खान-पान खेत-खलिहान जी.एस.टी. दरों में अप्रत्याशित कटौती से कृषि बाजार होगा गुलजार September 13, 2025 / September 15, 2025 by अशोक बजाज | Leave a Comment प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की दूर दृष्टि सोच के तहत जी.एस.टी. दरों में भारी भरकम कटौती की है । इस कटौती का सीधा लाभ कृषि एवं किसानों को मिलेगा । 22 सितम्बर 2025 से लागू होने वाली नई दरें कृषि व कृषकों के कल्याण के लिए मील का […] Read more » GST The agricultural market will be booming due to the unexpected reduction in rates कृषि बाजार होगा गुलजार
खान-पान लेख कुपोषण का बदलता स्वरूप: मोटापे की चुनौती September 11, 2025 / September 11, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की हालिया एक रिपोर्ट के अनुसार, अब दुनिया भर में बच्चों और किशोरों में कम वजन (कुपोषण) की तुलना में मोटापे की समस्या अधिक गंभीर हो गई है। यह पहली बार हुआ है, जब मोटापा कुपोषण के सबसे सामान्य रूप के रूप में उभरा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 5 से […] Read more » The challenge of obesity The changing face of malnutrition
खान-पान सार्थक पहल केला : खाएं भी और फैशन भी चमकाएं September 10, 2025 / September 10, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment चंद्र मोहन केले का कई तरह से इस्तेमाल होते देखा या सुना है. केले या केले के तने का इस्तेमाल अलग-अलग तरह से किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि केले के रेशों का इस्तेमाल अब फैशन इंडस्ट्री में भी होने लगा है, वो भी अलग-अलग तरह के कपड़े तैयार करने में. जो केला […] Read more » केले के रेशों का इस्तेमाल
खान-पान जनस्वास्थ्य: प्राकृतिक करौंदे का अचार, एक अनुकरणीय नवाचार September 8, 2025 / September 8, 2025 by कमलेश पांडेय | Leave a Comment कमलेश पांडेय उत्तरप्रदेश में “दवा नहीं, प्राकृतिक करौंदे के अचार का सेवन” नामक एक अनुकरणीय नवाचार शुरू किया गया है जिसको नीति आयोग, नई दिल्ली के मार्फ़त जन-जन तक पहुंचाने के लिए जिलाधिकारी, जौनपुर डॉ दिनेश चंद्र सिंह ने अपनी ओर से एक संस्तुति पत्र भी आयोग को लिखा है जिसमें नवाचार विषयक अद्यतन जानकारी […] Read more » Public Health: Natural gooseberry pickle प्राकृतिक करौंदे का अचार
खान-पान जंक फूड को ना, पोषण को कहें हां September 3, 2025 / September 3, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (1-7 सितम्बर) पर विशेष– योगेश कुमार गोयलभारत में प्रतिवर्ष लोगों को स्वस्थ जीवनशैली के लिए संतुलित आहार सुनिश्चित करने हेतु प्रेरित करने के उद्देश्य से एक से सात सितम्बर के बीच ‘राष्ट्रीय पोषण सप्ताह’ मनाया जाता है। भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत खाद्य और पोषण बोर्ड प्रतिवर्ष […] Read more » राष्ट्रीय पोषण सप्ताह
खान-पान मिठाई के नाम पर जहर – हिसार में नकली मावा कांड से सबक August 12, 2025 / August 12, 2025 by सुरेश गोयल धूप वाला | Leave a Comment रक्षा बंधन जैसे पवित्र त्यौहार के तुरंत बाद हरियाणा के हिसार शहर से आई एक चौंकाने वाली खबर ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। सीएम फ्लाइंग टीम, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में एक ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ हुआ, जो मिठाई की दुकानों पर नकली और गला-सड़ा मावा सप्लाई कर रहा था। […] Read more » Poison in the name of sweets – Lessons from the fake mawa scandal in Hisar नकली मावा कांड
