अज़ीम प्रेमजी का सच्चा राष्ट्रवाद

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-तनवीर जाफ़री

विगत् कुछ महीनों से भारतीय मीडिया में रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार तथा घोटालों की ख़बरें प्रमुखता से छाई देखी गई। इन घोटालों में कई शीर्ष राजनेता व अधिकारियों को पदमुक्त होते तथा उनके विरुद्ध जांच पड़ताल होते हुए भी देखा गया। यहां तक कि महाराष्ट्र के मुख्‍यमंत्री अशोक चव्हाण को इन्हीं घोटालों के कारण अपने पद से भी हटना पड़ा। इन्हीं दिनों भारत में ही इस बात को लेकर भी तमाम राजनीतिज्ञों व सामाजिक लोगों द्वारा पूरे ज़ोर-ओ-शोर के साथ यह आवाज उठाई जा रही है कि विदेशी बैंकों में जमा किए गए भारतीय नेताओं, अधिकारियों तथा काली कमाई व घोटाला करने वालों की लाखों करोड़ों रुपयों की दौलत को वापस भारत लाया जाना चाहिए। जाहिर है भारत जैसे विकासशील देश में जोकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसं या वाला देश भी है, को अपने शिक्षा व स्वास्थ्‍य जैसे बुनियादी खर्चों के लिए आज भी पैसों की बहुत सख्‍त जरूरत है। निश्चित रूप से भारत विकसित राष्ट्र की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। परंतु वास्तिवक भारत जोकि भारत के गांवों में बसता है आज भी उस शहरी विकास की छाया से कोसों दूर है। हमारे देश में आज भी लाखों गांव ऐसे हैं जहां न तो बिजली है, न पीने का साफ पानी, न ही स्वास्‍थ्‍य केंद्र हैं न ही प्रारंभिक शिक्षा के संस्थान। तमाम गांव ऐसे भी हैं जो मुख्‍य मार्गों से बिल्कुल कटे हुए हैं। ऐसे में यदि देश का कोई जिम्‍मेदार नेता, व्यवसायी, अधिकारी अथवा कोई अपनी काली कमाई को विदेशी बैंकों में जाकर जमा करता है, उसे देश का ग़द्दार अथवा दुश्मन नहीं तो और क्या कहा जा सकता है। वास्तव में धन लोभी प्रवृति के ऐसे ही लोगों की वजह से ही भारतवर्ष अब तक उस गति से तरक्की की मंजिलें तय नहीं कर पा रहा है जैसे कि उसे बढ़ना चाहिए।

परतु इन्हीं नकारात्मक समाचारों के मध्य कभी कभी कुछ ऐसी खबरें भी सुनने को मिल जाती हैं जिनसे यह महसूस होता है कि जहां हमारी धरती आसुरी प्रवृति के तथा स्वार्थी तथा धन लोभी लोगों से भरी पड़ी है, वहीं हमारे देश में व दुनिया में ऐसे महान दानी सानों की कमी नहीं है जो अपने व्यापार को बढ़ाने के साथ साथ बुनियादी सामाजिक सरोकारों के प्रति भी उतना ही गंभीर रहते हैं। उदाहरण के तौर पर बिल गेट्स, मॉइक्रोसॉफ्ट कंपनी के उस मालिक का नाम है जो विश्व के सबसे धनी उद्योगपतियों में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। ऐसे ही एक और अमेरिकी उद्योग जगत की हस्ती का नाम है वारेन बंफेट। इन दोनों ही अमेरिकी उद्योगपतियों ने अपनी अकूत संपति का आधा हिस्सा बुनियादी सामाजिक सरोकारों विशेषकर ग़रीबी उन्मूलन, शिक्षा तथा स्वास्‍थ्‍य एंव रोजगार आदि के लिए दान कर दिया है। इन्होंने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाऊंडेशन नामक एक संगठन भी बनाया है। इसके अंतर्गत वे दुनिया के जरूरतमंदों को सहायता पहुंचाया करेंगे। पिछले दिनों बिल गेट्स ने इस फाउंडेशन में जहां 120 मिलियन डॉलर की भारी भरकम दुनिया के ग़रीब किसानों के कल्याण के लिए दान की है वहीं केवल भारतीय गरीब किसानों व खेतिहर मादूरों के कल्याण हेतु 9.7 मिलियन डॉलर की रंकम दान की है।

