राजेश कुमार पासी
पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश और अब नेपाल में छात्रों ने आंदोलन करके एक ही दिन में सत्ता पलट दी। इससे हमारे देश के कुछ नेताओं और उनके समर्थकों के मन में लड्डू फूटने लगे कि ऐसे ही भारत में आंदोलन करके सत्ता पलट देंगे । ये लोग सोशल मीडिया पर चिल्ला रहे हैं कि जैसे नेपाल में जेन जी ने एक दिन में सत्ता पलट दी, वैसा ही भारत के युवा क्यों नहीं कर रहे हैं। जिन्हें न तो भारत की समझ है और न ही भारतीय राजनीति की समझ है, वो लोग ही दुआ कर रहे हैं कि भारत में भी पड़ोसी देशों जैसी क्रांति हो जाये और उन्हें जनता सत्ता में बिठा दे। ऐसे लोग अपने अंध विरोध में यह भी नहीं देख पा रहे हैं कि नेपाल के जेन जी ने केवल सत्ता पक्ष के नेताओं के साथ ही मारपीट नहीं की है बल्कि विरोधी दल के नेताओं पर भी हमले किए हैं । वास्तव में आज भी हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जो सोचते हैं कि सत्ता बंदूक की गोली से निकलती है। उन्हें भारतीय सैन्य बलों की ताकत का अहसास नहीं है जिनकी गोली ऐसे लोगों को बहुत जल्दी औकात में ला सकती है। ये पाकिस्तान नहीं है जहां सेना लोकतंत्र को अपने पैरों से कुचल देती है. ये भारत है, जिसकी सेना और पुलिस लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देती है ।
लोकतंत्र के दुश्मन नक्सलियों और आतंकियो से सेना कई दशकों से लड़ रही है । आतंकवाद को कश्मीर तक सीमित कर दिया गया है और नक्सलवाद कुछ जिलों तक सिमट गया है। भारत की सेना ने कभी भी तख्तापलट की कोशिश नहीं की बल्कि सदैव लोकतंत्र की रक्षा के लिए डटी रही । यही हालत नेपाल की भी है, जहां अराजकता के बावजूद सेना ने सत्ता पर कब्जे की कोशिश नहीं की । इसके विपरीत नेपाली सेना ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने में मदद की है । नेपाल में एक आंदोलन सत्ता पलटने में इसलिए कामयाब हो गया क्योंकि नेपाल एक छोटा देश है जबकि भारत विभिन्नताओं से भरा हुआ 140 करोड़ की जनसंख्या वाला विशाल देश है । कुछ लाख लोग सड़क पर निकल पर सत्ता पलट दें, ऐसा होने की संभावना भारत में नाममात्र की भी नहीं है ।
ऐसा नहीं है कि भारत में आंदोलनों ने सत्ता नहीं बदली है लेकिन उसका तरीका अलग था । सबसे पहले 1975 में कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल में सरकार द्वारा की गई तानाशाही और जनता के उत्पीड़न के खिलाफ जेपी आंदोलन चलाया गया था । इस आंदोलन के कारण ही 1977 में जनता ने सरकार को बदल दिया । जिन नेताओं ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया था, उन्हीं नेताओं में से निकलकर कुछ लोगों ने सत्ता संभाली । दूसरी बार यूपीए सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ चले अन्ना आंदोलन ने केंद्र की सत्ता पलट दी । विपक्ष को देखना चाहिए कि जिन दो आंदोलनों ने भारत की सत्ता बदली, वो सड़क पर हुए आंदोलन से नहीं बदली थी । सड़क पर आंदोलन चलाकर सरकार विरोधी लोगों ने जनता को अपने साथ जोड़ा और जनता ने चुनाव में अपने