चोर और भ्रष्ट नुमाइंदों के शासन में ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोगों की रीढ़ न टूटे ठीक वैसी ही कल्पना है जैसे व्यभिचारियों के मुहल्ले में सधवा की आबरु का नीलाम न होना। सत्ता की अराजक शक्तियां ईमानदार लोगों को निपटा ही देती हैं। हरियाणा के ईमानदार आईएएस अधिकारी अशोक खेमका का उदाहरण सामने है। ईमानदार होने की सजा उन्हें बखूबी भुगतना पड़ रहा है। 20 साल की नौकरी के दरम्यान 43 बार तबादला सामान्य बात नहीं है। और अब तीन महीने के अंदर चकबंदी महानिदेशक के पद से भी तबादला इस बात का संकेत है कि राजसत्ता किस तरह एक ईमानदार अधिकारी को हतोत्साहित करती है। खेमका का कसूर सिर्फ इतना है कि उन्होंने सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा की हरियाणा में संपत्तियों की जांच का आदेश दिया। जानना जरुरी है कि राबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हास्पेटिलिटी ने हाउसिंग कालोनी बनाने के लिए हरियाणा सरकार से 3.5 एकड़ जमीन ली। उसकी कीमत 7.5 करोड़ रुपए थी। कंपनी 65 दिन बाद उस जमीन को 58 करोड़ रुपए में डीएलएफ को बेच दी। यानी 65 दिन में 50 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा! क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए? खेमका ने हिम्मत दिखाते हुए 3.5 एकड़ जमीन का दाखिल खारिज रद्द कर दिया। भनभनायी हुड्डा सरकार अब खेमका को मजा चखा रही है। खेमका ने खुलासा किया है कि उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी जा रही है। अगर यह सच है तो बेहद खौफनाक और अफसोसजनक है।
देश में ईमानदार और राष्ट्रभक्त अधिकारियों की प्रताड़ना और हमला कोई नई बात नहीं है। आए दिन इस तरह की घटनाएं देखी-सुनी जा रही है। अभी चंद रोज पहले ही उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में अराजक तत्वों द्वारा जिला पूर्ति अधिकारी नीरज सिंह को केरोसिन डाल जिंदा जलाने का प्रयास किया गया। अधिकारी का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने अपना कर्तव्य निभाते हुए तेल माफियाओं को रंगे हाथ दबोचने की हिम्मत दिखायी। लेकिन माफिया तत्व उस पर भारी पड़े। अधिकारी को जान बचाकर भागना पड़ा। उससे बड़ी त्रासदी यह कि यूपी सरकार अपने कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी का मनोबल बढ़ाने के बजाए उसे पहाड़ा पढ़ाती सुनी गयी कि वह सुरक्षा के तामझाम के साथ वहां क्यों नहीं गया? सरकार के भय पैदा करने वाले उपदेषों से तो यही लगता है यूपी में अपराधी तत्वों का हौसला बुलंद है और सरकार उनसे निपटने में अक्षम है। अगर यह सच है तो स्थिति अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों का मनोबल टूटेगा और वे अपने को असुरक्षित पाएंगे। राजसत्ता को चाहिए कि वह राज्य में कानून का इकबाल स्थापित करे और अराजक तत्वों की नकेल कसे। लेकिन न केवल यूपी बल्कि पूरा देश विचित्र हालात का सामना कर रहा है। भ्रष्टाचारी सत्ता की धारा में है और ईमानदार किनारे पर। भ्रष्टाचारी मलाई काट रहे हैं और ईमानदार जान गंवा रहे है। याद होगा पिछले वर्ष ही मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में प्रशिक्षु पुलिस अनुमंडल अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह को बामौर में अवैध खनन से जुड़े माफियाओं ने मार डाला। पिछले दिनों ही कर्नाटक में एक खनन माफिया के समर्थकों ने पत्रकारों पर हमला बोला। दरअसल ये हमले उन्हीं लोगों द्वारा किए और कराए जा रहे हैं जो आकंठ भ्रश्टाचार में डूबे हैं और आपराधिक तत्वों को संरक्षण दे रहे हैं। दरअसल वे नहीं चाहते हैं कि सरकारी प्रषासन, आमजन, मीडिया या आरटीआई कार्यकर्ता उनकी काली करतूतों पर से पर्दा हटाए। दरअसल व्यवस्था को अव्यवस्था में बदल चुके अराजक तत्व अपने काले धंधों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। चाहे उसके लिए उन्हें हत्या का ही सहारा क्यों न लेना पड़े। नतीजा सामने है। भ्रष्ट और आपराधिक तत्वों के हमले में अभी तक अनगिनत ईमानदार अफसर और आरटीआई कार्यकर्ता अपनी जान गवा चुके हैं। दरअसल देश में भ्रश्ट नौकरशाहों, राजनेताओं व स्थानीय स्तर के भ्रष्ट कर्मचारियों, बिल्डरों, भू-खनन माफियाओं का ऐसा नेटवर्क बन गया है जिनका