भारत में कौन बनेगा जूलियन असांजे, कौन करेगा विकिलीक्‍स

2
209

अविनाश दास

फेसबुक पर टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने एक सोसा छोड़ा कि भारत का विकिलीक्‍स कौन हो सकता है। उन्‍होंने कुछ वेबसाइट्स के नाम भी गिना दिये। कई लोगों ने बता भी दिया कि ये ये हो सकते हैं। यह भी हमारे समय और समाज की विचित्रता का एक उदाहरण ही है कि अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर जो घटना सबसे अधिक झकझोरने वाली हो और जिसने धरती के सबसे शक्तिशाली साम्राज्‍य के आत्‍मविश्‍वास पर हमला किया है – उसकी एक संभावित प्रतिकृति हम अपने आस-पड़ोस में सोचने लगते हैं। हमारे यहां सरकारी दस्‍तावेजों की जानकारी हासिल करने के लिए सूचना का अधिकार है और इसका इस्‍तेमाल करना धीरे-धीरे लोग जान रहे हैं। आरटीआई पर रवीश के ही चैनल ने रिपोर्टिंग की एक सीरीज चलाया था। बाद में हमने देखा कि कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्‍या कर दी गयी। पुणे के सतीश शेट्टी और बेगूसराय के शशिधर मिश्रा ऐसे ही कार्यकर्ता थे।

कॉरपोरेट्स पर अभी सूचना का अधिकार कानून लागू नहीं है। इसलिए वहां की बदबू बाहर नहीं आ पाती है। लेकिन कहीं से कोई सूचना वहां से निकलती है, तो लोगों का गुस्‍सा भी संगठित होकर निकलता है। मोहल्‍ला लाइव पर इसी साल मार्च महीने में हमने डेनमार्क की एक कंपनी के भारतीय प्रोजेक्‍ट की कुछ अंदरूनी कहानी निकाली थी, विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियां : शोषण की नयी कहानी तो दुख भरी दास्‍तान सुनाने वाले कर्मचारियों का तांता लग गया। तो जब इंतहां हो जाती है, लोग सामने आने लगते हैं। अगर अभी तक भारत में कॉरपोरेट्स की गुंडागर्दी से पर्दा नहीं उठ रहा है, तो मान कर चलिए कि उनकी बेहयाई अभी अपने क्रूर रंग में आने से बची हुई है।

विकिलीक्‍स जैसा कुछ करने के लिए मंशा चाहिए। वह हमारी नहीं है। हम किसी भी सच्‍चाई से ज्‍यादा खुद से प्‍यार करते हैं – यह सच है। और विकिलीक्‍स माध्‍यमों (प्रिंट, ध्‍वनि, टीवी, वेब) का मसला नहीं है – वह सच्‍चाई से कुर्बान हो जाने की हद तक प्‍यार करने का मसला है। ये जिद जब किसी में आएगी, तो वह किसी भी माध्‍यम का इस्‍तेमाल करके विकिलीक्‍स जैसा काम कर जाएगा।

हमारे यहां और हमारे पड़ोस में कई सारी ऐसी चीजें हैं, जिसके दस्‍तावेजों को खोजा जाना चाहिए। बल्तिस्‍तान का मसला, कश्‍मीर पर सियासी फायदों से जुड़े रहस्‍य, मणिपुर को लेकर सरकारी पॉलिसी, युद्धों में आदेशों की फाइलें, गुजरात, 26/11… हमारे सामने किसी का भी पूरा सच मौजूद नहीं है। हमारे टेलीविजन सरकारी जबान को ही सच मानते हैं और जो सूत्रों से जानते हैं, उनमें विस्‍मयादिबोधक चिन्‍ह लगाते हैं। अपनी तरह से सच तक पहुंचने की जहमत नहीं उठाते।

एक बात यह भी है कि हम गरीब देश हैं और हमारे यहां अपनी दिलचस्पियों के साथ वयस्‍क होने की इजाजत नहीं है। हम दूसरों की उम्‍मीदों के हमदम होते हैं और हमारी ख्‍वाहिशों का कोई मददगार नहीं होता। हम हिंदी पढ़ते-पढ़ते साइंस पढ़ने लगते हैं। पत्रकारिता करते करते पीआर करने लगते हैं और आंदोलन करते करते संसद खोजने लगते हैं। ऐसे में कौन बनेगा जूलियन असांजे, एक अजीब सवाल है और फिलहाल तो विकल्‍प गिनाने के नाम पर दूर-दूर तक कोई प्रतीक भी नहीं है।

2 COMMENTS

  1. aapka aakrosh samvedhansheel hai aapki talk aawaj is bat ki takrir hai ki koito hai jo is andhi bahari vavastha ko chunoti de raha hai .jis din janta ke sabra ka bandh toot jayega , dekhana mere dost ye pura mahol hi badal jayega .

  2. भारत के पास पोशीदा क्या है ?भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों की तमाम मेहनत पर पानी फेरने के लिए -कितने रवि इन्दर सिंह .कितनी माधुरी गुप्तानियाँ .कितने रादियायें ,कितने जयचंद और कितने मीरजाफर इफरात से सत्ता के गलियारों से लेकर दौलत वालों की चौखट पर मिल जायेंगे इनसे .यदि भारत में कुछ भी गोपनीय बचा हो तो वो ख्याल भी दिल से निकाल दें .यहाँ से सब कुछ पारदर्शिता .सूचना के अधिकार की भेंट चढ़ चूका है .पाकिस्तानी एजेंट्स .अमिरीकी {सी आई एय ]और उल्फा आतंकवादिओं के पास सारी सूचनाएँ उपलब्ध है
    यहाँ सब कुछ दीखता है सब कुछ बिकता है .खरीदने वाला चाहिए .भारतीय पूंजीवादी व्यवस्था के लाखों रंग …कौनसा रंग देखोगे ?….
    विकिलीक्स के असान्ज तो यौन उत्पीडन के इल्जाम में जेल की हवा खा रहे हैं …जबकि भारत में सुब्रमन्यम स्वामी .प्रशांत भूषन जैसी शख्सियतें बा अदब बा मुलाहिजा -बदस्तूर हमले किये जा रहे हैं …देश को तय करना है की ये हमले सत्ता प्रतिष्ठान पर है या की देश पर ?
    .

Leave a Reply to shriram tiwari Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here