भारतीय संस्कृति पर अश्लीलता का खतरा

कुछ समय पूर्व भारत के टीवी चैनल्स पर एक नामी सीमेंट कम्पनी का विज्ञापन प्रसारित किया जा रहा था जिसमें एक लड़की के कुछ अंगों को उभारकर दिखाया जाता था। यहां  सोचने वाली बात यह है कि सीमेंट से लड़की का ताल्लुक क्या था? क्या वह लड़की सीमेंट खाती थी या वह सीमेंट से बनी थी? शायद कारण तक जाने की किसी को आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई। किंतु इसकी जड़ में पश्चिमी नव वामपंथी विचारधरा कार्य कर रही थी जो वास्तव में वर्तमान में हमारे सर चढ़ कर बोल रही है।

 

इस पश्चिमी नव वामपंथी विचारधरा में सेक्स को खुलकर परोसा जसा रहा है क्योकि यह पश्चिम विचारधरा इस बात पर विश्वास करती है कि सेक्स व स्त्राी का सुडौल शरीर कहीं छुपा कर रखने की चीज नहीं है। पश्चिम में यौन शिक्षा की भी बहुत पैरवी की जाती है। स्कूलों में कंडोम दिखाया जाता है और उसके प्रयोग के तरीके भी बताये जाते हैं। और भी न जाने क्या-क्या?

 

अब भारत में भी उसी तर्ज पर यौन शिक्षा स्कूलों में पेश की जाने की बातें की जा रही हैं। हम भी आंख बंद कर पश्चिम की नकल करने में लगे हुये हैं। हाल ही में अमेरिका के एक घर के अंदर की बात पढ़ने को मिली। टीवी पर कंडोम का विज्ञापन आ रहा था तभी एक बारह साल की लड़की अपनी मां से पूछती है कि मां यह कंडोम क्या होता है? अब यदि हम भी यौन शिक्षा का प्रचार करना चाहते हैं तो अपने बच्चों के ऐसे ही सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए? ऐसा नहीं होगा कि बच्चा जो स्कूल में पढ़कर आयेगा उसे घर पर दोहराएगा नहीं? भारत मंे अब तक अश्लील शब्द की परिभाषा कानून ही तय नहीं कर पाया है। पहले तो उसे ही इस शब्द को पढ़ लेना चाहिए।

पश्चिम में रिश्ते नाते नहीं होते हैं। सेक्स उनके लिए पिज्जा-बर्गर जैसा ही है। हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो यह कहते हैं कि देश  में यौन शिक्षा का प्रचार खुलकर होना चाहिए। इस बात को पुख्ता करने के लिए वे जो तर्क देते हैं जरा उसे भी सुनिए, सन् 1999 तक 150 देशों में 3,23,379 व्यक्ति एड्स से पीड़ित थे ;यूनेस्कोद्ध, जिनमें सबसे अध्कि संख्या भारतीयों की ही थी। अगर भारत में यौन शिक्षा का प्रचार हो तो ऐसा नहीं होगा। जबकि अब यह साबित हो चुका है कि इस बान को यूनेस्को ने अमेरिका के कहने पर ही पफैलाया था ताकि उसकी सेक्स इंडस्ट्री भारत में तथा विश्व में पैर पसार सके। दूसरी तरपफ अमेरिका में ही 60 पफीसदी से ऊपर ‘पफीमेल सेक्सुअल डिस्पफंक्शन’ से पीड़ित हैं। इस बात को अमेरिका की ही कुछ कंपनियों ने पफैलाया है। जबकि अमेरिका के वैज्ञानिक ही कहते हैं कि इस तरह की कोई बिमारी होती ही नहीं है। अब आप ‘पफीमेल सेक्सुअल डिस्पफंक्शन’ का अर्थ भी जान लीजिये, जैसे पुरुषों में नामदांगी होती है वैसे ही महिलाओं में भी नजनानीपन को यह नाम दिया गया है। जबकि विज्ञान कहता है कि स्त्रिायां बांझ हो सकती हैं किंतु ‘पफीमेल सेक्सुअल डिस्पफंक्शन’ कभी नहीं। यह बस स्वार्थी लोगों की चाल है, अब बताइये कि हम ऐसे चालबाज लोगों की राह पर कैसे चल सकते हैं।

