
—–विनय कुमार विनायक
ना राजा का
ना रानी का
ईश वंदना करता हूं
नेता, अफसर, चपरासी का
हक उपर से नीचे आए
बीच में ना लटक जाए
भ्रष्टाचार संहार दे!
ना सस्ती का
ना महंगी का
ईश वंदना करता हूं
माल गोदाम तलाशी का
खेत में पानी,जन को रोटी
नकद में, उधार में
अपना एक बाजार दे!
ना तुलसी छंद
ना मुक्तक का
ईश वंदना करता हूं
कबीरा की उलटबासी का
निराला का चीत्कार मिटे
दिनकर की हुंकार उठे
जन गीत-नाद-मल्हार से!
ना कावा का
ना काशी का
ईश वंदना करता हूं
मानव सत्यानाशी का
आतंक से उबार दे
स्नेह-प्रेम-सहकार दे
धरा को बहार दे!
ना एड्स का
ना कैंसर का
ईश वंदना करता हूं
आज की सर्दी-खांसी का
जन-मन स्वस्थ हो
सृष्टि का ना अस्त हो
जन को-रोना से उबार दे!
—–विनय कुमार विनायक