कविता

कविता : एक थी आरुषि

arushiएक थी आरुषि

हंसती खिलती एक सुकुमारी,

माता-पिता की संतान वो प्यारी,

एक रात न जाने कौन कंही से आकर,

उसको मार गया।

मां बाप को उसकी मौत पर,

रोने का अवसर भी न मिला।

बिन जांचे परखे ही पुलिस ने

बेटी का चरित्र हनन किया।

जो भी सबूत मिले उनसे,…

पिता को ही आरोपी घोषित किया,

उनका भी चरित्र हनन किया।

मां ने लाख समझाया,

किसी ने उसकी नहीं सुनी,

और अब न्यायालय ने,

माता-पिता को ही दोषी करार दिया।

ये कैसे कोई माने भला कि

माता- पिता हत्यारे है?

बेटी की लाश के साथ,

वो अपनी भी लाश उठाये हैं!

यदि क्रोध में हत्या हो भी जाती,

तो क्या वो यों ही जी लेते

आत्म समर्पण कर देते,

या आत्म हत्या कर लेते,

अब भी वो कहां ज़िन्दा हैं,

कई बार मरते होंगे हर दिन,

ख़ुद ज़िन्दा है ये सोच के भी,

शर्मिन्दा होंगे।