अमेरिका में लगभग 3 अरब लोग एड्स से पीड़ित हैं तथा यह आकड़ा भारत, कनाड़ा, ब्रिटेन तथा जापान से कहीं ज्यादा है। संमलैगिकों की सबसे ज्यादा भरमार अमेरिका में ही है। अमेरिकर वामपंथ बोल रहा है कि उसके देश में 17 प्रतिशत टीन प्रेग्नेंसी कम हो गई है क्योकि वो यौन शिक्षा का प्रचार कर रहा है। यह उसका नजरिया है, भारतीय सनातन के अनुसार इसका अर्थ यह है कि वहां के युवा अब बिना किसी झिझक के सेक्स कर रहे हैं। वहां की लड़कियां मातृत्व को खो रही हैं। कड़ोम, आई पिल्स है तो डर अब है ही नहीं। जबकि भारतीय र्ध्म कहता है कि गर कंडोम और ये स्टोप प्रेंग्नेंसी नहीं होगी तो एक डर से युवा मार्ग से भटकने से बच सकता है।

अमेरिका में हर साल 30 लाख किशोरियों को यौन रोग हो रहे हैं। 100 में से 56 प्रतिशत किशोरियां ही मां बनने को तैयार होती हैं। 83 प्रतिशत बिन ब्याही लड़किया जो मां बनती हैं वे गरीब घर से होती हैं तथा भु्रण हत्या का खर्च वहन नहीं कर सकती हैं। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि अमेरिका में 35 प्रतिशत लड़के तथा 25 प्रतिशत लड़कियां 15 साल की उम्र से पहले ही संभोग कर लेते हैं। 19 साल तक पहुंचते-पहुंचते यह आकड़ा 85 प्रतिशत लड़के तथा 77 प्रतिशत लड़कियों तक पहुंच जाता है। एक अध्ययन में बताया गया कि अगर वहां के युवा ऐसा न करें तो इन पर इनके दोस्त हसंते हैं। इसी अध्ययन में यह भी बताया गया कि 19 साल की जो 77 प्रतिशत लड़कियां संभोग करती हैं उनमें से 12 प्रतिशत  ही इतनी खुशनसीब होती है जिनसे उनका बायप्रफैंड शादी करता है।

आज प्श्चिम में भी दबे शब्दों में कहा जाने लगा है कि भारत का ब्रहाचार्य एक अच्छा शस्त्रा है। किंतु कितनी बड़ी विडबना है कि हम अंध्े होकर प्श्चिम के पीछे भागे जा रहे हैं। माता-पिता अपने बच्चों को स्वतंत्राता दे रहे हैं यह अच्छी बात है किंतु इसका मतलब यह नहीं है कि उनके बच्चें कहां जा रहे हैं, क्या पहन रहे हैं? इससे उन्हें कोई मतलब ही नहीं है। आज दिल्ली में ही 60 प्रतिशत लड़किया आई-पिल्स को हाजमें की गोली की तरह खा रही हैं।

भारत में एक नामी चैनल पर प्रसारित कार्यक्रम ‘स्वंवर’, ‘अमेरिकन बैचलर’ नामक शो की कापी है, इस बैचलर शो में सेक्स का प्रदर्शन होता है। स्त्राी-पुरूष संबंध् तार-तार किये जाते हैं। ऐसे बहुत से नये प्रोगा्रम भी जल्द शुरू होने वाले हैं जो यह सि( करते है कि अब भारत में भी सेक्स इंडस्ट्री पश्चिम द्वारा खूब उगाई और खाई जा रही है। यह सेक्स इंडस्ट्री 1000 करोड़ का व्यापार हमारे देश में कर रही है। इंटरनेट पर खुलकर सेक्स सामग्री को परोसा जा रहा है तथा हमारा प्रशासन कुछ भी नहीं कर पा रहा है। भारत में भी अब सेक्स के  अविवाहित मरीजों की संख्या बढ़ रही है।

जागरूकता के नाम पर अब हमारे देश में भी देहकामना की पूर्ति की जा रही है। अखबारांे, टीवी चैनलों पर जो यौन क्रांति पेश की जा रही है वह पश्चिमी विध्वंसक शक्तियों की ही सोचा समझी एक चाल है जो भारतीय संस्कृति कोे पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहती हैं।

