वाजपेयी उदार और आडवाणी कट्टर क्यों माने जाते रहे हैं?

adwani and vajpayeeइक़बाल हिंदुस्तानी

मोदी को आगे लाने से भाजपा की सीटें बढ़ सकती हैं घटक नहीं!

भाजपा नेता शाहनवाज़ हुसैन ने मोदी का बचाव करते हुए यह सवाल  उठाया है कि नितीश कुमार जैसे एनडीए घटक नेताओं को या तो सभी भाजपा नेताओं को साम्प्रदायिक मानना चाहिये या सेकुलर मानना चाहिये। शाहनवाज़ हुसैन भूल रहे हैं कि अटल बिहारी अपनी उदार और कम साम्प्रदायिक सोच की वजह से 24 सहयोगी दलों को जोड़कर प्रधानमंत्री बनने और 6 साल सरकार चलाने में कामयाब रहे थे। आडवाणी अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि की वजह से ही आज तक पीएम नहीं बन पाये।

इसी लिये उन्होंने अपनी छवि को उदार दिखाने के लिये 2005 में पहले पाकिस्तान दौरे के बीच इतिहास के सहारे जिन्ना को सेकुलर बताते हुए उनका यह सपना सही दोहराया था कि जिन्ना चाहते थे कि पाक एक सेकुलर स्टेट बने लेकिन चूंकि वह पाकिस्तान बनने के बाद अधिक दिनों तक ज़िंदा नहीं रह सके जिससे मुस्लिम कट्टरपंथियों को पाक को मुस्लिम या इस्लामी राज्य घोषित करने से कोई रोकने वाला नहीं था। अजीब बात यह है कि जब आडवाणी ने 6 दिसंबर 1992 की विवादित बाबरी मस्जिद शहीद होने की घटना पर दुख जताते हुए उसे अपने जीवन का काला दिन बताया तो उनसे हिंदू कट्टरपंथी ही नहीं संघ परिवार भी ख़फा हो गया ।

कट्टरपंथी हिंदू तो बाल ठाकरे की इस स्वीकारोक्ति पर खुश होता था कि अगर बाबरी मस्जिद शिवसैनिकों ने तोड़ी है तो उनको अपने सैनिकों पर गर्व है। वह इस बयान के लिये जेल जाने के लिये तैयार रहते थे जबकि आडवाणी ने कभी इतना दुस्साहस नहीं दिखाया जबकि गुजरात दंगों की तरह जैसे मोदी को कसूरवार माना जाता है वैसे ही आडवाणी को मस्जिद शहीद होने का ज़िम्मेदार माना जाता रहा है। अजीब बात यह है कि इसके बावजूद संघ आडवाणी की जगह एमपी के सीएम शिवराज या सुषमा स्वराज जैसे उदार नेताओं को पीएम पद का प्रत्याशी बनाने की बजाये आडवाणी से भी कट्टर और बर्बर दंगों के आरोपी मोदी को आगे लाकर यह मानकर चल रहा है कि इसी से यूपीए की जगह एनडीए को सत्ता में लाने का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है।

हमारा मानना है कि देखते रहिये मोदी भी इसी कट्टरपंथ की वजह से पीएम नहीं बन पायेंगे। यह अलग बात है कि अपने भाषणों से साम्प्रदायिकता फैलाकर वे भाजपा के वोट और सीटें कुछ बढ़ादें लेकिन जब सहयोगी दलों का सवाल आयेगा तो देखना शिवसेना, अकाली दल और जयललिता के अलावा चौथा दल तलाश करना मुश्किल हो जायेगा। जब तक भाजपा कट्टरपंथ और हिंदूवादी राजनीति नहीं छोड़ देती उसको सरकार बनाने का मौका मिलना फिलहाल तो कठिन लगता है लेकिन अगर बनी भी तो शर्त वही होगी कि उदार और कम साम्प्रदायिक छवि के नेता को आगे लाना होगा।

