शब्द वृक्ष दो: डॉ.मधुसूदन

6
532

प्रवेश:

जितनी “शब्द रचना प्रणाली” पढी जाएगी उतनी भारत की सारी भाषाएं सक्षम होंगी, और एकात्मता के लिए भी कारण होंगी।

इस लिए, कुछ कठिन होते हुए भी इस विषय को पढने का अनुरोध करता हूँ।

सूचना : जैसे छात्र पाठ्य पुस्तक का पाठ समझ, समझ कर पढते हैं; उसी प्रकार समय निकाल कर पढने का नम्र अनुरोध है। अन्यथा, ऊब कर पाठक निराश होने की संभावना है।

कठिन ही प्रतीत हो तो उस अंश को , आप दुर्लक्षित कर के आगे पढें।

 

(१)शब्द वृक्ष दूसरा

कुछ पाठक-मित्रों के अनुरोध पर यह दूसरा शब्द वृक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। सुविधा के लिए कुछ उदाहरण दे कर सामान्य जानकारी देने का प्रयास किया है। जब पाठकों को शब्द रचना की सरलता समझ में आएगी, तो हिन्दी-संस्कृत के प्रति रूचि बढेगी, साथ जानकारी पाने का आनन्द भी अनुभव होगा। ऐसे आनन्द से ही व्यक्ति ज्ञान के प्रति उत्सुक हो जाता है। ऐसी मनोरंजक शब्द रचना सीखने के लिए इतना प्रोत्साहन पर्याप्त हैं। शब्द वृक्ष समझना इतना कठिन नहीं, कुछ धीरज, और विचार करने की इच्छा हो, तो प्रक्रिया और भी रंजक और आनन्द दायक खेल सी प्रतीत होगी।

 

(२)शास्त्र शुद्ध संस्कृत भाषा

संस्कृत शास्त्र-शुद्ध भाषा है, जिस में नए शब्द रचने की वैज्ञानिक विधि भी है। विश्व की कुछ ही भाषाएं नए शब्द गढ सकती हैं; पर उन में निःसंदेह संस्कृत सर्व-श्रेष्ठ है,। सारे संसार में ऐसा शब्द रचना शास्त्र किसी के पास नहीं है।

इस का संकेत अन्य लेखो में दे चुका हूँ, कभी आगे के लेखो में, विस्तार सहित विषय, दिया जाएगा। सभी पहलुओं को विशद करने के लिए तो पाठ्य पुस्तक ही लिखी जा सकती है।

पर शब्द रचना समझे बिना भी, कुछ बने बनाए शब्दों की झांकियाँ, तो अवश्य दिखाई जा सकती है।

आज एक और शब्द वृक्ष की झाँकी प्रस्तुत करना चाहता हूँ। कुछ पाठकों को प्रश्न हो, कि संस्कृत में कितने शब्द वृक्ष रचने की क्षमता है? तो बता दूं, कि मेरे अनुमान के अनुसार ऐसे सैकडों छोटे-बडे शब्द वृक्ष रचे जा सकते हैं।

 

(३)शब्द रचना का आधार मूल क्रियापद के धातु हैं।

शब्दों के मूल क्रियाओं में होते हैं। क्रियाओं का भी वर्गीकरण किया गया है। ऐसी २०१२ अलग अलग क्रियाएं संस्कृत में पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त नए क्रिया धातु भी विशेष प्रणाली के अनुसार रचे जा सकते हैं। सैद्धान्तिक रीति से, एक एक क्रिया पर एक एक शब्द वृक्ष खडा किया जा सकता है। पहले शब्द वृक्ष में कृ क्रिया-बीज लेकर वृक्ष खडा करने का प्रयास किया था।

 

(४) “जन” धातु

आज “जन” धातु पर वृक्ष खडा करना चाहता हूँ।

आगे लगने वाले अंश जैसे कि प्र, परा, आ, अ, अन, निर इत्यादि का ज्ञान और उनके कारण अर्थ में होते परिवर्तन की जानकारी होने पर कुछ गहराई से विषय आकलन हो सकता है। साथ में प्रत्यय भी पता हो, तो और भी सरलता हो सकती है।