14 COMMENTS

  1. ऐसे मुझे बार बार टिपण्णी करनी पड़ रही है ,जो अच्छा तो नहीं लग रहा है पर भ्रम दूर करने केलिए ऐसा करने के लिए विवश हो जा रहा हूँ.मैं मानता हूँकि आम शिक्षित भारतीय साधारणतः आर्थिक मान्यता के अनुसार दो खेमों में बटा हुआ है.जिसमे तथाकथित वाम पंथ पहले खेमे का प्रतिनिधित्व करता है और दूसरा खेमा दक्षिण पंथ यानि जो तथाकथित पूंजीवाद से प्रभावित खेमा है. उसी तरह मानसिकता या नैतिकता के मामले में भी दो खेमा है.एक तो जिसको प्रत्येक विदेशी चीज अच्छा लगता है और दूसरा जिसको हर विदेशी व्यवहार या चाल चलन अनैतिक लगता है.मेरे विचारानुसार हम भारतीयों को अगर मजबूत बनना है तो दोनों मामलों में इन खेमों से हट कर सोचना होगा. नैतिकता का मापदंड एक तो ऐसे ही हमारे यहाँ बहुत कडा है क्योंकि यहाँ नैतिकता का मूल आपकी व्यक्तिगत पवित्रता है.एक विदेशी नेता भले ही कह सकता है कि आपके नेतृत्व के लिए मेरा सार्वजानिक रूप आपके सामने है,व्यक्तिगत रूप में क्या हूँ इससे आपका कोई लेना देना नहीं है पर यही बात खुले या प्रच्छन रूप में भी एक भारतीय नेता नहीं कह सकता.हम वास्तविक रूप में चाहे जो हो पर अपने को पवित्र दिखाने कि हमेशा कोशिश करेंगे,चाहे इसके लिए हमें कितने ही छद्म रूप क्यों न धारण करना पड़े.यही छद्म या दिखावे वाला रूप हमें दोगली मानसिकता का सहारा लेने पर विवश करता है.मैं जब तथाकथित वामपंथियों की आलोचना करता हूँ तो मुझे पूंजीवादी कहा जता हैऔर जब मैं भारतीयता के नाम पर ढोंग फैलानेवालों को कोसता हूँ तब तो मुझे न जाने क्या क्या कहा जता है. व्यक्तिगत जीवन मैं तथाकथित साधू तो नहीं हूँ पर जो हूँ उसमे साधारणतया मुझे अपने दर्पण से मुंह चुराने की जरुरत नहीं पड़ती और न मैं केवल आलोचना करता हूँ मेरी कथनी और करनी में अंतर ज़रा कम ही रहा है..मैं आज के माप दंड में अपने को सफल इंसान या मनुष्य नहीं मानता पर इस उम्र में भी एक खुश और संतुष्ठ मनुष्य अवश्य हूँ और कुदाल को कुदाल कहने की हिम्मत रखता हूँ. जैसा मैंने लिखा है कि जिंदगी में शायद ही ऐसा हुआ है जब मैंने सिद्धांतों से समझौता किया हो और आज तो मै इस मुकाम पर हूँ जहां मुझे उसकी आवश्यकता ही महसूस नहीं होती.रह गयी बात एड्स या दूसरे आंकड़ों कि तो उसपर सहमती कभी नहीं बनेगी क्योंकि ये वैज्ञानिक आंकडें नहीं बल्कि किंवदंतियों पर आधारित आंकडें हैं.जब १९८० के पहले किसी ने शायद ही एड्स का नाम सुना हो तब इन आकड़ों का इतिहास और बेमानी हो जता है. आज मैंने इतना कुछ कह दिया कि अब मैं किसी विषय पर शायद ही टिपण्णी कर सकूं अतः आज के बाद मैं प्रवक्ता का पाठक तो मैं अवश्य बना रहूँगा वशर्ते कि वह मेरे ईमेल पर उपलब्ध रहे,पर कोई भी टिपण्णी नहीं करूंगा.
    क्षमा याचना के साथ,
    आर.सिंह

