ये है दिल्ली मेरी जान

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लिमटी खरे 

राजनीति की घाघ खिलाड़ी हो गई वह गूंगी गुडिया

नब्बे के दशक के आरंभ में जब कांग्रेस ने संकट के काल में नेहरू गांधी परिवार की इतालियन बहू सोनिया गांधी की अगुआई को स्वीाकारा था उसके कई सालों तक सोनिया को गूंगी गुडिया ही कहा जाता रहा है। धीरे धीरे सोनिया गांधी ने राजनीति के दांव पेंच सीखे। आज के हालात बताते हैं कि सोनिया परिपक्व राजनीतिज्ञ हो चुकी हैं। महामहिम राष्ट्रपति पद के लिए ममता और सोनिया के बीच हुई बैठक में सोनिया ने बड़ी ही चतुराई से प्रणव मुखर्जी के अलावा एक और नाम भी लिया था। बताते हैं वह नाम पी.ए.संगमा का था। आज संगमा के समर्थन में आदिवासी सांसद (चाहे वे किसी भी दल के हों) लामबंद होते दिख रहे हैं। इसके साथ ही साथ ईसाई मिशनरी भी संगमा के पीछे खड़ी दिख रही हैं। सोनिया का मायका भी मसीही समाज से ताल्लुकात रखता है। कहा जा रहा है कि संगमा को रायसीना हिल्स पहुंचाने के लिए इसाई मिशनरी साम, दाम, दण्ड भेद की नीति अपनाने से गुरेज नहीं करेगी। कुल मिलाकर सोनिया गांधी ने दादा मुखर्जी को राजीव गांधी का विरोध करने पर उनकी ‘औकात‘ दिखाने का प्रबंध कर ही दिया है।

गडकरी ने मारा नहले पर दहला

लग रहा था कि राष्ट्रपति चुनावों में भाजपा बुरी तरह मुंह की खाएगी। वस्तुतः एसा होता नहीं दिख रहा है। भाजपा ने संगमा को अपना दामन पकड़ाकर वह तीर मारा है जिससे कांग्रेस औंधे मुंह गिर गई है। कांग्रेस तो चाह रही है प्रणव दा ही रायसीना हिल्स में राष्ट्रपति भवन भेजा जाए, पर सोनिया का इरादा कुछ नेक नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के अंदर यह बात भी पुरजोर तरीके से उठ रही है कि 74 में इंदिरा गांधी वीवी गिरी को राष्ट्रपति बनवाना चाह रही थीं, पर कांग्रेस संजीव रेड्डी के साथ थी। चुनाव में इंदिरा के गिरी ही चुने गए। इस बार भी संगमा पर भाजपा ने दांव लगाने के पहले सारे समीकरणों की पता साजी कर ली और फिर भले ही राजग में फूट पड़ चुकी हो किन्तु उन्होंने उस घोड़े पर दांव लगा दिया है जिसके जीतने की संभावनाएं पार्श्व में दिख रही हैं। सियासी हल्कों में चल रही चर्चा के मुताबिक प्रणव मुखर्जी के पक्ष में भले ही माहौल दिख रहा है पर जीत अंततः भाजपा और ममता के पाले में ही जाने वाली है।

किधर गए युवराज!

देश में महामहिम राष्ट्रपति के चुनाव सिर पर हैं और कांग्रेस की नजरों में भविष्य के वज़ीरे आज़म राहुल गांधी इन दिनों राजनैतिक परिदृश्य से ही गायब हैं। राहुल के जन्म दिन पर भी कार्यकर्ताओं के सामने उनकी अनुपस्थिति में कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने केक काटा। महामहिम राष्ट्रपति चुनावों की जद्दोजहद चरम पर है, और कांग्रेस के युवा तुर्क का इस तरह गायब रहना आश्चर्य के साथ ही साथ संदेहों को भी जन्म दे रहा है। सियासी गलियारों में अब यह खोज मच गई है कि आखिर अपने जन्म दिन पर राहुल गांधी कहां थे? कोई कह रहा है कि राहुल छुट्यिां मना रहे हैं तो कोई उनके विदेश जाने की बातें कर रहा है। किसी का कहना है कि वे अपनी माता श्रीमति सोनिया गांधी के इलाज के सिलसिले में अमरीका गए हुए हैं। सोनिया के करीबी सूत्रों का कहना है कि प्रणव ने चूंकि राहुल के पिता राजीव का विरोध किया था इसलिए राहुल ने भी प्रणव के मामले में अपने हाथ खींच रखे हैं।