कोई भी सेकुलर दल केंद्र में सरकार बनवाकर दो चार मंत्रियों पद पाकर अपनी राज्य की सत्ता को दांव पर नहीं लगा सकता। पहले ही पासवान, चन्द्रबाबू नायडू और नवीन पटनायक जैसे सेकुलर नेता इस राजनीतिक गल्ती का काफी खामयाज़ा भुगत चुके हैं। अब तो ममता और मायावती भी यह जोखिम नहीं ले पायेंगी। दरअसल नफ़रत और आग खून की जिस तंगनज़र राजनीति को 1989 में आडवाणी ने भाजपा की रथयात्रा निकालकर पार्टी को 2 से 88 सीटों पर पहुंचाया था पिछले दिनों आडवाणी के इस्तीफे से यह बात एक बार फिर साबित हो गयी कि इंसानी खून बहाकर सत्ता हासिल करने की इस जंग में नेता बनने की होड़ में संगठन में तो वही जीतेगा जो पहले वाले से भी और ज़्यादा कट्टर और बर्बर होगा।

मोदी के विकास का केवल ओट के लिये बहाना लिया जा रहा है, सच तो यह है कि उनसे ज़्यादा विकास शिवराज सिंह और नीतिश कुमार ने किया है लेकिन 2002 के दंगों में जिस वहशीपन और मक्कारी से मोदी पर मुस्लिमों को मारने काटने और जलवाने के गंभीर आरोप हैं और आज तक हर जांच से चालाकी और साम्प्रदायिकता के बल पर वह बच गये है इसलिये आज मोदी को आगे लाया जा रहा है। हमें अपने सेकुलर और आधे से अधिक अमन पसंद हिंदू भाइयों पर अभी भी पूरा भरोसा है कि वे मोदी जैसे ’’हिटलर’’ का पीएम बनने का सपना कभी पूरा नहीं होने देंगे।

2002 के गुजरात दंगों में नरोदा पाटिया के नरसंहार लिये दोषी ठहराई गयी पूर्व मंत्री माया कोडनानी और 9 अन्य के लिये मौत की सज़ा की अपील करने के मामले में गुजरात की मोदी सरकार ने हिंदूवादी संगठनों के दबाव में यू टर्न ले लिया है। हालांकि इस मामले में गठित एसआईटी ने मोदी सरकार की बात ना मानकर सुप्रीम कोर्ट की राय जानने का फैसला किया है लेकिन इससे मोदी के तथाकथित सेकुलर होने, उनकी सरकार के दंगों में शरीक ना होने और सबको बराबर समझने के दावे की एक बार फिर पोल खुल गयी है।

भाजपा की इस बेशर्मी, बेहयायी और न्याय के दो पैमानों पर अफसोस और हैरत जताई जा सकती है कि एक तरफ बलात्कार के मामलों में वह फांसी की मांग करती है और दूसरी तरफ सैंकड़ों बेकसूर इंसानों और मासूम बच्चो के हत्यारों और बलात्कार करने के बाद बेदर्दी से खुलेआम सड़क पर दौड़ा दौड़ाकर मारी गयी महिलाओें के कसूरवारों को फांसी से बचाने की घिनौनी कोशिश कर रही है।

भाजपा अगर यह समझती है कि सरबजीत के मामले में तो वह शराब के नशे में उसके सीमा पार जाने पर वहां उस पर लाहौर में बम विस्फोट का आरोप होने के बाद जेल में मारे जाने पर एक करोड़ रू0 से अधिक मुआवज़ा, पेट्रोल पंप, सरकारी ज़मीन का पट्टा, परिवार के एक से अधिक सदस्यों को सरकारी नौकरी, शहीद का दर्जा और उसका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ कराने में उसके हिंदू होने की वजह से ज़रूरी समझती है जबकि यूपी में ड्यूटी के दौरान मारे जाने वाले एक मुस्लिम सीओ के परिवार को ऐसी सुविधा देने पर उसको भारी आपत्ति होती है।

ऐसे ही 2009 के चुनाव में पीलीभीत में भड़काउू भाषण देने वाले अपने एमपी वरूण गांधी को तो वह दोषी होते हुए भी चुपचाप सपा सरकार से सैटिंग करके बाइज़्ज़त बरी कराती है जबकि जस्टिस निमेष आयोग की जांच में बेकसूर पाये गये मुस्लिम युवकों को वह अखिलेश सरकार द्वारा बरी किये जाने का जमकर साम्प्रदायिक आधार पर ही पक्षपातपूर्ण पूर्वाग्रह के आधार पर अंधविरोध करती है। इसी काम को आगे बढ़ाने के लिये मोदी को पीएम पद का भाजपा प्रत्याशी बनाया जा रहा है जिससे यह सेकुलर बनाम साम्प्रदायिक मोर्चे की सीधी जंग बन जायेगी और कांग्रेस, वामपंथी और क्षेत्रीय दल मोदी की वजह से ही एक प्लेटफॉर्म पर जमा होते जा रहे हैं। इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी की यह आशंका सही साबित होने जा रही है कि जो मुकाबला यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार बनाम साफ सुथरी सरकार के विकल्प को लेकर होना चाहिये था वह अब मोदी बनाम गैर भाजपा में बदल जायेगा।

