कुमार कृष्णन
कुछ दिनों में बिहार के अलग-अलग जिलों में पुलिस टीम पर लगातार हमले हो रहे हैं. पहले अररिया और उसके बाद मुंगेर में भी छापेमारी के लिए गई टीम पर ग्रामीणों ने हमला किया था। इस हमले में पहले अररिया और बाद में मुंगेर में पुलिस सहायक अवर निरीक्षक की मौत हो गई थी।
मुंगेर में एक विवाद को सुलझाने गए सहायक अवर निरीक्षक संतोष सिंह को गांव वालों ने धारदार हथियार से हमला कर मार डाला। उसके दूसरे ही दिन मुंगेर के हवेली खड़गपुर थाना क्षेत्र के फसियाबाद में डायल 112 के पुलिस जवानों पर फिर हमला हुआ। इस हमले में एक सिपाही गंभीर रूप से जख्मी हो गया जबकि अन्य कई पुलिस वाले ग्रामीणों के पथराव से घायल हो गए। तीन दिनों के अंदर तीसरी घटना मुजफ्फरपुर में हुईं जहां थाने पर उपद्रवियों ने पथराव किया। भागलपुर के अंतीचक थाने इलाके में भी पुलिस पर हमला हुआ।
बालू माफिया से पुलिस की भिड़ंत की खबरें भी आती ही रहती हैं। शराब की सूचना पर पहुंचने वाली पुलिस भी अक्सर पिटती है। पुलिस पर सरेआम यह आरोप लगता है कि भले ही राज्य में शराबबंदी है लेकिन पुलिस की मिलीभगत से हर जगह शराब उपलब्ध है।
मुख्य मंत्री हर जगह कहते हैं कि बिहार में कानून का राज है, लेकिन यह जुमला ही साबित हो रहा है। बिहार की कानून व्यवस्था को लेकर कर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है। राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन के नेता और पूर्व उप मुख्य मंत्री तेजस्वी यादव तो पिछले कई महीनों से लगातार क्राइम बुलेटिन जारी करते रहे हैं। आम आदमी को निशाना बनाने में अपराधी अब तनिक भी संकोच नहीं करते। जनता के रक्षक भी असुरक्षित हैं। यह तीन दिनों में उन पर हमले की तीन घटनाओं से समझा जा सकता है। तेजस्वी यादव अगर इसके लिए नीतीश कुमार को जिम्मेवार ठहराते हैं तो इसमें बचाव की भी कोई गुंजाइश नहीं बचती। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में लूट की घटनाएं भी धड़ल्ले से हो रही हैं। भोजपुर में तनिष्क शो रूम से लूट ने सबको चौंका दिया है।
इस बातावरण एवं अव्यवस्था का मूल का इंसान का नैतिक पतन, भ्रष्टाचार, एवं ऐश- मौज , भोग- विलास की प्रवृत्ति है ! जो लोग ब्रिटिश शासन काल एवं कांग्रेस 1990 के शासन काल की बात करते हैं, वे भूल जाते हैं कि मंडल आंदोलन के पहले समाज के कुछ हीं जाति के व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार था।
श्री बाबू से लेकर, केवी सहाय से जगन्नाथ मिश्र के शासनकाल में दलित पिछड़ो की सवर्णों एवं पुलिस के सामने क्या हैसियत थी, किसी से छिपी नहीं थी। आज जो कुछ भी हो रहा है, वह समाज एवं देश के लिए शुभ नहीं है किन्तु पुलिस प्रशासन, सामान्य, प्रशासन, राजनीतिक प्रशासन यहाँ तक की मीडिया, न्यायपालिका जितना भ्रष्ट एवं वेईमान एवं निर्लज्ज हो चुके हैं, उसी का परिणाम है अपराधियों का मनोबल इतना बढ़ चुका है !