छापे, छापे, छापे और छापे

देश के हृदय प्रदेश में नौकरशाह और राजनेता आखिर कितना माल कमाकर बैठे हैं कि पिछले कुछ सालों से सीबीआई, लोकायुक्त, ईओडब्लू, ईडी आदि के छापे पर छापे पड़ रहे हैं और इनकी तिजोरियां नोट उगलती जा रही हैं। मध्य प्रदेश के इतिहास में संभवतः यह पहला ही मौका होगा जब प्रदेश में नौकरशाहों और राजनेताओं की जुगलबंदी नोट उगल रही हो। पिछले लगभग नौ बरस से प्रदेश में भाजपा की सरकार है इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता है कि यह पैसा कांग्रेस के शासनकाल में नौकरशाहों ने कमाया हो। मतलब साफ है कि भाजपा का नौकरशाही पर नियंत्रण लेशमात्र भी नहीं है। एमपी में यह कहावत चरितार्थ होती दिख रही है कि नौकरशाहों द्वारा जंगल से आरा मशीन में लकड़ी काटकर अपने घर ले जाई जा रही है और वहां उड़ने वाले बुरादे को ही बटोकर भाजपाई संतुष्ट हैं। प्रदेश में हर दिन कहीं ना कहीं छापे की खबर मीडिया की सुर्खी बन जाती है। पहले बलात्कार और भ्रष्टचार की खबरें इस तरह आती थीं। लोग डर रहे हैं कि आने वाले दिनों में छापे, छापे और छापे की खबरें रूटीन की खबरें ना बन जाएं।

कांग्रेस में नए संकटमोचक बने पटेल

प्रियंदर्शनी श्रीमति इंदिरा गांधी के निधन के उपरांत जब देश को प्रधानमंत्री की आवश्यक्ता हुई तब प्रणव मुखर्जी ने नेहरू गांधी परिवार से लोहा ले लिया। राजीव गांधी की मुखालफत करने का साहस जुटाकर प्रणव ने समाजवादी कांग्रेस बना डाली। इसके बाद कांग्रेस में उनकी वापसी हुर्ठ अवश्य पर एक बार टूटी रस्सी में गांठ लग चुकी थी। नब्बे के दशक से आज तक भले ही प्रणव मखर्जी ने कांग्रेस को हर संकट से बचाया हो पर उनके बारे में कांग्रेस के राजमहज यानी दस जनपथ की राय बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। बहरहाल, प्रणव की बिदाई की डुगडुगी बजने के साथ ही कांग्रेस में संकट मोचक की रिक्त हुई आसनी पर अहमद पटेल ने बलात डेरा जमा लिया है। प्रणव के स्थान पर अहमद पटेल अब नए संकटमोचक के बतौर सामने आए हैं। उन्होंने अपनी टीम में राजीव शुक्ला को रखा है तथा बाहर से अंबानी बंधु उन्हें पूरा पूरा सहयोग प्रदान कर रहे हैं।

आमने सामने हैं भूरिया खुर्शीद

केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बीच अघोषित शीत युद्ध छिड़ गया है। हाल ही में भोपाल यात्रा पर आए सलमान खुर्शीद से मिलने कोई नेता नहीं पहुंचा तो वहीं दूसरी ओर उन्होंने भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय जाने की जहमत नहीं उठाए। भाजपा सरकार के सत्कार से प्रफुल्लित खुर्शीद ने गुफरान आजम की तारीफ में कशीदे गढ़कर सभी को चौका दिया है। पिछले दिनों एक प्रोग्राम में शिरकत करने भोपाल पहुंचे सलमान खुर्शीद को रिसीव करने कांग्रेस का कोई कारिंदा नहीं पहुंचा। कांग्रेस के सेवादल की इकाई ने भी खुर्शीद को गाड ऑफ आनर नहीं दिया। खुर्शीद भी कांग्रेस कार्यालय नहीं गए। उधर, कांग्रेस के अंदर बिगडते समीकरणों को देखकर भाजपा ने खुर्शीद को लपक लिया और खूब खातिरदारी कर डाली। अपने इस अपमान से तिलमिलाए खुर्शीद ने भूरिया की शिकायत राहुल और सोनिया के दरबार में कर दी है।