  2. नीचे जो आकड़ा दिया हैं वामपंथी लोग कुछ बोले,, अगर सच में वो अमेरिका तथा पश्चिम की तारीफ़ करना चाहते हैं तो,,, ,, और खुदा ने चाहा तो मेरा अगला लेख
    ऐसा होगा जो ये साबित कर देगा की एड्स को पश्चिम ही, पूरे विश्व में फेला रहा है

    अमेरिका में हर साल 30 लाख किशोरियों को यौन रोग हो रहे हैं। 100 में से 56 प्रतिशत किशोरियां ही मां बनने को तैयार होती हैं। 83 प्रतिशत बिन ब्याही लड़किया जो मां बनती हैं वे गरीब घर से होती हैं तथा भु्रण हत्या का खर्च वहन नहीं कर सकती हैं। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि अमेरिका में 35 प्रतिशत लड़के तथा 25 प्रतिशत लड़कियां 15 साल की उम्र से पहले ही संभोग कर लेते हैं। 19 साल तक पहुंचते-पहुंचते यह आकड़ा 85 प्रतिशत लड़के तथा 77 प्रतिशत लड़कियों तक पहुंच जाता है। एक अध्ययन में बताया गया कि अगर वहां के युवा ऐसा न करें तो इन पर इनके दोस्त हसंते हैं। इसी अध्ययन में यह भी बताया गया कि 19 साल की जो 77 प्रतिशत लड़कियां संभोग करती हैं उनमें से 12 प्रतिशत ही इतनी खुशनसीब होती है जिनसे उनका बायप्रफैंड शादी करता है।

  3. जी नमस्कार , मेरे इस लेख में जो आंकड़ा हैं वह यह था की सन १९५२ से लेकर सन २००९ तक ३ अरब लोग एड्स से पीड़ित हो चुके हैं और इसमें मर चुके लोगो का भी आंकड़ा है , इसमें अमेरिका के मूल निवासी तथा गैर निवासी दोनों सामिल हैं…., ऐसा कहना अमेरिकेन रेसेअर्च का ही हैं…. और ये रिपोर्ट पहली बार प्रकाश में आई है.. अब मेरे इस लेख से वामपंथी लोगो को आग लगनी तो जायज ही है,, ये वामपंथी बस ऐसे लेखो में गलतियाँ ही निकाल सकते हैं,,, ये लोग भारत में तो रहते हैं, लेकिन इनकी सोच पश्चिमी हो चुकी है,, लेकिन ये एक बात याद रखे, जब तक देश में सच्चे देश भक्त जीवित हैं ये अमेरिका क्या, विश्व की कोई ताकत भारत की महान संस्कृति को बर्बाद नहीं कर सकते….
    और एक बात और दुसरो की गलतिया निकालना, कमजोर लोगो का काम होता है,, आलोचक बनना सबसे आसान है,,,,
    वामपंथी लोग अगर कुछ बोलना चाहते हैं तो वे भी आकड़ो से अमेरिका की तारीफ़ कर सकते हैं, उनका स्वागत है..
    जय हिंद ,,,वन्दे मातरम

  4. डाक्टर राजेश कपूर की जानकारी के लिए मैं लेख वह हिस्सा उद्धृत कर रहाहूं जहां अमेरिका में एड्स पीड़ितों की संख्या दिखाई गयी है.”अमेरिका में लगभग 3 अरब लोग एड्स से पीड़ित हैं तथा यह आकड़ा भारत, कनाड़ा, ब्रिटेन तथा जापान से कहीं ज्यादा है।’ तीस करोड़ की आवादी वाले देश में तीन अरब एड्स पीड़ित?ऐसे ताज़ा जानकारी के अनुसार अमेरिका में एड्स पीड़ितों की संख्या शायद हजारों में ही सीमित है.ऐसे भी अमेरिका के मुख्य रोग संक्रामक नहीं बल्कि जीवन शैली पर आधारित यानि कैंसर,हृदय रोग इत्यादि है. अमेरिका में यौन सम्बन्धी बीमारियाँ भी अपेक्षाकृत कम है.रह गयी भारत की किसी से तुलना कि तो जैसे मैं व्यक्तिगत जीवन अपनी तुलना अपने मानक के अनुसारअपने आप से करता हूँ,वैसे ही अपने देश की तुलना मैं अपने देश के मानक के अनुसार मैं अपने देश से करता हूँ और जिस दिन भारत के अधिकतर नागरिक अपनी दोगली मानसिकता से ऊपर उठकर बिना दूसरों की नक़ल के अपने को सुधार लेंगे उस दिन हमारा देश अपने आप एक मजबूत देश बन जाएगा,पर वह केवल आपसी वाद विवाद और एक दूसरे को नीचा दिखाने से नहीं होगा,बल्कि दूसरों पर कीचड़ उछालने के बदले अपने आपसे पूछने से होगा कि क्या हम स्वयं इस लायक है की दूसरों को गाली दे सकें.सबसे अच्छा तो यह होगा कि हम में से हरेक अपने दर्पण से यह प्रश्न प्रति दिन करे.

