अधीर क्यों हैं राहुल और सोनिया?

rahul1ज्यों ज्यों चुनाव परिणाम आने का वक्त नजदीक आता जा रहा है, त्यों-त्यों कांग्रेस और भाजपा नेताओं की पेशानी पर बल पड़ता जा रहा है। चुनाव की घोषणा होने से पहले तक क्षेत्रीय दलों और वामपंथी दलों के तीसरे मोर्चे को हवा में उड़ाने वाले तथाकथित दोनों बड़े दल अब परेशान हैं और ताज्जुब की बात यह है, कि जैसे-जैसे 16 मई नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे सोनिया और आडवाणी जी की सुर लहरी एक सी हो रही है और दोनों के हमले अब तीसरे मोर्वे पर ही हो रहे हैं।हाल ही में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक सभा में कहा कि उन्हें अभी प्रधानमंत्री न बनाया जाए, वह तो अभी संगठन में काम करना चाहते हैं। सुनने में राहुल का बयान बहुत अच्छा है और उनकी मां की तरह ही त्याग भरा वक्तव्य है। लेकिन सवाल यह है कि राहुल जी आपको प्रधानमंत्री बनाने कौन जा रहा है, जरा यह भी तो बताते? प्रधानमंत्री बनने के लिए 272 का जादुई आंकड़ा कांग्रेस कहां से ला रही है? फिर आपको बनाया जाए या न बनाया जाए, आपके इस वक्तव्य का क्या अर्थ है?

राहुल अभी सीधे हैं और नौसिखिया हैं, इसलिए सच बोलने में परहेज कम ही करते हैं। उन्होंने अपने मन में पल रही इच्छा को दबाने का प्रयास नहीं किया। ऐसे में जब उनकी मां दहाड़ रही थीं कि तीसरा मोर्चा सत्ताा की बंदरबांट के लिए बना है, राहुल ने बड़ी ईमानदारी से कुबूल कर लिया कि प्रधानमंत्री बनने के लिए उनके मन में भी लड्डू फूट रहे हैं। राहुल ने साफगोई से कहा कि ‘अभी’ उन्हें प्रधानमंत्री न बनाया जाए। इस ‘अभी’ का मतलब साफ है, कि उन्हें प्रधानमंत्री तो बनाया जाए लेकिन अभी नहीं। राहुल समझदार हैं, और न भी हों, तो केंद्र सरकार के गार्जियन होने के नाते आईबी और अन्य गुप्तचर ब्यूरो की रिपोर्ट उन्हें मिल ही गई होंगी और उन्हेें मालूम हो गया होगा, कि कांग्रेस इस बार कुल जमा 135 सीटें ला रही है। ऐसे में वह कहां से प्रधानमंत्री बन जाएंगे, यह वह अच्छी तरह जानते हैं। राहुल जानते हैं, कि कांग्रेस की भद्द पिटनी है, तो क्यों वह हार का ठीकरा अपने सिर फोड़ें, इसके लिए तो मनमोहन ही बेहतर रहेंगे।

राहुल के बयान से कई प्रश्न खड़े हो गए हैं। राहुल को शायद याद न हो, क्योंकि वह उस समय बच्चे रहे होंगे और उनके पिता भी उस समय राजनीति में नहीं आए थे, जब उनकी दादी स्व. इंदिरा गांधी ने कांग्रेस में जारी ‘एक व्यक्ति-एक पद’ के सिध्दान्त को तोड़कर कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री दोनों पद अपने पास रखने की शुरूआत की थी, जिसे बाद में राहुल के पिता स्व. राजीव गांधी ने आगे बढ़ाया और स्व. पी.वी. नरसिंहाराव ने भी उस पर अमल जारी रखा। स्वयं सोनिया गांधी जिस समय प्रधानमंत्री बनने का दावा करने राष्ट्रपति के पास गई थीं, उस समय भी वह कंाग्रेस अध्यक्ष थीं और अगर दुर्भाग्य से वह प्रधनमंत्री बन जातीं, तो जो त्याग उन्होंने प्रधानमंत्री न बनकर दिखाया, वैसा त्याग वह कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छोड़कर नहीं दिखा सकती थीं।

