राजनीति ही क्यों

विपिन किशोर सिन्हा

महात्मा गांधी ने कांग्रेस को लोकप्रियता के चरम शिखर पर पहुंचाया। उन्होंने इसके माध्यम से देश को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त भी कराया। लेकिन क्या उन्होंने सपने में भी सोचा था कि उनकी कांग्रेस बोफ़ोर्स, २-जी स्कैम, राष्ट्रमंडल घोटाला, कोलगेट जैसे घोटालों में आकण्ठ डूब जाएगी? जबतक कांग्रेस गांधीजी के आभामंडल के आस-पास थी, देश के लिए काम किया। सरदार पटेल, डा. राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई जैसे चरित्रवान नेता कांग्रेस की ही देन थे। लेकिन जब से कांग्रेस ने चरित्र को बाहर का रास्ता दिखाया, तब से यह राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नारायण दत्त तिवारी, चिदंबरम, वाड्रा, अभिषेक सिंघवी और दिग्विजय सिंह की पार्टी बनकर रह गई। भारत की ऐसी कौन सी राजनीतिक पार्टी है जो अपने घोषणा पत्र में घोटालों और भ्रष्टाचार की वकालत करती है? कौन पार्टी वंशवाद को अपना नैतिक अधिकार मानती है? सबके सिद्धान्त अच्छे प्रतीत होते हैं। उनके कार्यक्रम भी लोक लुभावन हैं। फिर ऐसा कौन सा कारण है कि कोई भी पार्टी भ्रष्टाचार को रोकने में सफल नहीं हो पा रही है? कारण एक ही है – चरित्र की कमी। विवेकानन्द ने कहा था – I want a man with capital M. इस समय capital M वाले मनुष्यों की समाज के हर क्षेत्र में कमी हो गई है जिसका परिणाम घोटाले, भ्रष्टाचार, बलात्कार, लूटपाट, आगजनी, दंगा इत्यादि के रूप में सबके सामने है। क्या पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम, मनरेगा, मिड डे मिल, वृद्धावस्था पेन्शन, पंचायती राज, सांसद/विधायक निधि की योजनाएं गलत हैं? शायद नहीं। लेकिन भ्रष्टाचार के घुन ने इन्हें इतना खोखला कर दिया है कि सभी योजनाएं लक्ष्य से भटक गईं हैं। स्वराज प्राप्ति के पश्चात सुराज कि अत्यन्त आवश्यकता थी और इसके लिए अधिक चरित्रवान और निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं की आवश्यकता थी, लेकिन दुर्भाग्य से देश में चरित्र निर्माण करने वाले संगठनों की भारी कमी होने के कारण हम चरित्रवान नागरिकों का निर्माण नहीं कर पाए। ले-देकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी एक ही संस्था देश को उपलब्ध हुई जिसने चरित्रवान कार्यकर्त्ताओं की कई पीढ़ियों का निर्माण किया। राजनीति और इसके इतर भी इसके कार्यकर्ताओं ने अपने कार्य से राष्ट्र की महत्तम सेवा की है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवानी ने अपने अपने क्षेत्र में मील के पत्थर स्थापित किए, परन्तु आज की तिथि में येदुरप्पा, मधु कोड़ा और नीतिन गडकरी के क्रिया कलापों को देख मन में यह संशय घर करने लगता है कि इस महान संगठन के प्रशिक्षण में भी कही कोई दोष तो नहीं?

आजकल हर आदमी कुछ दिन समाज सेवा करता है, आन्दोलन चलाता है और फिर राजनीति में घुस जाता है। हम यह भूल जाते हैं कि राजनीति से अधिक श्रेष्ठ समाज सेवा है। समाज श्रेष्ठ होगा तो सरकारें स्वयं ही श्रेष्ठ बन जाएंगीं। स्व. लोकमान्य तिलक अपने समय के सर्वमान्य राजनेता थे। वे अपने युग की राजनीति के शिखर पुरुष थे। उनका नारा – स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, वन्दे मातरम की तरह देश पर मर मिटने वालों के लिए ध्येय वाक्य था। उन्हीं दिनो तिलक जी से किसी पत्रकार ने पूछा –

“यदि इन कुछ वर्षों में स्वराज मिल गया तो आप भारत सरकार के किस पद को संभालना पसंद करेंगे?”

