क्यों उपेक्षित है फिरोज गाँधी की जन्मशती – प्रभात कुमार रॉय

यूपीए हुकूमत की वास्तविक बागडोर संभालने वाले सत्तानशीन नेहरु-गाँधी परिवार का एक अत्यंत तेजस्वी ऐतिहासिक किरदार रहा फिरोज गाँधी, जिसके साथ प्रियदर्शनी इंदिरा गाँधी का विवाह सन् 1942 में समपन्न हुआ था और पं. नेहरु की प्रियदर्शनी बेटी को इंदिरा नेहरु गाँधी का ऑफिशियल नाम मिला।12सितंबर 2012 को फिरोज गाँधी की जन्मशती वर्ष का आगाज हुआ, किंतु ना तो सत्तानशीन नेहरु-गाँधी परिवार ने और नाही देश के सोश्लिस्टों द्वारा फिरोज गाँधी को स्मरण किया गया, जिनकी कतारों में फिरोज गाँधी अपनी मृत्यु पर्यन्त 8 सितंबर 1960 तक शामिल रहे। राष्ट्रीय काँग्रेस की कयादत में संचालित यूपीए हुकूमत द्वारा नेहरु-गाँधी परिवार में जन्मे के सभी बड़े नेताओं को याद करने के सरकारी कर्मकाँड में करोड़ों रुपए खर्च किए गए, किंतु आखिरकार क्यों फिरोज गाँधी को इस सरकारी एहतराम से वंचित रखा गया? पं.नेहरु सत्ताकाल के दौर में भीषण भ्रष्ट्राचार से कड़ी टक्कर लेने वाला फिरोज गाँधी एक सोश्लिस्ट योद्धा प्रखर सांसद और पेशे से खोजी पत्रकार रहा, जिसने नेशनल हैरल्ड और नवजीवन के लिए सक्रिय पत्रकार के तौर पर अनेक वर्षो तक कार्य किया। नवंबर 1957 को हरिदास मूँदणा-एलआईसी काँड का भंड़ाफोड़ करके लोकसभा में तीव्र सनसनी उत्पन्न करने वाले फिरोज गाँधी को क्योंकर कदाचित स्मरण नहीं किया गया? पं. जवाहरलाल नेहरु की हुकूमत वस्तुतः मूंदणा काँड के भंडाफोड़ से सकते में आ गई थी। मूंदणा काँड का बाकायदा पर्दाफाश करते हुए लोकसभा में फिरोज गाँधी ने अपनी तकरीर में कहा कि मेरे दिलो दिमाग में एक बगावत उबल रही है, जोकि मुझे झकझोरती है कि मैं एक पार्लियामेंट डिबेट की शुरुआत करुं, क्योंकि इस वक्त मेरा मौन रहना अपराध होगा। घोड़े को नियंत्रित करने के लिए लगाम की दरकार होती है और हाथी को काबू रखने के लिए लोहे के अंकुश की तथा हुकूमत को संवैधानिक रुप से नियंत्रित करके संचालित करने के लिए व्यक्तिगत और शासकीय भ्रष्ट्राचार पर प्रबल प्रहार की आवश्यकता होती है, क्योंकि पॉवर करप्ट्स एंड एबोसोल्यूट पावर करप्ट्स एबसोल्यूटली।

सन् 1957 में फिरोज गाँधी को एलआईसी और उद्योगपति एचडी मूँदणा के मध्य किसी अवैध डील की भनक लगी। फिरोज गाँधी ने लोकसभा में सवाल दागा दिया कि क्या एलआईसी ने उद्योगपति हरिदास मूँदणा की कंपनियों के शेयर की खरीदारी बड़े पैमाने पर अंजाम दी है। इस प्रश्न के उत्तर में नेहरु मंत्रीमंडल में तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्माचारी ने संसद बयान ने दिया कि 19 बार एलआईसी द्वारा उद्योगपति एचडी मूंदणा की मुख़तलिफ कंपनियों के करोड़ों रुपयों के शेयरों की खरीदरी अंजाम दी गई। फिरोज गाँधी ने तमाम सबूतों के साथ लोकसभा में अपनी ऐतिहासिक तकरीर में कहा कि एचडी मूँदणा को निजी तौर पर फायदा पँहुचाने के लिए नेहरु हुकूमत के तहत कार्यरत एलआईसी ने मार्केट रेट के मुकाबले कहीं बहुत ऊँची मूल्य दरों पर मूँदणा की कंपनियों के करोड़ों के शेयर खरीदे। तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्माचारी संसद में फिरोज गाँधी के तीखे प्रश्नों और भीषण भ्रष्ट शासकीय डील पर पेश किए ज्वलंत तथ्यों पर एकदम निरुत्तर हो गए। फिरोज गाँधी के समर्थन में दलगत राजनीति से कहीं उपर उठकर प्रायः सभी दलों के प्रमुख सांसदों ने तकरीरें की, जिनमें प्रो. हीरेन मुखर्जी, अशोक मेहता, महावीर त्यागी, एके गोपालन आदि अनेक प्रख्यात सांसद थे। अपनी हुकूमत के वित्तमंत्री की इतनी फजीहत होते देख पं. नेहरु को टीटी कृष्मीचारी को अपने मंत्रीमंडल से बर्खास्त करना पड़ा। मूँदणा काँड की विस्तृत जाँच-पड़ताल का कार्य महाराष्ट्र के हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीष मौहम्मद करीमभाई छागला को सौंपा गया। मौहम्मद करीमभाई छागला द्वारा फिरोज गाँधी के इल्जामात को एकदम सही पाया गया और टीटी कृष्माचारी का राजनीतिक सितारा डूब गया। मूँदणा-एलआईसी डील को बाकायदा निरस्त किया गया। उद्योगपति एचडी मूँदणा की कंपनियों को ब्लैक लिस्ट किया गया।

स्वातंत्रय संग्राम के योद्धा के तौर पर इलाहबाद यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी काल से अपना राजनीतिक जीवन प्रारम्भ करने वाले फिरोज गाँधी का प्रथम परिचय नेहरु परिवार से 1928 में हुआ, जबकि इलाहबाद में साइमन कमीशन के विरुद्ध राष्ट्रीय काँग्रेस के एक जलूस का नेतृत्व करते हुए पं. नेहरु की धर्मपत्नी कमला नेहरु और माँ स्वरुपरानी के उपर ब्रिटिश पुलिस के घुड़सवारों द्वारा निर्मम बैटन प्रहार किया गया। जूलूस में शामिल फिरोज गाँधी और उसके नौजवान साथी तत्काल खून से लथपथ कमला नेहरु और स्वरुपरानी को उठाकर अस्पताल लेकर आए। 1934 में कमला नेहरु जब टीबी के इलाज के लिए सैनेटोरियरियम गई तो फिरोज गाँधी उनके साथ रहे। प्रख्यात नेहरु परिवार से इलाहबाद यूनिवर्सिटी के युवा छात्र नेता का यह नाता निरंतर बढ़ता ही चला गया और आखिरकार नियति ने फिरोज गाँधी को पं. नेहरु का दामाद और प्रियदर्शनी इंदिरा का पति बना दिया। स्वातंत्रय संग्राम के दौर में फिरोज गाँधी ने अनेक बार जेल यात्राएं अंजाम दी। फिरोज गाँधी 1952 और 1957 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट से भारी बहुमत से विजयी हुए और एक ऐसे सांसद के तौर पर उन्होने अपार ख्याति अर्जित की, जिसके लोकसभा में बैठने के स्थान को आजतक फिरोज गाँधी कॉर्नर को नाम से पुकारा जाता है। जिस तरह कि प्रकाशवीर शास्त्री और अटलबिहारी बाजपेयी के बैठने के स्थान को आज भी हिंदी कार्नर के नाम से जाना जाता है। अत्यंत श्रमशील, बेहद बेचैन. आराम विहीन, तीव्र मेघा वाले खोजी पत्रकार और निडर बेबाक वक्ता के तौर पर फिरोज गाँधी को लोकसभा सांसद के तौर पर जाना-पहचाना गया। फिरोज गाँधी ने भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा के तौर पर अपनी प्रबल पहचान स्थापित करने के साथ ही, प्रेस की पूर्ण आजादी के लिए संघर्ष करने वाले सतत संग्राम करने वाले समाजवादियों की सूची में भी अपना नाम दर्ज कराया।

