काश कि तुम विषपायी होते शिव के जैसे

—विनय कुमार विनायक
कल तक जो पानीपी-पीकरकोस रहे थे
दलित आदिवासी पिछडे़जन कोमत दो,
शिक्षा और नौकरी में आरक्षण,वही आज
आरक्षण का अमृत पान कर चुप क्यों हैं?

काश कि तुम विषपायीहोते शिव के जैसे,
एक शिव हीहैं जो बिना वर्ण-जाति विचारे
सबको वरदान देते, खुद कालकूटपी लेते,
सबको अमृत पिलाने वाले, खुद नहीं पीते!

आरक्षण तबतक बुरा जबतकनहीं मिला,
आरक्षण नहीं, आरक्षित जातियों से गिला,
आरक्षण संगआरक्षितों को गालियां मिली,
क्या तुमजातियों की घृणित गाली लोगे?

आज शस्त्र और शास्त्र दूषित लगता क्यों?
अगर पूर्वमें मानव को मानव समझे होते,
जितनी गालियां दी तुमनेउससे राहत देते,
काश कि तुमविषपायी होते शिव के जैसे!

आरक्षितों ने आरक्षण पाया है नहींसिर्फ
शिक्षा,दीक्षा, रोजगार पाने के लिए, बल्कि
यह हर्जाना है गालियों का जो तुमने दिए,
काश कि तुम विषपायी होते शिव के जैसे!

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