इस सवाल को पूछने वाले ने सोचा था कि तिलक महाराज उत्तर में अवश्य प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने की मंशा जाहिर करेंगे। लेकिन उसे लोकमान्य तिलक का उत्तर सुनकर अत्यन्त हैरानी हुई। बाल गंगाधर तिलक ने कहा था –

” मैं तो देश के स्वाधीन होने के पश्चात स्कूल का अध्यापक होना पसंद करूंगा क्योंकि देश को सबसे बड़ी आवश्यकता अच्छे नागरिक एवं उन्नत व्यक्तियों की होगी जिसे शिक्षा एवं समाज सेवा के द्वारा ही पूरा किया जाना संभव है।”

हजार वर्षों की गुलामी के कारण अपना सबकुछ खो बैठने वाले समाज में अनगिनत बुराइयों के साथ नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक पिछड़ेपन को दूर किया जाना आज की तिथि में सबसे बड़ा काम है और इसे किसी राजनीति के द्वारा नहीं बल्कि सामाजिक सत्प्रवृतियों के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। समाजसेवा के लिए अनगिनत क्षेत्र हैं। निरक्षरता की समस्या अभी खत्म नहीं हुई है। प्रौढ़ों और महिलाओं को पढ़ाने की सुध किसे है? सरकार तो अपने वर्तमान शैक्षणिक ढांचे को चलाने में ही चरमरा रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षा की सामयिक चुनौती को समर्पित लोकसेवी ही पूरी कर सकते हैं। खर्चीली शादियां, तंबाकू, शराब, भांग, अफ़ीम, दिखावा आदि में समाज के हजारों लाखों करोड़ नित्य ही व्यर्थ जा रहे हैं। यह धन २-जी स्कैम और कोलगेट से ज्यादा है। यदि इस धन को बचाया जा सके तो न जाने कितनी राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के साथ अनगिनत परिवारों की खुशियां वापस लौट सकती हैं।

जात-पांत के नाम पर हजारों टुकड़ों में बंटे-बिखरे समाज को फिर से एकता-समता के सूत्र में बांधने की आवश्यकता है। गृह उद्योगों के अभाव में देश की महिलाएं एवं वृद्ध निठल्ला जीवन जीते हैं। यदि इन्हें विकसित किया जाय तो घरों के साथ देश की आर्थिक स्थिति भी सुधर सकती है। देश का युवा वर्ग आज के सिनेमा और टीवी चैनलों से दिशा प्राप्त कर रहा है। सार्थक साहित्य का सृजन ठप्प है। ये पंक्तियां समाज सेवा की अनगिनत जरुरतों में से कुछ की ही चर्चा करती हैं। इनके अतिरिक्त और भी अनेकों कार्य करने को पड़े हैं जिन्हें हाथ में लेकर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। लेकिन ये सारे कार्य करेगा कौन? सोनिया या अरविन्द केजरीवाल?

16 COMMENTS

  1. One problem is that Mukeshbhai controls GoI. Bigger problem is that Rockefellar controls Mukeshbhai, they both control Supreme Court judges. And much bigger problem is — Arvind Gandhi will refuse to mention that Rockefellars run GoI and Supreme Court judges, because his media-coverage also comes from Rockefellars !!!

    Pls read https://educate-yourself.org/ga/RFcontents.shtml

    This is tip of iceberg

    The whole story is

    1. Because of bettwr courts, administration etc USA is far ahead in technology and weapons than India and rest of the world.

    2. Indian Elitemen such as Mukeshbhai are now controlled by Rockefellers etc because Ambani etc depend on Rockefellers to run their refinaries and other technologies. Some eltemen are trying to build nexuses with Chinese (eg Anilbhai is increasingly becoming pro-Chinese), which will create tensions in elitemen in times to come.