अब उपरोक्त दोनों विश्व प्रसिद्ध महादानियों अर्थात् बिल गेट्स तथा वारेन बफेट ने अपने साथकुछ समान विचार रखने वाले उद्योगपतियों का एक संगठन गठित किया है तथा गरीबी उन्मूलन व शिक्षा एवं स्वास्‍थ्‍य आदि की दिशा में काम करने के लिए बड़े पैमाने पर उद्योगपतियों से विश्वस्तर पर संपर्क साधने तथा ऐसे सामाजिक कार्यों के लिए अपनी संपत्तियों का बड़ा हिस्सा दान करने हेतु उन्हें आमादा करने का अभियान चलाया है। गरीबों के लिए अवतार या फरिश्ता कहा जा सकने वाला यह संगठन बिल गेट्स व वारेन बफेट के नेतृत्व में गत् दिनों चीन के दौरे पर गया तथा चीनी उद्योगपतियों को भी अपने मिशन में शामिल होने को अथवा इस प्रकार के मिशन बड़े पैमाने पर अपने-अपने देशों में भी चलाने का आह्वान किया। हालांकि बिल गेट्स अभी कुछ ही समय पूर्व भारत के उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्‍यों के गरीबी दर्जे वाले कई क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं। परंतु खबर है कि अपने समाज कल्याण मिशन के सिलसिले में शीघ्र ही वे अपने अन्य उद्योगपति साथियों के साथ पुन: भारत आने वाले हैं जहां वे भारतीय उद्योगपतियों से भी बुनियादी सामाजिक सरोकारों की मुहिम में दिल खोलकर शामिल होने का आह्वान करेंगे।

बहरहाल बिल गेट्स व वारेन बंफेट से मिली प्रेरणा कहा जाए अथवा भारतीय समाज की जरूरत या फिर इस्लामी शिक्षाओं का प्रभाव, इसे कुछ भी कहें परन्तु उपरोक्त अमेरिकी उद्योगपतियों के भारत पहुंचने से पहले ही मशहूर भारतीय उद्योगपति तथा विप्रो कंपनी के मालिक अज़ीम हाशिम प्रेमजी ने भारतीय प्रारंभिक शिक्षा को स्तरीय बनाने तथा इसमें व्यापक सुधार लाने हेतु सन् 2001 में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन नामक एक फंड स्थापित किया था। इस फंड में उन्होंने लगभग नौ हजार करोड़ रुपए की भारी-भरकम धनराशि दान कर भारतीय उद्योग जगत को हैरत में डाल दिया है। अज़ीम जी के इस अज़ीम कारनामे ने देश के तमाम धनाढयों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वास्तव में धन का महत्व क्या है, धन का प्रयोग कहां और कैसे किया जाना चाहिए तथा समाज व देश के विकास में धन का क्या योगदान हो सकता है। अज़ीम हाशिम प्रेमजी का जन्म वैसे तो कराची में 1945 में हुआ था। इनके पिताजी एम एच प्रेमजी जोकि वेस्टर्न इण्डिया प्रॉडक्ट नामक इसी कंपनी के मालिकथे। बाद में यही कंपनी अज़ीम जी के नेतृत्व में विप्रो के नाम से प्रसिद्ध हुई। एम एच प्रेमजी को मोह मद अली जिन्नाह द्वारा भारत-पाक विभाजन की मुहिम में शामिल होने तथा पाकिस्तान में बसने का निवेदन किया गया था। परन्तु विभाजन का विरोध करने वाले एम एच प्रेमजी ने बंटवारे के बाद गुजरात का रुख किया और वहीं से अपने कारोबार को परवान चढ़ाया। शिया समुदाय से संबंध रखने वाले अज़ीम प्रेमजी का विवाह यासमीन नामक महिला से हुआ तथा इनके रिशाद तथा तारिंक नाम के दो पुत्र भी हैं जो अज़ीम जी के कारोबार में बंखूबी दिलचस्पी ले रहे हैं।

चूंकि बात अज़ीम प्रेमजी जैसे शिया खोजा गुजराती मुस्लिम उद्योगपति द्वारा दिए गए भारी-भरकम दान से जुड़ी है, अत: यहां कुछ बातों का उल्लेख करना भी तर्कसंगत होगा। 2002 में हुए गुजरात दंगों में एक ऐसे संगठित गिरोह द्वारा जोकि स्वयं को भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रहरी बताता है, ने बड़े ही संगठित तरीके से गुजरात में चुन-चुनकर उन औद्योगिक इकाइयों व उनके घरों व संस्थानों को भारी नुकसान पहुंचाया जिनके मालिक मुसलमान थे। कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं व व्यापारियों की हत्याएं की गईं। सैकड़ों मस्जिदों व दरगाहों को आग के हवाले कर दिया गया। अभी तक गुजरात में तमाम सामाजिक गैर सरकारी संगठन यह आरोप लगाते आ रहे हैं कि गुजरात में अल्पसंख्‍यकों विशेषकर मुसलमानों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है तथा उन्हें विकास की मुख्‍यधारा में शामिल होने से रोकने की भरपूर कोशिश शासन व प्रशासन द्वारा की जा रही है। इतना ही नहीं बल्कि इन तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों द्वारा गुजरात में लगभग एक दशक से यह मुहिम भी चलाई जा रही है कि वे मुसलमानों के साथ किसी प्रकार का सामाजिक, व्यावसायिक लेन-देन अथवा खरीद फरोख्‍त हरगिज न करें। इस आशय के पर्चे भी पूरे गुजरात में छपवाकर बंटवाए जाते रहे हैं जिनमें हिंदुओं व मुसलमानों के मध्य नंफरत फैलाने की बातें की जाती हैं।

यह सब सिंर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि सा प्रदायिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण बना रहे तथा इसी ध्रुवीकरण का लाभ उठाकर कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी संगठन राज्‍य की सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखें। अफसोस की बात तो यह है कि नफरत तथा सा प्रदायिक दुर्भावना के इस खूनी खेल को यही संगठन, यही विचारधारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नाम दिया करती है। अब जरा इन जैसे देश व धर्म के ठेकेदारों से यह पूछिए कि वास्तविक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है क्या? हजारों बेगुनाह लोगों के खून की होली खेलकर, हजारों मस्जिदों व दरगाहों में आग लगाकर, सैकड़ों युवतियों से बलात्कार व उनकी हत्या कर सत्ता तक पहुंचने में सफलता हासिल करना? इसी संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण तथा इसी संगठन के केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव द्वारा कैमरे के समक्ष रिश्वत लेते हुए पकड़े जाना? क्या यही है हिन्दुत्ववादी संगठनों के तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिभाषा? या फिर उसी गुजरात राज्‍य के मुस्लिम उद्योगपति द्वारा नौ हजार करोड़ रुपए जैसी भारी-भरकम रकम भारतीय शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए तथा गरीबों तक शिक्षा का लाभ पहुंचाने के लिए दान किया जाना। यहां इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जिस प्रकार बिल गेट्स तथा वारेन बंफेट द्वारा समाज कल्याण हेतु किए गए महादान के प्रभाव से तथा इस्लामिक शिक्षाओं में बताए गए ज़कात जैसे सिध्दांतों से अफीम जी स्वयं को प्रभावित होने से नहीं रोक सके, उसी प्रकार आशा की जानी चाहिए कि तमाम भारतीय उद्योगपति तथा धनाढय लोग आगे भी अज़ीम जी का अनुसरण करते हुए समाज कल्याण की आवश्यक बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाली मुहिम में शामिल होंगे। वास्तव में सच्चा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद वही है जो अज़ीम प्रेमजी जैसे राष्ट्रवादियों द्वारा कुछ रचनात्मक कर दिखाने के बाद प्रस्तुत किया जाए न कि खून खराबे, नफरत और वैमनस्य की आंधी चलाकर बताया जाने वाला मक्कारीपूर्ण सांस्कृतिक राष्ट्रवाद।

7 COMMENTS

  1. राष्ट्रभक्ति का शोर मचाने से कोई राष्ट्रभक्त नहीं हो जाता।
    राष्ट्रहित में कब कहां और कौनसे काम किए इसका लेखा-जोखा देते तो बेहतर होता।
    जकात के नाम से निकाला पैसा कहीं तो देना था पर कहा दिया और क्या किया इस बात की पुष्टि भी होती……..

  2. श्रीमान कृपया राष्ट्रीय प्रतीकों को हिन्दू मुसलमान के रूप में मत बाटिये लेख का विषय क्या होना चाहिए था और अपने इसे क्या बना दिया कभी तो सांप्रदायिक नजरिये से बाहर निकलिये

  3. नमस्ते तनवीर जी,

    मुझे अप्प्से यह कहने है की गुजरात से पहेले कश्मीर के कश्मीर पुन्दित के बारे मैं अपने कभी सूच है यह कभी उसकी निदा की है गुज्रात्व मैं तोह कारसेवक को जिंदा जलाया गया था इसलिए वहां हिंसा हुई वहां केवल मुस्लमान नहीं हिन्धू भी मरे गया पर कश्मीर मैं थो कुला नर्शंगर हुआ है कश्मीर पुन्दितों का उन्हे घर से बेघर कर दिया और यह रोजाना जेहादी हमले होरहैन हैं जो मासूम लोगों की गान लेरहैन हैं तब अप्प जैसे लोग इस पर कुछ नहीं कहते अपनी छुपी सड़ते हैं जो अल्लाह को नहीं मानते उसे अप्प कतल करते हैं काफ़िर कहे कर अप्प मुझे बातें की क्या कोई भगवन किसी मासूम की बलि से प्रसन हॉट हैं क्या
    क्या अप्प भारत के हितिहास को जान ते है भारत १०००रो वर्ष इस्लामिक शाशन मे था और इस हितिहास को कोई जुटला नहीं सकता की मुग़लओ दुआरे किया गए हय्त्याचार ,बलाक्त्कार ,नरसंघार जिसके के शिकार अप्पके पूर्वज भी है

  4. अजीम प्रेमजी के विशाल दान का सहारा लेकर आपने कुछ बुनियादी सवाल उठाये हैं.आपके सब सवाल अपनी जगह पर करीब करीब ठीक हैं.मैं मानताहूं की लोग यह तर्क देते हैं की गुजरात का तांडव गोधरा काण्ड की प्रतिक्रया थी.हो सकता है की ऐसा तर्क देने वाला कुछ हद तक सही हों,पर मैं यह नहीं मानता की गुजरात सरकार ने अपना कर्त्तव्य निभाया.सहज एवं तवरित प्रतिक्रया और योजना बद्ध कार्य में बहुत अंतर है.गुजरात में प्रथम दिन जो प्रतिक्रया दिखी थी ,उसमे मेरे जैसो को कोई आश्चर्य नहीं हुआ था,पर उसके बाद जो हुआ उसको मैं प्रशासन की पूर्ण असफलता या प्रच्छन रूप से उसका दंगाइयों से सहयोग मानता हूँ.मैं नरेन्द्र मोदी के इमानदारी और दूरदर्शिता बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ.उनको मैं विकास पुरुष भी मानता हूँ,पर गुजरात के दूसरे और तीसरे दिन के दंगे के लिए उनको जिम्मेदार भी समझता हूँ.
    दूसरी बात जो आपने उठाई है दान के बारे में,तो भारत में अजीम प्रेमजी सचमुच एक ऐसे उदाहरण के रूप में सामने आये हैं जिनका अनुसरण किया जाना चाहिए.गांधीजी ने भी कुछ ऐसा ही सोचा था.हम हिन्दू जिन ग्रंथों का दिन रात हवाला देते नहीं थकते,वहां भी कुछ ऐसा ही दर्शाया गया है ,पर हम उसका अनुशरण करे तब न.

