आर्थिकी खेत-खलिहान

विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा

invitation-hndभारत गांवों का देश है। गांव देश की आत्मा और कृषि उसकी योति है। इनका प्राण-तत्व गाय है। प्रकृति की यह अनमोल दैन (गो वंश) विलुप्त होने की कगार पर है। देश में गाय की सैकड़ों प्रजातियां (नस्लें) थीं। मोटे तौर पर आज इनमें से मात्र तैंतीस प्रजातियां बची हैं। ये भी उपेक्षा का शिकार हैं। इस उपेक्षा के परिणाम घातक सिद्ध हुए हैं। गो वंश को कृषि का मूल स्तंभ मानने के बजाय खेती की निर्भरता मशीनों तथा रासायनिक खादों, रसायनों पर बढ़ी है। इसका परिणाम जो देखने में आ रहा है, वह पर्यावरण के प्रदूषण, उर्वर भूमि के ऊसर में बदलने, कृषि व्यवसाय व्यय, साध्य हो जाने और हताशा के कारण बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है। गाय को गरिमापूर्ण और प्राकृतिक जन्म, जीवन और मृत्यु के अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है। गो आधारित जीवन और गो वंश पर अवलंबित अर्थव्यवस्था की ओर प्रत्यावर्तन आज की आवश्यकता है। भारतीय गो और ग्राम की ओर लौटना सामयिक पहल होना चाहिए। क्योंकि गो आधारित कृषि व्यवसाय से ही मौजूदा जल, वायु,भूमि प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है। विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा को जन आंदोलन बनाने के पीछे उद्देश्य गाय और किसान की गरिमा को रेखांकित करना है। जाग्रति पैदा करके गो बचाओ और जन-जन के जीवन में समृद्धि के द्वार खोलना ही इस यात्रा का मूल उद्देश्य है। संयुक्त राष्ट्र ने स्थायी प्रगति के लिए शिक्षा का दशक घोषित किया है। यह यात्रा उद्देश्य की पूर्ति करने में सफल होगी। भारतीय गो और ग्राम की रक्षा हेतु विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा को आंदोलन का स्वरूप देने के पीछे प्रख्यात विचारकों, बुद्धिजीवियों और आध्यात्मिक संतों की भावना प्रेरक शक्ति रही है। पूज्‍यनीय रविशंकर गुरुजी, रामदेव बावा, पूय माता अमृतानंदमयी, आचार्य विद्यासागर, आचार्य महाप्रज्ञजी, आचार्य विजय रत्न सुंदर सुरीश्वर, स्वामी दयानंद सरस्वती, पूय श्री मुरारी बाबू, सद्गुरु जगजीत सिंह, पूय साम डांग रिन पोचे ने गो ग्राम रक्षा आंदोलन की सफलता के लिए आशीर्वाद दिया है।

30 सितंबर को विजयादशमी के दिन विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक संग्राम स्थल से जैसे ही आरंभ होगी, देशभर में छ: लाख गांवों में गोपालन नई करवट लेगा। गो संरक्षण की दिशा में वांछित वातावरण तैयार करने के लिए गो पालक, किसान, गौ भक्त खड़े होंगे। विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा देश की लंबाई, चौड़ाई पग-पग नापेगी। उत्तर में जम्मू, दक्षिण में कन्याकुमारी, पूर्व में सिलीगुड़ी, कोलकाता और पश्चिम में सूरत राजकोट तक विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा गौ माता के संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जगावेगी।

उत्तर, दक्षिण, पूर्व-पश्चिम 20 हजार किलोमीटर की दूरी विश्व मंगल यात्रा द्वारा तय की जावेगी। इस यात्रा का समापन अगले वर्ष 17 जनवरी को नागपुर में होगा और समापन के साथ 29 जनवरी, 2010 (प्रस्तावित कार्यक्रम) को महामहिम राष्ट्रपति को पचास करोड़ हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन भेंट किया जावेगा। मंगल यात्रा में बुध्दिजीवी, संत महात्मा, वैज्ञानिक गो पूजा, गो संदेश देकर गौ पालन में छिपी आर्थिक, सामाजिक, आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रस्फुटन करेंगे। विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा के पीछे देश की समृद्ध गौ वंश परंपरा को पुनरुजीवित करना है। यात्रा आयोजक अपेक्षा करते हैं कि राष्ट्रीय चिन्ह पर अंकित वृषभ देश की कृषि संस्कृति का परिचायक है। इस मूल मंत्र को व्यवहार में परिभाषित किया जावे। संपूर्ण विश्व के जीवन का आधार गो वंश है। भारत की अहिंसक प्रकृति, संस्कृति की पहचान गो माता है। यही अन्न, धन का स्रोत है। पर्यावरण, विज्ञान, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र और कृषि शास्त्र का केन्द्र बिंदु है। स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात गाय से हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अभिवचन दिया था कि आजादी के बाद गौ वंश की हत्या बंद होगी। महात्मा गांधी और भी स्पष्टवादी थे और उन्होंने यहां तक कहा था कि स्वतंत्रता के बाद सबसे पहले गौ वंश की हत्या पर निषेध कानून बनाया जावेगा। इस दृष्टि से जन अपेक्षा है कि 1. गाय राष्ट्रीय प्राणी घोषित हो। 2. संवैधानिक प्रावधान किये जाकर गो वंश को सुरक्षा प्रदान की जाए। 3. रायों में पशु विस्तार के लिए गोचर भूमि का कड़ाई से संरक्षण हो। गोचर संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया जाए। 4. राष्ट्रीय चिन्ह में अंकित वृषभ भारतीय समृध्दि के आधार स्तंभ गोपालन को सुरक्षा और गरिमा प्रदान की जाए। जल, जमीन, जंगल, जीव समूह जन की रक्षा और हित पोषण गो मंगल से जुड़ा है।

विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा कमोबेश भारत के सभी रायों की राजधानियों, नगरों, जिला मुख्यालयों से गुजरती हुई 108 दिन में पूर्ण होगी। मध्यप्रदेश में यात्रा प्रमुख रूप से गवालियर, रतलाम, ब्यावरा, इंदौर, भोपाल, सागर, सतना, जबलपुर पहुंचेंगी। मार्गवर्ती ग्राम, नगर, कस्बायी केन्द्रों से गुजरेगी। खास बात यह है कि विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा की पूरक सह यात्राएं ग्रामों से आरंभ होकर मंडल, तहसील और जिला स्तर पर पहुंचकर प्रांतीय केन्द्रों पर उनका संगम होगा, जहां रैलियां, सभाएं, परिचचाएँ, गो पूजन जैसे कार्यक्रम आयोजित किये जाऐंगे।

भारत को गो आधारित कृषि के माध्यम से स्थायी विकास की ओर ले जाने के लिए विश्व मंगल यात्रा ने एक कार्ययोजना पर अमल आरंभ किया है। इसमें गोमय (गोबर) गौ मूत्र, गव्य के अर्थशास्त्र को लोकप्रिय बनाना है, जिससे गो पालन में सिर्फ गाय के दूध पर ही आर्थिक निर्भरता न रहे। गोमय, गो मूत्र के भी लाभदायक दाम मिल सकें। इसके लिए इनसे बनने वाले उत्पादों का व्यवसायीकरण करना पडेग़ा। कुटीर उद्योगों का जाल फैलाकर हर हाथ को काम की कल्पना साकार की जाना है। गोबर, गौ मूत्र से बनने वाली औषधियों, रसायनों, कास्मेटिक्स, धूपबत्ती, मच्छर क्वाइल, टाइल्स, कागज, मूर्तियां, पेकिंग का सामान जैसे दर्जनों उत्पादों के कुटीर उद्योग लगाने की संभावनाओं को धरातल पर लाने की दिशा में वातावरण बनाने में विश्व मंगल यात्रा कारगर होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि गांव-गांव में उन कारणों पर भी विचार हो, जिनसे गौ पालन की परंपरा का क्षरण हुआ। भारत की जैव विविधिता को लेकर दुनियार् ईष्या करती रही है। आज भी सबसे अधिक दबाव भारत की परंपरागत बीज संपदा को प्रभावित करने पर विश्व व्यापार संगठन दे रहा है। दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों ने देश में राय किया और उनका उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत और समृद्ध परंपरा से देश को वंचित करना था। उन्होंने गाय को मात्र दूध देने वाले पशु के रूप में परिभाषित किया। स्वदेशी और पुराना मूल्यहीन और विदेशी, आयातित उत्तम यह मानसिकता बनायी गयी। पाश्चात्य वातावरण में पले-पुसे राजनेताओं और नौकरशाहों ने राष्ट्रीय स्वाभिमान के बजाय विदेशी लबादा को आधुनिकता के रूप में अंगीकार किया। फलत: देश में कृषि जो गौ वंश आधारित थी, मशीन और रासायनिक खाद आरंभ होगी। एक ओर देश की धरती की उर्वरा शक्ति क्षीण होती चली गई। दूसरी ओर प्रदूषण ने डेरा डाला और काश्तकारी इतनी महंगी हो गयी कि किसानों के यहां हताशा घर कर गयी। विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा

गो मये बसते लक्ष्मी

पवित्र सर्व मंगला का उद्धोष करेगी। इससे ही सुजलाम सुफलाम भारत के सृजन का मार्ग प्रशस्त होगा।

– भरत चंद्र नायक