गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा

हाल ही में 10 फरवरी 2025 के दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘परीक्षा पे चर्चा’(पीपीसी) कार्यक्रम में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से परीक्षा के तनाव को कम करने के उपायों पर चर्चा की। मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि इस बार परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम में 3.30 करोड़ से अधिक छात्र, 20 लाख शिक्षक और 5.51 लाख से अधिक पैरेंट्स ने रजिस्ट्रेशन करवाया था।पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि यह कार्यक्रम नई दिल्ली स्थित प्रगति मैदान के भारत मंडपम में सुबह 11 बजे से शुरू हुआ। यह पीपीसी(परीक्षा पे चर्चा) का आठवां संस्करण था और इस साल इसमें विशेष रूप से परीक्षा से संबंधित तनाव को कम करने पर माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा ध्यान केंद्रित किया गया। आज चहुंओर घोर प्रतिस्पर्धा का जमाना है। हर तरफ छात्रों में परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा अंक हासिल करने की होड़ लगी हुई है। यहां तक कि अभिभावक भी अपने बच्चों से परीक्षा में अधिकतम अंक प्राप्त करने की अपेक्षाएं रखते हैं, क्यों कि वे अपने बच्चों को किसी अन्य अभिभावकों के बच्चों से पीछे नहीं देखना चाहते हैं, ऐसे में बच्चों पर भी कहीं न कहीं परीक्षा का बहुत दवाब होता है। पीएम नरेंद्र मोदी ने पीपीसी के दौरान बच्चों को यह जानकारी दी कि ‘स्कूल में या जीवन में सफलता और असफलता के बीच अंतर को समझना जरूरी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि क्रिकेट खिलाड़ी दिन के अंत में अपनी गलतियों पर विचार करते हैं और उन पर काम करते हैं, छात्रों को भी यही करना चाहिए। उनके अनुसार, आपके अंक आपको नहीं, बल्कि आपके जीवन को दिखाते हैं।’ उन्होंने बच्चों को यह बताया कि खुद को मोटिवेट करने के लिए लक्ष्यों को बनाया जाना बहुत आवश्यक है और लक्ष्यों को हासिल करने के बाद खुद को रिवॉर्ड देना चाहिए। वास्तव में, प्रधानमंत्री जी की यह बात बिलकुल सही है, क्यों कि बिना लक्ष्यों के मंजिल को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बच्चों को तकनीक का सही इस्तेमाल करने की भी सलाह दी, क्यों कि आज तकनीक का जमाना है और तकनीक बच्चों की भलाई के लिए है। उन्होंने समय को बर्बाद करने वाली गतिविधियों से बचने की बात भी कही। आज अभिभावकों की यह एक बड़ी कमी है कि वे अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करते हैं, लेकिन अभिभावकों को यह चाहिए कि वे इस बात को समझें कि हर बच्चे की अपनी अलग विशेषताएं होतीं हैं और हर बच्चा अपने आप में यूनीक है।प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हर बच्चे में कुछ न कुछ खासियत जरूर होती है।  कोई पढ़ाई में अच्छा होता है तो किसी की और चीज में अच्छा होता है। बच्चों के साथ तनाव और डिप्रेशन पर बात करते हुए उन्होंने बच्चों को यह सुझाव दिया कि कोई भी परेशानी या दुविधा होने पर वे उसे दूसरों के साथ बांटना सीखें, इससे उनका तनाव और डिप्रेशन कम होगा। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि-‘ जिस तरह बल्लेबाज स्टेडियम में नारे और शोर को अनदेखा करके गेंद पर ध्यान केंद्रित करता है, उसी तरह छात्रों को भी दबाव के बारे में सोचने के बजाय पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’ वास्तव में टीम वर्क और धैर्य भी जीवन में जरूरी है। बिना टीम वर्क के किसी टास्क को पूरा करने में बहुत दिक्कतें आतीं हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने बच्चों को उनके खान-पान के बारे में अहम टिप्स देते हुए यह कहा कि  भोजन को अच्छी तरह से चबाकर(32बार) खाना चाहिए। कहना ग़लत नहीं कि बच्चों को हेल्दी डाइट लेना बहुत ही जरूरी है, क्यों कि अच्छे खान-पान से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है और स्वास्थ्य अच्छा रहने से अध्ययन में भी मन लगता है।उन्होंने यह भी बताया कि बच्चों को कौन से खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए और किनसे बचना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि कब और क्या खाना उचित है। बहरहाल, यहां कहना चाहूंगा कि बच्चों को यह चाहिए कि वे अपने टाइम का सही से मैनेजमेंट करें। परीक्षा के दिनों में बच्चों को यह चाहिए कि वे कम से कम आठ घंटे की नींद अवश्य लें, क्यों कि अच्छी नींद से मस्तिष्क तरोताजा रहेगा और परीक्षा में सफलता मिलेगी। बच्चों को यह चाहिए कि बच्चे खुद पर फोकस करें। वास्तव में जीवन का मतलब सिर्फ परीक्षा नहीं है। पढ़ाई के साथ ही कौशल भी बहुत ही जरूरी है। अभिभावकों को यह चाहिए कि वे इस बात को ध्यान रखें कि दुनिया का हर बच्चा एक जैसा नहीं होता है। कुछ बच्चे खेल-कूद में अच्छे होते हैं और पढ़ाई में कमजोर होते हैं।उनके मां-बाप, अभिभावकों और टीचर्स को यह चाहिए कि वे बच्चों के अंदर छिपी प्रतिभा को तलाशें और उसे तराशें भी। अभिभावकों और टीचर्स को यह बात समझनी चाहिए कि यदि वे बच्चों को बात-बात पर टोकेंगे तो इससे बच्चों का मनोबल बढ़ने की बजाय गिरेगा ही। जब अभिभावक और टीचर्स बच्चों को टोकने की बजाय किसी बात को प्यार से समझाएंगे तो इससे बच्चों का मनोबल उच्च होगा और वे मोटिवेट होंगे। अभिभावकों और टीचर्स को यह चाहिए कि वे बच्चों को यह बताएं कि परीक्षा में फेल हो जाने से जीवन कभी रूकता नहीं है। जीवन में अनेक अवसर आते हैं। वास्तव में असफलताएं गुरू होतीं हैं जो हमें कुछ न कुछ सिखातीं हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि जीवन सिर्फ परीक्षाएं नहीं हैं, जीवन को समग्रता में देखना चाहिए। बहरहाल, कहना चाहूंगा कि कुछ दिनों बाद ही 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो रही है और यह समय अपनी तैयारियों के रीविजन(दोहराने) का है। परीक्षा समय के दौरान कूल व रिलैक्स माइंड रहकर तैयारी को बेहतर शेप दी जा सकती है।अगर किसी प्रश्न को लेकर कोई कन्फ्यूजन है, तो बच्चों को यह चाहिए कि इस संबंध में वे अपने शिक्षक, माता पिता, अभिभावकों, सहपाठियों से पूछने में कोई संकोच न करें। परीक्षा को नजदीक जानकर कभी भी घबराएं नहीं। परीक्षा के समय में आत्मविश्वास को बनाए रखना बहुत ही जरूरी होता है। बच्चों को यह चाहिए कि वे किसी भी टापिक को याद करने के लिए लिख-लिखकर प्रैक्टिस करें, इससे उनमें आत्मविश्वास आएगा। बच्चों को यह चाहिए कि वे गणित जैसे विषय में स्टेप्स को फालो करें, क्यों कि गणित में स्टेप्स के हिसाब से अंक दिए जाते हैं,भले ही आंसर सही न आए।