    3. Indian mediamen are controlled by rockefellars and other US elitemen as well as Saudi Arabian elitemen via investments as well as technology.

    4. The Supreme Court judges are controlled by American elitemen and Indian elitemen via heavy fees paid to relatives of Supreme Court judges, and also using media-blackmail as threat

    5. Ministers and MPs are controlled controlled by American elitemen and Indian elitemen via bribes and also using media-blackmail as threat. Some MPs like Jindal also have factories which heavily depend on US technology, which gives additional level to US elitemen over such MPs

    6. American elitemen and Indian elitemen also own the “protest activists” such as The Anna and Arvind Gandhi by giving them media publicity and “prestigeious” awards like Magasasay Award.

    7. And if EVMs have remote control or are manipulated by other means, then we have much much bigger mess at hand. Because that will stop new guys from getting focus.

    ====

    Solution is not difficult, but voluminous. It is possible to convince activists to give DRAFTS for the changes they want. Once they give DRAFTS, they can convinced to add Right to Recall over “main authority” in their draft and also add Transparent Complain Procedures in their draft. Most genuine activists will agree. We can use newspaper advertisements to publicise these drafts.

    And we manage to get TCP\RTR drafts printed in Gazette, then hold of Rockefellars and Saudi Arabians in Indian polity will weaken.
    https://educate-yourself.org/ga/RFcontents.shtml

    • Mr. Ram Narayan Suther I read the reference and tried to understand the whole gambit, but I could not understand your solution. If everybody and everything is controlled by US and Indian elites (Further you have added Chinese elites as well) then what’s the solution? Do you think these elites(US and Indian) have not influenced Congress or BJP? In my opinion they have.
      In such circumstances you have come with some vague solution. Who will prepare such drafts and to whom will he give?.Activists had been putting enormous efforts to pressurize the government since many years, especially in last two years, but with what result? Since your both main political parties are already sold, it was obvious that no result will come out. Now one Magsaysay Award winner along with some other hard core activists has come out with clear cut solution of all existing t and future problems and has announced the formation of a political party (AAP) on the basic Indian principles advocated mainly by Mahatma Gandhi and Pandit Deen Dayal Upadhyay,why don’t we believe their intension and allow them to function?. Don’t you think that if they live up to expectation and get the public support, then fate of India will change in no time?

    • Mr. Ram Narayan Suther I read the reference and tried to understand the whole gambit, but I could not understand your solution. If everybody and everything is controlled by US and Indian elites (Further you have added Chinese elites as well) then what’s the solution? Do you think these elites(US and Indian) have not influenced Congress or BJP? In my opinion they have.
      In such circumstances you have come with some vague solution. Who will prepare such drafts and to whom will he give?.Activists had been putting enormous efforts to pressurize the government since many years, especially in last two years, but with what result? Since your both main political parties are already sold, it was obvious that no result will come out. Now one Magsaysay Award winner along with some other hard core activists has come out with clear cut solution of all existing t and future problems and has announced the formation of a political party (AAP) on the basic Indian principles advocated mainly by Mahatma Gandhi and Pandit Deen Dayal Upadhyay,why don’t we believe their intention and allow them to function?. Don’t you think that if they live up to expectation and get the public support, then fate of India will change in no time?