अर्थ स्तर की विविधता भी जुडी हुयी ही होती है। अर्थों के अनेक स्तर आपस में जुडे होते हैं। उनके अर्थ विविध होते हैं, पर जुडे हुए होते हैं। निम्न उदाहरण कुछ स्पष्टता कर सकता है।

 

(५) जन धातु पर शब्द वृक्ष।

(क)जन जायते।

जन जायते रूपसे अर्थ स्तर हैं (१) जन्म होना , पैदा होना, (२) उत्पन्न होना,(३) फूटना (अंकुरित होना, पौधे की भांति).(४) उगना,(५) निकलना,(६) उठना, (७) होना,(८) बन जाना,(९) आ पडना,(१०) घटित होना, इत्यादि अर्थ निकलते हैं।

(ख) और जन जनयति

अब जन जनयति के रूपसे जुडा हुआ दूसरा अर्थ स्तर समूह निम्न है।

(११) जन्म देना, (१२) पैदा करना, (१३) उत्पन्न करना, इत्यादि

इन अर्थों को सरलता के हेतु से अर्थ स्तर कहता हूँ।इतने तो अर्थ मूल धातु में ही हैं।

 

(६) अर्थ स्तर की विविधता ।

आप कह सकते हैं शब्दों के अर्थ एक नदी जैसे होते है। इस नदी में सारे जुडे हुए शब्द अपने अर्थों सहित बहते हैं।

शब्दों के अर्थ मूल धातु के अर्थ से विकसित होकर अनेक स्तर धारण करते हैं।

इसके उपरान्त उपसर्ग लगने से अर्थ बदल जाता है। यह बदलाव भी रूढ परम्परागत रीति से ही होता है।

 

(७)यास्क की लिखी निरूक्त

यास्क की लिखी “निरूक्त” संसार की पहली पुस्तक है, जिसमें शब्दों की व्युत्पत्ति पर शास्त्र रचा गया है।

वह कहते हैं,कि (१) प्रत्येक शब्द की मूल धातु खोजी जा सकती है।

(२) शब्द के मूल अर्थ को प्रधानता देकर और उस अर्थ को बताने वाले रूपसे किसी समानता के आधारपर उसका अर्थ किया जाए।

(३)शब्दों के मूल अर्थ से सुसंगत अर्थ किया जाना चाहिए। अर्थ ही प्रधान रहता है, और व्याकरण भी उनकी बताई विधि में गौण हो जाता है।

 

(८) जन बीज पर वृक्ष

जन बीज या वृक्ष का धड मान कर, फिर एक एक डालीपर शब्दों के पत्ते या फूल कैसे फूटे हैं, देखें।

जन, दुर्जन, सुजन, निर्जन, अग्रजन, सज्जन, विद्वत्जन, विजन, परिजन, आप्तजन इत्यादि।

जनता, जनन. प्रजनन, जनाधिकार इत्यादि।

जननी, जनक, जानकी, जनकनन्दिनी, जनकसुता इत्यादि।

जनपद, जनप्रवाद, जनवाद, इत्यादि ।

जनयितृ, जनयित्री, , जनिका, जनश्रुति, जनसम्बाध, इत्यादि ।

जन्म, जन्मान्तर, जन्मिन, जनित्र, जननेंद्रिय, इत्यादि।

सजाति, प्रजाति, विजाति, संजाति इत्यादि।

निम्न उदाहरणों में शब्दांश के अंतमें “ज” जोडा गया है। इस ज का अर्थ है, जन्मा हुआ, ऊगा हुआ, विकसित हुआ, उपजा हुआ, इत्यादि।

अनु + ज= अनुज। पीछे से जन्मा हुआ, छोटा भाई। जैसे लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न; राम के अनुज ही थे।