वोट से सत्ता पलट दी । नेपाल में सड़क पर हुए आंदोलन से जो सत्ता बदली गई है, वो सत्ता भी एक हिंसक आंदोलन से आई थी । वामपंथी संगठनों ने वर्षों तक हिंसक आंदोलन चलाकर नेपाल से राजतंत्र को खत्म किया था । वामपंथी विचारधारा कहती है कि सत्ता बंदूक की गोली से निकलती है और नेपाल में वामपंथियों ने बंदूक से ही सत्ता हासिल की थी । अब बंदूक से ही उनसे सत्ता छीन ली गई है । ये वामपंथी गुरिल्ला लड़ाके थे और बंदूक के जरिये सत्ता में आ गए । इन्हें जनता की भावनाओं और उसके कल्याण से कोई मतलब नहीं था । ये लोग अनैतिक गठबंधनों और दलबदल से कुर्सी बदल-बदल कर सत्ता का आनंद ले रहे थे । जब इन्होंने राजतंत्र के खिलाफ आंदोलन चलाया तो जनता इन्हें अपना हीरो मानने लगी थी । जब सत्ता में आने के बाद इन्होंने जनता की अवहेलना शुरू कर दी तो इसकी असलियत जनता के सामने आ गई । जब उनकी हरकतों के कारण जनता में उनके प्रति नाराजगी बढ़ रही थी तो उन्होंने उसकी परवाह नहीं की । अगर जनता उनसे नाराज थी तो उन्हें जनता की शिकायतों पर ध्यान देना चाहिए था लेकिन बंदूक के बल पर सत्ता पाने वाले जनता की भावनाओं को कैसे समझ सकते थे । जब जनता अपनी नाराजगी जाहिर करने लगी तो इन्होंने उसकी आवाज दबाने के लिए अभिव्यक्ति के माध्यम सोशल मीडिया पर ही प्रतिबंध लगा दिया । इसके कारण जनता का गुस्सा फूट पड़ा और वो सड़को पर निकल आई । जनता की भावनाओं को समझना चाहिए था और उसके साथ संवाद स्थापित करके मामले को हल करना चाहिए था । जिन वामपंथियों ने बंदूक से सत्ता हासिल की थी, उन्हें यह पता ही नहीं है कि जनता से कैसे संवाद किया जाता है ।
जब छात्र अपना विरोध जताने के लिए सड़को पर उतरे तो सरकार ने उन पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया और 18 छात्रों को एक ही दिन में मार दिया । इससे छात्रों का गुस्सा बढ़ गया और एक शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसक आंदोलन में बदल गया । जब छात्र हिंसक हुए तो इन्हें बचाने के लिए सेना को आना पड़ा क्योंकि कोई और लोकतांत्रिक संस्था नहीं थी जो इन्हें जनता के गुस्से से बचाती । जहां तक भारत की बात है तो 2020 में मोदी सरकार के खिलाफ एक बड़ा किसान आंदोलन शुरू हुआ था जिसे बाद में विपक्षी दलों का समर्थन हासिल हो गया था । इसके अलावा मोदी विरोधी पूरा इको सिस्टम इस आंदोलन से जुड़ गया था । 13 महीने चले आंदोलन में सरकार ने आंदोलनकारियों पर एक भी गोली नहीं चलाई और न ही किसी किस्म की ताकत का इस्तेमाल किया । इसके विपरीत 26 जनवरी 2021 को आंदोलनकारियों ने हिंसक प्रदर्शन किया लेकिन पुलिस ने तब भी इन पर गोली नहीं चलाई । सरकार ने इस आंदोलन से इतने सुलझे हुए तरीके से निपटा कि जनता आंदोलन से दूर हो गई ।