  2. राम नारायाह सुथर जी आपने बहुत कुछ लिखा है,पर एक बात भूल गए कि मैंने पहले ही लिख है कि किसी भी वर्तमान राजनैतिक दल से मैं परिवर्तन या बदलाव की उम्मीद नहीं रखता,अतः भारतीय स्वाभिमान ट्रस्ट वर्तमान परिस्थिति में बदलाव कैसे लायेगा,यह मेरी समझ से बाहर है।रही बात केजरीवाल टीम के बहुमत में आने की तो मुझे उसकी ज्यादा उम्मीद नहीं है,पर उनकी उपस्थिति भी अगर दर्ज हो जाती है तो यह त्रस्त आम आदमी की जीत होगी। मेरे विचार से उनको जब तक बहुमत न मिले तब तक उनको एक जिम्मेवार विपक्ष की भूमिका से आगे कुछ नहीं करना चाहिए।अगर अरविन्द केजरीवाल की पार्टी किसी के साथ गठबंधन करती है तो मेरे विचार से वह ज्यादा दिन नहीं चल पायेगी।

  3. केजरीवाल पर संदेह करने के कारण……………………………
    १. मीडिया द्वारा उसे अत्यधिक महत्व दिया जाना, जबकि उसका ऐसा ऊंचा स्तर और भूमिका नहीं है. अन्ना, बाबा राम देव, आर्ट औफ लीविंग, संघ आदि अनेक व्यक्ती और संगठन हैं जो अनेकों महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं, पर मीडिया उनपर तो कभी ध्यान नही देता. केजरीवाल पर इतनी क्रिपा के कुछ तो गुप्त कारण हैं. राष्ट्रीय मीडिया की भूमिका किसी से छुपी हुई नहीं है. वह तो पूरी तरह सोनिया अर्थात व्यापारी कम्पनियों अर्थात भारत विरोधियों की मुट्ठी में है.
    २. केजरीवाल पर संदेह का दूसरा बडा कारण यह है कि…… पर्दे के पीछे छुप कर भारत की तबाही करने वाली विशलकाय विदेशि कंपनियों’ के विरुद्ध बोलते उसे कभी किसी ने नहीं सुना. भारत की लुटेरी कम्पनियां तो उन विदेशी कम्पनियों के आगे बिलकुल बौनी हैं. तो क्या इसका अर्थ यह नहीं कि केजरीवाल भार्तीय कम्पनियों का विरोध करके एक तीर से दो शिकार कर रहे हैं. एक तो अपनी धाक जमा रहे हैं और दूसरे….? विदेशि कंपनियों के रास्ते के कांटों को दूर कर रहे हैं, उनके लिये रास्ता साफ कर रहे हैं. इसके इलावा उनके इस मौन (विदेशी कम्पनियों के विरुद्ध) का कोई एक भी उचित कारण बतला सकें तो बतलायें ?
    ३. केजरीवाल के विरुद्ध कभी भी कोई कठोर कार्यवाही सोनिया सरकार नहीं करती. ऐसा क्यू ? अन्ना और बाबा राम देव जैसों के विरुद्ध तो कोई कसर ये नहीं छोडते. ऐसे में इस संदेह में दम है कि केजरीवाल कांग्रेस के हित साधने के लिये भाजापा के विरुद्ध एक मोहरा हैं ? कांग्रेस से दुखी जनता भाजपा की ओर न जाये , यही केजरीवाल की भूमिका हो सकती है. यदि ऐसा नहीं तो फिर और कोई कारण इस स्थिति का बतलायें ? जहां तक बात है वाड्रा की तो उस मुद्दे को उछाल कर, वह-वाही लूट कर केजरीवाल आगे निकल गये. वाड्रा का क्या बिगडा ? अब केजरीवाल ने वह मुद्दा ही छोड दिया, अरे भई क्यूं छोडा वह मुद्दा? है कोई उचित कारण ? इस मुद्दे को सिरे चढाने के लिये शुरु किया होता तो उसके हल हुए बिना उसे छोडते नहीं. वाड्रा, सोनिया व अनेक केन्द्रीय मंत्रियों के लाखों करोड के जो खाते हैं ; उनके बारे में ये महोदय चुप क्यूं हैं ? यदि उनके मोहरे नहीं तो यह परहेज, ये पक्षपात क्यूं ? यानी केजरीवाल की दाल में बहुत कुछ काला है. घूम-फिर कर यही साबित करना था कि कांग्रेस बेईमान है तो क्या, भाजपा भी वैसी ही है.
    ”” श्रीमान ने अपना यह काम पूरे कौशल के साथ कर दिया. कांग्रेस के बेपनाह घोटालों, अनगिनत जन विरोधी फैसलों से जनता का ध्यान हटाना था ; वह बडी चालाकी से हटा दिया. ””
    * कुछ लोगों का कहना है कि वर्तमान ्निराशाजनक परिस्थितियों में केजरीवाल पर भरोसा करने के इलावा और कोई रास्ता नहीं है. मेरा निवेदन केवल इतना है कि ” खाई से बचने के लिये हम कूएं में छलांग लगायें, यह तो जरूरी नहीं. सांप से बचाव के लिये नाग के आगे समर्पण करना क्या उचित होगा ? धैर्य से प्रयास चलते रहें, समाधान तो अब होना ही है. अति के बाद सदा परिवर्तन होता ही है, इसे हम न भूलें.