अग्र+ज= अग्रज। आगे जन्मा हुआ। जैसे राम लक्ष्मण के अग्रज थे।

पंक+ ज= पंकज। पंक ( गीली भूमि) में (जन्मा हुआ)ऊगा हुआ –>कमल

वंश+ ज =वंशज। वंश में जन्मा हुआ, और आगे वे सभी जो जन्म लेंगे, वंशज ही कहलाएंगे।

पूर्व + ज= पूर्वज। हमारे पहले जन्मे हुए और हम से जुडे हुए, सभी हमारे पूर्वज हुए।

देश+ज= देशज। देश में उपजी हुयी वस्तु, भाषा, इत्यादि, देशज कहायी जाएगी।

ऐसे ही और समाज, जलज, सरसिज, खनिज, उद्भिज, स्वेदज, अंडज, जारज इत्यादि शब्द बनते हैं।

फिर परदेशज, विदेशज, क्षेत्रज, जरायुज,जलधिज ऐसे अनेक शब्द गढे जा सकते हैं।

आरक्षित शब्द बहुत है, आप कल्पना कर सकते हैं।

 

(९) आरक्षित शब्द 

कुछ ही आरक्षित शब्द उदाहरणार्थ देता हूँ। ===>अभिजन, अनुजन, अपजन, प्रजन, संजन, अवजन, आजन,

अधिजन, अपिजन, अतिजन, इत्यादि सैंकडो हैं।

जब उनके अर्थ के अनुरूप शब्द चाहिए होगा, निकाले जा सकते हैं।

 

(१०)अंग्रेज़ी में जन धातु Gene या Gen

(१) अंग्रेज़ी में भी( जन्म से जुडा हुआ अर्थ जहां जहां दिखेगा, वहां जन धातु से संबंध रहेगा।

जन्मना, उत्पन्न होना, निर्माण होना इत्यादि। जन्म कराने में जिन इन्द्रियों का उपयोग होता है, उनसे जुडे शब्द।

वंशावली भी। जनित्र, जन्म जात प्रतिभा से जुडा हुआ।

अंग्रेज़ी शब्द का अधिकांश मूल ढूंढा जाता है। क्यों कि अंग्रेज़ी उधार के शब्दों से भरी पडी है।

और अंग्रेज़ी का शब्द किसी वस्तु पर आवश्यकता पडनेपर आरोपित भी किया जाता है।

अंग्रेज़ी शब्द का इतिहास ढूँढा जाता है, कि किस भाषासे वह लिया गया है। पर संस्कृत शब्द मूलतः गुणवाचक होता है। अपने गुणों को एवं अर्थ को साथ वहन करता है। जैसे जल प्रवाह बहता है, ठीक उसी प्रकार अर्थ और गुण भी साथ साथ ही प्रकट रूपसे शब्द के साथ जैसे फूलकी सुगंध फूलके साथ साथ होती ही है, वैसे शब्द का अर्थ भी साथ साथ प्रकट होता है।

 

(११ )अंग्रेज़ी शब्दों के उदाहरण

हमारे वट वृक्ष का एक तना युरप में पहुंच निम्न अंग्रेज़ी शब्दों में स्पष्ट दिखाई देता है।

अन्य युरप की भाषाओं में भी शब्द पहुंचे ही है।पर,निम्न अंग्रेज़ी शब्दों को उदाहरण रूप ही देखिए। और अन्य शब्द भी आप डिक्षनरी से ढूंढ सकते हैं, मैंने और भी देखें हैं।

निम्न Gen या Gene को “जन” जायते और जन जनयति से अर्थ के ही स्तर के हैं।

1. Gender : लिंग जैसे कि, पुलिंग, स्त्रीलिंग

2. Genitals :जननेन्द्रिय

3. Genealogy : जन्म वंशावली का अध्ययन

4. Genealogist: वंशावली विद्याका पण्डित

5. Gene : (जन्म) वंश बीज

6. Genius : जन्म से प्राप्त प्रतिभा,

7. Generable : जो उत्पन्न किया जा सकता है।

8. Generic : उत्पत्ति से जुडा हुआ।

9. Genesis : अस्तित्व का उत्पत्ति से जुडा विकास क्रम

10. Genetics : जन्म वंशावली का अध्ययन

11. Genre : जन्म से जुडी हुयी प्रजाति, प्रकार

12. Genuine : (जन्मतः) मूलतः शुद्ध

13. Genus : जन्मतः वर्गीकरण,

14. Progeny : प्रजा, जन्माए गए बच्चे

15. Indigenous :जन्मजात, देश में उत्पन्न हुआ, देशज

16.generator: जनयित्र (पॉवर उत्पन्न करने वाला यंत्र )