अजीब लोग हैं क्या खूब मुंसफी की है,

हमारे क़त्ल को कहते हैं खुदकशी की है।

इसी लहू में तुम्हारा सफीना डूबेगा,

ये क़त्ल नहीं तुमने खुदकशी की है।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

24 COMMENTS

  1. शिवेंद्र मोहन जी, अगर सब सिद्धांतों की बलि देकर केवल सत्ता हासिल करना लक्ष्य है तो कांग्रेस भी तो यही कर रही है फिर अंतर क्या हुआ? पार्टी विद डिफ़रेंस गया भाड़ झोकने. यही न.

  2. सावन के अंधे को सब हरा ही दिखता है, इकबाल भाई मै इस साईट को शुरू से पढ़ता आ रहा हूँ. इस साईट पर आप सच वो भी बीजेपी से सम्बंधित लिख कर ऐसा ही कमेंट पा सकते है.इस लेख से सम्बंधित टिप्पणी करने के बजाये लोग आप पर और आपकी मानसिकता पर टिप्प्णी कर रहे है जैसे ये लोग ठेकेदार है यह तय करने के लिए की किसकी मानसिकता कैसी है.
    आपका लेख छपता है इसके लिए संजीव भाई को धन्यवाद देते हुए, निवेदन करूंगा की आप अपना राय इस लेख और इकबाल भाई पर किये कमेंट अवश्य दे ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाय.

    • बीजेपी और मोदी समर्थक सेकुलर नहीं…ये तमगा देने का ठेका किसके पास है??

      • त्यागी जी बिलकुल दुरुस्त फरमा रहे हैं आप …. जो स्वयं वर्ण अन्धता का शिकार है वही तमगे बाँट रहा है। असम के दंगे और मथुरा के दंगे तो इन्हें दिखाई नहीं दे रहे हैं। दस साल पुराने मोदी के दंगे बिलकुल साफ़ साफ़ दिख रहे हैं। तरस आता हैं इनकी जहालत और विषैली बुद्धि पर।

  3. सुधार….>>

    …इसका मतलब की यहाँ की सारी संस्थाएं और व्यवस्था मुस्लिम विरोधी हैं……क्या बात है…..इकबाल भाई..!!

  4. ऐसा लगता हैं….और एक बात जो इकबाल भाई मानते हैं की.. भारत की माननीय सुप्रीम कोर्ट से लेकर अन्य न्यायालय ..अपने निर्णय पक्षपातपूर्ण हो कर, हिन्दुओं के पक्ष में ज्यादा देते हैं……इसका मतलब की यहाँ साड़ी संस्थाएं और व्यवस्था मुस्लिम विरोधी हैं……क्या बात है…..इकबाल भाई..!!

  5. भारत ने सेक्युलर अब वोट का नारा है- अटल अडवानी में कोई अंतर कभी नहीं रहा
    मोदी का विरोध कट्टरता के लिए नहीं बीजेपी के रास्ट्रीय नेताओं की अक्षमता के लिए होनी चाहिए की एक मुख्यमंत्री सीधे प्रधानमंत्री किसी रास्ट्रीय दल का कैसे हो सकता है. मैं सहमत हूँ की वह सीटें कुछ बढ़ा भी लें तो सर्कार नहीं बना सकते -लोग ऍम पी चुनते हैं पी ऍम नहीं

  6. अस्लावालेकुम इकबाल भाई,

    कैसा लगा नीचे दी गयी लोगो की प्रतिक्रियाएं पढ़ कर…. ??? वैसे में तो आपकी मानसिकता फेसबुक पर आपके पोस्ट पढ़-पढ़ कर जान चुका था, पर अब आपके अन्य प्रशंसक लोगों को भी जानने का मौका मिल गया है| आपका अपरोक्ष रूप से कहना है- “मेरा दुःख, तो मेरा दुःख पर तेरे दुःख से मुझे क्या लेना”