सच्चाई है कि पुलिस द्वारा अपराधियों एवं भ्रष्टाचारियों को ही संरक्षण दिया जाता है तथा उसी संरक्षण के कारण उसका मनोबल बढ़ा हुआ है! आज के दिन कुछ अपवादों को छोड़ शायद ही कोई आइएएस, मंत्री या कोई महत्वपूर्ण पदाधिकारी , नेता ईमानदार है ! बिहार के पूर्णिया में पुलिस अधीक्षक दयाशंकर को निलंबित किया गया। उस पर आरोप था कि दयाशंकर ने ही भ्रष्टाचार का पांव पसारते हुए कई पुलिसकर्मियों को इसमें लिप्त कर लिया था।
दरअसल ऐसी स्थिति हाल के दिनों में ही नहीं उत्पन्न हुई है। सच तो यह है कि 2020 से ही ऐसे हालात बने हुए हैं। शायद ही कोई महीना बीतता हो, जब पुलिस पर हमले की घटना न हो। हत्या, लूट जैसी घटनाएं रोजमर्रा की बात हो गई हैं। यह सब उसी बिहार में हो रहा है, जहां 2005 से ही नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार चलती रही है। क्राइम कंट्रोल के नीतीश कुमार के तरीके को देख कर बिहार की जनता ने 2010 आते-आते उन्हें सुशाशन कुमार और सुशासन बाबू कहना शुरू किया था। बिहार के सुशासन की सर्वत्र चर्चा होने लगी थी। नीतीश कुमार ने 2013 में एनडीए छोड़ दिया। तब से ही कमोबेश यही स्थिति बनी हुई है।
पहले नीतीश कुमार की हनक थी। उनका आदेश पुलिस और दूसरे महकमों के अफसरों के लिए ब्रह्म वाक्य होता था। बड़े-बड़े अपराधी जेलों में ठूंस दिए गए थे। बचे अपराधियों ने बिहार छोड़ना ही मुनासिब समझा। उनका ठिकाना दूसरे राज्य बन गए। तब नीतीश की सख्ती ऐसी थी कि उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दे रखा था कि किसी अपराधी की पैरवी अगर कोई जनप्रतिनिधि भी करने आए तो उनकी नहीं सुनना है। अफसरों ने भी सख्ती और ईमानदारी दिखाई। बिहार में क्राइम कंट्रोल हो गया और नीतीश की सख्ती की सर्वत्र सराहना होने लगी। नीतीश अगर बार-बार कहते हैं कि 2005 के पहले शाम के बाद कोई घर से निकलता था जी तो इसकी यही वजह कि उनकी सख्ती से बाद के दिनों में अपराधियों के होश फाख्ता हो गए थे।
राजद नेता तेजस्वी यादव और जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर के अनुसार -नीतीश कुमार से बिहार संभल नहीं रहा। ये दोनों नीतीश कुमार की मानसिक स्थिति पर भी सवाल उठाते हैं। उन्हें बीमार और लाचार मुख्य मंत्री ठहराने का तेजस्वी को अगर मौका मिला है तो इसकी वजह सिर्फ कानून व्यवस्था की दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही स्थिति है। राज्य के सुदूर इलाकों को छोड़ भी दें तो जिस पटना में सत्ता और शासन के सर्वोच्च लोग बैठते हों, वहां भी अपराध बेकाबू हैं। रोज ब रोज हत्या, फायरिंग और बम विस्फोट जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। छिनतईबाज तो शहरों में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं।
समाजसेवी विक्रम कांत के अनुसार उनकी पत्नी वर्षा ऋतु ट्रेन से उतर कर ओवर ब्रिज की पहली सीढ़ी पर चढ़ने लगी किसी गिरोह ने गले का चेन झपट लिया।
राजकीय रेल पुलिस थाना में प्राथमिकी लिखाने गयी तो टाल मटोल कर कहा गया कि सीसीटीवी देखिए। जहां पर चेन खींचा गया, वहां दिखाने जब कहा गया तो रेल पुलिस ने कहा वहां पर कैमरा नहीं है, फिर कहा कि बड़ा बाबू से मिलिए। उसी वक्त सबौर की एक महिला प्रिया का भी चेन खींच गया। दोनों जीआरपी थाने में पहुंची थी।
यह स्थिति है भागलपुर स्टेशन की । सभी अधिकारी लोग जानते हैं कि कौन खींचा है। यहां पर इस तरह का गिरोह सक्रिय है .रोज ऐसी घटनाएं घट रही है और इससे सभी पदाधिकारी लोग वाकिफ हैं।
ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार जान-बूझ कर अपराधियों को खुली छूट दिए हुए हैं। वे कबूल भले न करें, लेकिन सच यही है कि अपराध नियंत्रण के लिए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही। पुलिस महकमे में बड़े पैमाने पर तबादले होते रहे हैं। निलंबन की कार्रवाई भी होती रहती है। हाल के दिनों में तो एनकाउंटर भी हुए हैं। अभी तक करीब आधा दर्जन खूंखार अपराधी पुलिस की गोली का शिकार बन चुके। इसके बावजूद अपराधी बेलगाम हैं।
कुमार कृष्णन