प्रवक्‍ता पर प्रकाशित डॉ. मधुसूदन के लेखों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।  

6 COMMENTS

  1. प्रवास पर हूँ,
    छात्र अवनीश, अभिषेक;
    और हिन्दी हितैषी बहन रेखा जी ने समय निकाल कर टिप्पणियाँ दी, बहुत बहुत धन्यवाद.

  2. * हिन्दी भाषा संस्कृत ,की परंपरा में विकसित हुई है और उसका अधिकांश शब्द- संसार संस्कृत से आया है . संस्कृत में धातुओँ में प्रत्यय लगा कर ‘पद’ बनता है जिसे हम शब्द कहते हैं उसे विशेष अर्थ देने के लिये उपसर्ग का प्रयोग भी होता है .
    इस प्रकार एक मूल से असीमित शब्दों का निर्माण संभव है . यह शब्द- रचना प्रक्रिया बहुत वैज्ञानिक है. आ. झवेरी जी ने इसे बहुत सरल रूप देकर ,मूल और उससे पल्लवित वृक्ष के रूप में निरूपित किया है .
    भाषा शब्दों से बनती है, नए युग के नए शब्दों को आत्मसात् करते हुए हम अपना भंडार बढ़ाते रहें, लेकिन अपनी इस समर्थ और समृद्ध परंपरा से कट कर हम, हम नहीं रह जाएंगे, एक आरोपित व्यक्तित्व हम पर हावी हो जाएगा.इसे समझ लें तो हमें हिन्दी की शब्द-रचना क्षमता पर गर्व होगा.,व्यर्थ में उसकी सार्थक शब्दावली को धकिया कर अपना दिवालियापन घोषित करने की नौबत नहीं आयेगी ..

    • प्रतिभा जी
      आपकी टिपण्णी,दुर्लक्षित हो गयी| क्षमस्व|
      कुछ प्रवास पर भी था|
      बहुत धन्यवाद|

  3. सादर चरण स्पर्श !
    अद्भुत व्याख्या ! वास्तव में संस्कृत भाषा की महानता को जानकार गर्व की अनुभूति हो रही है ! काफी कठिन परिश्रम से आपने जो धातु का संकलन किया है और अंग्रेजी भाषा का मूल स्त्रोत संस्कृत है ऐसा सिद्ध किया है , यह काफी प्रेरणादायक है ! हमारे जैसे युवाओं को निज भाषा की दिव्यता और वैज्ञानिकता का बोध कराकर आप निश्चय ही अत्यंत महान एवं पुण्य कार्य कर रहे हैं , मैं सदैव ही आपका आभारी रहूँगा !

  4. बहुत ही अच्छा लगा लेख को पढकर.|एसे ज्ञानवर्धक लेख के लिए डॉ .मधुसुदन झवेरी जी को बहुत बहुत धन्यबाद |शब्द नहीं है मेरे पास , जितना भी सराहा जाए कम है इस सारगर्भित लेख के लिए |बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है |धन्यबाद

  5. विस्तृत जानकारी के लिए आभार,
    “जन” का हिंदी और अंग्रेजी दोनों में ही इतना प्रयोग देखकर अच्छा लगा| और इस बात का बड़ा गर्व भी कि हमारे पास ऎसी भाषा है कि हम पहले से ही शब्द बनाकर रख सकते हैं|
    आगे और भी ऐसे लेखों की बहुत आवश्यकता है| हम पाठकगण प्रतीक्षा करेंगे|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,270 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress