क्रिकेट ने पहुंचाया जेल, इस खेल में भी भ्रष्टाचार का निकला मुख्य रोल और काहे का खेल यह तो खुल गई पोल है। रील यह रियल है। हमारी डिमांड है कि क्रिकेटरों के लिए अलग से जेल का प्रावधान हो। उन्हें भी घोटालेबाज नेताओं से कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। देश चलाने से भी मुश्किल काम है क्रिकेट के खेल को चलाना। पाक वाले पकड़े गए और सजा पा गए, हमारे खिलाड़ी तो यहां भी पीछे। देश चलाना क्रिकेट में फिक्सिंग करने से सरल और कम जोखिमप्रद है। नेता शातिर होते हैं, पकड़े जाते ही बीमार हो जाते हैं। जितने तीसमारखां होते हैं, उनको मारने वाली तीसियों बीमारियां सक्रिय हो उठती हैं। एम्स के एयरकंडीशंड कमरों में रहने के जुगाड़ भिड़ाते हैं और सीधे वहीं से मुक्त हो जाते हैं।
हमने क्रिकेट को सूखे पत्ते की मानिंद खड़का दिया है। जेल में खेलने का माहौल होना चाहिए। चाहे कितनी ही सजा दे दो लेकिन प्रेक्टिस करने की सुविधा हो तो मजा आए। जेल में सबको शिक्षित करेंगे, इस खेल के खेल में भी प्रशिक्षित करेंगे, कुनबा बढ़ायेंगे। अगली बार इसका भी उत्सव मनायेंगे।
क्रिकेट में भी होते हैं दांत। हम इनसे भी चबाने में शातिर हैं, बिना मारे सिक्सर, सिक्स्टीन का मजा लेते हैं। इसे सिर्फ पाक की नापाक मानसिकता से ही जोड़कर देखना ठीक नहीं है। बुराई किसी देश या भूगोल से बंधकर नहीं रहती। दुर्घटना यह सिर्फ पाक के लिए ही नहीं, विश्व क्रिकेट के लिए त्रासद है। क्रिकेट को दीवानगी की हद तक प्यार करने वाले आहत हैं। क्रिकेट से सच्ची यारी करते हैं और इसमें पूरी ईमानदारी चाहते हैं, क्या हुआ अगर वे जीवन के अन्य कारनामों में ईमानदार नहीं हैं। क्रिकेटरों की कारस्तानी की कहानी, इसने सिर्फ क्रिकेटरों को ही नहीं, अन्य खेल-खिलाडि़यों को भी सबके सामने नंगा किया है।
क्रिकेट में खेल है या क्रिकेट खेल है अथवा बुराईयों पर चढ़ी हुई बेल है। अभी तक पुरस्कार, सम्मान ही सुनते रहे हैं। सजा और दंड का ग्रहण पहली बार दिखाई दिया है। गालियां, मारपीट, छेड़खानी आम रही है। हेराफेरी मामूली बात है। बाल से छेड़छाड़ की तो इतनी सुर्खियां बनी हैं जितनी आज तक राखी सावंत की नहीं बनी होंगी। राखी के घोटाले से क्रिकेट का शहंशाह सचिन क्यों बचा है। हो सकता है कि सचिन के शादीशुदा होने के कारण इसके जीवन में यह रोमांच नहीं आया है, इसके बारे में अधिकृत बयान तो राखी ही दे सकती है। वरना तो यह किसी की भी नींद कभी भी उड़ा देने में माहिर मानी जाती है। क्रिकेट के साथ यह काली कमाई की कलाकारी इसके गिरते स्वास्थ्य के लिए कैंसर साबित हो रही है।
कार की फर्राटा दौड़ में कुत्ता दौड़ पड़ा लेकिन कुत्ते को क्रिकेट ने कभी आकर्षित क्यों नहीं किया कि वह खेल के दौरान आकर बाल ही ले उड़ा हो। फिक्सरों की टांगों पर दांत गड़ा रिकार्ड बनाया हो।
एक तीसमारखां की दर से तीन हुए नब्बेमारखां लेकिन सिर्फ बुराईयों और बीमारियों से ही मार खाते रहे और सारी गिनतियां धरी रह गईं। क्रिकेटरों का चरित्रहीन होना, खेल में नापाकी के बीज बोना, अब खिलाडि़यों के मुंह धोने की दरकार रखता है। सिर्फ बैट या बल्ले के बल पर भरे गए गल्ले से संतोष का न मिलना, फिक्सिंग का पनाहगाह रहा है। क्रिकेट के खेल का काजलीकरण खतरनाक है। यूं काजल तो हर कोई लगाना चाहता है पर कोयले की दलाली में पकड़े जाने से बचे रहने की कवायद में जिंदगी भर जुटा रहता है। आंसू भी काजल लगने से पहले बहते तो चेहरा न बिगड़ता। क्या सोच रहे थे कि क्रिकेट से काली कमाई करते रहेंगे। खुद को हीरा बनाने के चक्कर में जीरा भी न रहे, जीरा चाहे सूक्ष्म है पर जीरा जो कर सकता है वह हीरा नहीं। यहां जीरा न सही, जेल सही। वैसे जो जुर्माना लगाया गया है वो इनके मुंह में तो जीरे के समान है। यही जीरा अब इनकी आंखों में किरकिरा रहा है।
फिक्सिंग अपने पर पहली बार शर्मिन्दा है। इनके नापाक कारनामों ने जिन जिनको शर्मसार किया है, उनकी भी सूची बनाने का ठेका हिन्दुस्तान को दिया जा सकता है। सजा का असली मजा जेल में रहने पर ही है जो गुनाह करता है, वही आह भरता है और भुगतता है। क्रिकेट के एक काले पहाड़ की खोज की जानी चाहिए और इन्हें वहां छोड़ दिया जाना चाहिए। खेल की सेल लगाने, इसमें गंदगी फैलाने वालों को बख्शा नहीं जाना दर्शकों को दगा देने वालों को, उनकी भावनाओं, चाहतों से व्यापार करने वालों को इस पार रहने का कोई हक नहीं है। क्या क्रिकेट भी फिक्सिंग के असर से डब्ल्यू डब्ल्यू एफ नहीं हो गया है ?