  5. एक सूत्र का प्रयोग करके हम जान सकते हैं कि हम मैकाले की योजना का शिकार बनकर अपने देश और संस्कृति के दुश्मन बने हैं या नहीं.

    ‘ अपने देश, संस्कृति, महापुरुषों, श्रधा केन्द्रों की प्रशंसा सुनकर हमारे रोंगटे खड़े होते हैं या नहीं, हम आनंदित होते हैं या नहीं ?
    अपने देश, धर्म, संस्कृति, बलिदानियों, पुराण-पुरुषों की आलोचना से हमारा रक्त खौलने लगता है, हम आवेश– क्रोध से भर उठते हैं या नहीं? यदि नहीं तो इस कटु सच्चाई को जानलें, मानलें कि हम देश द्रोही बन चुके हैं, चाहे अनजाने में ही सही. हम मैकाले की कुटिलता का शिकार बनकर , भारत को समाप्त करनें का हथियार बन चुके हैं. अब ऐसा ही रहना है या सच को जानकर मैकाले के कुटिल चुंगल से निकलना है ? इसका फैसला स्वयं कर लें.

  6. प्रवक्ता ग्रुप और अन्य सभी को होली की बहुत बहुत बधाईयाँ. मुझे लगता है कि अब जब मेरी टिप्पणियां बिना लाग लपेट के भी ज्यादा तीक्ष्ण होती जा रही हैं तो प्रवक्ता ग्रुप को उसके मोड़ेरेसन में कुछ ज्यादा ही समय लग जा रहा है पर मैं साफ़ साफ़ कहूं तो मेरा न दक्षिण पंथ से कोई नाता है न वाम पंथ से.उसी तर्ज मैं आगे कहना चाहता हूँ कि मुझे अमेरिका और रूस या चीन से भी कोई लेना देना नहीं है.पर इस बात पर मैं कोई सफाई नहीं पेश करना चाहता कि अपनी कमजोरियों को मैं हमेशा आगे लाता रहा हूँ और लाता रहूँगा .अगर यह किसी को बुरा लगता है तो मैं कुछ नहीं कर सकता .प्रवक्ता से मेरा जुड़ना इतिफाक ही कहा जा सकता है और अगर मुझे लगेगा कि प्रवक्ता में मेरे जुड़े होने से उसको हानि हो रही है तो मैं अपने आप उससे अलग भी हो जाऊंगा.केवल एक इशारे क़ी आवश्यकता है. मैंने जिंदगी में मुश्किल से कोई समझौता किया है और आज तो मैं उस मुकाम पर हूँ कि अब मैं उसकी आवश्यकता ही नहीं महसूस करता.मैं अपनी तुलना शल्य चिकित्सक से करता हूँ जो घाव को चीड़ फाड़ कर सामने ला देता है और तब उसका इलाज आसान हो जाता है.

  7. अखिल जी आप की यह बात तो सही है की अमेरिका की जनसंख्या तीस करोड़ के आसपास है. पर इसमें प्रवक्ता ने कहां भूल की है ? शायद जल्दबाजी में आप ही ने कुछ गलत पढ़ या समझ लिया ? स्पष्ट करें तो अच्छा रहेगा. धन्यवाद.

