औरों से अधिक अपना
लाल रवि की प्रथम किरण-सा
कौन उदित होता है मन-मंदिर में प्रतिदिन
मधुर-गीत-सा मंजुल, मनोग्राही,
भर देता है
आत्मीयता का अंजन इन आँखों में,
टूट जाते हैं बंध औपचारिकता के
उस पल जब वह ” आप ” —
” आप ” से ” तुम ” बन जाता है ।
झाँकते हैं अँधेरे मेरे, खिड़की से बाहर
नई प्रात के आलिंगन को आतुर
कि जैसे टूट गए आज जादू सारे
मेरे अंतरस्थ अँधेरों के,
छिपाय नहीं छिपती हैं गोपनीय भावनाएँ —
सरसराती हवा की सरसराहट
होले-से उन्हें कह देती है कानों में,
और ऐसे में पूछे कोई नादान –
” आपको मेरा
” तुम ” कहना अच्छा लगता है क्या ? ”
कहने को कितना कुछ उठता है ज्वार-सा
पर शब्दों में शरणागत भाव-स्मूह
घने मेघों-से उलझते, टकराते,
अभिव्यक्ति से पहले टूट जाते,
ओंठ थरथराते, पथराए
कुछ कह न पाते
बस इन कुछ शब्दों के सिवा —
” तुम कैसे हो ? ”
” और तुम ? ”
उस प्रदीप्त पल की प्रत्याशा,
अन्य शब्द और शब्दों के अर्थ व्यर्थ,
उल्लासोन्माद में काँपते हैं हाथ,
और काँपते प्याले में भरी चाय
बिखर जाती है,
उस पल मौन के परदे के पीछे से
धीरे से चला आता है वह जो “आप” था
और अब है स्नेहमय ” तुम “,
पोंछ देता है मेरी सारी घबराहट,
झुक जाती हैं पलकें मेरी
आत्म-समर्पण में,
अप्रतिम खिलखिलाती हरियाली हँसी उसकी
अब सारी हवा में घुली
आँगन में हर फूल हर कली को हँसा देती है
जब ” आप ” ….
” आप ” तुम में बदल जाता है ।
दिल्ली ,हरयाणा या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जब एक लड़का भी किसी अनजाने बुजुर्ग को तुम कहकर संबोधित करता है तो उसमे आत्मीयता नहीं अपमान महसूस होता है.
श्री विजय निकोर की पूरी कविता पढ कर आप टिप्पणी करते तो अच्छा होता, उन्होंने किसी अनजान बुज़ुर्ग को
तुम कहकर संबोधित करने को नहीं कहा है।किसी आत्मीय रिश्ते में बंधे दो लोग जब ”आप” से ”तुम” हो जाते हैं उस भाव क सौन्दर्य को व्यक्त किया है।हम सभी जानते हैं कि अनजान बुज़ुर्ग हों या जवान उनके लियें आदर सूचक और औपचारिक संबोधन ”आप” ही सही लगता है।
श्री विजय निकोर की पूरी कविता पढ कर आप टिप्पणी करते तो अच्छा होता, उन्होंने किसी अनजान बुज़ुर्ग को
तुम कहकर संबोधित करने को नहीं कहा है।किसी आत्मीय रिश्ते में बंधे दो लोग जब आप से तुम हो जाते हैं
उस भाव क सौन्दर्य को व्यक्त किया है।हम सभी जानते हैं कि अनजान बुज़ुर्ग हों या जवान उनके लियें आदर सूचक और औपचारिक संबोधन आप ही सही लगता है।
आदरणीय सिहं जी,
आपने बुज़ुर्ग के संदर्भ में बिलकुल ठीक कहा है। इस कविता में “आप” और “तुम” शब्द एक पुरुष और महिला की मित्रता में बढ़ती आत्मीयता को संबोधित कर रहे हैं।
विजय निकोर
आप जब तुम मे बदल जाता हहै तो औपचारिकतायें नहीं रहती आत्मीयता बढ जाती है ,बहुत ख़ूब।