योगा: नया आइटम सांग…. गिरीश पंकज

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yogaपहले सड़कों पर तमाशा दिखाने वाले मदारियों का ड्रेस कोड नहीं होता था। अब वे समझदार हो गए हैं। आजकल वे भगवा ड्रेस में नज़र आते हैं। उस दिन शहर में एक हाइटेक मदारी आया। वह भगवा ड्रेस पहने हुए था। मदारी ने डुगडुगी बजाई । भीड़ जुटी। मदारी ने पापी पेट के लिए सबके सामने अपना खुला पेट घुमाया। एक-दो गुलाटियाँ खाईं। कुछ छोटे-मोटे करामात भी दिखाए।

मदारी के साथ उसका बंदर भी था। जैसे ही मदारी ने कहा-चल बजरंगी, कपालभाति कर। बंदर का नाभि से लेकर गर्दन तक का हिस्सा कलाबाजियाँ खाने लगा। लोगों ने तालियाँ पीटीं। भीड़ में मदारी के लोग भी शामिल थे। पहले उन्होंने तालियाँ पीटीं। उनकी देखा-देखी दूसरे लोग भी पीटने लगे। मदारी हिट हो गया। पहले वह साँप-नेवले की लड़ाई दिखाया करता था। वह आइटम पुराना पड़ गया है। बिल्कुल नया आइटम है योग। योग नहीं योगा। योगा इस वक्त का आइटम साँग है। हर मदारी इसी के सहारे रोजी-राटी कमा रहा है। ढंग से पेट घुमाओ। बॉडी की लचक दिखाओ, और दिल में उतर जाओ। बीमार समाज को योग रखे निरोग। यह नारा हिट है। जो जितना फिट है, उतना ज्यादा हिट है। चाहे बॉलीबुड हो चाहे योगीवुड। यानी योगा की दुनिया।

पहले गली-मुहल्ले में सामान बेचने वाले नज़र आते थे। आजकल योगा वाले नज़र आते हैं। योगा अब कुटीर उद्योग है। बेरोजगारी से त्रस्त युवकों की कमाई का साधन। कहीं नौकरी नहीं मिल रही है तो हरिद्वार चले जाओ। कई बाबा मिल जाएंगे। उनसे योगा के टिप्स ले कर आओ। शरीर को फिट रखने के कुछ फार्मूले समझ लो। फिर भगवा लबादा ओढ़कर मजे से योगा बेचो। हाँ, कुछ श्लोक, कुछ दार्शनिक कविताएँ, कुछ अच्छे विचारों का घोल बना कर पूरा योगा-पैकेज बनाओ। अगर आप हिट न हो जाएँ तो मेरा नाम बदल देना, हाँ।

भगवा रंग बहुत जल्दी भरोसा जीत लेता है। पहले यह वैराग्य और त्याग का प्रतीक था। अब एक आड़ है। ज्यादातर आत्माएँ इस आड़ में बहुत कुछ काली-पीला करके लाल हो रही हैं। कोई योग बेच रहा है, तो कोई आतंक। कोई वासना बेच रहा है, तो कोई राजनीति।

उस दिन मोहल्ले में हाइटेक मदारी आया। भगवा कपड़े में था। लोग खिंचे चले आए। बीमारों की भीड़ जमा हो गई है। एक से एक स्टैंर्ड की बीमारियाँ। लोगों को लम्बा जीवन चाहिए ताकि भोग जारी रहे। देश और समाज के लिए नहीं, सुंदरियों से मसाज कराने के लिए लोग जि़दा रहना चाहते हैं। स्वस्थ रहेंगे तो भोग करेंगे। भोग के लिए योग। इसीलिए रहो निरोग।

पैसे वालों के शरीर में रोगों ने घर बना लिया है। हवाई जहाजों में उड़ते हैं लेकिन डरते रहते हैं कि कब प्राण पखेरू उड़ जाएगा। बचने का एक ही उपाय है। असमय मरने से बचना है तो प्राणायाम करो। मदारी समझाता है-योग करो, स्वस्थ रहो। अनुलोम-विलोम करो। कपाल भाती करो। भ्रामरी करो। धनवालों को अभी और जीना है। एक बंगले, दो कारें, तीन कारखानों से बात नहीं बन रही। इन सबको चौगुना करना है। यह तभी संभव है जब जान बची रहे। जान है तो जहान है। जान है तो हुस्न के लाखों रंग हैं। जो भी रंग देखना चाहो। इसलिए योगम् शरणम् गच्छामि।

योगावाला मदारी बता रहा है कि कैसे दीर्घजीवी बनें। थोडा़-बहुत खर्चा है। लोग खर्च करने के लिए तैयार हैं। समय निकाल रहे हैं शरीर के लिए। देश के लिए बाद में सोचेंगे। पहले देह, बाद में देश। पैसेवाले पुण्य कमा रहे हैं। पाप बहुत बढ़ गया है। उसे कम करना है। योग शिविर लगवाने से, यज्ञ-प्रवचन आदि करवाने से पाप कम होते हैं। ऐसा मदारी समझा रहा है। हर बड़े धार्मिक आयोजन में सेठों का सहयोग होता है। स्वामी, साधु-संत इनका भरपूर दोहन करते हैं। यही तो समाज है। अंधा देख नहीं सकता था, लंगड़ा चल नहीं पाता था। दोनों को मेला देखने जाना था। लंगड़ा अंधे के कंधेे पर सवार हो गया था। कुछ समझदार पापी स्वामियों के कंधों पर सवार हो कर मुक्ति के मेले तक पहुँचना चाहते हैं।

अब तो गोरी-चिट्टी महिलाएँ भी योग के मैदान में उतर कर कमाल कर रही हैं। बिकनीनुमा वस्त्रों में योगा सिखा रही हैं। वाह-वाह, इस योगा में कितनी संभावनाएँ हैं। तन, मन और धन। सबका आनंद है यहाँ। आय-हाय..। योगियों की बजाय योगिनियाँ ज्यादा आकर्षित करती हैं। योगा में ग्लैमर बढ़ रहा है इसीलिए तो नए दौर में इस सर्वाधिक हिट-सुपर-डूपर हिट- सांग को गाएँ और फौरन से पेश्तर योगम् शरणम् गच्छामि हो जाएं।

बोलो योगादेव की… जय। नया फ़िल्मी गाना भी जम सकता है-

ये योगा हाय,

बैठे-बिठाये/

धंधा जमाये,

हो रामा..

गिरीश पंकज

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