प्रभात कुमार रॉय
विविधताओं से परिपूर्ण रहे भारत की अंतर्निहित शक्ति वस्तुत इसकी अनेकता में एकता के तहत ही कायम बनी रही है। धार्मिक, मजहबी, भाषाई, इलाकाई और सांस्कृतिक विविधता वस्तुतः भारत की आंतरिक कमजोरी का नहीं, वरन् भारत की विरल राष्ट्रीय एकता और शक्ति का अज्रस स्रोत रही है। ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने भारत पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए फूट डालो और राज करो की कुटिल कूटनीति और राजनीति को अंजाम दिया था। दुर्भाग्यवश आजाद भारत में भी ब्रिटिश विरासत की कुटिल कूटनीति और राजनीति बाकायदा कायम बनी रही है। असम में बोडो आतंकवादियों के एक गिरोह द्वारा अंजाम दिए गए वहशियाना कत्ल-ओ-गारद के कारण अस्सी से अधिक बेगुनाह नागरिकों को अपनी जानें कुर्बान करनी पड़ी। भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में एक कबीला दूसरे कबीले का आखिरकार दुश्मन क्यों बन बैठा है। भारत का बेहद गरीब इलाका रहा है पूर्वोत्तर, जहां कि बंगला देश से आए हुए घुसपैठियों की भरमार बनी रही है। नगालैंड में सन् १९५० के दशक में विद्रोहियों ने सबसे पहले अपना बगावती सर उठाया था। इसके बाद मिजोरम में बगावत का परचम बुलंद हुआ। असम के उल्फा के बागियों ने तो कत्ल-ओ-गारद की इंतहा बरपा कर दी थी। अनेक दशकों से पृथकतावादी गिरोहों ने समूचे पूर्वोत्तर पर आतंकवादी कहर बरपा किया हुआ है। अनेक बार बिगड़े हुए हालात का सामना करने के लिए भारत सरकार को फौज को उतारना पड़ा है। सदियों सदियों से पूर्वोत्तर के लोग भारतवासी रहे हैं, किंतु असम, मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड, बोडोलैंड आदि इलाकों के बागी आतंकवादी गिरोह हिंसक ताकत के बलबूते पर भारत से पृथक होकर अपने अपने लिए नए पृथक राष्ट्र निर्मित करना चाहते हैं। इसके लिए भारतवासी होकर भी भारतवासयों को कत्ल कर रहे हैं।
कश्मीर घाटी के हालात भी किसी हद तक तकरीबन पूर्वोत्तर सरीखे रहे हैं, जहां पृथकतावाद की आतंकवादी गिरोहो ने बहुत खून खराबा कराया है. आतंकवादी गिरोहों में कश्मीरी भारतवासी की बड़ी तादाद सदैव बनी रही है, जिन्होनों कि अन्य बेगुनाह भारतवासियों को कत्ल करने में जरा सी हिचक प्रदर्शित नहीं की है। तकरीबन एक लाख से अधिक लोग कश्मीर घाटी में विगत २६ वर्षों में हलाक हो चुके हैं, जिनमें तकरीबन पिचहत्तर हजार भारतवासी और तकरीबन पच्चीस हजार पाकिस्तानी घुसपैठी आतंकवादी रहे हैं। नक्सलपंथी गिरोहों ने विगत सैंतालिस वर्षो से देश के अनेक प्रांतों में मारकाट मचाई हुई है। नक्सल हिंसा के तहत कत्ल होने वाले भारतवासियों का आंकड़ा भी दिल दहलाने वाला रहा है, तकरीबन पचास हजार लोग नक्सल हिंसा में कुर्बान चुके हैं। नक्सल हिंसा के तहत शहीद हो जाने वाले सुरक्षा बलों के जवान और अधिकारी भी किसान और मजदूरों के बेटे रहे हैं। किसी धन्नासेठ का बेटा पुलिस अथवा मिलीट्री में कदापि भरती नहीं होता है। किसान और मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ने का क्रांतिकारी दावा पेश करने वाले नक्सल हिंसक गिरोह वस्तुतः किसान मजदूरों के बेटों को प्रायः हलाक करते रहते हैं। आतंकवादी हिंसा में इधर का कोई नागरिक अथवा पैरा मिलिट्री फोर्स का कोई जवान मरता है और उधर का कोई नक्सल नौजवान मरता है आखिरकार मरता तो कोई भारतवासी ही है।
पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर घाटी तक मुखतलिफ किस्मों के अनेक आतंकवादों का बोलबाला रहा है। भारत में विभिन्न इलाकों में सक्रिय रहे पृथकतावादी आतंकवाद और भारत के १५ प्रांतों में विस्तारित हो चुकी नक्सलपंथी बगावत के आखिरकार क्या बुनियादी कारण रहे हैं। भारतीय समाज में व्यापक तौर पर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असंतोष व्याप्त रहा है। व्यापक सामाजिक और आर्थिक असंतोष का समुचित निदान निकाल सकने में भारतीय हुकूमतें एकदम ही नाकाम सिद्ध हुई है। गरीबी रेखा की सरहद के नीचे जीने-मरने वाले भारतवासियों को और बेरोजगार नौजवानों को किसी आतंकवादी गिरोह का सरगना अपने कथित मुक्ति युद्ध के लिए तैयार कर लेता है़। भारत में आतंकवाद की कतारों में शामिल होने वाले नौजवान वैचारिक तौर से बहुत ही कम, किंतु आर्थिक विवशताओं के कारण कहीं अधिक बर्बर आतंकवादी गिरोहों की गिरफ्त में चले जाते है। जिन नौजवानों को रोजगार हासिल नहीं होता आतंकवादी गिरोह उनको विध्वंस और मारकाट के काम पर लगा देते हैं। आतंकवाद से पूर्णत निपटना है तो भारतीय हुकूमत को बर्बर आतंकवादियों के साथ ही साथ गुरबत और बेरोजगारी से जबरदस्त लोहा लेना होगा। भारतीयों के मध्य व्याप्त भयावह आर्थिक विषमता ने नक्सल गिरोहों को गुरिल्ला जंग के लिए बहुत विशाल जमीन उपलब्ध करा दी है। पृथकतावादी दहशतगर्द गिरोह भी सामाजिक और आर्थिक अंसतोष का कुटिल फायदा उठाकर नौजवानों को अपनी आतंकवादी पांतों में भरती करते रहते हैं। भारत की सरजमीन पर जातिय और सांप्रदायिक हिंसा की पृष्ठभूमि में भी संकीर्ण धर्मान्ध सरगनाओं की सिरफिरी बातों के जाल-जंजाल में नौजवानों का फंसते चले जाना है। एक जाति और संप्रदाय के भारतवासी दूसरे संप्रदाय और जाति के भारतवासियों को घरों को और बस्तियों को जलाकर खाक कर देते हैं और अकसर एक दूसरे का वहशियाना कत्ल अंजाम देते रहते हैं।
कवि नीजर ने अत्यंत सार्थक शब्द कहे कि
तन की हवस मन को गुनाहगार बना देती है बाग के बाग को बिमार बना देती है.
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालो भूख इंसान को गद्दार बना देती है।
भारत में तो 67 वर्ष की आजादी के बाद भी 40 करोड़ भारतवासी गुरबत की सरहद के नीचे भूखे-नंगे होने के बावजूद किसी तरह से जिंदा हैं। भारतीय संपन्न समाज और भारतीय हुकूमत ने वस्तुतः कितना आसान अवसर आतंकवादियों को उपलब्ध करा दिया कि वे कहीं तो बेराजगारों को और गरीब भारतवासियों को नक्सलपंथी बना दे और कहीं अलगाववादी दहशतगर्द बना दें। आतंकवाद की आक्रमकता में वैचारिक गुमराही के साथ साथ भूख और गुरबत का भी निरंतर सक्रिय योगदान बना हुआ है। आतंकवाद से लोहा लेने के लिए मनोवैज्ञानिक वैचारिक संग्राम के साथ ही भौतिक और शारीरिक स्तर पर भी लोहा लेना होगा
बाल्यकाल से शिक्षा-दीक्षा के माध्यम से सभी भारतवासियों को इंसानियत और देशभक्ति के प्रबल संस्कारों को प्रदान करके ही पृथकतावादी, सांप्रदायिक और जातिवादी संकीर्णता को समाप्त किया जा सकता है। सभी किस्मों और रंगढंग के आतंकवादी और जातिय एवं सांप्रदायिक नरसंहारों को भारत की धरा से खत्म करना है तो विभिन्न वर्गों के मध्य विद़्यमान घनघोर आर्थिक और सामाजिक विषमताओं को अत्यंत कम करना होगा। आर्थिक विषमताओं के मध्य में इलाकाई विकास विषमताएं भी भारत भर में अति विशिष्ट बनी रही है। सभी तौर तरीके वाले देशद्रोही दहशतगर्द तत्वों को पूरी तरह से धराशाही करना होगा। इंसानियत से परिपूर्ण देशभक्ति को भारत की तर्ज-ए-जिंदगैी बनाना होगा। जंग-ए-आजादी के योद्धाओं के क्रांतिकारी पैगामों को युवी पीढ़ी तक पहुंचाना होगा, ताकि वे उन तमाम देशभक्त और राष्ट्रवादी संस्कारों से लैस हो सकें, जिनको दौर ए आजादी में दुर्भाग्यवश तिलांजली दे दी गई है। भौतिक समृद्धि और विकास को ही सबकुछ सफलता समझने वाली पूंजीवादी और बाजारपरस्त विनाशकारी अपसंस्कृति से कड़ा लोहा लिए बिना भारत के नौजवानों को गुमराह होने से कदापि नहीं रोका जा सकता है। गुमराह होकर ही नौजवान वस्तुतः आतंकवादी बन जाते हैं। फिर वो गुमराह नौजवान नक्सलपंथी बन जाए, कश्मीरी दहशतगर्द बन जाए अथवा पूर्वोत्तर के आतंकवादी बन जाए। नौजवानों की गुमराही के लिए आखिर समूचे समाज और हुकूमत को क्योंकर जिम्मेदार नहीं करार दिया जाता है ?
(पूर्व सदस्य नेशनल सिक्योरिटी एजवाईजरी कॉऊंसिल)
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