खान-पान मांसाहारी दूध पर भारत-अमेरिका विवाद: सांस्कृतिक मूल्यों और व्यापारिक हितों का टकराव August 11, 2025 / August 11, 2025 by सुरेश गोयल धूप वाला | Leave a Comment अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं के आयात पर 50 % टेरीफ लगाने के बाद भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव कई क्षेत्रों में देखा जा रहा हैं। लेकिन डेयरी उत्पादों को लेकर उठा विवाद विशेष रूप से संवेदनशील और गंभीर है। इस तनाव का प्रमुख कारण अमेरिका द्वारा भारत को गाय का दूध निर्यात करने […] Read more » मांसाहारी दूध पर भारत-अमेरिका विवाद
खान-पान खेत-खलिहान हाइड्रोपोनिक खेती: भविष्य की दिशा या सीमित समाधान? July 24, 2025 / July 24, 2025 by सचिन त्रिपाठी | Leave a Comment सचिन त्रिपाठी भारत कृषि प्रधान देश है परंतु कृषि आज भी एक असुरक्षित, अनिश्चित और घाटे का सौदा बनी हुई है। भूमि क्षरण, जल संकट, मौसम की मार, लागत में वृद्धि और बाजार की अस्थिरता ने किसानों को वैकल्पिक तकनीकों की ओर देखने के लिए मजबूर कर दिया है। ऐसे में ‘हाइड्रोपोनिक’ खेती अर्थात मिट्टी रहित, नियंत्रित वातावरण में पौधों की खेती को कृषि क्षेत्र के भविष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है लेकिन प्रश्न यह है कि क्या यह तकनीक भारत के किसानों के लिए व्यावहारिक और टिकाऊ समाधान बन सकती है? हाइड्रोपोनिक खेती की शुरुआत नीदरलैंड, इजरायल और अमेरिका जैसे देशों में हुई जहां भूमि और जल की सीमित उपलब्धता ने वैज्ञानिकों को नियंत्रित खेती की दिशा में प्रयोग के लिए प्रेरित किया। आज इजरायल इस तकनीक में वैश्विक अगुवा है जहाँ रेगिस्तानी क्षेत्रों में अत्याधुनिक हाइड्रोपोनिक फार्म फसल उत्पादन कर रहे हैं। अमेरिका और कनाडा में यह तकनीक शहरी कृषि, सुपरमार्केट और ग्रीन रेस्टोरेंट्स के लिए ताज़ी सब्जियों की आपूर्ति का मुख्य आधार बन चुकी है। जापान और सिंगापुर जैसे देश जहां कृषि भूमि सीमित है, वहां हाइड्रोपोनिक्स वर्टिकल फार्मिंग के साथ जोड़ा गया है। भारत में इस तकनीक को अब धीरे-धीरे अपनाया जा रहा है, विशेष रूप से बड़े शहरों और कुछ विकसित राज्यों में। बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद, गुरुग्राम, अहमदाबाद जैसे शहरों में कई निजी स्टार्टअप शहरी हाइड्रोपोनिक फार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, हरियाणा और तेलंगाना की सरकारों ने इस तकनीक के लिए कुछ प्रोत्साहन योजनाएं भी चलाई हैं। हालांकि भारत में अब तक यह तकनीक प्रायोगिक और व्यावसायिक सीमित क्षेत्रों तक ही केंद्रित है। गांवों या छोटे किसानों में इसका प्रसार नगण्य है। भारत सरकार की ‘स्मार्ट एग्रीकल्चर’ और ‘डिजिटल इंडिया’ पहल के तहत नवीन कृषि तकनीकों को बढ़ावा देने की दिशा में कुछ प्रयास हो रहे हैं। कृषि मंत्रालय ने ‘प्रिसिजन फार्मिंग’ और ‘कंट्रोल्ड एनवायरनमेंट एग्रीकल्चर’ को प्राथमिकता क्षेत्र बताया है और विभिन्न राज्य सरकारें स्टार्टअप्स को सहायता दे रही हैं परंतु, जमीनी स्तर पर इसे अपनाने में अभी भी कई बाधाएं हैं ,खासकर पूंजी, प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे की सीमाओं के कारण। हाइड्रोपोनिक सिस्टम की स्थापना में प्रति एकड़ ₹25 लाख से अधिक का खर्च आता है। 86% भारतीय किसान सीमांत और छोटे हैं जिनकी वार्षिक कृषि आय ₹1 लाख से भी कम है। यह तकनीक उनके लिए सुलभ नहीं है। यह खेती ‘लो टेक’ नहीं है। पीएच बैलेंस, इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी, नमी नियंत्रण, पोषक घोल का ज्ञान ये सब आवश्यक हैं। ग्रामीण किसानों के पास इसके लिए प्रशिक्षण और संसाधन नहीं हैं। सतत और गुणवत्ता युक्त जल तथा बिजली की उपलब्धता इस तकनीक की रीढ़ है। भारत के अनेक गांवों में अभी भी ये आधारभूत सुविधाएं बाधित रहती हैं। हाइड्रोपोनिक उत्पादों की मांग फिलहाल शहरी उच्च वर्ग तक सीमित है। बाजार की सीमाएं और मूल्य अस्थिरता इसे जोखिम भरा बना देती हैं। भारत में एक समान नीति लागू नहीं की जा सकती। जल संकट से जूझते राज्यों (जैसे राजस्थान, तमिलनाडु) और शहरी क्षेत्रों के पास स्थित बेल्ट्स को प्राथमिकता दी जाए। एफपीओ, एसएचजी या कृषि स्टार्टअप्स के माध्यम से साझा हाइड्रोपोनिक यूनिट्स को प्रोत्साहित किया जाए ताकि लागत और जोखिम का बंटवारा हो। केवीके और कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाए। अनुसंधान संस्थानों को भारतीय जलवायु के अनुकूल प्रणाली विकसित करने की दिशा में कार्य करना चाहिए। नाबार्ड और अन्य वित्तीय संस्थानों को हाई रिस्क कृषि निवेश के लिए विशेष स्कीम लानी चाहिए। बीमा सुरक्षा और मूल्य गारंटी योजना तकनीक को अपनाने में सहायक होगी। हाइड्रोपोनिक खेती कोई ‘मैजिक बुलेट’ नहीं है जो सभी समस्याओं का समाधान कर दे। परंतु यह तकनीक भारत के बदलते कृषि संदर्भ में एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकती है यदि इसे व्यवस्थित, नीति-सहायक और क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार लागू किया जाए। यह तकनीक उन किसानों के लिए व्यवहारिक है जो शहरी मांगों से जुड़े हैं, पूंजी और तकनीकी पहुंच रखते हैं, या जो संगठित समूहों के तहत काम करते हैं। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, एक तकनीक सभी के लिए नहीं हो सकती, लेकिन सही क्षेत्र, सही समूह और सही नीति के तहत हाइड्रोपोनिक खेती भविष्य की दिशा तय कर सकती है। सचिन त्रिपाठी Read more » Hydroponic Farming हाइड्रोपोनिक खेती
खान-पान लेख भूखमरी है विकास के विरोधाभासी स्वरूप की भयावह तस्वीर July 24, 2025 / July 24, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की हालिया रिपोर्ट ने एक बार फिर वैश्विक समुदाय को चेताया है कि धरती पर करोड़ों लोग आज भी भूख, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के शिकंजे में जकड़े हुए हैं। यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों का लेखा-जोखा नहीं, बल्कि एक वैश्विक त्रासदी की दास्तान है, जो यह सोचने […] Read more » Hunger is a frightening picture of the contradictory nature of development
खान-पान लेख स्वास्थ्य बनाम स्वादः समोसा और जलेबी से सावधान! July 15, 2025 / July 15, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- भारत जैसे विविधताओं वाले देश में जहां हर नुक्कड़ पर समोसे की महक और जलेबी की मिठास लोगों को आकर्षित करती है, वहीं यह स्वादिष्ट व्यंजन अब स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी बनते जा रहे हैं। हमारी परंपराओं और खानपान में गहराई से जुड़े समोसा, कचोरी और जलेबी जैसे तली-भुनी और अत्यधिक […] Read more » Health vs Taste: Beware of Samosa and Jalebi!
खान-पान झारखण्ड का एक अनोखा जंगली मशरूम पुटू July 7, 2025 / July 7, 2025 by अशोक “प्रवृद्ध” | Leave a Comment –अशोक “प्रवृद्ध” झारखण्ड और छतीसगढ़ की सीमावर्ती जिलों के वनों, जंगलों में वर्षा ऋतु के प्रारम्भिक काल में स्वतः ही उगने, निकलने वाली पुटू नामक मशरूम के इस वर्ष कमोत्पति अर्थात कम उपज के कारण लोग इसके प्राकृतिक, असली और बेहतरीन स्वाद से वंचित होकर रह गए हैं। लोग मजबूरी में घरों में मशरूम की खेती से उत्पादित […] Read more » जंगली मशरूम पुटू
खान-पान आपका सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है! June 27, 2025 / June 27, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment क्या आप जानते हैं कि आपका सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है?नहीं, हम घी या सरसों तेल की बात नहीं कर रहे—हम बात कर रहे हैं उस कच्चे तेल की जिसकी कीमत इज़राइल-ईरान जैसे युद्धों से तय होती है, और जिसकी लत में डूबी है आज की पूरी खाद्य प्रणाली. आज चावल से लेकर चिप्स के पैकेट तक, खेत से […] Read more » सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है