    वैसे जो ज़हर आप फेसबुक पर अपने पोस्ट्स में मोदीजी और बीजेपी के खिलाफ उगलते हैं… उनको भी आपके इन प्रशंसक भाईओं को पढ़ना चाहिए..और तब प्रतिक्रियाएं देनी चाहिए, उसका मुझे बेसब्री से इन्तेज़ार रहेगा|

    आप अपनी सोच को थोडा और बड़ा और व्यापक कर ले तो सारी समस्या दूर हो जायेगी.. यहाँ ताली एक हाथ से नहीं बज रही….. दूसरा… अगर आप सबसे पहले खुद सेकुलर हो जाये तो दूसरों को सांप्रदायिक बताने में आसानी होगी… और साम्प्रदायिकता कि परिभाषा किसी एक पक्ष और दल का साथ देने भर से नहीं बन जाती…..उसको भी आपको और अच्छे ढंग से परिभाषित करना होगा

    खुदा हाफिज

    आर त्यागी

  7. इकबाल जी,
    आपसे मैं ने पहले भी कहा था, आज फिर से कह रहा हूँ। आप नरेन्द्र मोदी जी के गुजरात की भेंट कर आइए। सम्पर्क करवाने में मैं सहायता कर सकता हूँ। अन्य सहायताए भी करता, पर उनका अर्थ फिर अलग हो जाता है। सारी कौम के हितमें जो शासक निःस्वार्थ रूपसे काम कर रहा है, उसके बारे में आँखो देखा, और परखा हाल फिर आप लिखें।
    इस्लामी बंधुओं का उद्धार दिखाऊ और वोट बॅन्क राजनीति वाले नहीं कर पाएंगे। आरक्षण भी समाज को पंगु कर देता है। आपको पयगम्बर साहब की निर्धन को सीधी सहायता नहीं, पर कुल्हाडी खरिद कर देनेवाली ऐतिहासिक घटना तो पता होगी ही। यहाँ के इमाम ने यह कहानी सुनाई थी।
    Independent का अर्थ Not Dependent होता है। आरक्षण तो आपका independence छीन कर पंगु बना देता है।
    आलेख बिना पढे ही लिख रहा हूँ। कुछ समय का अभाव है।

    • डाक्टर साहब ये कुँए के मेंढक हैं, वहीँ टर्र टर्र करेंगे, इनकी निकट और दूर की दृष्टि इकट्ठी ख़राब है। इनको समझाना पत्थर पे सर मारना नहीं बल्कि अपने सर पे स्वयं पत्थर मारना है।…………..

      • शिवेंद्रजी, बिलकुल सही… ये ही बात मैं फेसबुक पर कह चूका हूँ…. 😉

    • डाक्टर साहब,यहाँ शायद मैं अनुचित हस्तक्षेप कर रहा हूँ,अतः क्षमा चाहूँगा. नरेंद्र मोदी को अगर उनके विकास कार्यों के लिए देश का नेता मानने को आप आम आदमी को कह रहे हैं,तो उनको केवल विकास पुरुष के रूप में ही क्यों नहीं प्रस्तुत किया जाता?क्यों कभी तो उनको हिंदुओं की रक्षार्थ तलवार भाँजते हुए दिखाया जाता है तो कभी ओबीसी के नेता के रूप में सामने लाया जाता है? डाक्टर अग्निहोत्री के लिखे आलेख पर अभी बहस हो ही रहा था कि आज बिहार के पूर्व उप मुख्य मंत्री श्री सुशील मोदी का बयान आया है ” नारेंद्र मोदी के ओबीसी पृष्ठ भूमि की बिहार की राजनीति में एक अहम भूमिका होगी.'(टाइम्स आफ इंडिया, दिल्ली संस्कारण दिनांक १९/०६/२०१३)
      आख़िर यह सब क्या है?

      • एक आदमी और भी बहुत कुछ होता है जैसे एक बीटा बाप भी होता है पति भी भाई भी नौकर भी ……………….शायद आप चाहते है की वो सिर्फ नौकर रहे बीटा या भाई न बताया जाये

        • यह मेरी जिग्यासा का समाधान न्हीं ,बल्कि कुतर्क है. आप पहले यह तो तय कीजिए कि आप विकास के मुद्दे पर मोदी को आगे लाना चाहते हैं या हिंदुत्व के मुद्दे पर या छेत्रिय दलों की तरह जातिवाद और अगड़ा पिछड़ा के टकराव के बल पर.