    • हो सकता है कि डाक्टर राजेश कपूर सही साबित हों और हमारे जैसे लोग जो केजरीवाल का केवल आज ही खुला समर्थन नहीं कर रहे हैं ,बल्कि विभिन्न माध्यमों द्वारा उनको को पहले भी सलाह दे रहे थे कि राजनैतिक दल बनाने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है,गलत सिद्ध हों।पर अब परिस्थितियाँ इस तेजी से करवट बदल रही हैं,कि विवाद में न पड़कर अब धरातल पर कुछ ठोस कार्य करने की आवश्यकता है।जहां तक मेरे निजी विचारों का प्रश्न है जैसा मैंने पहले भी कहा है कि मैं पिछले छप्पन सत्तावन वर्षों से विभिन्न दलों के कार्य कलाप देख रहा हूँ,अतः मुझसे अगर इन्ही पर उम्मीद रखने को कहा जाता है तो मुझे ऐसा कहने वालों की बुद्धि पर तरस आने लगता है। ऐसे भी बीजेपी कांग्रेस का विकल्प क्या बनेगा?पहले वह अपने आतंरिक कलह से तो उबरे।

  4. सिन्हा जी केजरीवाल ने कासाब के फांसी के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई थी,बहुत से ऐसे लोग भी हैं ,जो फांसी की सजाके सख्त खिलाफ हैं,उन्होंने तो कासाब की फांसी के खिलाफ भी आवाज उठाई थी,फिर भी मैं उनको देशद्रोही नहीं मानता,क्योंकि फांसी की सजा अगर उनके सिद्धांत के विरुद्ध है तो वे ऐसी आवाज अवश्य उठाएंगे,अगर इसी बात पर किसी का चरित्र संदिग्ध हो जाए तो शायद बहुतसे ईमानदार और संविधान का पालन वाले भी इस दायरे में आ जायेंगे।उसी तरह आस्तिकता और सनातन धर्म में वर्णित देवी देवताओं के प्रति जिसमें आस्था नहीं है आपलोगों की परिभाषा के अनुसार अगर वह देश द्रोही है ,तो मेरे जैसा नास्तिक भी देश द्रोही ही गिना जाएगा।मैंने वी दी शेमलेस नामक चेतन भगत के लेख का अनुवाद किया है जिसका शीर्षक मैंने रखा है हम निर्ल्लज .प्रवक्ता में तो वह लेख स्वीकृत नहीं हुआ,पर वह लेख और उसका मूल अग्रेजी दोनों मेरे वाल पर फेशबुक पर है।मेरी या मेरे जैसे लोगों की नैतिकता का मापदंड वह नहीं है ,जो आम भारतीय का है,अतः मैं अपने को उस श्रेणी में नहीं मानता,जिसको निर्ल्लज कहा गया है। कश्मीर ,नक्शल और उत्तर उर्वी राज्यों की समस्याओं के बारे में मैं बहुत बार अपने विचार मैं प्रवक्ता में दिए गए टिप्पणियों में व्यक्त कर चुका हूँ।अतः उसके बारे में ज्यादा न कह कर मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि मैं इन तीनों मामलों में वर्तमान व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हूँ .
    रही बात अरविन्द केजरीवाल की नियत पर सदेह करने की,तो मैं समझता हूँ कि मेरे उपरोक्त विचारों के बाद मेरी नियत भी संदेह के दायरे में आ जायेगी ,अतः मैं इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कह सकता।

