आत्माराम यादव पीव
नन्हें-नन्हें पंखों वाली नन्ही सी सुंदर काया वाली मक्खी ओर मक्खा यत्र तत्र सर्वत्र निवास करते है। सबसे ज्यादा नटखट, फुर्तीली यह मक्खी सभी जगह घट-घट में मिल जाएगी, दुनिया का ऐसा कोई स्थान नहीं जो मक्खी से अछूता हो। दिन हो या रात मक्खी बिना आलस किए काम करती है। मरघट हो, मुर्दा हो, मिठाई हो, खटाई हो, नाला हो नाली हो, सड़ा गला हो, खाना हो अथवा पाखाना हर जगह मक्खी की मौजूदगी होती है ओर यह मक्खी हर अच्छी- बुरी जगह पर बैठने का एकाधिकार रखती है। अमृतमयी मिठास हो या गंदा बदबूदार स्वाद हो मक्खी इन सारे स्वादों का अनुभव इंसान के कान के पास जाकर भिनभिना कर सुनाती है ओर जो नहीं सुनते उनकी नाक कान में दम कर उसके शरीर के किसी भी भाग मे उछलकूद कर उसे छोड़ जाती है। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन का भी एक मक्खी से पाला पड़ गया था जिसे लेकर मैं आज भी अचंभित हूँ की जिस मक्खी से उनका सामना हुआ आखिर वह मक्खी मरी नही तो कहा गई? अमिताभ बच्चन का में बचपन से प्रशंसक रहा हूँ ओर उनकी स्टाइल व डिजाइन किए कपड़े विशेषकर बेलवाटम तथा हेयरस्टाइल की दीवानगी मेरे मित्रो पर सवार थी वे तो पहन लिया करते थे किन्तु तब गरीबी के कारण मेरे लिए बेलवाटम पहनना एक सपना था, क्योकि तब मुझे पिताजी के रिजैक्ट किए गए कपड़ों को आल्टर कराकर संतुष्ट होना पड़ता था। बात मक्खी की है इसमें अन्य बातें अनुपयोगी है, अमिताभ बच्चन ओर उनके द्वारा मक्खी मारा जाना उपयोगी है।
नमक हलाल फिल्म के मुख्य किरदार अमिताभ बच्चन के मालिक शशि कपूर साहब कुछ रईस सेठों के साथ भोजन करने को तैयार है तभी एक प्लेट पर मक्खी के बैठने ओर अपने मालिक के एतराज की मुझे मक्खियों से सख्त नफरत है कहे जाने के बाद अमिताभ बच्चन ने उस मक्खी का पीछा किया ओर पूरी सतर्कता के साथ जैसे अर्जुन का ध्यान मछली पर था, अमिताभ का ध्यान मक्खी पर था ओर वे लक्ष्य साधकर टेबल पर बैठे अमीरों का आश्रय लेने वाली मक्खी का पीछा करते रहे, लेकिन आखिर तक मक्खी को मार नहीं सके ओर मक्खी खुद उनकी नाक पर जा बैठी जिसे उनके सेठ ने घूसा मारकर मारना चाहा पर वह मरी नहीं, तभी से यह बात मेरे जेहन में थी की आखिर मेरे हीरो को तंग करने वाली वह मक्खी कहां गई? मक्खी का पता नहीं पर अमिताभ बच्चन ने मक्खी मारने का काम कर जबरदस्त वाहवाही लूटी तभी से मक्खी की लोकप्रियता का ग्राफ पूरी दुनिया में छा गया था। अमिताभ की फिल्म रीलीज़ होने के बाद अनेक जगह उनके प्रशंसकों में मक्खी मारने की होड लग गई थी, एक बार लगा की ये सभी इस धरती की सारी मक्खी मारकर धरती को मक्खीविहीन कर देंगे,किन्तु इसी बीच मक्खी नाम की फिल्म आ गई जिसमे मक्खी की आत्मा का आतंक फैलाकर लोगो को डराने का काम इस मक्खी फिल्म ने किया, बस लोग अपने सुपरस्टार अमिताभ के पदचिन्हों पर चलकर मक्खी मारना भूल गए ओर मक्खी फिल्म का खौफ से सभी मक्खीमार गायब हो गए ओर मक्खी की प्रजाति विलुप्त होने से रह गई । मक्खीचूस की बात जरूर निकली जो अपनी कंजूसी के रहते चाय की प्याली मे मक्खी गिरने पर समझता था की इसने चाय पीकर प्याली की चाय कम कर दी तब वह मक्खी उठाकर उसे चूस कर अपनी चाय की नुकसानी की भरपाई मक्खी से करता था।
आप सभी मक्खी को बेहतर जानते है ओर यह भी तय है की आप भी मक्खी से आए दिन परेशान होते रहे है? जब भी मक्खियों ने आपको तंग किया होगा तो आपने उन्हे मारने का प्रयास किया होगा किन्तु नटखट तेजतर्रार मक्खी आपकी पकड़ से नौ –दो ग्यारह होने से खुद को बचाती रही ओर आप एक मक्खी भी न मार सके तब आप मक्खी से हार मान ग़ुस्से से लाल पीले हुये होकर रह जाते है। मक्खी हर तरह की गंदगी पर बैठती है ओर अपने पैरों के माध्यम से वह आपके, मेरे, सभी के घरों में किचन से लेकर डायनिग टेबल तक में रखी खाने की वस्तुओं पर बैठकर बीमारी फैलाती है ताकि इस बीमारी से तबाही फैले ओर आप सहित दुनिया में लोग हैजा, प्लेग, शीतला आदि प्राणघातक बीमारी के शिकार हो मर खप सको। आप मक्खी को तबाह करना चाहते है जबकि मक्खी गंदी मैली रहकर मल आदि अपने परों ओर पैरों मे लेकर उडती हुई सभी ओर उछलकूद कर जी भरकर हमे ओर आपको सुरधाम पहुचाने के लिए दिन रात जुटी है। आप भोजन करते हो तब दर्जनों बार यही गंदली मक्खी आपके भोजन ही नही आपके मुह, नाक, कान, गाल सहित अन्य अंगों पर मुह मार चुकती है ओर आप हाथ से उसे भगाने में अपनी ताकत खराब करते हो। आपके जागते, काम करते, पुजा पाठ करते सहित आराम में खलल डालकर सोते समय यही मक्खी आपको दिक्कत में डालकर परेशान करती है , जितना भी उसे भगाने की कोशिस करोगे उड़कर यही मक्खी एक जिद्दी की तरह आपके सामने होगी। आप मक्खी की शरारत ओर नटखटपन से गुस्से में उसे भगा कर थकने के बाद मारने जुट जाते हो ओर भूल जाते हो की आप आम आदमी नहीं जो मक्खी मारे, फिर भी आप उच्च पदों पर उच्च शिक्षित होते हुए बेचारी निम्न मक्खी को मारने मोर्चा संभाल लेते हो ठीक वैसे ही जैसे वीर बहादुर अमिताभ बच्चन ने फिल्म में संभाला था ओर मक्खी मारने में सफल न होकर हसी के पात्र बने थे।
सवाल उठता है कि हम एक से एक आधुनिक मशीनों को ईजाद कर चुके है, मक्खी मच्छर मारने के लिए जिस जहर का इस्तेमाल कर रहे है उससे खुद का स्वास्थ्य भी खराब कर रहे है, पर खुद की दम पर हम एक मक्खी तक नहीं मार सकते है, तब क्या मरी मक्खी का पंख उखाड़ने को अपनी वीरता समझ अपना सीना 56 इंच का बतलाकर फूले नही समाते हो ? समाज मे कुछ लोग जो कुछ भी न करने पर विश्वास रखते है पर ढींग हाँकते है की मक्खी मार रहे है। मक्खी मारना वैसे भी उनके लिए प्रयोग है जो कुछ भी नहीं करते या बेकार का काम करते है। आज सारे देश में युवाओ के पास डिग्री है पर काम नहीं होने से वे बेरोजगार है, उनसे पूंछे कि क्या कर रहे हो तो वे तपाक से कहते है आजकल मक्खियाँ मार रहा हूँ, मतलब कुछ नही कर रहे है। यही हाल राजनीति में हो गया है, नेता एक बार राजनीति में किस्मत प्रयोग कर विधायक, सांसद या स्थानीय नेता चुने जाने के बाद उसे कौन से हीरे जवाहरात की खदान मिल जाती है की वह शून्य से शिखर पर पहुँच जाता है ओर उसके पैर जमीन पर नहीं होते, पर जैसे ही कुर्सी से नीचे पटक दिये जाए तब भी वे क्या कर रहे हो के सबाल का जबाव आजकल जनसेवा कर रहा हूँ अर्थात बेकार हूँ मक्खी मार रहा हूँ होता है। काश राजनेताओं जैसा भाग्य देश के इन युवा बेरोजगारों का क्यो नही होता, उन्हे भी सरकार अपने नेताओं की तरह मक्खी मारने का काम दे देवे तो कम से कम वे आत्मनिर्भर होकर परिवार की ज़िम्मेदारी में शामिल हो सके। देश में जनता ही नहीं सरकार भी गंदगी फैलाती है ताकि उसपर मक्खी बैठे ओर लोगों को मक्खी मारने का काम मिल सके, भले हकीकत में एक भी मक्खी न मर सके पर सरकारी आंकड़ों में मक्खियों को टनों से मरा साबित करेंगे ताकि अधिक मक्खी होने पर आगे मक्खी मारने का धंधा चला सकें?