भ्रष्टाचार एवं अत्याचार की खिलाफत क्यों जरूरी?

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश

आज जबकि कदम-कदम पर लोगों के मान-सम्मान को बेरहमी से कुचला जा रहा है। अधिकतर लोगों के कानूनी, संवैधानिक, प्राकृतिक एवं मानव अधिकारों का खुलेआम हनन एवं अतिक्रमण हो रहा है। हर व्यक्ति को मनमानी, गैर-बराबरी, भेदभाव एवं भ्रष्टाचार का सामना करना पड रहा है।

विकलांग, वृद्ध, निःशक्तजन, छोटे बधे, बीमारों एवं महिलाओं को संरक्षण देना तो दूर, उनके प्रति लोगों में संवेदनाएँ ही समाप्त होती जा रही है। अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर परिवार का पालन करने हेतु व्यवसाय करने वाले व्यवसाईयों को भी हफ्ता व कमीशन देना, मजबूरी हो चुका है।

गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवन जीने वाले परिवारों के राशन की कालाबाजारी करने के अपराधी-अभाव व तंगहाली का जीवन जीने वाले लोगों को समाज के विरुद्ध अपराध करने को मजबूर कर रहे हैं।

रसोई-गैस सिलेण्डरों की सरेआम कालाबाजारी एवं उनका व्यावसायिक उपयोग करने वाले कुछ चालाक लोगों की मनमानी के कारण देशभर में समस्त रसोई गैस उपभोक्ता, महंगी रसोई गैस की मार झेलने को विवश हैं।

जनता की सेवा के लिये नियुक्त लोक सेवक (पब्लिक सर्वेण्ट) जनता के मालिक बन बैठे हैं और जनहित के लिये स्वीकृत बजट से अपने ऐश-ओ-आराम के साधन जुटा रहे हैं।

ऐसी अनेकों प्रकार की नाइंसाफी, मनमानी एवं गैर-कानूनी गतिविधियाँ केवल इसलिये ही नहीं चल रही हैं कि सरकार एवं प्रशासन में बैठे लोग निकम्मे, निष्क्रिय और भ्रष्ट हो चुके हैं, बल्कि ये सब इसलिये भी तेजी से फल-फूल रहे हैं, क्योंकि हम आजादी एवं स्वाभिमान के मायने भूल चुके हैं।

सच तो यह है कि हम इतने कायर, स्वार्थी और खुदगर्ज हो गये हैं कि जब तक हमारे सिर पर नहीं आ पडती, तब तक हम इनके बारे में सोचते ही नहीं!

इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि गैर-कानूनी कार्यों में लिप्त लोगों के राजनैतिक एवं आपराधिक गठजोड की ताकत के कारण आम व्यक्ति इनसे बुरी तरह से भयभीत हैं और इनका सामना करने की सोचते हुए भी डरने लगता हैं।

यह जानते हुए भी कि सर्प चूहों को अक्सर उनके बिलों में ही दबोचते हैं। फिर भी हम चूहों की तरह अपने घरों में, स्वयं को पूरी तरह सुरक्षित समझ कर दुबके हुए हैं।

अकेला व्यक्ति अपराधी तत्वों से टक्कर नहीं ले पाता है, कुछ अन्य लोग इस सोच के चलते, कि अभी तक अपना घर तो सुरक्षित हैं, जब सामना होगा तो देखा जायेगा, चुपचाप सहमे, डरे और दुबके हुए बैठे रहते हैं?

लेकिन क्या हम उस दिन के लिये पहले से सुरक्षा कवच बना सकते हैं, जिस दिन-

-हम या हमारा कोई अपना, बीमार हो और उसे केवल इसलिये नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवायें उन अपराधी लोगों ने नकली बनायी हों, जिनका हम विरोध नहीं कर पा रहे हैं?

-हम कोई अपना, किसी भोज में खाना, खाने जाये और खा वस्तुओं में मिलावट के चलते, वह असमय ही तडप-तडप कर बेमौत…!

-हम कोई अपना, बस यात्रा में हो और बस मरम्मत करने वाले मिस्त्री द्वारा उस बस में नकली पुर्जे लगा दिये जाने के कारण, वह बस बीच रास्ते में दुर्घटना हो जाये और…?

-हम अपने वाहन में पेट्रोल या डीजल में घातक जहरीले कैमीकल द्रव्यों की मिलावट के कारण बीच रास्ते में वाहन के इंजन में आग लग जाये और…?