बायोलॉजी के उत्तर लिखते समय जरूरी डायग्राम और उसकी लैबलिंग अवश्य की जानी चाहिए। वहीं पर फिजिक्स और केमेस्ट्री के प्रश्नों के उत्तरों में रसायनिक सूत्रों, फॉर्मूला आदि का प्रयोग करके शान्ति से सटीक उत्तर लिखने का प्रयास किया जाना बहुत ही जरूरी है। भूगोल, अर्थशास्त्र जैसे विषयों में भी डायग्राम्स पर बच्चों को ध्यान केंद्रित करना चाहिए। परीक्षा में बच्चों को यह चाहिए कि उन्हें जो प्रश्न पहले आ रहें हैं, उन्हें हल करें और बाद में दूसरे प्रश्नों को हल करने का प्रयास करें। किसी भी प्रश्न को खाली नहीं छोड़ें, न भी आए तो भी उसे लिखने का प्रयास जरूर करें और कुछ न कुछ उत्तर जरूर दें। परीक्षा के दिनों में पानी की प्रोपर इनटेक रखें और स्वयं को डिहाइड्रेट न होने दें। ताज़ा भोजन, ताजा फल, ज्यूस आदि का प्रयोग, अच्छी नींद परीक्षा के दिनों में बहुत ही जरूरी है। परीक्षा के दिनों में घंटों घंटों तक लगातार बिलकुल नहीं पढ़ें। बीच-बीच में ब्रेक लेना बहुत जरूरी है, इससे माइंड फ्रेश होता है और ताजगी बनी रहती है। परीक्षा में समय का ध्यान रखते हुए साफ और सुंदर लिखना चाहिए ताकि परीक्षक अच्छे अंक दें। ओवरराइटिंग नहीं की जानी चाहिए, यदि कुछ सही नहीं लिखा गया है तो उसे सिर्फ एकबार तिरछा काट दें। अधिक काट-पीट/कांट-छांट से परीक्षकों पर बुरा असर पड़ता है और वे परीक्षा में विद्यार्थी को कम अंक दें बैठते हैं। परीक्षा पर फ़ालतू की गासिप न करें, इससे विद्यार्थी का ध्यान भटकता है और वह तनाव और अवसाद में आ सकता है। हमेशा सकारात्मक रहने का प्रयास करें। गहरी और लंबी सांस लें, ईश्वर का ध्यान करें। विद्यार्थियों को यह चाहिए कि वे आत्मविश्वास से भरपूर हों कि उन्होंने जो पढ़ा है, परीक्षा उसी सिलेबस में से होगी। मां बाप, अभिभावक अपने बच्चों को यह बताएं कि उनमें अच्छा करने की भरपूर क्षमताएं हैं और वे किसी से किसी भी मायनों में कमजोर नहीं हैं। बच्चों को यह बताएं कि वे परीक्षा से घबराएँ नहीं, परीक्षा को फोबिया न बनाएं। जीवन हर घड़ी एक परीक्षा ही तो है और अवसर आते रहते हैं। असफलता एक चुनौती है, उसे स्वीकार करना चाहिए। वास्तव में,अध्ययन सामग्री के विशालकाय पहाड़ से निपटने का विचार बच्चों के लिए बहुत डरावना हो सकता है। इसलिए अभिभावकों को यह चाहिए कि वे बच्चों को यह बताएं कि ज्यादा बड़े सिलेबस को एक साथ निपटाने की कोशिश करने के बजाय, इसे छोटे, अधिक प्रबंधनीय टुकड़ों में विभाजित करें। वास्तव में एक अध्ययन कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए और अध्ययन सत्रों को छोटे, केंद्रित अवधियों में विभाजित किया जाना चाहिए, इसमें अभिभावक और टीचर्स मददगार साबित हो सकते हैं।परीक्षा के दिनों में ध्यान और योगाभ्यास(माइंडफुलनेस प्रैक्टिस) बहुत जरूरी है। विषय वस्तु, कंटेंट को रटने की बजाय समझें। परीक्षा में तनाव और अवसाद से बचने के लिए दोस्तों, परिवार, शिक्षकों या सहपाठियों से संवाद करें।हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि परीक्षाएँ ही सब कुछ नहीं हैं। याद रखें कि आपकी योग्यता और भविष्य की सफलता एक परीक्षा या ग्रेड से निर्धारित नहीं होती। सकारात्मक सोच बनाए रखने की कोशिश करें और जानें कि आपका सर्वश्रेष्ठ प्रयास ही सबकुछ है। अंत में किसी कवि के शब्दों में यही कहूंगा कि-‘कोशिश कर , हल निकलेगा,आज नहीं तो, कल निकलेगा।अर्जुन के तीर सा सध,मरुस्थल से भी जल निकलेगा।मेहनत कर , पौधों को पानी दे,बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,फौलाद का भी बल निकलेगा।जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को,गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा।कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,जो हैं आज थमा थमा सा, चल निकलेगा।

सुनील कुमार महला

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