अच्छे दिन की आस

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-आदर्श तिवारी-

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इस लोकसभा चुनाव में जनता में जिस प्रकार से जागरूकता, भारी मतदान, चेतना और उत्साह देखने को मिला हैं. शायद यह देश का पहला ऐसा चुनाव था जिसको लेकर युवा, महिलाएं, किसान आदि सभी उत्साहित थे. जनता ने अपना फैसला सुना दिया. और ये साफ कर दिया कि उसे एक स्थाई सरकार चाहिए. उसे नेता नहीं नायक चाहिए जिसके पास देश तथा देश की जनता दोनों के हित में निर्णायक फैसला लेने की ताकत हो. इसके लिए जनता ने एनडीए को पूर्ण बहुमत दिया अब जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना इस सरकार की जिम्मेदारी हैं.

इस सरकार के लिए चुनौतिया भी कम नहीं हैं. देश में महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, आर्थिक नीति. विदेश नीति इत्यादि ये अहम चुनौतियां इस नई सरकार के सामने हैं. जनता के लिए सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई से हैं. हर एक परिवार से हैं, हर के व्यक्ति से हैं.ये एक ऐसा मसला हैं जिस पर पिछली सरकार विफल रही हैं. नतीजा सबके सामने है कि जनता ने उसे क्या दंड दिया हैं. गत तीन सालों में जीडीपी लगातार घटती हुई 4.5 प्रतिशत तक पहुंच चुकी हैं. महंगाई की दर दो अंकों में जा चुकी हैं.और रोजमर्रा के सामानों में तो महंगाई आम जनता पर कहर ढाहते हुए 15 प्रतिशत अंक तक पहुंच चुकी हैं.ये भी सरकार अबतक महंगाई रोकने या कम करने के मुद्दे पर पूरी तरह नाकाम रही हैं.जनता अच्छे  दिन के इंतजार में हैं आखिर कब आयेंगे वो अच्छे.हम भी अच्छे दिनों की आस लगायें बैठे हैं. महंगाई दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही हैं.लोग महंगाई से त्रस्त हैं. 30करोड़ से ज्यादा लोग प्रतिदिन भूखे पेट सोते हैं. करीब 33 करोड़ युवा हाथ काम की तलास में हैं अर्थात बेरोजगार हैं. इलाज के लिए अस्पताल हैं, लेकिन डॉक्टर नहीं हैं. अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होता जा रहा हैं.आखिर ये फासला कब रुकेगा. गरीब कब तक गरीब रहेगा इसका जबाब न तो नरेंद्र मोदी के पास हैं और न ही किसी नेता के पास.

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