“यह आरोप मेरी बढ़ती लोकप्रियता के कारण विरोधियों ने साजिश के तहत लगाया है” – “मुझे भारत की न्याय प्रणाली पर पूरा भरोसा है” – आदि आदि —पिछले २-३ दशकों से आरोपी रहनुमाओं के ऐसे खोखले बयान सुन सुनकर हम सभी आजिज हो गए हैं। जब जब न्यायालय द्वारा देशहित में कोई महत्वपूर्ण फैसला दिया है जो तथाकथित “रहनुमाओं” के हित के विपरीत जाता है तो युद्ध-स्तर पर सरकार संसद द्वारा न्यायिक व्यवस्था के पंख कुतर दिए जाते हैं। हमारे आपके सामने शाहबानो प्रकरण से लेकर आज तक कई उदाहरण हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय से दागी रहनुमाओं को सीधा सीधी बचाने की दिशा में वर्तमान सरकार द्वारा २४-०९-२०१३ को लाया गया यह अध्यादेश यही साबित करता है कि इन “रहनुमाओं” को भारतीय न्याय प्रणाली पर कितना “भरोसा” है?
कौन संत है कौन लुटेरा
सत्ता की सारी मनमानी क्यों करते स्वीकार यहाँ
वतनपरस्ती किसके दिल में खोज रहा हूँ सालों से
नीति-नियम और त्याग-समर्पण की बातें बेकार यहाँ
संविधान को अपने ढंग से परिभाषित करते सारे
छीन लिए जाते हैं यारो जीने का अधिकार यहाँ
दिखलायी देती खुदगर्जी रिश्तों में, अपनापन में
टूटा गाँव, समाज, देश भी टूट रहा परिवार यहाँ
आजादी की अमर कहानी नहीं पढ़ाते बच्चों को
वीर शहीदों के सपने भी शायद हो साकार यहाँ
भूखे की हालत पर लिखना बिना भूख वो क्या जाने
रोजी रोटी पहले यारो कर लेना फिर प्यार यहाँ
कौन संत है कौन लुटेरा यह पहचान बहुत मुश्किल
असली नकली सभी सुमन के लोग करे व्यापार यहाँ
श्यामल सुमन
नियंत्रण व संतुलन के सिद्धांत के तहत सविधान निर्माताओं द्वारा शासन के तीनो अंगों में जो संतुलाल बनाने की कोशिश की थी यह सरकार उस सब को मिटाकर, सारी शक्तियां कार्यपालिका में समेत कर केन्द्रित करना चाहती है ताकि भविष्य में तानाशाह हो कर वह राज कर सके.बनते हुए विपक्ष का लाभ उठा वह सधेहुए क़दमों से यह सब कर रही है.चाहे अपराधी नेताओं को सजा पाने से रोकने के लाना अध्यादेश,चाहे न्यायपालिका के लिए जजों की नियुक्ति,ताकि दलों के सदस्यों को वहां जज नियुक्त किया जा सके.अब इस सरकार ने यश तय कर लिया है कि यदि वह दुबारा सत्ता में आ गयी तो फिर वापस जाने कि जरूरत नहीं रहेगी.