‘इतिहास फिर से लिखने का समय आ गया है’ इस आह्वान के साथ चुनाव मैदान में उतरे 62 वर्षीय युकियो हातोयामा ने सचमुच इतिहास रच दिया है। आगामी 16 सितंबर को वे जापान के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे।
युकियो हातोयामा के नेतृत्व में जापान के प्रमुख विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान ने वह कार्य कर दिखाया जिसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकार अधिकांशत: असंभव मानते थे।
सन् 1955 में जब जापान में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी स्थापित हुई और सत्तारूढ़ हुई तो उसका नेतृत्व करने इचिरो हातोयामा युकियो हातोयामा के दादा थे। 1955 से लेकर 2009 तक एलडीपी का जापान पर एकतरफा वर्चस्व कायम रहा जिसे तोड़कर युकियो हातोयामा ने समूचे विश्व का ध्यान अपनी नेतृत्व क्षमता की ओर आकृष्ट कर लिया है।
पेशे से शिक्षक युकियो हातोयामा भी राजनीतिक जीवन के प्रारंभ में एलडीपी से ही जुड़े हुए थे। सत्तारूढ़ एलडीपी के नेताओं के लगातार बढ़ते आर्थिक भ्रष्टाचार ने उन्हें अपने दादा द्वारा स्थापित पार्टी के खिलाफ विद्रोह के लिए बाध्य कर दिया।
स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय, कैलीफोर्निया के इंजीनियरिंग स्नातक युकियो हातोयामा ने अपने इस निर्णय में अपने परिवार का विरोध भी झेला। उनके दादा जहां एलडीपी की ओर से जापान के प्रथम प्रधानमंत्री बने वहीं उनके पिता भी एलडीपी सरकार में 70 के दशक में जापान के विदेश मंत्री रह चुके हैं। हातोयामा के बड़े भाई फिलहाल विदा हो रही पराजित एलडीपी सरकार में केबिनेट मंत्री थे।
युकियो हातोयामा ने सन् 1986 में एलडीपी की प्राथमिक सदस्यता छोड़कर जापान में सशक्त राजनीतिक विकल्प की खोज प्रारंभ की और 1993 में डीपीजे के गठन की ओर कदम बढ़ाया। उन्होंने तब 11 महीने तक एलडीपी को जापान सरकार से बेदखल रखने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई।
युकियो हातोयामा ने जापान में अमेरिकापरस्ती के विरोध को नये आयाम दिए। उन्होंने द्वितीय विश्वयुध्द के समय तबाह हुए जापान के संविधान को अमेरिकी दबाव में निर्मित बताया और कहा कि सत्ता में आने पर उनकी पार्टी इस संविधान को बदल देगी।
युकियो हातोयामा ने संविधान के उस हिस्से पर हमला किया जिसके अंतर्गत जापान को सैन्य बल रखने की मनाही है और सैन्य सहायता के संदर्भ में उसे सदा ही अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ता है।
दुनिया की दूसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति के इस संवैधानिक उपबंध को युकियो हातोयामा ने यह कहते हुए चुनौती दी कि अमेरिका के साथ रिश्ते बनाते समय पलड़े का संतुलन बिगड़ने नहीं दिया जाएगा। ये रिश्ते बराबरी के आधार पर नूतन रूप ग्रहण करेंगे। और इस कार्य में बाधक सभी संवैधानिक उपबंधों को समाप्त कर दिया जाएगा।
-राकेश उपाध्याय
Good
काश हमारे देश में भी कोई नेता चुनाव जीतने के बाद अमेरिका से पंगा लेने कि हिम्मत जुटाऐ अन्यथा हमरा देश तो पिश्चम के कचरे का अड्डा बनता जा रहा है जहां अमेरिका जैसा कोई भी देश अपना कचरा उंूचीं कीमत (अमेरिका के 30 साल पुराने परमाणु संयंत्र जिसे वह खुद उपयोग नहीं कर रहा है क्योंकि वह सौर उर्जा, खाद्यइथनाल आदि सस्ती उर्जा से बिजली बना है) पर खपा सकता है।
बहुत अच्छी जानकारी है.