      • आर सिंह जी शठे शाठ्यं समाचरेत करना ही पड़ेगा, परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हैं। आप हरिश्चन्द्र बन के आगे नहीं चल सकते।

        • मैं हरिशचन्द्र की बात कहा कर रहा हूँ. मैं तो चुनावी मुद्दे की बात कर रहा हूँ. आख़िर बीजेपी मोदी को किस मुद्दे की तहत सामने ला रहा है?

          • सिंह साहब कोई एक मुद्दा हो तो बताया जाए ना, एकमेव लक्ष्य सत्ता हासिल करना होना चाहिए, तो आप पानी से चाहे शरबत बनाइये चाहे चाय या और कुछ, ये आप पर निर्भर करता है। सिर्फ एक मुद्दा लेके आप आगे नहीं बढ़ सकते हैं। जहाँ जो चले वही चलाया जाए। कांग्रेस और अन्य दलों की जो स्थिति है उसके हिसाब से रणनीति बना के जहाँ जैसे फिट बैठे वैसे ही बिठाओ। अगड़ा, पिछड़ा, विकास, हिंदुत्व सारी रणनीति बिठाओ और शत्रु को परास्त करो।

  8. भारत में पढ़े लिखे मुसलामानों के दो वर्ग हैं .एक तो वह जो गुजरात में रह कर मोदी के शासन का
    लगभग दस वर्ष का प्रत्यक्ष अनुभव कर चुका है दूसरा वह कांग्रेस के तीस्ता आनंद जैसे पिठ्ठुओं का जो मोदी के मुख पर कालिख पोतने के लिए कृतसंकल्प हैं और किसी ऐसी जांच को विश्वसनीय नहीं मान सकतेजो मोदी को दोषी सिध्ध नहीं करती .वस्तान्वी कुछ भी कहें इकबाल जी का इकबाल इसी में है की अपनी बात पर अटल रहें गुजरात का मुसलमान बराबर मोदी में अपना विश्वास प्रकट करता आरहा है और जो अपने नाम के आगे हिंदुस्तानी होने का बिल्ला लगाये फिरते हैं उन्हें ऐसी दिव्य दृष्टि की सिध्धि प्राप्त है कि वे सुदूर उत्तर प्रदेश में बैठ कर भी गुजरात के दंगों का सत्य दर्शन कर चुकने में सक्षम हैं .यह बात दूसरी है कि उनकी दिव्य दृष्टि गोधरा में ६८ हिन्दुओं को जिंदा जला दिए जाने को नहीं देख पाती न ही यह की दंगों में लाग्भग २५० हिन्दू भी मारे गए न यह की तीस्ता को कांग्रेस द्वारा मोदी के विरुध्ध षड़यंत्र रचने के लिए करोड़ों रुपये दिए गए .जो असत्य का प्रचार करने में ही अपना हित देखता है उस से किसी अन्य प्रकार के व्यवहार की आशा रखना व्यर्थ है

  9. श्री इकबाल हिन्दुस्तानी द्वारा पेश कुछ तथ्यों के साथ सहमति जताते हुए भी उनके द्वारा प्रस्तुत विभिन्न राजनैतिक दलों के सेक्युलरिज़्म का नकाब एक अच्छे ख़ासे विवाद को जन्म देता है. मेरा अनुभव तो यह है कि हिंदुओं के जातिवाद के साथ अल्पसंख्यकों को मिलाकर बनाई गयी घोल को सेक्युलरिज़्म का जामा पहना दिया गया है. यही वजह है कि लालू और मुलायम सिंह जैसे लोग भी आज सेक्युलर हो गये हैं. यह सही है कि कोई कट्टर पंथी शायद ही भारत का प्रधान मंत्री बन सके,पर यह भी उतना ही सही है कि इस तथाकथित सेक्युलरिजम का जामा पहन कर अगर कोई उस पद पर जेन केन प्रकारेन पहुँच जाता है तो वह दिन भी देश के लिए गौरवशाली नहीं ही होगा.