लोकसभा में अपनी प्रथम तकरीर में ही फिरोज गाँधी ने जबरदस्त धाक जमा दी थी, जबकि इंशोरेंस कंपनी संशोधन विधेयक पर जोरदार तक़रीर करते हुए, जैन-डालमिया समूह कंपनियों द्वारा प्राइवेट इंशोरेंस कंपनियों के तहत जनमानस के फंड का मनमाने तौर निजी फायदे के लिए दुरुपयोग किया गया। अपनी तकरीर में फिरोज गाँधी ने इंशोरेस सैक्टर का राष्ट्रीय करण की पुरजोर माँग पेश की। फिरोज गाँधी की माँग का दलगत संकीर्णता से उपर उठकर अनेक प्रभावशाली सांसदों द्वारा समर्थन किया गया, जिनमें जनसंघ के डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी, कम्युनिस्ट पार्टी के भूपेश गुप्ता आदि अनेक प्रभावशाली सासंद थे। परिणामस्वरुप सरकार द्वारा इंशोरेंस कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करना पड़ा। फिरोज गाँधी कुल मिलाकर लोकसभा में अपने दस वर्षीय कार्यकाल अत्यंत प्रखर और तेजस्वी सांसद रहे। उनकी प्रत्येक तकरीर और कारकर्दगी जनमानस के प्रति उनेक प्रबल सरोकार का दर्शाती है।

फिरोज गाँधी के जन्मशति वर्ष को नेहरु-गाँधी परिवार द्वारा संभवतया इसलिए नकार दिया गया, क्योंकि भीषणतम भ्रष्ट्राचार के संगीन इल्जामात के भयानक दंश झेलती हुई यूपीए2 हुकूमत की सर्वोच्च नेता मैडम सोनिया कदापि नहीं चाहती कि इस नाजुक दौर में भारत में भ्रष्ट्राचार विरोधी संग्राम के अग्रणी नेता रहे फिरोज गाँधी की जन्मशति आयोजनों के तहत उनके कार्यों को स्मरण करके अपनी हुकूमत की फजीहत को और अधिक बढ़ाया जाए। फिरोज गाँधी की जन्मशती का जश्न यदि जोरशोर मनाया जाएगा तो उन तमाम तथ्यों से भारत की नौजवान पीढ़ी से अवश्य ही अवगत हो जाएगी, जिनको नेहरु-गाँधी परिवार द्वारा बदस्तूर जनमानस से अभी तक छुपाया जाता रहा है। काँग्रेस में रहते हुए फिरोज गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.नेहरु की सरकार की नीतियों के प्रबल-प्रखर आलोचक रहे। फिरोज गाँधी काँग्रेस के वामपंथी कहे जाने वाले काँग्रेस सोश्लिस्ट ग्रुप के एक नेता थे। इस काँग्रेस सोश्लिस्ट ग्रुप में अशोक मेहता, महावीर त्यागी, फिरोज गाँधी, रामसुभग सिंह, केडी मालवीय आदि के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं। मात्र 48 वर्षो का अत्यंत तेजस्वी जीवन जीकर फिरोज गाँधी चले गए किंतु इस दौर में जबकि सरकारी भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच चुका है तो भारतीय गणतंत्र की संसद में प्रारम्भिक दौर में भ्रष्टाचार की पर्दाफाश करने वाले फिरोज गांधी को उनकी जन्मशति के अवसर पर अवश्य ही स्मरण किया जाना चाहिए।

1 COMMENT

  1. Feroz gandhi bhi kya kismat likhwa kar laaye the – pahle patni ne nakaraa, asur ne nakaaraa, phir beton ne nakara, phir putravahuon ne aur ab pote -potion ne ………….lekin phir bhi desh ki raajniti par chhaya hua hai

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