  8. प्रवक्ता में मेरी पहली टिपण्णी इसी डाक्टर राजेश कपूर के किसी आलेख के बाद ही थी जिसमे उन्होंने कुछ इस तरह के विचार दर्शाए थे जिसपर किसी की सक्षिप्त टिपण्णी थी की मायोपिक .मैंने उसपर अंगरेजी में ही लिखा था की केवल मायोपिक ही नहीं बल्कि परवर्त. आज भी मुझे कहना पड़ता है की बिना मेरी टिपण्णी में दिए गए आंकड़ों को देखे हुए फिर उन्होंने उसी तरह की टिपण्णी कर दी. हीन भावना की जो बात कपूरजी करते है तो मुझे केवल यही कहना है की हिन् भावना का शिकार वह व्यक्ति कहा जाता है जो अपनी कमजोरियों को सामने लाने में घबराता हो.वह नहीं जो अपनी कमजोरियां और अपने सामर्थ्य दोनों को समझता हो.मैं फिर कहूँगा की डाक्टर कपूर जैसे लोग पहले मेरे जैसे आलोचकों द्वारा दिखाए गए तथ्य पर ध्यान दे तब अपनी कैची जैसी जबान से अनर्गल कथन करे.ऐसे मैंने वरिष्ठ नागरिकों के बारे में भी कुछ इसी तरह की टिपण्णी की थी और डाक्टर कपूर जैसे लोगों से प्रत्युतर की अपेक्षा करता था ,पर उस समय पता नहीं क्यों वे चुप्पी मार गए.

  9. अरे प्रवक्ता वालो, अपने आंकड़े ठीक कर लो भाई, अमेरिका की पूरी आबादी ही ३ अरब नहीं है, इतनी तो विश्व के किसी एक देश की नहीं होगी….. अपनी विस्वसनीयता को मत खोइए..

  10. हीनता ग्रंथि के शिकार भारतीय ही भारत और स्वयं खुद के सबसे बड़े दुश्मन हैं. मैकाले की देशद्रोही पैदा करने वाली इस शिक्षा की ये मैकाले संतानें भारत की प्रशंसा सहन नहीं कर सकतीं और न ही भारत की श्रेष्ठता पर विश्वास कर सकती हैं.अमेरिका की असलियत इन अमेरिका भक्त अंधों को दिखाई नहीं देती.
    सच तो यही है की औसतन संसार के सबसे अधिक पागलखाने, सबसे अधिक अपराधी और सर्वाधिक जेलें होने का गौरव अमेरिका को ही प्राप्त है. संसार का सबसे अधिक भ्रस्त और बईमान देश भी अमेरिका ही है. इसके आकडे हैं मेरे पास जो अमेरिकी विद्वानों और संस्थाओं द्वारा जरी किये गए हैं. असी प्रकार यह भी सही है की एड्स के सबसे अधिक रोगी होने का सम्मान भी अमेरिका के नाम है. करीब ८-१० साल पुराने आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में हर साल नाबालिक लड़कियों के पेट से १०००००० ( das laakh ) रोगी, wikshipt और durbal santaanen janm leti हैं. saari yuwaa pidhi nashon की dal-dal में dubi huii है. isi liye we भारत adi deshon को durbal banaane के anekon shadyantr chalaa rahe हैं. pramaanon की koii kAMI NAHIN HAI. hamen apne astitw की rakshaa karani है तो अमेरिका की असलियत और भारत की wisheshtaaon को jaananaa – samajhanaa hogaa. इसके liye sri abdul kalaam का likhaa saahity badaa upayogi है.

