विविधा

जीती रहे ‘विकीलीक्स’

पंकज कुमार साव

खोजी पत्रकारिता के लिए आदर्श बन चुके अमेरिकी वेबसाइट ‘विकीलीक्स’ के खुलासों से जब अमेरिकी प्रशासन के माथे पर बल पड़ने शुरू हुए थे, तभी से यह लगने लगा था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के भ्रष्टाचार भी अब सार्वजनिक हो पाएंगे, जो किसी न किसी दबाव में सामने नहीं आ पा रहे थे। यह उन लोगों के लिए आशा की किरण की तरह है जो सत्य के लिए जीते हैं और कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। यह खोजी वेबसाइट जो अगला धमाका करने वाली है, वह है स्विस बैंकों में दुनियाभर के पूँजीपतियों और राजनीतिज्ञों के अकूत धन वाले गोपनीय खातों का भंडाफोड़। खबर है कि इन खातों की दो सीडी विकीलीक्स को मिल गई हैं। ये सीडी स्विस बैंकों में काम कर चुके पूर्व अधिकारी रूडोल्फ एल्मर ने विकीलीक्स को दी है।

एल्मर की मानें तो दोनों सीडी में दो हजार लोगों के नाम हैं। जाहिर है, इसमें भारत के भी कई राजनेताओं व पूँजीपतियों के नाम होंगे जिनका खुलासा होने पर कई ऐसे चेहरे भी बेनकाब होंगे जो अब तक अपने देश के लोगों की पसीने की कमाई को काला धन के रूप में स्विस बैंक में जमा कर आश्वश्त थे। स्विस बैंकों द्वारा दशकों से कायम गोपनीयता की यह परिपाटी के ध्वस्त होने की संभावनाओं से इन राजनेताओं के दिल की धड़कनें बढ़ गई हैं। इधर सर्वोच्च न्यायालय के तेवर भी काले धन के मामले में सख्त हो गए हैं। इस पूरे मामले में काँग्रेस का रवैया कुछ ज्यादा ही संदिग्ध है। न्यायालय ने इसे राष्ट्रीय संपत्ति का चोरी का मामला करार देते हुए चकरा देने वाली करतूत करार दिया है जिसपर केंद्र सरकार में खलबली मचना स्वाभाविक ही है। ऐसा लगता है कि विदेशी बैंकों में काला धन जमाकर रखने वालों में सबसे ज्यादा कांग्रेसी नेता ही हैं वरना नाम सार्वजनिक करने से इतना गुरेज क्यों है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आशंका भी जताई है कि काले धन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में हो सकता है।

दूसरी तरफ प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की इस मामले में जो भी प्रतिक्रिया आ रही है, वह अप्रत्याशित नहीं है। हाल के आम चुनावों में पार्टी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। ये अलग बात है कि चुनावों के बाद इस मुद्दे पर विशेष बहस नहीं हो सकी। फिर भी, देश के दूसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल का इस मामले में आत्मविश्वास वाकई काबिले तारीफ है वरना कौन जानता है कि नाम सार्वजनिक होने पर इस खेमें के भी कोई नेता बेनकाब हो जाएँ। राजनीतिक बयानबाजियों को नजरअंदाज भी करें तो जनता को इस बात के लिए खुश होना चाहिए कि जिस धन को लेकर लंबे समय से बहस चल रही थी और निराशा का अंत दिखाई नहीं दे रहा था, अब विकीलीक्स के बहाने ही सही फिर से आस जग गई है। अपने लोगों ने न सही, अगर इस विदेशी वेबसाइट ने ही नामों का खुलासा कर दिया तो अपना भी भला होने वाला है। वैसे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इससे भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार की पोल दुनिया के सामने खुल जाएगी। इस बेइज्जती के लिए भी वो हमारे कर्णधार ही जिम्मेदार होंगे। जो भी हो, जूलियन असांजे और विकीलीक्स के लिए दुआ करना ही दीर्घकाल में सबके हित में है।