विकास। अच्छे दिन आने वाले हैं। देश के कोने कोने में अपनी पकड़ मजबूती से बनाने वाली इस आवाज का विकास भी उतनी तेजी से हुआ। जितना कि वह सोच रहे थे। मतदान हुआ, नतीजे आये। फैसला भी सबके विकास की बात होने की वजह से सबके साथ ही गया। जनता ने बहुमतों से सरकार बनाने का न्यौता भी दिया। सरकार बनी सरकार चली। समय बीता,विकास कार्यों की नींव रखने की शुरुआत हुई। गंगा से लेकर गोदावरी तक, जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक, कालीकट से लेकर म्यामार और अरुणाचल प्रदेश के कोने कोने में विकास गया। और ऐसा नहीं के वह गया और घूम कर वापिस लौट गया। उसने मजबूती से देश के कोने कोने की ताक झाँक की और फिर अपने तलवे जमाने शुरू कर दिये। आकाश पाताल, जल -थल, सड़क, बिजली, पानी, रसोई, किसान, मजदूर, अमीर, गरीब, आम और विशेष सभी लोगों को सम्मान देने और काम देने का प्रयास किया। जितना हो सका उम्मीद से ज्यादा किया। घर के अंदर और बाहर जो लोग चुनाव हारने के बाद पूरे पाँच साल बेड पर लेटे हुए अंगड़ाई तोड़ते रहे। उनकी सोच से परे होकर चुनाव जीतने वाला अपने सोने की फिक्र करना भूल गया। न गलत किया न होने दिया। बेदाग छवि ईमानदार और योग्य साथियों के साथ ईश्वर की अनुकम्पा से पूरे पाँच साल व्यतीत किये। सोलहवीं लोकसभा का समय पूरा हो चुका था। सत्रहवीं लोकसभा के लिए एक बार फिर वही आवाज अपने अतीत के किये कार्यो की रक्षा और सुरक्षा करने की उम्मीद से चौकीदार की भूमिका में हमारे बीच है। उम्मीद है अबकी बार फिर एक नए जोश और जनून के साथ लोगो का स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त होगा। क्योंकि समाज के जागरूक लोगों को उनके किये कार्यो और अपने भविष्य को लेकर कुछ तो प्रश्न जरूर होंगे। जिनका जवाब सिर्फ चौकीदार के पास ही मिल सकता है। पहले के मुकाबले अब परिवार भी बढ़ा है। लोगों की मानसिकता बदली है। कुछ ही लोग मिलेंगे जो अपनी जेब गर्म करने में असफल रहे और इसी कारण विपक्ष की सेना में जा खड़े हुए। लेकिन सत्ता सुख के लिए उन्हें अभी शायद लगभग दस वर्ष कुर्सी लगाने ओर उठाने का काम करना पड़ेगा। क्योंकि जिन्हें अभी भी अच्छे दिन की तलाश है। उन्हें अच्छे दिनों की अनुभूति का आनंद दिलवा सकें। वरना अच्छे दिन की तलाश किसे है? हमारे किसान, जवान और नोजवान सुबह निसंकोच भयमुक्त होकर अपने अपने काम को निकल रहे हैं। इससे ज्यादा अच्छे दिन हमारे लिए और क्या हो सकते हैं।
अच्छे दिनों की तलाश तो कांग्रेस व उसके नेताओं को है जिन्हें सत्ता से बाहर रहना गवारा नहीं है और सत्ता में रह कर भ्रस्टाचार मचाना जिन की फितरत बन गयी है इसलिए राहुल बाबा व अन्य सब तिलमिलाए हुए हैं