मकसद अवैध तरीके से अकूत संपदा इकठ्ठा करना और सत्ता का भोग लगाना है। विडंबना यह है कि वे इसमें सफल भी हो रहे हैं। जब तक इन भ्रष्टमंडली को छिन्न-भिन्न नहीं किया जाएगा तब तक अवैध खनन एवं तेल माफियाओं के हाथों ईमानदार सरकारी मुलाजिम और आरटीआई कार्यकर्ता मारे जाते रहेंगे। दुर्भाग्य यह है कि खनन और तेल माफियाओं के खिलाफ जो सरकारी अधिकारी या कर्मचारी अभियान चला रहे हैं उनकी सुरक्षा को लेकर सरकारें चिंतित भी नहीं है। याद होगा महाराष्ट्र स्थित मालेगांव के अपर जिलाधिकारी यशवंत सोनवाने को तेल माफियाओं ने दिनदहाड़े जिंदा जला दिया था। जब उन्होंने तेल के काले धंधे से जुड़े लोगों को रंगे हाथ पकड़ना चाहा तो मौके पर ही तेल माफिया के गुर्गों ने उन्हें जलाकर मार डाला। राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी के परियोजना निदेशक सत्येंद्र दुबे को बिहार में गया के निकट गोली मारकर हत्या कर दी गयी। वे अपनी ईमानदारी के लिए विख्यात थे। उन्होंने एनएचएआई में बरती जा रही अनियमितताओं के संबंध में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को पत्र लिखा था। इसी तरह इंडियन ऑयल कारपोरेषन के मार्केटिंग मैनेजर शणमुगम मंजूनाथ को यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में गोली मारकर खत्म कर दिया गया। उन्होंने तेल ईंधन में मिलावट करने वाले तेल माफियाओं का पर्दाफाश किया था। इसी तर्ज पर देश में आरटीआई कार्यकर्ताओं की आए दिन हत्या हो रही है। महज एक वर्ष के दौरान एक दर्जन से अधिक आरटीआई कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। अहमदाबाद के आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की इसलिए हत्या की गयी कि उन्होंने गीर के जंगलों में अवैध खनन के मामले का पर्दाफाश किया। कई रसूखदार लोगों का चेहरा सामने आना बाकी था लेकिन उससे पहले ही जेठवा की जान ले ली गयी। हत्यारों ने गुजरात उच्च न्यायालय के सामने ही उन्हें गोली मारकर निपटा दिया। महाराष्ट्र के आरटीआई कार्यकर्ता दत्ता पाटिल आरटीआई के माध्यम से भ्रश्टाचारियों को बेनकाब कर रहे थे। उनकी कोशिश की बदौलत ही एक भ्रश्ट पुलिस उपाधीक्षक और एक वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। उनकी पहल पर ही नगर निगम के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई शुरु हुई। लेकिन सच और ईमानदारी की लड़ाई में उन्हें भी अपनी जान गवानी पड़ी। भ्रश्टाचारियों ने उनकी जान ले ली। पुना के सतीश शेट्टी भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति के संयोजक थे। आरटीआई के हथियार के बूते उन्होंने महाराश्ट्र में कई जमीन घोटालों को उजागर किया। साथ ही अवैध बंगलों के निर्माण, मिट्टी के तेल और राशन की कालाबाजारी के खिलाफ भी मुहिम चलाया। लेकिन भू-माफियाओं और कालाबाजारियों की काकस चैकड़ी उनकी जान ले ली। इसी तरह महाराष्ट्र के आरटीआई कार्यकर्ता विट्ठल गीते, अरुण सावंत आंध्रप्रदेश के सोला रंगाराव और एरानापल्यता के वेंकटेश एवं बिहार बेगुसराय के शशिधर मिश्रा को अपनी जान गंवानी पड़ी। जम्मू-कश्मीर के मुजफ्फर भट, मुंबई के अशोक कुमार शिंदे, अभय पाटिल तथा पर्यावरणवादी सुमेर अब्दुलाली पर भी जानलेवा हमला हो चुका है।
देश के पहले केंद्रीय सूचना आयुक्त रह चुके वजाहत हबीबुल्ला की मानें तो कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमले ये दिखाते हैं कि आरटीआई एक्ट देश में प्रभावी रुप ले रहा है। लेकिन क्या यह दिल दहलाने वाली बात नहीं है कि इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है? आज मौजूं सवाल यह है कि सरकारी मुलाजिमों और आरटीआई कार्यकर्ताओं पर होने वाले हमले कब बंद होंगे? सरकार उन्हें सुरक्षा कब मुहैया कराएगी? यह मानने में गुरेज नहीं कि आज अगर ईमानदार अधिकारी-कर्मचारी और आरटीआई कार्यकर्ताओं की जान सांसत में है तो उसके लिए देश की सरकारें जिम्मेदार हैं। आज जरुरत इस बात की है कि केंद्र और राज्य सरकारें दोनों मिलकर देशद्रोहियों और सत्ता के दलालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। लेकिन विडंबना यह है कि देश में अशोक खेमका जैसे ईमानदार अधिकारी किनारे लगा दिए जाते हैं और नीरज सिंह जैसे बहादूर अधिकारी का मनोबल तोड़ा जाता है।