राहुल गांधी अगर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं, तो बुरी बात नहीं हैं, लोकतंत्र में यह ख्वाब देखने का हक किसी भी व्यक्ति को है। लेकिन ख्वाब देखने और देश चलाने में बड़ा अन्तर है। देश चलाने के लिए केवल खूबसूरत गांधी होने से ही काम नहीं चलता। उसके लिए अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, विदेश नीति का अच्छा ज्ञान होना भी आवष्यक है। लगता नहीं कि राहुल ने यह शब्द कभी सुने भी होंगे। देश का नेतृत्व करने के लिए विजन चाहिए, फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा, लेकिन क्या राहुल के पास कलावती और फूलवती के नाटक के अलावा कोई विजन है? यह अलग बात है कि कोई स्व. राजीव गांधी की नीतियों से सहमत हो या न हो, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजीव जी के पास एक देश के लिए एक विजन था। लेकिन राहुल के पास क्या है। राहुल अभी तक अटक-अटक कर दूसरों का लिखा भाषण पढ़ते हैं, जबकि उनसे ज्यादा तो उनकी मां की भाषा पर पकड़ है।

सवाल यह है कि जब प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी, सुशील कुमार शिंदे, दिग्विजय सिंह जैसे सीनियर नेताओं को धता बताकर कल ही राजनीति में आया एक नया लड़का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख सकता है, तो सोनिया जी को मायावती, देवेगौड़ा, जयललिता, लालू, मुलायम या तीसरे मोर्चे के किसी अन्य नेता के प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब पर इतना अधिक गुस्सा क्यों आता है, कि वह आडवाणी जी की भाषा बोलने लगती हैं। आडवाणी जी कह रहे थे कि तीसरे मोर्चे के पास प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं है, सोनिया जी भी यही बोलने लगीं। लेकिन आडवाणी जी तो ठीक है, कि नागपुरी जमात से हैं, उनका और लोकतंत्र का 36 का आंकड़ा है, लेकिन सोनिया जी को यह क्या बीमारी लग गई?

सोनिया जी से सवाल पूछा जा सकता है कि क्या 2004 में कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ा था? नहीं न? 2004 के चुनाव में तो सोनिया उम्मीदवार थीं। फिर मनमोहन क्यों बन गए? क्या इस बात से यह मान लिया जाए कि कांग्रेस ने जनता के साथ इस मुद्दे पर धोखा किया? इसी तरह 1991 में पी.वी. नररिंहाराव को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया था।

अभी बमुश्किल छह माह नहीं हुए होंगे जब मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए थे। तब भी भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए थे, लेकिन आज मनमोहन को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने वाली कांग्रेस ने तब तर्क दिया था कि लोकतंत्र में मुख्यमंत्री तय करना विधायकों का अधिकार है और चुनाव के बाद संसदीय दल नेता तय करेगा। आखिर छह माह में ही वह कौन सी परिस्थितियां बन गईं, कि सोनिया जी अब मनमोहन को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करके तीसरे मोर्चे पर नाहक गुस्सा हो रही हैं, कि उसने अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। सोनिया जी आडवाणी की चाल में फंस चुकी हैं।

-अमलेन्दु उपाध्याय
द्वारा एस सी टी लिमिटेड
सी-15, मेरठ रोड इंडस्ट्रियल एरिया
गाजियाबाद

(लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और पाक्षिक पत्रिका ‘प्रथम प्रवक्ता’ के संपादकीय विभाग में कार्यरत हैं।)