-जब हम या हमारा कोई आत्मीय किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण किसी अस्पताल में भर्ती हो और भ्रष्ट डॉक्टर बिना रिश्वत लिये तत्काल उपचार या ऑपरेशन करने से मना करे दे या लापरवाही, अनियमितता या विलम्ब बरते और…?

-जब हम या कोई आत्मीय रेल यात्रा करे और रेल की दुर्घटना हो जाये, क्योंकि रेल मरम्मत कार्य करने के लिये जिम्मेदार लोग मरम्मत कार्य किये एवं संरक्षा सुनिश्चित किये बिना ही वेतन उठाते हों! और दुर्घटना में…!

मित्रों हम में से अधिकतर यह नहीं जानते हैं कि समाज के केवल 10 प्रतिशत लोग ही भ्रष्ट, बेईमान एवं शोषक प्रवृति के हैं और केवल 10 प्रतिशत लोग ही उनके समर्थक हैं! क्या यह आश्चर्यजनक और शर्मनाक नहीं कि मुठ्‌ठीभर 20 प्रतिशत लोग, समाज के 80 प्रतिशत विशाल जनसमूह को बेरोकटोक लूट रहे हैं? क्या इन 80 प्रतिशत पीडित लोगों के मुंह में जुबान नहीं है?

मित्रों, यह भी सच है कि अनेक लोकतान्त्रिक निकायों तथा प्रशासन पर भ्रष्ट, बेईमान व शोषक लोगों के लगातार काबिज होते जाने के कारण, आम व्यक्ति इनमें आस्था तथा विश्वास खोता जा रहा है और इन सबके विरुद्ध वितृष्णा, क्षोभ एवं गुस्से से भी उबल रहा है, किन्तु एकजुटता व जागरूकता के अभाव में वह कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं।

यदि इन सभी लोगों को अपने साथ होने वाले अपमान और नाइंसाफी का अहसास कचोटने लगे और यदि ये 80 प्रतिशत लोग तन-मन-धन से एकजुट हो जावें, तो उनकी ताकत के सामने, बडे से बडे भ्रष्ट, बेईमान व शोषक लोग भी आसानी से घुटने टेक सकते हैं। क्योंकि जनतन्त्र में आम जनता की एकजुट ताकत को नकारना असम्भव है!

यदि हम नाइंसाफी के विरुद्ध, पूरी ताकत के साथ और दिल से बोलना शुरू करें, अपनी बात कहने में हिचकें नहीं, तो अभी भी बहुत कुछ ऐसा शेष है, जिसे बचाया जा सकता है, लेकिन यदि हम अभी भी चुपचाप, डरे, सहमें व दुबके बैठे रहे तो वह दिन दूर नहीं जबकि-

-आपको अपने मुकमदे की शीघ्र सुनवायी या शीघ्र फैसला करवाने के लिये भी शुल्क देना पडेगा !

-अस्मत लुटने पर भी पुलिस वाले रिपोर्ट लिखने से साफ इनकार कर दें और कहें कि पहले रिशवत दो, तब ही मुकदमा दर्ज होगा?

-राशन की दुकान वाला गरीबों को मिलने वाले सारे के सारे राशन को ही काला बाजारियों के हवाले कर दे और गरीब लोग भूख से तडत-तडप कर मर जायें?

-किसी साधारण या बीपीएल परिवार के व्यक्ति के बीमार होने पर, बिना रिश्वत दिये सरकारी अस्पताल में भी इलाज करने से साफ इनकार कर दिया जावे?

-आवासीय विद्यालयों में पढने जाने वाली छाताओं की, उनके विद्यालय संरक्षक स्वयं ही अस्मत लूटने और बेचने लगें ?

-सीमा पर तैनात सेना अधिकारी या कोई सेना अध्यक्ष पडौसी दुश्मन देश से रिश्वत लेकर, देश की सीमाओं को उस देश की सेनाओं के हवाले कर दें?

