बात मुझे क्यों नहीं बताती ?

गौरेया

सुबह-सुबह से चें-चें चूँ-चूँ,
खपरैलों पर शोर मचाती।
मुर्गों की तो याद नहीं है,
गौरैया थी मुझे जगाती।

चहंग-चंहंग छप्पर पर करती,
शोर मचाती थी आँगन में।
उस की चपल चंचला चितवन,
अब तक बसी हुई जेहन में।
उठ जा लल्ला, प्यारे पुतरा,
ऐसा कहकर मुझे उठाती।

आँगन के दरवाज़े से ही,
भीतर आती कूद-कूद कर।
ढूँढ-ढूँढ कर चुनके दाने,
मुँह में भरती झपट-झपट कर।
कभी मटकती कभी लपकती,
कत्थक जैसा नाच दिखाती।

आँखों में तुम बसी अभी तक,
पता नहीं कब वापस आओ।
मोबाइल पर बात करो या,
लेंड लाइन पर फोन लगाओ।
किसी कबूतर के हाथों से,
चिट्ठी भी तो नहीं भिजाती।

तुम्हीं बताओ अब गौरैया,
कैसे तुम वापस आओगी।
छत, मुंडेर, खपरैलों पर तुम,
फिर मीठे गाने गाओगी।
चुपके से कानों में आकर,
बात मुझे क्यों नहीं बताती ?

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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