फोटो- प्रदीप मेनन

2 COMMENTS

  1. चुनाव २००९ एक ऐसा तिलस्म है ,जिसके रहस्य राजनैतिक दलो के आका भी समझ पाने मे नाकाम रहे है , इसलिए बेचैनी सिर्फ श्रीमति सोनिया गाधी जी ,राहुल गाधी जी मे नही है ,बल्की अन्य राजनेता भी उनसे भी ज्यादा बेताब है ,भारतीय जनता पार्टी के पी.एम.इन वेटिग श्री आडवाणी जी इस चुनाव को अपने लिए प्रधानमन्त्री बनने का अन्तिम अवसर मानकर अपना सर्वस्व दॉव पर लगा दिया है और शायद यही भय काग्रेस की मुखिया श्रीमति सोनिया जी को भी है कि अगर इस बार काग्रेस के हाथो से सत्ता की डोर निकल गयी तो ,वापसी मे लम्बा समय लग सकता है ,पर एक बहुत बारीक अन्तर जरुर है – जहॉ श्री आडवाणी जी सारे प्रबन्ध , खुद को सामने रख कर रहे है ,वही श्रीमति सोनिया गाधी जी ने श्री मनमोहन सिह को आगे करके रखा है . काग्रेस और भाजपा या कथित एन.डी. ए. और यू.पी.ए. के बीच चल रही सत्त्ता की जग मे वामपन्थी भी अपनी रोटी सेकने के लिए तैयार है उन्हे लगता है कि अगर काग्रेस कमजोर हुई तो इस बार भाजपा के रथ को रोकने के लिए काग्रेस के समर्थन से एक ऐसे दल और राजनेता के हाथो सत्ता की कमान थमाने मे कामयाब हो जायेगे जो उनके लिए काग्रेस से ज्यादा अनूकुल हो !इसके लिए उन्होने बहुजनसमाजपार्टी की प्रमुख उत्तरप्रदेश की मुख्यमन्त्री सुश्री मायावती जी के साथ -साथ अन्ना-द्रुमुक की नेता सुश्री जयललिता जी तक पर नजर दौडायी है परन्तु समाजवादी पार्टी के नेता श्री मुलायम सिह यादव जी ,राजद के मुखिया श्री लालू प्रसाद यादव जी ,लोजपा के श्री रामविलास पासवान जी के चौथे मोर्चे ने उनकी सोच को सकट मे डाल दिया है परन्तु इस खेल -तमाशे ने जनता दल यू के नेता और बिहार के मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार के लिए भी अवसर पैदा कर दिये है और उन्होने भी सियासी बिसात पर अपनी चाले चल दी है .बिना किसी मुद्दे के हो रहे चुनाव मे मतदाताओ की अरुचि ने भी अनेको नये राजनैतिक समीकरण तैयार कर दिये है जिन्हे पार पाना हर राजनेता या राजनैतिक दलो के लिए सभव भी नही है इसलिए राजनैतिक -गलियारे मे गर्मी ,बेचैनी ,अधीरता ,सभी मे व्याप्त है और श्रीमति सोनिया गाधी जी ,राहुल गाधी जी भी इसके अपवाद नही है.

    जावेद ऊस्मानी
    बिलासपुर,६त्तीसगढ़

  2. क्या चाचा? राहुल भैया से इत्ती परेशानी क्यों है आपको? आपकी पत्रिका को एड-वैड नहीं दिया? भाई लायक बाप-दादी-परनाना की लायक औलाद हैं फिर अगर इंदिरा गांधी वरिष्ठ कांग्रेसियों के और राजीव गांधी वरिष्ठ कांग्रेसियों के होते प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो राहुल बाबा क्यों नहीं? शरद पवार और लालू इतनी सीटें ला रहे हैं कि प्रधानमंत्री पद का दावा करें? चाचा, पोल-गणित सब को पढ़ाते हो खुद तो पढ़ो. या फिर खुद की ही पत्रिका पढ़ रहे हो आजकल सिर्फ?

    जलन भरा लेख लिखा है, मत जलो, पानी पी लो.

    राहुल बाबा प्रधानमंत्री बन के रहेंगे और वो भी इसी बार, है तुममें दम तो रोक लेना

    जय कांग्रेस
    जय हो

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