भाजपा की क़ब्र येदियुरप्पा ने खोद दी कुशवाहा उसे दफ़नायेंगे ?

सपा कांग्रेस बढ़त में बीजेपी बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!

यूपी के चुनाव की सारी कहानी 2007 की तरह दोहराती नज़र आने लगी है लेकिन अन्ना के आंदोलन ने भ्रष्टाचार को देश में चर्चा का विषय बनाकर सारे समीकरण बिगाड़ दिये हैं। एक तरफ बहनजी अपने मंत्रिमंडल के 52 में से कुल 21 मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप में बसपा से बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं और लगभग पचास से अधिक विधायकों का टिकट काट चुकी हैं तो दूसरी तरफ भाजपा द्वारा बाबूसिंह कुशवाहा जैसे महाभ्रष्ट बर्खास्त मंत्री को पार्टी में लिये जाने का खुद भाजपा में विरोध तेज़ होता जा रहा है। हालांकि कुशवाहा को टिकट और कोई पद ना दिये जाने की बात कहकर भाजपा ने यह मरा हुआ सांप अपने गले से निकालने का संकेत तो दे दिया है लेकिन वह इस कशमकश से नहीं निकल पा रही है कि कुशवाहा को निकालने से अति पिछड़े उससे पहले से और अधिक नाराज़ तो नहीं हो जायेंगे।

इससे पहले कर्नाटक में तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने पर भाजपा केवल सरकार बचाने के लिये उनको हटाने का एलान करने के बावजूद उनकी बगावत के डर से उनको हटाने से खुद पीछे हट गयी थी। येदियुरप्पा को लेकर कांग्रेस को काफी दिन तक भाजपा पर भ्रष्टाचार के मामले में दो पैमाने अपनाने का आरोप लगाने का मौका मिल गया था। यह अलग बात है कि आखि़रकार जब पानी सर से उूपर निकल गया तब येदियुरप्पा को मजबूर होकर भाजपा ने हटाया जिससे उसे उत्तराखंड में निशंक को हटाकर साफ सुथरी छवि के खंडूरी को लाने का श्रेय उतना नहीं मिला जितना दागी होकर भी येदियुरप्पा को उनके पद पर बनाये रखने का अपयष झेलना पड़ा। इससे भाजपा की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को भारी नुकसान पहुंचा था।

0हैरत की बात है कि अभी येदियुरप्पा के मामले को लोग भूले भी नहीं थे कि भाजपा ने बसपा मंत्रिमंडल से बर्खास्त कुख्यात बाबूसिंह कुशवाहा को गले लगा लिया। बेशर्मी यह देखिये कि बाहर ही नहीं घर में भी भारी विरोध होने के बावजूद भाजपा के कुछ राज्यस्तरीय नेता कुशवाहा की जमकर ऐसे पैरवी कर रहे हैं जैसे कुशवाहा से वास्तव में कुछ लेकर खा लिया हो, और एक डील के तहत पेडवर्कर की तरह उनका बचाव करना उनका कर्तव्य हो? कम लोगों को पता होगा कि भाजपा ने केवल कुशवाहा को ही नहीं लिया बल्कि बर्खास्त मंत्री बादशाह सिंह, अवधेश वर्मा व ददन मिश्रा को भी लिया है। वर्मा व मिश्रा को तो वह बाकायदा चुनाव में भी उतार चुकी है।

उधर सपा में बाहुबली डी पी यादव की नो एन्ट्री करने वाले भावी मुख्यमंत्री अखिलेष यादव चाहे जितनी अपनी कमर थपथपायें लेकिन इससे पहले उनकी पार्टी भी यूपी के भजनलाल बन चुके दलबदलू नरेश अग्रवाल, उनके पुत्र नितिन अग्रवाल लोकदल के पूर्व मंत्री कुतुबुद्दनी अंसारी, विधयक बदरूल हसन, सुनील सिंह भाजपा से गोमती यादव, बसपा से हाजी गुलाम मुहम्मद, राजेश्वरी देवी , महेश वर्मा और बुलंदशहर के उस कुख्यात गुड्डू पंडित को टिकट थमा चुकी है जिनपर बलात्कार और अपहरण तक के गंभीर आरोप हैं। इससे पहले मुलायम सिंह कुख्यात अमरमणि त्रिपाठी को जेल में बंद होने के बावजूद चुनाव लड़ा चुके हैं।

चर्चा यह भी है कि कुशवाहा को कांग्रेस अपने पाले में लाने की तैयारी कर चुकी थी लेकिन ऐनटाइम पर भाजपा ने यह दांव चल दिया जिससे सीबीआई के छापे मारकर अब कुशवाहा को जेल भेजने की तैयारी कांग्रेस कर रही है। बहरहाल यह कहा जाये तो गलत नहीं होगा कि राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं केवल हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली बात है। बहरहाल आरएसएस से साम्प्रदायिकता के मामले में विरोध रखने वाले भी इस बात पर सहमत होंगे कि अगर भाजपा ऐसे दागी लोगों को चुनाव में उतारती है तो जनता उनको हरा दे। जानकार लोग जानते हैं कि यह काम बिहार की जनता पिछले चुनाव में करके कामयाबी के साथ दिखा भी चुकी है। वहां लगभग 90 प्रतिशत अपराधी प्रवृत्ति के लोग चुनाव में हार गये थे। यही हाल यूपी में भी हो सकता है।

