राजेश कुमार पासी
कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने गुरुवार को एक लेख अखबार में लिखा है जो कि अंग्रेजी भाषा में है । उन्होंने अपने लेख के माध्यम से मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल खड़े किए हैं । उन्होंने सरकार की फिलिस्तीन नीति को मानवता और नैतिकता की घोर उपेक्षा करार दिया है । उन्होंने कहा है कि भारत को इस मामले पर अपना नेतृत्व दिखाना चाहिए । उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि वो इजराइल के नेता बेंजामिन नेतन्याहू के साथ अपनी व्यक्तिगत मित्रता के आधार पर इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं । उनका कहना है कि इस मुद्दे पर सरकार की प्रतिक्रिया और गहरी चुप्पी मानवता एवं नैतिकता, दोनों का परित्याग है । उनका कहना है कि व्यक्तिगत कूटनीति की यह शैली कभी भी स्वीकार्य नहीं है और यह भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शक नहीं हो सकती । उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देकर इन नीति की विफलता की ओर इशारा किया है ।
उनका कहना है कि भारत इस मामले पर सबसे आगे रहा है जिसने पीएलओ को वर्षों के समर्थन के बाद 18 नवम्बर, 1988 को औपचारिक रूप से फिलिस्तीनी राष्ट्र की मान्यता दे दी थी । देखा जाए तो उनकी बात सही है क्योंकि भारत फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला पहला गैर-इस्लामिक देश था । उन्होंने लिखा है कि 1971 में भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार को रोकने के लिए दृढ़ता से हस्तक्षेप किया था जिससे आधुनिक बांग्लादेश का निर्माण हुआ । फिलिस्तीन मुद्दे पर सोनिया गांधी का यह तीसरा लेख है जबकि उन्होंने पिछले कुछ महीनों में सिर्फ चार लेख लिखे हैं । चार में से तीन लेख फिलिस्तीन समस्या को लेकर लिखना बताता है कि वो इस मामले पर बहुत गंभीर हैं । सवाल यह है कि उनकी गंभीरता सिर्फ इस मामले पर ही क्यों है । देश में कई समस्याएं हैं लेकिन उन्हें सिर्फ फिलिस्तीन की चिंता क्यों है । दूसरी बात उन्होंने यह लेख अंग्रेजी में लिखा है जबकि इस देश के दो प्रतिशत लोग भी अंग्रेजी अखबार के लेख नहीं पढ़ते हैं । अगर उन्हें अपनी बात देश को बतानी थी तो अंग्रेजी में लिखने की क्या जरूरत थी । अगर वो अपने मुस्लिम मतदाताओं को अपनी बात पहुंचाना चाहती थी तो एक प्रतिशत मुस्लिम भी अंग्रेजी लेख नहीं पढ़ते होंगे । इस बात को समझने की जरूरत है कि वो किसको संदेश दे रही हैं ।
उन्होंने कहा है कि भारत अक्टूबर, 2023 में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद पिछले दो सालों में अपनी भूमिका से तटस्थ हो गया है । वो आगे कहती है कि 7 अक्टूबर, 2023 को हमास द्वारा इजराइली नागरिकों पर क्रूर और अमानवीय हमले के बाद इजराइल ने भी प्रतिक्रिया देते हुए भारी नरसंहार किया है । सोनिया जी ने जो कहा है, वो आज अधिकांश लोग कह रहे हैं । इसकी वजह यह है कि उनकी सोच है कि इजराइल के दो हजार लोग मारे गए थे । इसके जवाब में इजराइल ने 55000 लोग मार दिये हैं और अभी भी वो रुक नहीं रहा है । यह लोग भूल जाते हैं कि इतिहास गवाह है कि किसी क्रिया की प्रतिक्रिया की मात्रा क्या होगी, कभी तय नहीं किया जा सकता । चंगेज खान के दो दूतों की हत्या मुस्लिम शासक ने कर दी थी लेकिन इसके बदले में चंगेज खान ने पूरे मिडिल ईस्ट को तबाह कर दिया था। करोड़ो लोगों को मार दिया था. जानवर तक खत्म कर दिए गए थे। उस तबाही को ऐसे समझा जा सकता है कि उसने कई बड़े शहरों की पूरी आबादी खत्म कर दी थी ।
ऐसे ही भारत के 26 लोगों की हत्या के बदले में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में भयंकर तबाही मचाई है । अभी यह खुलासा नहीं हो पाया है कि ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के कितने लोग मारे गए हैं । 2002 में गुजरात में 59 लोगों को रेल के दो डिब्बों में बंद करके जिंदा जला दिया गया था । इसकी प्रतिक्रिया में दंगे हुए और दंगों में 2000 लोग मारे गए । दिल्ली में नादिरशाह के कुछ सिपाहियों को दिल्ली की जनता ने मार दिया था, इसकी प्रतिक्रिया में नादिरशाह ने दिल्ली की लगभग पूरी आबादी को कत्ल कर दिया था । ये समस्या सिर्फ सोनिया जी की नहीं है बल्कि पूरे उदारवादी, वामपंथी और मुस्लिम बुद्धिजीवियों की है कि अगर हमास ने दो हजार इजराइलियों को मार दिया था तो इजराइल को भी इतने लोगों को मार कर रुक जाना चाहिए था । सवाल यह है कि इजराइल की इतनी बड़ी कार्यवाही के बाद भी हमास ने इजराइल के बंधकों को नहीं छोड़ा है । आज भी हमास के लोग इजराइल को खत्म करने का दावा कर रहे हैं । गाजा लगभग तबाह हो चुका है लेकिन हमास आज भी वहां जिंदा है । आज भी हमास के आतंकवादी अपने ठिकानों से निकल कर इजराइल की सेना पर हमला करते हैं ।
