‘युवा’ बदलेंगे भारत का तस्वीर

-मुकेश शर्मा-
The Power of Youth

‘युवा’ शब्द सुनते ही चौड़ा सीना, फौलादी भुजाएं और आत्मविश्वास से लबालब भरा एक ऐसा शख्स सामने आता है, जो कुछ कर गुजरने की इच्छा रखता है। उसमें इतना जोश रहता है कि वह किसी भी चुनौती को स्वीकारने के लिये तैयार रहता है। चाहे वह कुर्बानी ही क्यों न हो। नौजवान अतीत का गौरव और भविष्य का कर्णधार होता है। देश की तरक्की में युवाओं का बहुत बड़ा हाथ होता है, यूं कहें तो युवावर्ग देश के भाग्य विधाता होते हैं। 16वां लोकसभा चुनाव भी इन युवाओं के इर्द-गिर्द रहने वाला है। कोई भी राजनैतिक दल युवाओं को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता। युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनैतिक दल हरसंभव कोशिश में जुटे हैं। साथ ही युवा वर्ग भी इसबार चुनावों पर पैनी नजर रखे हुए हैं। वह न केवल वोट की कीमत को समझ रहा है, बल्कि सक्रिय राजनीति भी उतर रहा है।

तीन वर्ष पहले समाजसेवी अन्ना हजारे द्बारा जनलोकपाल आंदोलन में जिस तरह युवाओं की भूमिका रही, उसे देखकर भारतीय विेश्लेषकों ने एक अच्छे भारत की कल्पना शुरू कर दी थी। क्योंकि व्यवस्था को उखाड़ने का काम बुजुर्ग हाथों से नहीं, बल्कि युवा दिल से हो सकता है। अन्ना का आंदोलन युवाओं के दम पर न केवल सार्थक रहा। बल्कि इसकी गूंज ने भारतीय लोकतंत्र के स्तंभों को हिला दिया। उसी दिन से भारत की नई तस्वीर बनने लगी। दामिनी के साथ हुए अन्याय के खिलाफ भी लाखों युवा सड़क पर आएं और इंसाफ की गुहार लगाई। युवा शक्ति को यह मंजर 1975 के जेपी आंदोलन के बाद वर्ष 2012 में दिखाई दिया। अब युवा अपनी ताकत 16वीं लोकसभा चुनाव में दिखा रहे है। सोलहवीं लोकसभा के लिए होने वाले चुनावों में पहली बार सबसे अधिक युवा मतदाता भाग लेंगे।

दस करोड़ युवा मतदाता
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इन चुनावों में करीब 10 करोड़ लोग पहली बार मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इन युवा वोटरों में 18-19 साल वालों की संख्या दो करोड़ 31 लाख है। जहां तक पहली बार मताधिकार का इस्तेमाल करने वाले 10 करोड़ लोगों का सवाल है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत सहित दुनिया के 11 देशों की आबादी ही 10 करोड़ से अधिक है। देश में सिर्फ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार की जनसंख्या ही 10 करोड़ से अधिक है। चुनाव आयोग ने इस बार यह बताया है कि देश में कितने युवा वोटर हैं और बीते पांच साल में बने नए वोटरों में 18-19 साल वालों की संख्या कितनी है। साल 1952 में देश के पहले आम चुनाव के वक्त जहां मतदाताओं की संख्या 17.6 करोड़ थी, वहीं 2014 में मतदाताओं की कुल संख्या 81.4 करोड़ हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव (2009) की तुलना में इस बार मतदाताओं की संख्या करीब दस करोड़ तक बढ़ी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के युवाओं का राजनीति की ओर तेजी से रुझान बढ़ा है। इनमें से बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है, जो राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं या निभाने की सोच रहे हैं। कुछ माह पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारी संख्या में युवाओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया और इसकी वजह से इन चुनावों में मतदान प्रतिशत भी काफी अधिक रहा।

बनेगी ‘जवां’ लोकसभा
देश में युवा मतदाताओं की बढ़ती संख्या और उन्हें अपनी ओर आर्कषित करने की प्रमुख राजनीतिक दलों में चली होड़ लगी है। लिहाजा हर राजनैतिक दल ने युवा प्रत्याशियों को मौका दिया है। माना जा रहा है कि अभी तक 12वीं लोकसभा सबसे युवा (औसत उम्र 46.4 वर्ष) थी। वह रिकॉर्ड 16वीं लोकसभा में टूट सकता है। कई प्रमुख दलों ने अनेक सीटों पर 40 से 45 साल की आयु के प्रत्याशियों को टिकट दिया है। 16वीं लोकसभा में कुल 81,45,91,118 मतदाताओं में से 2,31,61,296 यानी 2.8 प्रतिशत 18 से 19 वर्ष के युवा मतदाता है। चुनाव विेश्लेषकों में चर्चा का विषय है कि 16वीं लोकसभा देश की सबसे ‘जवां’ लोकसभा होगी।

सोशल साइट्स पर युवा
युवा मतदाताओं की रिकॉर्ड भागीदारी को देखते हुए राजनीतिक दल मोबाइल और इंटरनेट के जरिये युवाओं से संपर्क साधने में लगे है। देश में सूचना क्रांति बाद संभवत: यह पहला लोकसभा चुनाव है जिसकी जंग फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसी तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लड़ी जा रही है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस के अघोषित प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी राहुल गांधी तथा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत राजनीतिक गलियारे का लगभग हर चर्चित चेहरा सोशल साइट्स पर मौजूद है। आइरिस नालेज फाउंडेशन एवं इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा की 543 सीटों में से 160 सीटें ऐसी है जिन पर सोशल मीडिया का भारी प्रभाव पड़ेगा। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि सामान्य इंटरनेट के उपयोगकर्ता और विशेष रूप से सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता सामाजिक और नागरिक मुद्दों पर ज्यादा सक्रिय होते हैं। सोशल मीडिया में कम समय में बड़ी संख्या में लोगों को जुटाने की अद्भुत क्षमता है। राजनीतिक दल इस मंच के जरिये मतदाताओं के सीधे संपर्क में आकर उनकी समस्यायों का समाधन कर सकते हैं। इसलिए सभी पार्टियां सोशल मीडिया का उपयोग कर स्वयंसेवकों, समर्थकों और दाताओं को अपने पक्ष में जुटाने का प्रयास कर रही है।

