मतदाताओं ने गुरुवार के मतदान से राज्य की तमाम पार्टियों को अचंभित कर दिया है। कहीं अधिक तो कहीं फीका मतदान कर उसने साफ संकेत दिया है कि राज्य में एक-तरफा वोटिंग नहीं हुई है। इससे दोनों प्रमुख पार्टी भाजपा और कांग्रेस के लिए नतीजों की प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है। वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव गर्मी के भीषण प्रकोप के लिए भी जाना जायेगा।राज्य में 40 डिग्री के आसपास पारा रहा। कहीं-कहीं तो यह 45 से 46 डिग्री के बीच भी रहा। लेकिन मतदाताओं को जहां अधिक वोटिंग करनी थी, वहां गर्मी की प्रचंडता उन्हें रोक नहीं पायी। और लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया। 26 सीटों पर गुजरात में तीन सीटों का नामकरण इस बार बदल गया है। मांडल की जगह बारडोली और धंधूका की जगह अहमदाबाद पश्चिम के रूप में दो नये सीट बने हैं। दक्षिण गुजरात में एक नया सीट नवसारी बना है। वहीं कपडगंज नामक सीट उत्तर गुजरात से समाप्त हो गया है, जहां से पिछली दफा केंद्रीय कपडा मंत्री शंकरसिंह वाघेला चुनाव लडे थे। इस बार वे पंचमहाल से चुनाव लड रहे हैं।
बहरहाल वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में वोटों के परसेंटेज को देखे तो इस बार औसत मतदान पूरे राज्य भर में लगभग 1 फीसदी अधिक रहा। वर्ष 2004 में 1 से 5 फीसदी के मतों से जीत हारवाली सीटों की संख्या 8 रहीं, जिसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास ही चार-चार सीटे कब्जा में थी। इसके अलावा एक सीट धंघुका भी रही जो कि अब अहमदाबाद पश्चिम के रूप में अस्तित्व में आयी है। यह सीट पिछली बार भाजपा के रतिलाल वर्मा ने जीती थी। वहीं 6 से 10 फीसदी के मतों से जीत-हार वाली सीटों की संख्या भी 8 थी। यहां भी दोनों ही प्रमुख पार्टी को 4-4 सीट प्राप्त हुए थे। 11 से 15 फीसदी के मतों से जीत-हार वाली सीटों की संख्या 7 थी। यहां नये सीमांकन से अस्तित्वविहीन हुई मांडवी और कपडगंज की दो सीटों पर भी इसी अंतर से जीत हार हुए थे। यहां भाजपा को 5 और कांग्रेस को 4 सीटें झोली में गयी थी। इस बार का मतदान प्रतिशत भी बराबरी का मुकाबलें से संबंधित संकेत देता है। जहां-जहां पिछली दफा 1 से 5 फीसदी के मतों से जीत-हार का फैसला हुआ वहां दो सीट जामनगर और बारडोली में मतदान में वृध्दि दर्ज की गयी, बाकी पोरबंदर, अमरेली, मेहसाणा, पाटण, बनासकांठा ओर दाहोद में मतदान कम हुआ।
दूसरी तरफ जिन सीटों में वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में जीत-हार का फासला 6 से 10 फीसदी का रहा वहां 9 में से 7 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत अप्रत्याशित रूप से बढा हुआ देख गया। कच्छ (2004 में बीजेपी जीती), सुरेंद्रनगर (2004 में बीजेपी जीती) पर मतदान कम रहा। वहीं जूनागढ, साबरकांठा, पंचमहाल, छोटा उदयपुर, सूरत और बलसाड में मतदान तेज रहा। इनमें बलसाड, छोटाउदयपुर, साबरकांठा और जूनागढ कांग्रेस के पास थी, जबकि सूरत और पंचमहाल की सीट बीजेपी ने अपने कब्जे में रखा था। 11 से 15 फीसदी के मतों से जीत-हार वाले सीटों पर भी तीन सीट भरूच, आंणद, और राजकोट में मतदान कम रहा, जबकि भावनगर, अहमदाबाद, गांधीनगर और खेडा में मतदान अधिक रहा। वर्ष 2004 में राजकोट, अहमदाबाद, भावनगर, गांधीनगर और भरूच भाजपा के पास थी, जबकि खेडा और आणंद की सीट कांग्रेस के पास थी। यानी जिस 11 सीटों पर इस बार वोटिंग घटा उसमें से 6 भाजपा के पास थी और 5 कांग्रेस के पास थी वहीं जिस 12 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत बढा उसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के पास छह-छह सीटें थी।
आंकडे और मतों का प्रतिशत इस बार यह संकेत दे रहा है कि मतदाताओं ने बिना किसी लहर की परवाह कर वहीं निर्णय दिया है जो कि वह बेहतर समझता है। मतदाताओं के संकेतों को यदि समझने की कोशिश की जाये तो यह भी सामने आता है कि उसने तराजू पर भाजपा और कांग्रेस को अलग-अलग पलडों पर रखकर तौलने की कोशिश की है। अब देखना यह है कि 16 मई के दिन पलडा किस ओर झुकता है।
-बिनोद पांडेय
(लेखक हिंदुस्थान समाचार, गुजरात से संबंद्ध हैं)