  10. सबसे पहले यह विचार किया जाना चाहिए कि सेक्युलर होने का मापदंड क्या है?कितने कितने मिश्रणों से यह मिल कर बनता है.इसका प्रमाण पत्र कौन प्रदान करता है.सभी दल खुद ही अपने को सेक्युलर व दुसरे दल जो उनकी बात का समर्थन करें सेक्युलर कहे जाने लगते हैं,और लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगते हैं.अलायन्स में नहीं इसे तो वे जनता को बरगलाने के लिए केवल नाम देते हैं.और जिस दिन उनके स्वार्थ किसी भी बात पर टकरा जाते हैं,तब दूसरा सांप्रदायिक बन जाता है.और पहला दुसरे को सांप्रदायिक होने का प्रमाणपत्र दे देता है.जैसे कांग्रेस सबसे ज्यादा साम्रदायिक हो कर भी अन्य सबको असाम्प्रदायिक होने का फरमान जरी करती है.जो धरम के नाम पर टिकट बांटे उसके आधार पर प्रचार करे,उसके नामपर देश के संसाधनों पर पहला हक़ उनका केवल उनका बता कर वोट लेने को ललचाये.चाहे दे कुछ भी नहीं.वह सेक्युलर है,जिस दल के पास सत्ता नहीं.वह न दे सकने के कारण असाम्प्रदायिक कहलाये,यह इस देश में ही संभव है.
    सच तो यह है कि हमारे यहाँ सेक्युलर का रोना रो कर सत्ता के शिखर पर चढ़ने का यह केवल एक पायदान मात्र है,और जनता को बहकाने का.भी.वास्तव में है कोई भी नहीं.

  11. निहायती मक्कार लोग है ये ,कत्ल पर कत्ल करते जाते है कहते है जेहाद हमारा |
    जब वापस जुत्ते पड़ते है तब याद आता है ,इक सेक्युलर था देश हमारा ||
    जो बीस लाखहिन्दू को कराची ढाका के बाज़ारों मे मार चुके हो,जो करोड़ो हिन्दू को उनके पुरखो की जामिनो से उखाड़ चुके हो ,
    वो क्या हमको शांति अमन उपदेश देंगे ??जो कश्मीरी पंडित जैसे भोले लोगों के घर भी जला चुके हो ||
    पूरी दुनिया पीड़ित इनसे ,ये कहते हम खुद पीड़ित ??
    ये कुछ और नहीं पीड़ित जेहाद है जिसको मानते दुनिया भर सब विद्धवान ||

  12. जो वहशी लोग है वो मोदी को सीखा रहे है ??गोधरा मे हिंदुओं को जलाने वाले आतंगी कभी नहीं बच सकते है मोदी देश की आशा है वो आएंगे करोड़ों हिन्दुओ को साथ लेकर आज भी देश मे प्रधान मंत्री मुसलमान नहीं तय करता है ये देश हमारा है मुसलमान तो कब का पाकिस्तान ले चुके है इस हिन्दू भूमि पर किसी टोपी वाले की हुकूमत नहीं चलेगी ये जो मुस्लिम वोट बैंक की लूट मची है वो सिर्फ वोट के लिए है मुसलमान कैसा भी हो हमेशा कट्टर ही होता है ,उसका दिमाग हमेशा जेहादी गतिविधियों मे रहता है जेहाद इस्लाम का मूल भूत अंग है जिसका अर्थ है हिन्दुओ और काफिरों को मारना काटना उनका रेप करना ,उत्तर प्रदेश मे जिस तरीके से हिन्दू जाती मे बात गए थे आउर आज वहाँ मुसलमान रोज रोज दंगा कर रहे है वहाँ हिन्दू जल्द ही तंग आयंगे ,एक बार मोदी को आने दो खुल कर 272 सीट भी जीत सकती है भाजपा ,सत्ता के दल्ले फिर घूम कर आएंगे दम हिलाते हिलाते …………………जो निर्दोष बच्चो को औरतों को जेहाद के नाम पर मरते रहते है उनको हमें सीखने की जरूरत नहीं है कश्मीरी पंडितों के हश्र सबके सामने है और जो पाकिस्तान से आ रहे है वो सब बताते है और भारत के सब मुस्लिम मौहल्ले मिनी पाकिस्तान व अपराधियो के अड्डे है जहां पुलिस नहीं जा पाती है गुजरात मे इनकी पीड़ा ये ही है की इनके अपरधियों को अपराध करने की छुथ नहीं देता मोदी ,कोंग्रेसी व सपा वाले एसा कराते है इस लिए इनके रहनुमा है

  13. हा हा हा हा ……….. आपके इस लेख पर सिर्फ हंसा ही जा सकता है इकबाल जी। छाती पीट पीट के मातम किया है आपने …………… ​सादर,

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