  5. लेख पढ़ कर बड़ी ख़ुशी हुई और ज्यादा ख़ुशी तो तब हुई जब सुना की अभी भी कर्ण जैसे दानवीर अजीम प्रेमजी के रूप में जिन्दा है…. लेकिन मै यह समझाने में असमर्थ हूँ कि लेखक हिन्दुबादी संघटन के बारे में बता रहे है या बिल gates के बारे में या फिर अजीमजी के बारे में……

  6. ये लोग भारत माँ को काट कर भी मासूम बने रहते है,लाखो हिन्दू को मार कर भी शांति क्र मजहब बने रहते है,कश्मीर से सभी भारत भक्तो मार कर भगा कर भी रस्ज्त्र वादी बने रहते है,जिनके MAJAHAB की किताबे सीधे सीधे गैर मजह्बियो की हत्याए करने का आदेश देती है,पूरी दुनिया जिनके आतंक से त्रस्त है ऊपर से नौटकीं इसी की पूछो मत इन साहब का हर दूसरा लेख गुजरात का अपमान होता है और प्रवकत उसे बार बार छपता है ये हत्यार मजहब के लोग क्या अब हिन्दुओ को अंहिंसा सिह्खायेगे???अभी अभी दूध पीते बच्ची को मारने वाले अब गाँधी के गुजरात को सिख देंगे???गद्दारों की लाभी सूचि वाले राष्ट्रवादियो को देश भक्ति का पाट पढ़ाएंगे??या अब अहमे असोम बिन लादेन से असिहिश्नुता सीखनी पड़ेगी??जिन लोगो का घोषित लक्ष्य ही पुरे विश्व को दारूद-उल-इस्लाम बनाना है वो लोग किस मुह से इस तरीके की बाते करते है??साफ है किसे व्यक्ति की अच्छाईयों से किसी समूह की अच्छाई प्रदर्शित नहीं हो सकती है जिन लोगो को ये साहब बद्तिम्ज तरीके से कोस रहे है उन की सरकार के बारे अजीज प्रेम जी कहते है “यदि अप गुजरात में निवेश नहीं करते तो अप…………….”ये कोंग्रेसी बीके हुवे लेखक से कही ज्यादा समझ दार है अजीज प्रेम जी ,हिन्दू ने तो इन लोगो को वर्षो से झेल रखा है लेकिन इन लोगो ने तो मात्र १५ दिनों में पाकिस्तान से भगा दिया व् ४० सालो में कश्मीर से,क्या बा ५० सालो में भारत से भागाओगे??
    मई प्रवकत से पूछता हु इस प्रकार के ग्रीना के लेख कब तक प्रकाशित होते रहेंगे??हम हिन्दू वादी है अपनी गलिय सुनाने इस मंच पर नहीं आते है सार्थक बात चित के लिए आते है लेकिन इसा लग रहा है इस मंच पर धीरे धीरे गद्दारों का कब्ज़ा हो रहा है ………………..गद्दारों से राष्ट्र वाद सिखाना हमें गवारा नहीं है……….

  7. अज़ीम प्रेमजी जैसे *शिया *खोजा *गुजराती मुस्लिम उद्योगपति।
    मैं भी कुछ शिया और कुछ खोजा मुस्लिम बंधुओंको जानता हूं। जिनकी राष्ट्र भक्ति पर कोई संदेह नहीं है।
    पर तनवीर जी ने जो और तिरछे तीर साथ साथ छोडे हैं, उसके विषयमें, कहता हूं।
    (१) गोधरा में, ५८ यात्रियोंके जिंदा जलाने के बाद, क्या कोई भी प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं करते हो आप? ५८ यात्रियोंको जिंदा जलाने के बाद हिंदुओंके क्रोधका परिणाम था। जिनके संबंधी मरे, उनकी भी सहज प्रतिक्रिया थी। (२) जहां ९०% हिंदू और १०% मुस्लिम आबादी है। अर्थात हिंदूका हिंसा-बल मुस्लिमसे ९ गुना था।तो, उसकी हिंसा की शक्ति भी ९ गुना थी। क्या मुसलमान मरने वालोंकी संख्या हिंदु की संख्या से ९ गुना थी?
    बिल्कुल नहीं। इसीमें आपके उठाए बिंदुका कुछ उत्तर है।
    (३) इस टिप्पणी को, हिंसा के लिए प्रेरणा ना समझें। यह तर्क घटनाओंको समझने के लिए है।
    मैं किसी भी हिंसा का निषेध ही करूंगा।
    अज़ीज़ प्रेमजी की राष्ट्र भक्ति के विषयमें कोई शंका नहीं है।

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