रामस्वरूप रावतसरे
बिहार में प्रशांत किशोर और नॉर्वे के राजनयिक की गुप्त बैठक के बाद एक बार फिर डीप स्टेट टूलकिट की चर्चा होने लगी है। कई देशों को अस्थिर कर चुका ये टूलकिट भारत में कई बार अपना हाथ आजमा चुका है। किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन, अन्ना आंदोलन और उसके बाद केजरीवाल की मदद कर चुका है। सीसीए के खिलाफ देशभर में हुए विरोध प्रदर्शन और सबसे बड़ा शाहीन बाग आंदोलन ऐसे टूलकिट के जरिए मिले विदेशी फंडिंग के दम पर फले-फूले।
जानकारी के अनुसार भारत में नॉर्वे की राजदूत एलिन स्टेनर ने राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर से पटना में उनके आवास पर बैठक की है। देखने में यह एक सामान्य कूटनीतिक मुलाकात लग सकती है लेकिन नॉर्वे के इतिहास और बिहार के लिए प्रशांत किशोर की महत्वाकांक्षा को देखते हुए कई राजनीतिक जानकार इस मुलाकात की जाँच कराने की माँग कर रहे हैं।
अलग-अलग राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रणनीतियाँ बनाने वाले प्रशांत किशोर अब जन सुराज पार्टी बना कर बिहार के चुनावी राजनीति में पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में ये मुलाकात कहीं बिहार से संबंधित तो नहीं है? क्या किसी इंटरनेशनल संगठन की बिहार में विशेष रुचि हैं? ये भारत की अस्थिर करने की साजिश तो नहीं? या बिहार में निवेश को लेकर प्रशांत किशोर गंभीर हो रहे हैं, हालाँकि उन्होंने पहले ही कह दिया है कि बिहार को किसी बड़े कारखाने की जरूरत ही नहीं है। इस दौरान उन्होंने नार्वे के विकास की बात भी कही थी। तो क्या निवेश और पर्यावरण के नाम पर अब प्रशांत किशोर को नार्वे अपने एजेंडे के तहत सेट कर रहा है? प्रशांत किशोर को बिहार का अभिजात्य वर्ग भी पसंद कर रहा है। ऐसे में प्रशांत किशोर के सहारे अनौपचारिक किंगमेकर बनने की कोशिश नार्वे कर सकता है, ताकि भारत के संघीय ढाँचे को नुकसान पहुँचाया जा सके। कई लोग तो प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी की विदेशी फंडिंग की जाँच की माँग भी कर रहे हैं।
जानकारों की माने तो ये पहली बार नहीं है जब विदेशी फंडिंग को लेकर चर्चा हो रही है। दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ अन्ना आंदोलन और उससे निकलने वाली आम आदमी पार्टी और पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के विदेशी फंडिंग की जाँच सरकार कर रही है। ईडी ने आम आदमी पार्टी को 2014 से 2022 के बीच 7.08 करोड़ रुपए का विदेशी फंड मिलने की जानकारी गृहमंत्रालय को दी थी। इसमें अमेरिका,कनाडा, सऊदी अरब, यूएई से लेकर कई यूरोपीय देश शामिल हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि अब केजरीवाल का ग्राफ नीचे जाते ही प्रशांत किशोर विदेशियों के लिए नए विकल्प के रूप में सामने आ रहे हैं। इससे पहले सीएए के खिलाफ देशभर में हुई हिंसा और शाहीन बाग आंदोलन में विदेशी ताकतों का हाथ होने की बात सामने आई। ईडी ने साफ तौर पर पीएफआई के फंडिंग की बात की थी। यही हाल किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के विरोध का भी रहा। केन्द्र सरकार ने अमेरिकन अरबपति जॉज सोरोस के नेतृत्व वाले ओपन सोसाइटी फाउंडेशन पर आंदोलन को आर्थिक मदद करने का आरोप लगाया था। आंदोलन का मकसद भारत की आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना और देश को अस्थिर करना था। किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले राकेश टिकैत पर खुद उनके सहयोगियों ने भी विदेशी फंडिंग का आरोप लगाया था।
नॉर्वे ने भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर खुद को ‘तटस्थ’ बताते हुए मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया था लेकिन भारत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया क्योंकि कश्मीर मामले में ‘बाहरी हस्तक्षेप’ हमें कभी कबूल नहीं रहा। अब बिहार के बहाने भारत में फिर से दिलचस्पी लेना एक पूर्वनियोजित रणनीति का हिस्सा लगता है।
डीप स्टेट खुफिया तंत्रों सीआईए, एफबीआई जैसे अमेरिकन इंटेलिजेंस एजेंसी का नेटवर्क है। इनमें दुनिया के सरकारी और गैर सरकारी अभिजात्य वर्ग शामिल हैं जो लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गई सरकार से ज्यादा ताकतवर है। ये दुनिया के किसी भी कोने में सरकारों को बनाने- गिराने का माद्दा रखती है। ओस्लो का डीप स्टेट के साथ रिश्ता काफी गहरा है। नाटो के साथ उसका ऐतिहासिक समझौता है और डीप स्टेट का सेंटर ऑस्लो में है। दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश नॉर्वे हर हाल में सीआईए को भी सूट करता बताया जाता है।
नॉर्वे का 1.4 ट्रिलियन डॉलर का सॉवरेन ऑयल फंड उसे मजबूत बना रहा है। ये मुनाफा रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यूरोप के ऊर्जा संकट से हुए रिकॉर्ड “युद्ध मुनाफ़े” पर आधारित है। क्योंकि कई देशों ने रूस से ऑयल खरीदना बंद कर दिया था। इसका फायदा नॉर्वे को मिला। सॉवरेन ऑयल फंड की वैल्यू दुनिया में दखलंदाजी के लिए काफी है। इसने क्लिंटन फाउंडेशन, बिल गेट्स की परियोजनाओं और नाटो से जुड़े दुनिया के कई देशों में शासन बदलने की कोशिशों में लगे संगठनों को मदद करता है। यही वजह है कि अर्थशास्त्री अब नॉर्वे से आग्रह कर रहे हैं कि वह इस फंड का उपयोग यूक्रेन की आर्थिक मदद के लिए करे।
दिल्ली में केजरीवाल सरकार का जाना, आम आदमी पार्टी का कमजोर पड़ना और शाहीन बाग- किसान विरोध जैसे आंदोलन के नहीं चलने के बाद अब डीप स्टेट टूलकिट के जद में प्रशांत किशोर आ गए हैं। ये टूलकिट ऐसे लोगों की तलाश करते हैं जो महत्वाकांक्षी हो, जमीन पर दिख रहा हो और जिसे मिला कर ‘अनौपचारिक किंगमेकर’ बन सकें। ये टूलकिट ऐसे प्रयासों को किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं मानते बल्कि लोकतंत्र या मानवीयता के लिए ‘जरूरी’ मानते हैं। इस सोची-समझी रणनीति का खुलासा नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री जेन्स स्टोलटेनबर्ग (अब नाटो महासचिव) ने लीबिया के संबंध में किया था- “नॉर्वे लीबिया पर हमले में शामिल हुआ क्योंकि ‘यह नॉर्वेजियन वायु सेना के लिए एक अच्छा अभ्यास होगा’।”
जानकारों के अनुसार प्रशांत किशोर और नार्वे के राजदूत के बीच बैठक महज कूटनीतिक नहीं है। ये भारत को अस्थिर करने की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। इसके लिए तरह- तरह से फंडिंग कर चुनाव को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश किए जाने का अंदेशा है। इसलिए भारत को सभी गैर-सरकारी संगठनों को होने वाली फंडिंग का ऑडिट करना चाहिए जिससे इनकी वास्तविकता सामने आ सके।
रामस्वरूप रावतसरे