चुनाव आयोग की आंखें बन्द क्यों हैं?

-विपिन किशोर सिन्हा-
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भारत की सबसे चर्चित लोकसभा की सीट से नरेन्द्र मोदी का मुकाबला अरविन्द केजरीवाल से है। एक ओर मोदी के लिये प्रशासन तरह-तरह के प्रतिबन्ध और मुश्किलें खड़ी करने के किए संकल्पबद्ध है, तो दूसरी ओर केजरीवाल के लिए सहुलियतों का पिटारा खोलने में न तो उसे कोई संकोच हो रहा है और न कोई अड़चन। चुनाव आयोग ने भी आंखें बन्द कर रखी है। कुछ बानगी का वर्णन निम्नवत है

१. सुनीता केजरीवाल केन्द्र सरकार के आयकर विभाग में आयकर उप आयुक्त/आयुक्त हैं। वे अपनी पहली पोस्टिंग से लेकर आज तक, लगभग २० वर्षों से बिना किसी स्थानान्तरण के सोनिया गांधी की सिफ़ारिश पर दिल्ली में ही जमी हुई हैं। वे केजरीवाल की पत्नी हैं। किसी भी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी के लिये किसी भी राजनीतिक पार्टी का चुनाव करना वर्जित है। इन्दिरा गांधी का रायबरेली से लोकसभा का चुनाव इसी आधार पर १९७५ में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध घोषित किया था। उन्होंने कुछ केन्द्रीय कर्मचारियों की मदद अपने चुनाव-प्रचार के लिये ली थी। आहत इन्दिरा गांधी ने कुर्सी की रक्षा के लिये जून १९७५ में इमर्जेन्सी लगा दी। श्रीमती केजरीवाल पिछले एक महीने से बनारस में रहकर आम आदमी पार्टी का चुनाव प्रचार कर रही हैं। २५ मार्च को वे बेनियाबाग की रैली में सार्वजनिक रूप से देखी गईं, २६ मार्च को रोड शो में केजरीवाल के साथ उन्होंने जनता से संपर्क किया, २३ अप्रैल को रोड शो और नामांकन के दौरान वे आप की रैली में खुलेआम घूम रही थीं और दिनांक ९-५-१४ के रोड शो में भी आप और केजरीवाल का प्रचार सार्वजनिक रूप से कर रही थीं। वे नित्य ही आप के चुनाव कार्यालय में बैठकर चुनाव का संचालन करती हैं। क्या यह आदर्श चुनाव संहिता और कर्मचारी आचरण नियमावली का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन नहीं है? चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार इसपर आंख मूंदे हुए हैं।

२. स्थानीय प्रशासन और चुनाव आयोग ने नरेन्द्र मोदी को दिनांक ८-५-१४ को बेनिया बाग में रैली करने की इज़ाज़त नहीं दी। स्मरण रहे कि इसी प्रशासन ने केजरीवाल को २५ मार्च को बेनिया बाग में रैली करने दी और सारी सुविधायें मुहैया कराई।

३. जिस प्रशासन ने मोदी को खुले मैदान में आम सभा की अनुमति नहीं दी, उसी प्रशासन ने केजरीवाल को पक्का महाल की छतों पर सभा करने की इज़ाज़त दी है। पक्का महाल बनारस का वह हिस्सा है जो अति प्राचीन है और संकरी गलियों के लिये प्रसिद्ध है। इन गलियों में एक सांढ़ भी प्रवेश कर जाता है, तो ट्रैफ़िक जाम हो जाता है। मकान सैकड़ों वर्ष पुराने हैं। समझ में नहीं आता कि ऐसे मकानों की छत पर आम सभा की अनुमति प्रशासन ने कैसे दे दी? यह अलग बात है कि स्थानीय जनता ने केजरीवाल को एक भी छत उपलब्ध कराने से इन्कार कर दिया और केजरीवाल की योजना धरी की धरी रह गई।

४. दिनांक २३-४-१४ को केजरीवाल के कलेक्टेरेट में पहुंचने के बाद कुछ ही सेकेन्ड में उनका नामांकन पत्र ले लिया गया लेकिन इसी काम के लिये नरेन्द्र मोदी को ४५ मिनट तक खड़ा रखा गया जिसे सारे देश ने देखा। ऐसे में पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषन की याद आती है। उनके लिये सत्तारुढ़ और विपक्षी- सभी बराबर थे। क्या चुनाव आयोग की निष्पक्षता के वे दिन कभी लौटेंगे?

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