कविता

नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रुप से हार जाती हो

—विनय कुमार विनायक
नारी तुम किस रुप में हो
तुम मां बहन बेटी अर्धांगिनी
ईश्वर की नायाब कृति हो!

तुम प्रेम करुणा दया ममता
मातृत्व की प्रति मूर्ति हो
तुम मां बनकर जनती संतति
दूध पिलाकर पालती हो!

पर दो जून रोटी के खातिर
संतति मुख निहारती हो
क्या मां रुप में तुम हारती हो?

बहन बनके भाई कलाई को
तुम बड़े प्रेम से संवारती हो!

मगर विवाह हो जाने भर से
हकवंचित कर दी जाती हो
क्या बहन रुप में अवांछित हो?

जब बेटी बनकर जब आती हो
तब कोख में डरकर जीती हो
क्या बेटी पहली पसंद नहीं मां की?

नारी तुम हर रुप में पूज्य हो
मगर सदा प्रताड़ित होती हो
मातृ भ्रूण में तुम्हें पहचान कर
भ्रूण हत्या कर दी जाती!

अगर भ्रूण से जिंदा बच आती
कन्या रुप में तुम पूजी जाती
पर सूने में शैतान सिरफिरे रिश्ते
बलात्कृतकर मारते जीते जी!

कन्या बड़ी होके अर्धांगिनी बनके
दूसरे घर को संवारने जाती
वहां नारी के दूसरे रुप सास से
नारी दुत्कारी सताई जाती!

नारी जब तुम माता बनती
तो देवी सदृश पूजी जाती हो
जहां तुम्हारी पूजा ना होती
वहां देवता भी रमते नहीं!

मगर तुम्हारा दूजा रुप पुत्रवधू
तुम्हें फिर सताने आ जाती
पेटभर खाने से मुंहताज करती
खुद का जाया पुत्र को बदल देती!

नारी तुम सबसे प्रेम करती
मगर अपने रुप से हार जाती हो!

नारी जाति की व्यथा कथा
कोई सुनता नहीं पिता के सिवा
धाता विधाता भी वाम होता
भाग्य लेख लिखने में नारी का!
—विनय कुमार विनायक