  11. हेल्लो इंडिया …..
    नमस्कार ….आज फिर एक अच्छा मुद्दा ….उस इंडिया के लिए जिसने दुनिया को सद्चरित्र सिखाया आज वही अश्लीलता को अपने ऊपर थोपने के कगार पर आ खड़ा हो गया है….सवाल ये उठता है की जिम्मेदार कौन …युआ ..बड़े…मिडिया..शिक्षा…संस्कार…मार्केट…या निहित स्वार्थ..सोचे …कान्हा है हम ..किधर है हम…सम्लैंगता..यौन शिक्षा …एड्स…यौन सम्बन्धी बीमारी …सब विषय जा कर ख़त्म होता होता है जा कर हमारी सिमित दायरे में रह कर अपने परिवार तक ही अपने को सिमित करना और पूँजी पाने के लिए हुड को पार करना..पैसा ,भौतिक साधन पाने के लिए काम के पीछे ओवेर्तिमे करना पति पत्नी दोनों को काम करना, परिवार में समय कम देना , बच्चे को समय कम देना बच्चे क्या कर रहे है उनका ध्यान ना देते होते हुए उनके सब शौक पूरा करना ..ये समझ दारी नहीं है…बाइबिल कहती है की हाय है उन माँ बाप पर जो आपने बच्चो पर छड़ी ना उठाये ..कहने का तात्पर्य है आपको बाद में रोना न अड़े इसके पहले अपने बछो पर पुर ध्यान देना होगा …मेरा ये मानना है की यदि माँ और बाप और विशेष कर माँ यदि आपने बछो का ध्यान देवे तो कंही भी चुक नहीं हो सकती और साड़ी समस्या का हल अपने अप हो जायेगा और विशेष बात धर्म की शिक्षा उसका भय उसका प्रेम उसका विश्वास बछो को देना होगा बताना होगा.तभी हम आपने उद्देश्य में सार्थक हो पाएंगे तभी भारतीय संस्कृति अश्लीलता को उखाड़ फेंकेगी और हम सभी सफल होंगे …..प्रोफ. अविनाश…

  12. लिखते समय आपलोग भूल जाते हैं कि दुनिया में जनसँख्या के लिहाज से भारत का दूसरा स्थान है और यहाँ की संपूर्ण आबादी केवल एक अरब दस करोड़ है.केवल चीन ही ऐसा देश है जहाँ की जसंख्या भारत से ज्यादा है.अमेरिका की जनसँख्या तीस करोड़ के आसपास यानी १/३ अरब यानि अरब का एक तिहाई है.ऐसे में वहां आपने तीन अरब एड्स पीड़ित दिखा दिया. अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों में सबसे कम एड्स पीड़ित हैं.यह मैं नहीं कहता ,बल्कि वहां बसे भारतीय लोग कहते हैं.अमेरिका में अन्य यौन सम्बन्धी बीमारियाँ भी कम हैं.हाँ तलाकों की संख्या अवश्य अधिक है,पर हमारे जैसी अन्य नैतिक बीमारियाँ नहीं हैं.उदाहरण स्वरुप वहां भ्रूण हत्या नहीं होती.वहां औरतों को जलाया नहीं जाता.संलैंगिक सम्बन्ध भारत में भी कम नहीं है,पर लोग इसे छिपाने में माहिर हैं.पच्चास के दशक में भी देहातों के स्कूलों में बिरले ही कोई अछे चेहरे वाला छात्र शिक्षक की हवश का शिकार होने से बचता था.बाद में तो हालात और खराब होते गए. एड्स में भी भारत बहुत आगे है.यह भी मैं नहीं कहता न अमेरिकी प्रचार तंत्र कहता है.यह तो यहाँ विभिन्न इलाकों में काम करने वाले डाक्टरों का कथन है.पिछली सदी के अंत में सहयोग नामक गैर सरकारी संस्था के किसी डाक्टर अभिजित ने एक पुस्तिका लिखी थी उसमे ऐसे आंकडें दिखाए गए थे लो हमारी दोगले नैतिकता की पोल खोल रहे थे,पर हमने न केवल उस पुस्तिका पर रोक लगाई बल्कि डाक्टर साहिब को भी जेल भेजवा दिया.पर इन सब बातों से क्या होना है?इससे हम अपने को चरित्रवान भले ही दिखा ले पर वास्तविकता कभी न कभी सामने आ ही जाती है.अभी हमारे एक बहुत पूजनीय नेता डी.एन.ऐ टेस्ट से इनकार कर रहे हैं.इसमे भी मैं तो उस नवजवान को दोष दूंगा,जिसको भारतीय संस्कृति का तनिक भी ख्याल नहीं है.इतने महान व्यक्ति पर कीचड उछाल रहा है.ऐसी बहुत सी बाते हैं और मैं इतनी लम्बी टिपण्णी लिख कर खामखाह आपको लोगो को परेशान कर रहाहूं,पर इतना अवश्य कहूँगा की अमेरिका में एड्स पीड़ितों की संख्या वाला भूल सुधार लिया जाये.

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