आकर्षक क्लेवर में नजर आ रही कांग्रेस

सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में उन्हीं पुराने चेहरों को देखकर कार्यकर्ता भी अब उबने लगे हैं। समरसता की स्थिति को तोड़ने के लिए कांग्रेस के रणनीतिकारों ने नए ग्लेमरस चेहरों को समाजवादी पार्टी की तर्ज पर पार्टी से जोड़ने का जतन आरंभ किया है, ताकि कार्यकर्ताओं विशेषकर नए युवाओं को पार्टी की ओर आकर्षित किया जा सके। कांग्रेस ने हाल ही में इसी कड़ी में गुजरे जमाने की अभिनेत्री रेखा और खेलों के कथित बादशाह सचिन तेंदुलकर को राज्य सभा भेजा है। यद्यपि कांग्रेस इस तरह के असफल प्रयोग अमिताभ बच्चन और गोविंदा को लेकर पूर्व में कर चुकी है, फिर लंबे अरसे बाद कांग्रेस ने इसे दुहराया है। वैसे तो रेखा और सचिन के रहते कांग्रेस आकर्षक क्लेवर में नजर आ रही है पर पुराने घाघ उबाऊ चेहरे मखमल पर टाट का पैबंद ही नजर आ रहे हैं।

दिन फिरने वाले हैं दिग्गी राजा के

मध्य प्रदेश में दस साल तक लगातार राज करने वाले राघोगढ़ राजघराने के वंशज राजा दिग्विजय सिंह का वनवास लगभग पूरा होने को है। 2003 में चुनाव हारते ही सक्रिय राजनीति से दस सालों के वनवास की घोषणा को दिग्विजय सिंह ने निभाया और उनका वनवास इस साल के अंत में पूरा हो रहा है। राजा दिग्विजय सिंह ने भले ही सक्रिय राजनीति से सन्यास लिया हो, पर कांग्रेस के संगठनात्मक पदों पर वे बने रहे और अपने विवादित बयानों के चलते मीडिया की सुर्खियां भी खूब बटोरी हैं राजा दिग्विजय सिंह ने। अब राजा दिग्विजय सिंह को सांसद ना रहते हुए भी दिल्ली में साउथ एवेन्यू के स्थान पर बड़ा बंग्ला देने की तैयारी की जा रही है जो इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में राजा की तूती केंद्र में बोलने वाली है। कहा जा रहा है कि अगले फेरबदल में राजा दिग्विजय सिंह को केंद्र में लाल बत्ती से नवाजा जाना लगभग तय ही है।

जनसंपर्क के घमासान का असर शिवराज की छवि पर!

मध्य प्रदेश में जनसंपर्क संचालनालय में जमकर घमासान मचा हुआ है। जबसे सारी शक्तियां अतिरिक्त संचालक लाजपत आहूजा के इर्दगिर्द आकर समटी हैं, तबसे जनसंपर्क संचालनालय में मनहूसियत छाने लगी है। वरिष्ठ अधिकारियों के बीच अब वर्चस्व की अघोषित जंग तेज हो गई है। इसका सीधा असर भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह सरकार पर पड़ता दिख रहा है। हाल ही में न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस पर मध्य प्रदेश को सम्मानित किया गया। इसकी खबर जनसंपर्क संचालनालय द्वारा जारी ही नहीं की गई जबकि यह मध्य प्रदेश विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए बहुत गौरव की बात थी। चर्चाओं को सही मानें तो सरकार की छवि चमकाने के लिए पाबंद एमपी पब्लिसिटी डिपार्टमेंट की कमान सत्ता के बजाए संगठन के हाथों में चली गई है जिसके चलते अब विभाग का ध्यान सत्ता के बजाए संगठन की छवि चमकाने में लग गया है। आरोपित है कि इसके पहले दिल्ली स्थित विभाग के कार्यालय द्वारा भी इसी तरह की कवायद की गई थी।