अब गौर करते हैं उस समीकरण पर जिससे आकृषित होकर भाजपा जैसी पार्टी जाति और धर्म के आधर पर चुनाव जीतने को भ्रष्टाचार को कोई बड़ा मुद्दा नहीं मानती। आपको याद होगा कि 2007 में सपा सरकार को हराने के लिये बसपा का नारा था चढ़ गुंडो की छाती पर मुहर लगाओ हाथी पर। यह अकेला नारा बसपा को बहनजी को जिता ले गया। 2002 में सपा को 25.37 प्रतिशत वोट मिले थे तो 2007 में मिले 25.43 प्रतिशत लेकिन सीट 143 से घटकर 97 रह गयीं। उधर बसपा को 2002 के 23.06 के मुकाबले 2007 में 30.43 प्रतिशत वोट मिले जिससे बहनजी 7.37 प्रतिशत मतों के सहारे 98 सीटों से उछलकर सीधे 206 के रिकॉर्ड बहुमत पर पहुँच गयीं।

0इससे पहले 1991 में भाजपा को 31.45 प्रतिशत वोट के साथ 221 सीट मिली थीं लेकिन 1993 में हिंदुत्व की सोशल इंजीनियरिंग हाथी ने फेल करके वोट बीजेपी को पहले से बढ़कर 33.30 प्रतिशत मिलने के बावजूद उसकी सीटें घटाकर 177 पर रोक दीं। इसमें मुसलमानों ने एक सूत्री प्रोग्राम भाजपा हराओ का फार्मूला लागू किया था। इस चुनाव में सपा बसपा का गठबंधन होने से सपा को वोट मात्र 17.94 प्रतिशत जबकि सीट 109 मिली थीं, जबकि बसपा को वोट 11.12 प्रतिशत लेकिन सीट 67 मिल गयीं थीं। यह उसकी सोशल इंजीनियरिंग की शुरूआत थी।

0इससे यह पता लगता है कि 75 प्रतिशत मतदाता जाति धर्म और क्षेत्र से बंधे होने के बावजूद शेष 25 प्रतिशत तटस्थ व निष्पक्ष मतदाता से हर बार मात खा रहा है। इस चुनाव में भाजपा की यह गलतफहमी भी दूर हो जायेगी कि वह जिस सहानुभूति के लिये कुशवाहा को गले से लगा रही है उससे अति पिछड़ों के वोट उसको थोक में मिल सकते हैं। बीजेपी को इंडिया शाइनिंग की तरह यह खुशफहमी भी दूर करनी होगी कि वह यूपी की विधानसभा में कांग्रेस से चौथे स्थान की लड़ाई चुनाव में जीत सकती है।

तेरे खुलूस ने रखा मुझे अंधेरे में,

तेरा फ़रेब मुझे रोशनी में ले आया।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

6 COMMENTS

  1. अनिल गुप्ता जी,जब आप यह लिखते है कि
    “आखिर जब जातिवाद यहाँ की राजनीती का महत्वपूर्ण अंग है तो पिछड़ी जातियों को गले लगाने के भाजपा के प्रयास पर इतनी हाय तौबा क्यों?” तो आप बीजेपी का बचाव करने में यह भूल जाते हैं कि यही बीजेपी जातिवाद और भ्रष्टाचार के विरुद्ध किसी भी मौके पर चिल्लाने से बाज नहीं आती.आखिर यह दोगलापन क्यों?दूसरे करें तो गलत और आप करे तो ठीक.बाबू सिंह कुशवाहा को अपने पार्टी में स्थान देकर बीजेपी ने न केवल जाति वाद पर मुहकी खाई है बल्कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने का अपना अधिकार खो दिया है.

  2. राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं केवल हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली बात है।….ये सभी रावन के दस सरों की तरह हैं धढ़ एक ही है सबका बस मुखौटे अलग अलग हैं…..सबको हवस है सत्ता की नशा है पावर का ….अब क्रांति व् व्यवस्था परिवर्तन ही इस देश को बचा सकता है …फिर यू पी तो हमेशा ही जाती .धर्म व् शराब पर आधारित राजनीती का गढ़ रहा है …क्या हम परिपक्व राजनीती की बात भी सोच सकते है क्या सीधे.सरल इमानदार व् गरीब के लिए राजनीती में अब कोई जगह है.???????

  3. एक पार्टी सीपीएम भी है जो चाहे सत्ता मिले या जाए पर सिद्धांतो^ से समझौता नहीं करती और प्रधानमंत्री तक के प्रस्ताव को दो दो बार ठुकरा देती है

  4. रिपोर्ट के अनुसार बाबु सिंह कुशवाहा को पहले कांग्रेस ने लेने की कोशिश की लेकिन भाजपा ने पहल करके बाजी मार ली तो अब कांग्रेस के पेट में दर्द शुरू हो गया और युवराज ने अनाप शनाप बोलना शुरू कर दिया. आखिर जब जातिवाद यहाँ की राजनीती का महत्वपूर्ण अंग है तो पिछड़ी जातियों को गले लगाने के भाजपा के प्रयास पर इतनी हाय तौबा क्यों? मायावती के भाई आनंद के कारनामे और लूट को नॉएडा व वेस्ट यु पी का बच्चा-2 जनता है फिर क्या सी बी आई और आय कर विभाग को नहीं दिखाई देता?

  5. कुशवाहा को लेकर भाजपा ने गलती की है. लेकिन क्या करे जिस प्रदेश में जातीय और मजहबी समीकरण ही सब कुछ हो वहा ऐसी चीजे होती रही है. क्या कोंग्रेस, क्या बसपा, सपा और क्या भाजपा.

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