इसके अलावा मोदी सरकार के खिलाफ सीएए, पहलवान और राफेल को लेकर भी आंदोलन किया गया है । कई मुद्दों पर सरकार को बदनाम करने की कोशिश की गई है लेकिन सरकार लोकतांत्रिक तरीके से सबसे निपटती आ रही है । मोदी समर्थक अक्सर सरकार पर कमजोर होने का आरोप लगाते हैं और चाहते हैं कि सरकार अपने विरोधियों से सख्ती से निपटे लेकिन सरकार हमेशा उदारवादी बनी रहती है । ऐसा नहीं है कि सरकार कमजोर है. आतंकवादियों, नक्सलियों और पाकिस्तान के खिलाफ सरकार ने बेहद सख्त रुख अपनाया है । मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों को जनता का साथ नहीं मिल रहा है क्योंकि वो अपने आपको जनता से जोड़ नहीं पा रहे हैं । इसके विपरीत प्रधानमंत्री मोदी लगातार जनता से जुड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं ।
जो लोग भारत में नेपाल जैसी क्रांति चाहते हैं, उन्हें पहले यह भी देखना चाहिए कि जेन जी डिमांड क्या कर रहे हैं। नेपाल का युवा भारत और चीन का विकास देखकर परेशान है. वो अपने देश का भी वैसा ही विकास चाहता है। नेपाल के लोग भारत के बदलाव को बहुत ध्यान से देख रहे हैं और अपने देश में भी ऐसे ही बदलाव चाहते हैं। वहां युवा भ्रष्टाचार, परिवारवाद और नेपोकिड से परेशान है। विपक्षी यह नहीं देख पा रहे हैं कि भारत की जनता ने यूपीए के भ्रष्टाचार और परिवारवाद से परेशान होकर ही मोदी को प्रधानमंत्री बनाया है। नेपोकिड भाजपा से ज्यादा विपक्ष की बड़ी समस्या है। भाजपा के परिवारवाद और विपक्ष के परिवारवाद में बड़ा अंतर यह है कि भाजपा में नेताओं के बच्चों को अपनी काबलियत साबित करनी पड़ती है जबकि विपक्षी दलों में शीर्ष नेता का बेटा सीधे पार्टी की कमान थाम लेता है।
विपक्ष के समर्थक सोशल मीडिया में लिख रहे हैं कि भारत को नेपाल से सीखना चाहिए। ये लोग इतने ज्यादा हताश और निराश हो चुके हैं कि इनका हीनभाव सिर पर चढ़कर बोल रहा है। हज़ारों साल पुरानी संस्कृति वाले देश को नेपाल से सीखने की सलाह दे रहे हैं। नेपाल में वित्तमंत्री को सड़कों पर दौड़ा – दौड़ा कर मारा गया तो कहा जा रहा है कि हमारी वाली साड़ी में कैसे भागेगी। सवाल यह है कि क्या भारत में किसी महिला नेता के साथ ऐसा पहले कभी किया गया है। इंदिरा जी ने आपातकाल लगाकर जनता का उत्पीड़न किया. इसके बावजूद उन्हें सम्मानपूर्वक वोट के जरिये सत्ता से बाहर कर दिया गया। जब जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें जेल भेजा तो उनके कई अपराधों के बावजूद जनता को पसंद नहीं आया। भारत की जनता अपने शीर्ष नेताओं का ऐसा अपमान करने की कल्पना भी नहीं कर सकती जैसा नेपाल में किया गया है।
बाबा साहब ने जब संविधान देश को समर्पित किया था तो कहा था कि ये देश अब संविधान से चलेगा और अब जनता को आंदोलन करने की जरूरत नहीं होगी. जनता इसके माध्यम से ही अपनी इच्छा जाहिर कर सकेगी। जो लोग संविधान को सिर पर रखकर घूम रहे हैं और रोज संविधान खतरे में है, का शोर मचाते हैं, वही लोग सड़क पर दंगा करके सत्ता बदलने का ख्वाब देख रहे हैं। संविधान तो सत्ता बदलने का एकमात्र रास्ता वोट को बताता है. सड़क पर दंगा करके सत्ता बदलने का उसमें कोई प्रावधान नहीं किया गया है। अंत में इतना कहना चाहता हूं कि हमारा देश नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के रास्ते पर जाने वाला नहीं है ।
राजेश कुमार पासी