नेताओं को नहीं परवाह, पर कांग्रेस शर्मसार

देश के हृदय प्रदेश में आदिवासी बाहुल्य विधानसभा है लखनादौन जो कि अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है। इसके तहसील मुख्यालय में नगर पंचायत के चुनाव हैं। चुनावों में अध्यक्ष पद के लिए नामांकन वापिस लेने के अंतिम दिन 18 जून को कांग्रेस के प्रत्याशी ने नाम वापस लेकर वाकोवर दे दिया। चार दिन बार उसे निष्काशित किया गया। कांग्रेस अध्यक्ष भूरिया ने निर्दलीय को समर्थन देने की घोषणा की गई। कांग्रेस के लोकल लोग सारी चाल समझ गए। मामला दिल्ली दरबार में आ गया। एक सप्ताह बीतने के बाद भी कांग्रेस किसी को समर्थन देने की घोषणा नहीं कर पाई। कहा जा रहा है कि यह सारा तानाबाना कांग्रेस के कद्दावर नेता के इशारों पर निर्दलीय तौर पर खडी एक प्रत्याशी के पुत्र द्वारा बुना गया है। चूंकि मामला अब दिल्ली दरबार में है इसलिए इसमें लीपापोती भी संभव नहीं है। निर्दलीय प्रत्याशी के पुत्र ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी के समर्थक और 2008 में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे प्रसन्न मालू की जमानत जप्त करवाई थी, इसलिए अब गेंद किसके पाले में है कहना मुश्किल है।

क्या कर रहे कलाम साहब!

अब्दुल कलाम अब तक महामहिम राष्ट्रपतियों में सबसे अधिक लोकप्रिय साबित हुए हैं। यही कारण है कि राजनैतिक दल इस बार उन पर दांव लगाने के मूड में थे। उधर, कलाम चुपचाप मुस्कुराते हुए मौन धारण किए रहे। लोगों को उत्सुकता इस बात की है कि जिस शख्सियत के बारे में सियासी दलों में रायशुमारी के अनेक दौर होकर थमे हों वह शख्सियत यानी डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाक आखिर कर क्या रहे हैं? कलाम के करीबी सूत्रों का कहना है कि अपनी कुछ बेहद आवश्यक यात्राओं के अलावा वे एक बेहद जरूरी काम में मशगूल हैं, और वह है कलाम साहब की आत्मकथा। उनकी आटोबायग्राफी दीपावली के पहले पहले बाजार में आने की उम्मीद जताई जा रही है। अब अंदाजा लगाया जाए कि मिसाईल मेन कलाम की आत्मकथा में लोगों को कौन कौन से रहस्यों से पर्दा उठने की उम्मीद है।

पुच्छल तारा

कांग्रेस अपने युवराज राहुल गांधी को देश का अगला वज़ीरे आज़म मानती है। उसे लगता है कि राहुल जी आएंगे नई रोशनी नया सवेरा लाएंगे। उधर राहुल गांधी को जमीनी हकीकत का भान भी नहीं है। राहुल गांधी को लेकर अब लतीफे बनने आरंभ हो गए हैं जिससे लगने लगा है कि अब लोग राहुल गांधी को हल्के में लेने लगे हैं। ग्वालियर से रोशनी भार्गव ने एक ईमेल भेजा है। रोशनी लिखती हैं कि एक बार बब्लू भैया उत्तर प्रदेश के दौरे पर गए। एक गांव में बब्लू भैया ने केमरे की चकाचौंध में एक बच्चे से पूछा -‘‘किस क्लास में पढ़ते हो।‘‘

बच्चा बोला -‘‘छठी क्लास में पढते हैं बाबू साहेब, पर पिछले 14 महीने से स्कूल में मास्टर साहब नहीं हैं।‘‘

बबलू भैया छूटते ही आश्चर्य के साथ बोले -‘‘तो फिर स्कूल कैसे चल रहा है।‘‘

बच्चा बड़ी ही मासूमित से चहका -‘‘वैसे ही बाबू साहेब, जैसे देश चल रहा है।‘‘

अब आप समझे बबलू भैया कौन थे।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

2 COMMENTS

  1. खरे जी किधर गायब थे ओह्ह लगता है खरे जी प्रभात झा और बीजेपी के खिलाफ लगातार लिख रहे हैं इसलिए उनके लेख समाचार को प्रवक्ता मैं स्थान नाहे मिल पा रहा है खरे जी आप बीजेपी ज्वाइन कर लो कम से कम हम लोग आपको पढ़ पाएंगे

  2. खरेजी पता नहीं इतने दिन कहाँ थे और क्या कर रहे थे खैर वे लौट आये तो उनका हार्दिक स्वागत है . उनका दिल्ली दरबार समाचार विशेष रूप से मनोरंजक होता है आशा है अब उनके लेख नियमित रूप से प्रवक्ता में छपते रहेंगे और हम जैसे पाठकों को उपलब्ध होंगे

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