वैसे यह समझना मुश्किल है कि सोनिया जी ने यह लेख क्यों लिखा है । वो भारत सरकार की नीतियों पर सवाल तो खड़ा कर रही हैं लेकिन यह नहीं बता रही हैं कि भारत ने क्या गलती की है । वो स्पष्ट रूप से यह बताने में असफल रही हैं कि भारत सरकार को इजराइल के खिलाफ क्या कार्यवाही करनी चाहिए और क्यों करनी चाहिए । जब दुनिया में 50 से ज्यादा मुस्लिम देश गाजा के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो भारत क्या कर सकता है । क्या वो चाहती है कि भारत अपनी सेना भेजकर इजराइल पर हमला कर दे । मेरा मानना है कि सोनिया जी सिर्फ सरकार को इस मुद्दे पर घेरना चाहती हैं और अपने मुस्लिम मतदाताओं को खुश करना चाहती हैं । उन्होंने अंग्रेजी में लेख इसलिए लिखा है कि वो विदेशों में बैठे कांग्रेस के हितेषियों को बताना चाहती हैं कि इजराइल के खिलाफ वो अभियान चला रही हैं । यह भी समझना मुश्किल है कि मुस्लिम मतदाता तो पहले ही कांग्रेस के समर्थन में है तो उन्हें खुश करने की कोशिश क्यों कर रही हैं । मोदी सरकार को विपक्ष मुस्लिम विरोधी साबित कर चुका है, उनके पत्र की क्या जरूरत है ।
इजराइल भारत का मित्र देश है लेकिन भारत का झुकाव फिलिस्तीन की तरफ रहा है । कारगिल युद्ध में इजराइल की मदद से ही भारत ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाया था । अगर इजराइल मदद न करता तो भारतीय सेना को युद्ध जीतने के लिए और न जाने कितने वीर सैनिकों से हाथ धोना पड़ता । इजराइल की मदद के कारण भारत के सैकड़ों जवानों की जान बच गई । भारतीय सेना को मजबूत बनाने में इजराइल ने सक्रिय योगदान दिया है जबकि फिलिस्तीन ने कश्मीर के मुद्दे पर हमेशा पाकिस्तान का साथ दिया है । उन्होंने बांग्लादेश की बात की है. वो तो हमारा पड़ोसी देश है । जब पाकिस्तानी सेना वहां नरसंहार कर रही थी तो वहां से करोड़ो शरणार्थी भाग कर भारत आ गए थे । उन्हें वापिस भेजने के लिए भारत को कार्यवाही करने के लिए मजबूर होना पड़ा । इजराइल हमारा पड़ोसी नहीं है. वो भारत से बहुत दूर है तो वहां जाकर भारत को दखल देने की क्या जरूरत है । जहां तक मानवीय मदद की बात है तो वो भारत इस संघर्ष के शुरू होने के बाद से करता आ रहा है । उनके यह कहने का क्या मतलब है कि भारत पिछले दो सालों से इस मामले पर तटस्थ है । उन्हें बताना चाहिए था कि भारत तटस्थ न रहे तो क्या करे ।
एससीओ में भारत ने इजराइल के खिलाफ प्रस्ताव पास करवाया है जबकि कुछ महीने पहले ऑपरेशन सिंदूर में इजराइल ने हमारी बड़ी मदद की है । इसके बावजूद कि हमने गाजा में चार बार मानवीय मदद पहुंचाई है । दूसरी तरफ ऑपरेशन सिंदूर में इजराइल ने हमें जरूरी हथियार पहुंचाए हैं । मोदी सरकार जो कुछ भी कर रही है, वो पुरानी विदेश नीति के अनुसार ही कर रही है । ये अलग बात है कि मोदी सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर नहीं चलती है । सोनिया गांधी का लेख उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के आधार पर लिखा गया है । जब 50 मुस्लिम देश शांत हैं तो वो चाहती है कि भारत इजराइल के खिलाफ कुछ करे लेकिन क्या करे, वो ये नहीं बता रही हैं । पाकिस्तान को तुर्की, अजरबैजान और चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदले की कार्यवाही करने में मदद की थी । ये सब लोग मिलकर इजराइल के खिलाफ क्यों कार्यवाही नहीं करते हैं । भारत और इजराइल दोस्त हैं लेकिन ये तो इजराइल के दोस्त भी नहीं हैं । जिस हमास का समर्थन किया जा रहा है, उसके लोग पीओके आकर भारत पर आतंकवादी हमले में मदद की बात कह चुके हैं ।
मोदी नीति की विशेषता यह है कि वो देशहित से ऊपर किसी को नहीं मानती है । इजराइल के साथ रिश्ते हमारे देशहित में हैं तो मोदी सरकार का झुकाव उसकी ओर है । मोदी वैश्विक नेताओं से मित्रता सिर्फ देशहित के आधार पर ही करते हैं । यह कहना गलत है कि वो अपनी मित्रता के कारण इजराइल के मुद्दे पर चुप है । मोदी कई बार इस युद्ध को बंद करने की बात दोहरा चुके हैं । एक देश के रूप में भारत जो कर सकता है, वो कर रहा है । भारत की नीति रही है कि वो गलत को गलत कहता रहा है लेकिन इससे आगे भारत नहीं बढ़ सकता । अगर इजराइल हमास को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है तो वो भारत की बात क्यों सुनेगा । इस मुद्दे पर सोनिया जी ने अपने देश के प्रधानमंत्री और सरकार को बिना मतलब कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है । वो यह कोशिश किसको खुश करने के लिए कर रही हैं, ये वो ही बता सकती हैं ।
राजेश कुमार पासी