मौसम बदला ,तस्वीर बदली, बदल गया इंसान
घर के आँगन में पल रहा जुल्म का पकवान
नया ,सबेरा होता है रोज
फिर भी नही बदला इंसान
मन में अजीब लालसा ,लेकर जी रहा इंसान
शिक्षा की कसावट बदली
टाइप राईटर का ज़माना बदला
कलम की स्याही बदली
नेता की नेता गिरी
गुरु जी की छड़ी बदली
लेखक की कहानी
घर में नाटक शुरू हो गई
भूमि का जल सुखा
नया सबेरा आयेगा जरुर पर क्या
स्वय को तूने बदला
रोज अभी भी नारी पर अत्याचार हो रही
क्या अफसर ने फ़ाइल पलटा
दो जून की रोटी के लिए गरीब
आज भी कमर तोड़ रहा है
पुलिस शब्द बदनाम है ?
कभी वर्दी की महक नही पहचान पाई ?
कौन राम राज लायेगा ?
आप झांकिए मन में
रोज की तरह
स्वय बदलिए
जीवन की महत्व को समझिये
नया सबेरा आयेगा जरुर
हे नव युवक …
जागिये ….
भारत माता रो रही है ?
आह्वान की बोली -बोल रही अब तो समझो
क्या नही बदल सकते अपने -आपको
उठिए नया सबेरा होने के पहले
स्वयं को बदलिए
भाई -को भाई से अलग न करो
पडोसी को दुश्मन का दर्जा न दो
प्रेम करो प्रकृति से
सीखो गुण जल से
नया सबेरा आयेगा
बदलो स्वय को
……………………@ लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार