—विनय कुमार विनायक
आज क्यों इतना छुईमुई हो गया धर्म मजहब?
क्यों ईश्वर अल्लाह रब हो गया अलग अलग?
आज का आदमी आदमी से करने लगा नफरत,
आदमी आदमी रहा नहीं हो गया फिरकापरस्त!
आज ऐसा है माहौल कि चहुंओर जहरीला बोल,
आदमी काफिर कसाई होकर बन चुका माखौल!
अपनी मनमानी को खुदा की नाफरमानी कहते,
अब आदमी धर्म मजहब के नाम शैतानी करते!
अब तो आदमी सच्चरित्र नहीं किताबी होने लगे,
बात-बात में धर्म-मजहब-ग्रंथ की दुहाई देने लगे!
अब आदमी को आदमी से लगने लगा भारी डर,
आज एक दूसरे धर्मावलंबी पर मचाने लगे कहर!
आज आदमी को आदमी से तनिक प्यार ना रहा,
करते अपने मन का, कहते हैं खुदा ने ऐसा कहा!
अब लोग हमेशा बातें करने लगे काबा काशी की,
पर दिल में छुपाए बैठा एक छवि सत्यानाशी की!
अब आदमी ने नाचना गाना मुस्कुराना छोड़ दिया,
फितरत है कि खुद का ठीकरा खुदा पर फोड़ दिया!
ये आदमी इल्जाम लगाता खुदा पे अपनी खता की,
अब आसान नहीं जिंदगी व खुशनसीबी आदमी की!
आज आदमी का धर्म पंथ फिर से हथियार हो चुका,
आलम ऐसा है कि दोस्त का घर दोस्त ने ही फूंका!
—विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखंड814101.