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

4 COMMENTS

  1. आदरणीय मीणा जी,धन्यवाद। क्यों कि, आपने सारी समस्याओं मूल खोज लाया है। इसको सुलझाना परमावश्यक है। यह हमारे र्‍हास का प्रमुख कारण है, जो C W G में भी उभरकर आया है, और इसे सुलझाए बिना, हम आगे बढना तो छोड दीजिए, यथावत स्थिति भी बचा नहीं पाएंगे, और पीछे हटते जाएंगे।
    फिर जनता हताश, हतोत्साहित हो जाएगी।अनर्थ, अराजकता, अव्यवस्था, फैलेंगे। Chaos और कलह फैलेगा। किसीका जूता किसी के पैर में होगा, कुछ पैर बिना जूते होंगे। यह हर विषय की कूंजि है। इसपर प्रवक्ता बहस करवाएं, तो और भी विचारवान पाठक अलग बिंदू सुजाएंगे।
    इसके पहलुओं का कुछ विश्लेषण मेरी समझमें जैसे आता है, निम्न है।
    भ्रष्टाचारके तीन प्रमुख प्रकार प्रतीत होते हैं।
    (१) भ्रष्टाचार,जो हर क्षेत्रमें विस्तृत रूपसे चादर की भांति फैला हुआ है।
    (रेल टिकट, वीसा, पासपोर्ट, टिप, इत्यादि)
    (२) वह जो किसी( हर )एक विभागीय अधिकारी से जुडा हुआ है।
    (लायसेन्स, परमिट, F I R, नौकरी देना, इत्यादि)
    (३) वह जिस से हर छोटे बडे काम को लंबित, या प्रलंबित किया जाता है।
    (४,५ इत्यादि) इसके और भी पहलु हैं, जो “अन्याय को आश्रय देते हैं।”
    राजनीति से न्याय व्यवस्थाको, दंड संस्था को, निर्वाचन को, प्रभावित करना भी भ्रष्टाचार ही है।
    (४,५) को छोडकर, इसे मैं आगे बढाता हूं।
    मेरा सुझाव:
    १(क) २(ख) भ्रष्टाचार “देनेवाला” और “लेनेवाला” दोनोसे पोषित होता है।देनेवाले प्रतिज्ञा करें कि देंगे नहीं। और किसी शासकीय कार्यालय के सामने ” कुछ देनेवाले पर्याप्त संख्यामें” धरना देकर इसे सीमित, और फिर समाप्त कर सकते हैं। ==> आंदोलन चलाया जाए।==> कुछ जनोंको यह त्याग करना ही पडेगायदि एक जगह भी होता है, तो यह आंदोलन फैल सकता है<==।
    ३(ग) भ्रष्टाचारका नियमन, नरेंद्र मोदी(किसीसे भी अच्छी बात सीखने में आपत्ति ना हो।) ने उसके ई गवर्नेन्स द्वारा किया है। हर माहके चौथे गुरुवारको, प्रदेशका हर नागरिक (स्वतः या किसी के द्वारा)लॉग ऑन करता है, अपनी समस्या टंकित करता है। १२ से ३ बजे तक विभागीय अधिकारी को विभागीय (अपना) उत्तर तैय्यार करके ३ से ४ बजे के एक घंटेमें, जब मोदी जी परदे पर,३नो विभा्गों के अधिकारी समेत सबके सामने आते हैं, समस्या का सुलझाव प्रस्तुत करते हैं। जो पीडित को स्वीकृत, होनेपर समाप्त होता है।
    आगे समय मिलने पर दूसरी टिप्पणी डालूंगा, (क्यों कि विषय समयोचित और मौलिक है। (मेरेसे छूट कैसे गया? समझ नहीं आ रहा)

  2. Main Dr.Meena se unke 20% wali baat se sahmat hote huye bhi unse purntaya samhat nahi hoon.Bache huye 80%logon mein se ve log bhi hain jinko awsar nahi mila aur awsar milte hi ve bhi wahi karenge jo doosre kar rahe hain.Jab tak ham logon mein ye pribirti nahi aayegi ki hame theek rahna hai doosre chahe jaisa rahe.Ham apne hak ke liye ladenge ,doosre mera saath de ya na de. Jab tak ham apne andar ka dar aur apne andar ka mail nahi nikaalenge tab tak koi bhi sudhaar sambhav nahi hai.
    Rahi bhrastachar ki baat, to jo le rahe hain kewal wahi bhrast nahi hain,jo de rahe hain ve bhi bhrast hain aur dono milaakar pratisat bahut jyada ho jayega.

  3. डॉ मीना साहब जी बिलकुल सही कह रहे है. आज कुछ मुट्ठी भर भ्रष्टाचारी, बेईमान लोगो ने बाकि लोगो की नाक में दम कर रेखा है. भ्रष्टाचार तो आज सरकारी टेक्स बन गया है. भ्रष्टाचार की जड़ तो नौकरशाही है. सरकारी नौकर जनता है की उसकी नौकरी तो पक्की है. भ्रष्टाचार की गंगा उपर से नीचे बह रही है.

  4. Sayad juban hoti to ye bolte jaroor. enka ek matra uddesya hote hai emandari se rahna ore khana esase adhik ore kuch nahin.

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