  5. बिपिनजी, मैं आपके इस विचार से सहमत नहीं की गांधीजी ने कांग्रेस के माध्यम से देश को स्वतंत्र कराया. हाँ, कांग्रेस के माध्यम से देश को खंडित अवश्य किया. कांग्रेस में पार्टी के कोष में घपले गांधीजी के जीवन काल में ही होने लगे थे. नेहरु को प्रधानमंत्री बना कर उन्होंने एक अत्यंत अलोकतांत्रिक कार्य किया था. बिपिनजी,संघ की प्रशिक्षण प्रणाली में दोष नहीं है. दोष है प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात, प्रशिक्षित व्यक्ति की अपनी प्रवृत्ति का. नितिन गडकरी पर आरोप, व्यवसाय में धन लगाने की प्रक्रिया को लेकर हैं, आर्थिक रूप से भ्रष्ट होने के नहीं. और हाँ, मधु कोड़ा का संघ से कोई सम्बन्ध नहीं था. आज की सबसे बड़ी समस्या नैतिकता तथा अनुकरण के योग्य चरित्र के अभाव की है.

    • राजेन्द्रजी, भाजपा दीनदयाल उपाध्याय, अटलजी और आडवानीजी की पार्टी है और संघ उसका अभिभावक है। याद कीजिए नरसिंहा राव के प्रधानमंत्रीत्व में आडवानीजी पर हवाला-भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। उन्होंने अविलंब् लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया था और यह भी घोषणा की थी कि जब तक वे आरोपों से मुक्त नहीं हो जाएंगे, कोई चुनाव नहीं कड़ेंगे।
      आरोप झूठे थे, सिद्ध नहीं हो पाए। आडवानी जी ने उसके बाद चुनाव लड़ा। क्या इस उच्च परंपरा का पालन गडकरी नहीं कर सकते? इससे तो आप सहमत हैं ही कि येदुरप्पा संघ के स्वयंसेवक रहे हैं। रही बात मधु कोड़ा कि तो मैं आपको बता दूं कि वे बाल स्वयंसेवक रहे हैं और उन्होंने अपना राजनीतिक कैरियर भाजपा से ही शुरु किया था। भाजपा के साथ संघ को भी आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। आखिर मोदी का नेतृत्व स्वीकार करने से मठाधीश हिचक क्यों रहे हैं। आज की तिथि में मोदी के अतिरिक्त भाजपा और देश की नैया का खेवैया दूसरा कोई नहीं है।

  6. आजादी के बाद से ये देश बलहीन बुद्धिहीन ज्ञानहीन और चरित्रहीन होने की और तेजी से बढ़ा है सिनेमा जगत आज चरित्रहीनता की पराकाष्ट पार कर चूका है राजनीती में भी चरित्रहीनता आम बात है पंडित नेहरु से लेकर महिपाल मदेरण तक कांग्रेस ने एक से बड़ा एक चरित्रहीन नेता इस देश को दिया है और कांग्रेस से उम्मीद भी क्या की जा सकती है गांधीजी के शायद वो ब्रह्मचर्य के प्रयोग रहे होंगे उन्हें चरित्रहीनता की श्रेणी में रखना उचित नहीं होगा

  7. विपिन किशोर सिन्हा जी से एक प्रश्न . क्या आपने अरविन्द केजरीवाल लिखित स्वराज पुस्तक पढी है?अगर हाँ तो मैं आपके द्वारा उठाये पहलुओं पर सार्थक विवाद के लिए तैयार हूँ.,क्योंकि मेरे विचार से इनमे से अधिकतर पहलुओं पर उसमे दिशा निर्देश है.अगर आपने वह पुस्तक नहीं पढी तो कृपया पढ़ लीजिये.हो सकता है की आपके द्वारा उठाये गए बहुत प्रश्नों का समाधान वहां मिल जाए.इस पुस्तक का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है ,क्योंकि अन्ना जी ने भी इसे अपने आन्दोलन का घोषणा पत्र कहा है .अरविन्द केजरीवाल के आने वाली पार्टी का घोषणा पत्र तो वह है ही.

    • आदरणीय सिंह साहब, आप ने केजरीवाल से कुछ ज्यादा ही आशा कर रखी है। आप उनको लेकर कुछ भावुक भी हैं। मैं अब भी अपनी बात पर दृढ़ हूं कि वे सस्ती लोकप्रियता बटोरने के अतिरिक्त कोई कार्य नहीं कर रहे हैं, कर भी नहीं सकते। वे अनु टंडन और मुकेश अंबानी केविदेशी बैंकों के चुटकी भर जमा धन पर हो-हल्ला कर सकते हैं पर सोनिया, राजीव का नाम लेने से परहेज़ करते हैं। सारा हिन्दुस्तान इस तथ्य से अवगत है कि कांग्रेसियों और नेहरू परिवार का अकूत धन, जो हजारों करोड़ में है, स्विस बैंकों में जमा है। मैंने प्रमाण के साथ इसे प्रवक्ता में प्रकाशित कराया था – शीर्षक था – काले धन की वापसी से कांग्रेस भयभीत क्यों। वह लेख आज भी प्रवक्ता पर उपलब्ध है। आप पढ़ सकते हैं। समय सोनिया गांधी और केजरीवाल की सांठ-गांठ का प्रमाण स्वयं देगा। अन्नाजी ने केजरीवाल की हकीकत पहचान ली है। देर-सबेर आप भी पहचानेंगे।

      • सिन्हा जी मैं किसी के प्रति जल्दी भावुक नहीं होता.रह गयी अन्ना जी द्वारा अरविन्द केजरीवाल के हकीकत पहचाने जाने की बात तो मेरे विचार से आज भी उन दोनों के बीच ऐसा कोई मतभेद नहीं है जिसका प्रचार किया जा रहा है। ऐसे मैंने बार बार यह लिखा है कि अरविन्द केजरीवाल से मैं उम्मीद न भी रखूँ तो अन्य विकल्प क्या है कम से कम पिछले छप्पन सत्तावन वर्ष से मैं अन्य सभी दलों का करतूत देख रहा हूँ।मैं इतना आशावादी तो नहीं हीं हूँ कि आज भी उन पार्टियों से कुछ उम्मीद रखूँ। यथास्थिति से मैं कभी भी संतुष्ट नहीं रहा और न मैं आस्तिक हूं कि इसे ईश्वरीय विधान या अपने देश की नियति मान लूं।अरविन्द केजरीवाल का ग्रुप आशा की एक नई किरण लेकर आया है,तो मेरे जैसों के लिए उस ग्रुप पर भरोशा करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है।हो सकता है ये लोग भी कुछ नहीं कर सकें।उस हालत में भी मैं परिवर्तन की प्रतीक्षा करूंगा और अगर शारीरिक और मानसिक शक्ति ने साथ दिया तो इनके बाद भी अलख जगाने वाले के साथ सहयोग करूंगा।
        आपने छोटे घोटालों और बड़े घोटालों के पर्दाफाश की बात कही है,तो आप भी इंजीनियर हैं।मैं भी इंजीनियर हूँ और अरविन्द केजरीवाल भी इंजिनियर है।हमारी शिक्षा हमें बाध्य करती है कि बात वही की जाए या आंकडा वही दे जाए,जिसे प्रमाणित किया जा सके।वाड्रा के खिलाफ उंगली उठाना खेल नहीं था,पर चूंकि उसके पास आंकड़े मौजूद थे,इसलिए उसने ऐसा किया।यही बात अम्बानी के विरुद्ध भी लागू होती है।अम्बानी या सोनिया गाँधी के अरबों रूपये विदेशों में हो सकते हैं,पर उनके बारे में हवा में तीर चलाने से क्या लाभ?रही बात अरविन्द केजरीवाल की पुस्तक स्वराज की बात तो मैं इतना ही कहूँगा कि आपलोग महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज पढ़िए या पंडित दीन दयाल उपाध्याय का भारतीय अर्थ नीति एक दिशा निर्देष .आपलोगों को पता चल जाएगा की वह कोई नयी बात नहीं कह रहा है।आज जब पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों असफल हो चुके हैं तो उन दो मनीषियों द्वारा बताये गए मार्ग से अलग मुझे तो कोई अन्य मार्ग दिखाई नहीं देता और मेरी खुश किस्मती है है कि यह ग्रुप भी यही मार्ग सुझा रहा है।