युवाओं से संवाद
निसंदेह जनलोकपाल और भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में युवाओं को अपने पक्ष में किया। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत में भी युवाओं भूमिका अहम रही। पार्टी को अन्य पार्टियों के मुकाबले युवाओं के 17-18 फीसदी वोट अधिक मिले। आम आदमी पार्टी ने प्रचार के लिए भी नए प्रयोग किए। पार्टी ने सोशल मीडिया का व्यापक इस्तेमाल किया और युवाओं को बड़ी संख्या में जोड़ने में सफल रही। लेकिन आम आदमी पार्टी की अपरिपक्वता के कारण युवा इससे खिसक गया है। हालांकि यह देखना बाकी है कि खिसका हुआ युवा कहां अपनी शक्ति लगाता है। तभी तो नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी जैसे बड़े नेता युवाओं से संवाद बढ़ा रहे हैं। वरिष्ठ नेता कॉलेज, यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित कर उन्हें अपनी नीतियों से आकर्षित करने में लगे हैं। कांग्रेस ने अधिक से अधिक युवाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया वेबसाइटों पर अभियान भी चला रखा है। इस अभियान के जरिये पार्टी अपने उपाध्यक्ष राहुल गांधी की छवि को बेहतर करने में लगी है। वहीं, बीजेपी भी सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाकर युवाओं को लुभाने का काम कर रही है।

बदल सकते है पलड़ा
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव पर ध्यान दें तो कांग्रेस को करीब 11.9 करोड़ वोट मिले थे। जबकि भारतीय जनता पार्टी को 7.8 करोड़, बहुजन समाज पार्टी 2.6 करोड़ मत मिले। जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को 2.2 करोड़ मत मिले थे। पिछले दस सालों में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी झेल रहे युवाओं को संदेश कांग्रेस से मोहभंग हो गया है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली अप्रत्याशित जीत इसी मोहभंग का परिणाम है। इसलिए 16वीं लोकसभा चुनाव को लेकर व्यापक तौर पर यह माना जा रहा है कि पहली बार वोट डालने वाले मतदाता (18 से 22 साल के आयु वर्ग का मतदाता) बहुत बड़ा राजनीतिक बदलाव लाने वाले है। वे किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव हरा सकते हैं या फिर किसी दल को अपने दम पर चुनाव जिता सकते हैं। निर्वाचन आयोग ने 14 फरवरी को जारी आंकड़े का उल्लेख करते हुए कहा कि देश के 81,45,91,184 मतदाताओं में 2,31,61,296 मतदाताओं की उम्र 18 से 19 साल के बीच है, जो देश के कुल मतदाताओं का 2.8 फीसदी है। 28 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में दादर एवं नगर हवेली में सबसे ज्यादा युवा मतदाता (9.88 फीसदी) हैं, इसके बाद सबसे अधिक युवा मतदाता झारखंड (9.03 फीसदी) में हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में ऐसे मतदाताओं (1.1 फीसदी) की संख्या सबसे कम है। हिमाचल प्रदेश में भी युवा मतदाताओं (1.3 फीसदी) की संख्या काफी कम है. संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश में 18-19 साल के बीच के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक 38.1 लाख है और इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है जहां यह संख्या लगभग 20.8 लाख है। यदि आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि अठारह से चालीस वर्ष के युवा चुनाव परिणामों को निर्णायक ढंग से प्रभावित करने की स्थिति में हैं।

परिवर्तन का वाहक
गत चुनावों में एक बात तो बहुत साफ की कि युवा अब हवाई बातों में नहीं आएगा। वह राजनीति के जाल में न फंसकर जल्द से जल्द परिणाम तक पहुंचना चाहता है। युवा अपनी बात जोरदार ढंग से विभिन्न मंचों पर उठा रहे हैं और बढ़-चढ़कर वोटिग भी कर रहे है। वे जाति, पंथ, धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि सही मुद्दों पर वोटिंग करते है। कहीं न कहीं, भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैलियों में आ रही भीड़ कहीं न कहीं युवाओं के कंधों पर है। क्योंकि इन चुनावी सभाओं का जोश भी युवाओं जैसा है। कांग्रेस ने भी युवा चेहरा राहुल गांधी के भरोसे युवाओं को आकर्षित करने का जोखिम उठाया है। वहीं, भ्रष्टाचार और अपनी जिद के लिए युवाओं में लोकप्रिय अरविंद केजरीवाल भी है। जिसने युवाओं को हसीन सपने दिखाए है। इन तीनों के जहन में युवा जरूर है। क्योंकि वे जानते है कि संसद में जब-जब युवा सांसद अधिक आए तो उन्होंने संसद की कार्यवाही पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। युवाओं की आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने और दिल में आदर्श और दुनिया में कुछ सार्थक बदलाव लाने के अरमान होते है। युवा किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा या दल से भी जुड़े नहीं होते। वे सिर्फ सच्चाई पर विश्वास करते है। ‘युवा’ ही समाज में परिवर्तन के वाहक होते है। सरकारें भी ऐसे ही मतदाताओं के कारण बदलती है और बदलती रहेगी।

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