        • आप चाहे तो सबसे बड़ा व् प्रभावशाली विकल्प “भारत स्वाभिमान ट्रस्ट ” को अपना सकते है जो पूर्ण स्वदेशी पूर्ण देश हित में समर्पित और एक सक्षम विकल्प देकर राजनेतिक दशा को सुधारने की और बढ़ रहा है आप भी इसका एक हिस्सा बन सकते है परन्तु शायद आपकी सेकुलर व् सिधान्त्वादी सोच शायद आपका साथ न दे

          • आर सिंह साहब! केजरीवाल का चरित्र आरंभ से ही संदिग्ध रहा है। कसाब की फांसी के बाद इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के बयान से उनकी कलई खुलती नज़र आती है। आईएसी ने बयान दिया कि फांसी में पारदर्शिता नहीं बरती गई। क्या फांसी देते वक्त केजरीवाल को आमंत्रित करना आवश्यक था। कुछ ही माह पूर्व केजरीवाल के सबसे विश्वस्त सहयोगी प्रशान्त भूषण ने आतंकवादियों की तरफ़दारी करते हुए कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग की थी। उनके एक सहयोगी, मंच से अपनी कविता के द्वारा भगवान शंकर को गाली देते हैं। इस कवि कुमार प्रशान्त का वीडियो यू ट्यूब पर उपलब्ध है। केजरीवाल आतंकवादियों और नक्सलवादियों के प्रबल समर्थक हैं। वे छद्म सेकुलरिस्ट और वामपंथी हैं। अगर आप केजरीवाल से अफ़ज़ल गुरु को अविलंब फ़ांसी देने का वक्तव्य दिलवा दें तो मैं आईएसी ज्वाइन कर लूंगा। अगर आप वक्तव्य नहीं दिला सकते तो कृपया राम नारायण जी के सुझाव को मानते हुए ‘भारत स्वाभिमान ट्रस्ट’ ज्वाइन कर लीजिए। भारत में परिवर्तन बाबा रामदेव और अन्ना जैसे त्यागी पुरुष ही ला सकते हैं, पलायन्वादी या अराष्ट्रवादी नहीं।

          • रामनारायण सुथर जी बात राजनैतिक विकल्प की हो रही है,जिसकी आज आवश्यकता है।अगर वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था में वह सबकुछ संभव होता तो न अन्ना हजारे को आन्दोलन छेडने की आवश्यकता होती और न अरविन्द केजरीवाल राजनैतिक विकल्प की बात करते। आज भी अगर कांग्रेस महात्मा गांधी के बताये मार्ग पर चले या बीजेपी पंडित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा सुझाए मार्ग कीओर कटिबद्धता पूर्वक अग्रसर हो तो अरविन्द केजरीवाल बेअसर होजाएंगे।
            रही बात धर्म निरपेक्षता और सिद्धांत कि तो मैं हिंदुत्व की जो परिभाषा जानता हूँ ,वह धर्म निरपेक्षता से अलग नहीं है और न उसमे किसी धर्म या मजहब के प्रति घृणा है।

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